श्रम संस्कृति की खुशबू बिखेरता दिल्ली का स्टूडियो सफदर

12 फ़रवरी 2022
स्टूडियो सफदर बनाने का उद्देश्य मजदूर समुदाय के नजदीक ही में एक सांस्कृतिक केंद्र बनाना था. इसके प्रदर्शन और नाटकों में शादी खामपुर के आस-पास के मजदूर वर्ग के लोग ही अभिनेता और जज होते हैं.
राहुल एम
स्टूडियो सफदर बनाने का उद्देश्य मजदूर समुदाय के नजदीक ही में एक सांस्कृतिक केंद्र बनाना था. इसके प्रदर्शन और नाटकों में शादी खामपुर के आस-पास के मजदूर वर्ग के लोग ही अभिनेता और जज होते हैं.
राहुल एम

पश्चिमी दिल्ली के शादी खामपुर में दो चिटके लकड़ी के खंभों के सहारे टिके नीले रंग के तिरपाल से ढकी और सर्दियों की तेज हवा से जूझती एक जर्जर झोपड़ी में चाय की दुकान चलाने वाले रवि कुमार ओटवाल ने बदलते मौसम और धुंए के कारण अपनी खरखराती लेकिन जोशीली आवाज में मुझे बताया कि “मेरी हमेशा से थिएटर में दिलचस्पी रही है. मैं स्कूल में भी मोनो-एक्टिंग करने वाला बेहतरीन कलाकार माना जाता था.” उनकी चाय की दुकान पूरे दिन हलचल से भरे रहने वाले एक बैंक और एक फोटो स्टूडियो के सामने है. दुकान से करीब एक मिनट की पैदल दूरी पर स्टूडियो सफदर है.

स्टूडियो सफदर दिल्ली की सरकारों और शादी खामपुर के आस-पास के मजदूर वर्ग के बीच अक्सर होने वाली टकराहटों के बीच पैदा हुआ. स्टूडियो का नाम कलाकार और सामाजिक कार्यकर्ता सफदर हाशमी के नाम पर है. सफदर ने इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल के वक्त दिल्ली में स्ट्रीट थियेटर अभियान शुरू किया था. उनके संगठन ‘जन नाट्य मंच’ ने राजधानी के मजदूरों बीच सत्तारूढ़ सरकार की आलोचना करते हुए बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी, सांप्रदायिकता, श्रमिकों के अधिकारों का हनन और महिलाओं पर होने वाले उत्पीड़न पर नाटक किए.

थिएटर के निर्देशक सुधन्वा देशपांडे ने मुझे बताया, “सांस्कृतिक साधन के रूप में स्ट्रीट थिएटर शहरी और ग्रामीण दोनों स्थानों पर मजदूर वर्ग के बीच अभिव्यक्ति का एक तरीका बन गया है. इसके जरिए वे अपनी शिकायतों और चिंताओं को अभिव्यक्त करते हैं. जब आप सत्ता में बैठे लोगों को देखते हैं तो आप पाते हैं कि वे सभी एक समृद्ध पृष्ठभूमि से ताल्लुक रखते हैं, तभी नुक्कड़ नाटक जैसी चीजों का जन्म होता है. वे गलियों, चौराहों पर गीतों और आख्यानों के जरिए खुद को अभिव्यक्त करते हैं."

1 जनवरी 1989 को हाशमी और उनकी मंडली मध्य भारतीय ट्रेड यूनियन (सीआईटीयू) से जुड़े श्रमिकों की मांगों को लेकर पूर्वी दिल्ली के साहिबाबाद में एक नाटक का मंचन किया. इसी दौरान एक स्थानीय कांग्रेस नेता के हमलावरों ने हाशमी और नेपाली मजदूर राम बहादुर की हत्या कर दी. हत्या के बावजूद अगले दिन फिर जन नाट्य मंच ने सीआईटीयू के श्रमिकों के समर्थन में उसी स्थान पर उसी नाटक का मंचन किया. तभी से मंडली हर साल 1 जनवरी को हाशमी और राम बहादुर की याद में साहिबाबाद में नाटक करती है. हाशमी के जीवन पर आधारित अपनी पुस्तक हल्ला बोल में देशपांडे बताते हैं कि मजदूरों के इलाके में सांस्कृतिक केंद्र बनाना एक आदर्शवादी और उत्साहपूर्ण सोच थी. इसमें बढ़ई और बिजली के कार्यों के लिए कार्यशालाएं और फिल्म निर्माण के लिए उपकरणों के साथ एक संपादन कक्ष शामिल था. हाशमी श्रमिकों को अपनी कहानी व्यक्त करने के लिए संसाधन उपलब्ध करा कर सशक्त बनाना चाहते थे.

स्टूडियो सफदर की स्थापना 2012 में जन नाट्य मंच द्वारा की गई थी और तभी से यह वामपंथ के प्रति झुकाव और क्रांतिकारी स्ट्रीट थिएटर के लिए जाना जाता है. यह स्टूडियो काफी अपरंपरागत ढंग से बनाया गया है. इसकी काली दीवारें और सीमेंट से बना प्रदर्शन क्षेत्र उलट तरीके से बना है. यह शादी खामपुर की सड़कों के जाल से घिरा हुआ है जहां के लोग पूरे देश के विभिन्न भागों से आकर दिल्ली मिल्क स्कीम प्लांट और स्वतंत्र भारत मिल्स जैसी दशकों पुरानी फैक्ट्रियों में मजदूरी करते हैं. यहां स्थित दिल्ली परिवहन निगम डिपो भी क्षेत्र के कई परिवारों को रोजगार देता है. आप्रवास के कई दौर गुजरने के बाद यहां जाट और यादव सहित विभाजन के दौरान आए सिख समुदाय और बाद में दक्षिण भारत के लोगों के आकर बसने से एक मिश्रित संस्कृति तैयार हुई है. इलाके में प्रवेश करने पर आपको एक मंदिर, एक गुरुद्वारा और पास ही में एक मस्जिद दिखाई देंगे.

शुभ बधवर कारवां में इंटर्न हैं.

Keywords: Indian Theatre Safdar Hashmi Emergency unions
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