बांदा जिले से पांच किलोमीटर दूर एक गांव है ब्रह्मा डेरा. 17 जुलाई को इस गांव के एक किसान रामकिशोर ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. पूरे मामले को जानने जब हम उसके घर पहुंचे, तो देखा, घर के बाहर करीब दो साल का बच्चा हाथ में सूखी रोटी लिए खेल रहा है. उसको शायद नहीं पता था कि उसके लिए रोटी का इंतजाम करने वाले उसके बाबा की मौत हो चुकी है. परिवार के बाकी सदस्य गमगीन थे और इस बात से चिंतित थे कि रामकिशोर की तेरहवीं कैसे की जाए क्योंकि उनके पास पैसा नहीं है. अगर पैसा होता तो शायद रामकिशोर की मौत न होती. खपरैल और मिट्टी का बना टूटा-फूटा घर देख कर उसकी हैसियत का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता था.
आर्थिक तंगी और कर्ज में डूबे रामकिशोर ने 17 जुलाई की रात घर से सटे खेत में जाकर फांसी लगा ली. रामकिशोर की असमय मौत का कारण आर्यावर्त बैंक (इलाहाबाद यूपी ग्रामीण बैंक) का वह निर्णय है, जो किसानों को बैंक से लिया गया कर्जा वापस करने की ताकीद करता है.
रामकिशोर का पुत्र राम करन, उन्हीं के साथ गांव में रहकर खेती करता था. उसने बताया कि बैंक का एक लाख का कर्ज था, जो ट्यूबवेल लगवाने के लिए लिया था. गांव में बैंक के नोटिस की चर्चा थी. जिसको लेकर वे और परेशान रहने लगे थे. रामकिशोर के ऊपर दो लाख के करीब गांव वालों का कर्ज भी था. घटनाक्रम वाली रात के बारे में राम करन का कहना है कि उस दिन गांव के साहूकारों ने पापा के साथ गाली-गलौच की थी, जिससे वह बहुत अपमानित महसूस कर रहे थे. राम करन का कहना है, “पापा को लगता था कि अब उनकी जमीन छिन जाएगी”.
बैंक से कर्ज वापसी का नोटिस मिलने के बाद ऐसा कदम उठाने वाले रामकिशोर इलाके में अकेले नहीं हैं.
जब मैंने राम करन से पूछा कि बैंक का नोटिस कब मिला था तो उसने बताया कि उनके पास बैंक का कोई नोटिस नहीं आया. फिर वसूली की बात कैसे पता चली, इस पर उसका कहना था कि गांव में हो रही चर्चाओं से पता चला कि जिनका बैंक का कर्ज बकाया है, बैंक उनकी जमीनें नीलाम करेंगे. राम करन के पास हाल में भेजे गए नोटिस की प्रति नहीं है, लेकिन उनके पास 2016 में एक बार पहले भी नोटिस आ चुका है, जिसमें 33440 रुपए जमा करने के लिए कहा गया है. राम किशोर को 2016 में मिले नोटिस से पता चलता है कि उन्हें कर्ज लिए 10 साल हो गए हैं और इस बीच एक बार केन्द्र सरकार और एक बार उत्तर प्रदेश सरकार किसानों की कर्जमाफी कर चुकी है.
बांदा जिले में जुलाई के महीने में पांच किसानों ने आत्महत्या कर ली. इन किसानों के नाम हैं: लाला श्रीवास, छोटेलाल, धीरज साहू , रामकिशोर और महेश शुक्ला. जिले में हो रही एक के बाद एक आत्महत्याओं में से अधिकांश का कारण है आर्यावर्त बैंक का वह निर्णय, जिसमें किसानों को बैंक से लिए गए कर्ज को वापस करने के लिए नोटिस भेजा जा रहा है. किसानों को डर है कि बैंक के नोटिस के बाद अब उनकी जमीन नीलाम होगी और उन्हें जेल जाना पड़ेगा. बांदा समेत बुंदेलखंड कई सालों से सूखे की चपेट में है.
बैंक अधिकारियों के अनुसार, जिले के एक लाख से अधिक किसानों ने आर्यावर्त बैंक की अलग-अलग शाखाओं से किसान क्रेडिट कार्ड पर कृषि के लिए लोन ले रखा है. बांदा जिला मुख्यालय स्थित मेन ब्रांच शाखा में ऋण विभाग के अधिकारी नरेन्द्र भटनागर का कहना है, “हम उन सभी किसानों को नोटिस भेज रहे हैं, जिनका ऋण बकाया है. 20 जुलाई तक 10500 लोगों को ऋण वसूली का नोटिस भेजा जा चुका है.”
ये नोटिस आदित्यनाथ सरकार की 2017 की उस घोषणा का उल्लंघन हैं, जिसमें सरकार ने छोटे और सीमांत (12 बीघा तक के सभी) किसानों के लिए एक लाख रुपए तक का कर्ज माफ करने की बात कही थी. जब मैंने बैंको की इस नाफरमानी की वजह भटनागर से पूछी तो उनका कहना था, “एनपीए (गैर-निष्पादित परिसंपत्ति) को कम करने का दबाव भारतीय रिजर्व बैंक की ओर से बैंको पर पड़ रहा है इसलिए छोटे या बड़े सभी किसानों को नोटिस भेजे जा रहे हैं.”
बता दें कि फरवरी 2018 में रिजर्व बैंक ने एनपीए के संबंध में एक सर्कुलर जारी किया था जिसमें एक दिन की चूक होने पर भी खाते को एनपीए घोषित कर समाधान की कार्रवाई शुरू करने को कहा गया था. इस साल अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट ने आरबीआई के 12 फरवरी वाले सर्कुलर को उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर बताया था जिसके बाद जून में बने नए नियम के तहत ऐसे खातों को 30 दिन की समयावधि में चिह्नित करना है.
लगता है कि नियमों में इस तरह यकायक हो रहे बदलाव के चलते कितने रुपए तक के बकाया कर्ज वालों को नोटिस भेजा जाना है, इस पर स्पष्टता का अभाव है. भटनागर ने बताया, “छोटे-बड़े सभी किसान जिनका भी बकाया है, उन सभी को कर्ज-वापसी के नोटिस भेजे गए हैं.”
बांदा जिले की नरैनी तहसील के मुंगौरा गांव के किसान लाला श्रीवास ने भी कर्ज से तंग आकर आत्महत्या कर ली. उन्होंने जुलाई 2015 में इलाहाबाद यूपी ग्रामीण बैंक की नरैनी शाखा से 70000 रुपए का कर्ज लिया था, जो कर्जमाफी के बाद चुकता हो गया था, लेकिन उसका ब्याज बकाया था, जिसकी एन्ट्री उसकी पासबुक में देखी जा सकती है. लाला के भाई केशव का कहना है कि बैंक वाले गांव में आकर बकाएदार किसानों को कर्ज जमा करने का तकादा करते थे. लाला को भी इसका पता गांव में आए बैंक अफसरों के जरिए ही चला था कि उसका कर्ज भी बकाया है और जमा न करने पर बैंक कार्रवाई करेगा. नोटिस के बारे में लाला के बेटे राजेश का कहना है कि इसकी कोई जानकारी नहीं है.
मुंगौरा के ही एक अन्य किसान बिहारी का कहना है कि उन्होंने 2015 में इलाहाबाद बैंक यूपी ग्रामीण बैंक की नरैनी शाखा से 64 हजार रुपए का लोन लिया था. जिसका ब्याज और मूलधन समय-समय पर अपनी बचत और सुविधा के अनुसार जमा करते रहे. “इसके बाद भी न कोई कर्ज माफ हुआ है और न किसी प्रकार की कोई छूट मिली है और अब नोटिस मिला है जिसमें 81 हजार रुपए जमा करने के लिए कहा गया है.”
ऐसा ही किसान लालाराम के परिवार के साथ हुआ है. लालाराम चार भाई हैं, जो अलग-अलग खेती करते हैं, चारों के पास बैंक का नोटिस है जिसमें नोटिस मिलने के 10 दिन के अंदर कर्ज वापस करने के लिए कहा गया है. कर्ज वापस न करने की दशा में उचित कारवाई का निर्देश नोटिस पर साफ पढ़ा जा सकता है.
बुंदेलखंड मुख्य रूप से कृषि प्रधान इलाका है. यहां लगभग 80 प्रतिशत आबादी खेती-किसानी से जुड़ी है जो यहां के लोगों के लिए रोजगार का प्रमुख साधन है. पूरे बुंदेलखंड और बांदा में आमतौर पर फसल चक्र के हिसाब से दो ही मौसम में खेती होती है जो बारिश के मौसम यानी रबी की फसल में धान और तिलहन की और खरीफ के मौसम में अनाज और दलहन की खेती होती है. यहां खेती मौसम आधारित और बारिश पर निर्भर है इस कारण बारिश न होने या अधिक होने जैसी स्थिति में फसल अत्यधिक नुकसान होता है, जो किसानों को कर्ज जैसी स्थिति में पहुंचा देता है.
किसानों को भेजे जा रहे नोटिसों में 10 दिन के भीतर कर्ज वापस न करने की दशा में कानूनी कार्यवाही का निर्देश तो है, लेकिन कार्रवाई क्या होगी, इसका जिक्र नोटिस में नहीं है. किसान डर के चलते भी है आत्महत्या कर रहे हैं कि उनको होने वाली कार्यवाही की प्रकृति का पता नहीं है. ऐसे में इलाके में तमाम तरह की अफवाहें उड़ रही हैं. मैंने जब इस बारे में बैंक अधिकारियों से बात की तो उनमें से किसी ने यह नहीं बताया कि कर्ज न लौटाने वाले किसानों पर क्या कार्रवाई की जाएगी. किसान इस नोटिस को जमीन से बेदखली या फिर जेल की सजा के तौर पर देख रहा है, जो कि उसके लिए असहाय बना देने वाली स्थिति है.
बांदा जिले के किसान अधिकार कार्यकर्ता शिवनारायण परिहार कहते हैं, "किसी किसान के लिए उसकी जमीन से बेदखल कर दिया जाना या जेल भेजा जाना सदमे से कम नहीं होता और सार्वजनिक बेइज्जती से बचने के लिए उसे आत्महत्या कर लेना अधिक सम्मानजनक लगता है.”
परिहार ने मुझे आगे बताया, “सूखे की वजह से लागत कई गुना बढ़ जाती है. ऊपर से फसलों के अच्छे दाम नहीं मिलते, जिसने यहां के किसानों की परेशानी को कई गुना बढ़ा दिया है. ऐसे में कर्ज ही उसके जीने का सहारा बनता है, जिसे वह अगली फसल में चुकाने की सोचते हैं.” वह कहते हैं कि बार-बार पड़ रहे सूखे के कारण किसान कर्ज के दुष्चक्र में फंसते जा रहे हैं और तंग आकर आत्महत्या जैसे कदम उठा रहे हैं.
आर्यावर्त बैंक की मुख्य शाखा के ऋण अधिकारी नरेन्द्र भटनागर का कहना है, “ऋण वसूली के लिए हर सम्भव प्रयास किया जाएगा, क्योंकि उनको कर्ज अदायगी के लिए पर्याप्त समय दिया गया था, जिसमें वे कर्ज नहीं लौटा सके. अब यह बैंक पर निर्भर करता है कि वह क्या कार्रवाई करता है.”
जिन किसानों को नोटिस जारी हुआ है, उनमें से अधिकांश छोटी जोत वाले किसान हैं, जिनकी दो से पांच बीघा तक खेती है. पिछले चार सालों से लगातार पड़ रहे सूखे ने इनकी कमर तोड़ दी है. ऐसे में बैंक का कर्ज चुकाना तो दूर की बात है, अपने घर का खर्च चलाना भी दूभर हो रहा है.
नरैनी के किसान सुशील का कहना है कि बुंदेलखंड में किसान को कर्ज से मुक्ति इसलिए भी नहीं मिलती कि यहां बैंक के अफसरों और दलालों का गठजोड़ काम करता है जो कमीशन लेकर किसानों को कर्ज मुहैया कराता है.
किसान रामआसरे बताते हैं, “2017 में उत्तर प्रदेश सरकार ने कर्जमाफी की घोषणा की तो बैंक अधिकारियों ने दलालों के साथ मिल कर किसानों को पुराने कर्ज जमा करने की सूरत में नए कर्ज दिलाए जिससे किसानों का कर्ज माफ नहीं हुआ. सरकार ने भी कर्जमाफी से तुरंत पहले लिए गए कर्ज माफ नहीं किए. ऐसे में किसान के हाथ पैसा बहुत नहीं आया लेकिन उसको फायदा ये हुआ कि उसको एक साल की राहत मिल गई. इसमें फायदा बैंक अधिकारियों का हुआ जिन्होंने इसके बदले 10 से 15 प्रतिशत तक कमीशन लिया.”
इनके अलावा बबेरू तहसील के मुसिवा गांव के छोटेलाल, बांदा शहर कोतवाली के धीरज साहू ऐसे ही दूसरे छोटे किसान हैं, जिन्होंने कर्ज से तंग आकर जुलाई में ही मौत को गले लगा लिया है. बुंदेलखंड में बांदा के अलावा हमीरपुर, महोबा, जालौन चित्रकूट के किसानों में भी डर है कि न जाने कब बैंक के अफसर उनके दरवाजे पर आ खड़े हों.
मोदी सरकार ने चुनाव से पहले फरवरी में बजट पेश करते हुए 'प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना' आरम्भ की थी, जिसको लेकर बहुत से दावे किए गए थे. इस योजना के तहत सरकार हर किसान के खाते में साल भर में 6 हजार रुपए देगी, जिससे उसकी आर्थिक स्थिति में सुधार लाया जा सके. चुनाव के पहले कुछ किसानों को इसका लाभ जरूर मिला, लेकिन बुंदेलखंड के अधिकांश किसानों को इस योजना के बारे में पता ही नहीं है यहां और इसके लाभार्थियों की संख्या भी बहुत कम है. आत्महत्या जैसा कदम उठाने वाले इन पांचो किसानों में से किसी को भी किसान सम्मान योजना का लाभ नहीं मिला है.
एक महीने से भी कम समय में हुई इन पांच आत्महत्याओं के बाद भी इनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है. बांदा के जिलाधिकारी से जब सम्पर्क करने की कोशिश की गई, पहले उनके कार्यालय से उनके बाहर होने की जानकारी दी गई और जब दोबारा सम्पर्क किया गया तो बताया गया कि मामलों की जांच जारी है.
बुंदेलखंड के सभी 19 विधायक और चार सांसद बीजेपी के हैं. लेकिन किसी प्रतिनिधि को इस बात की फिक्र नहीं है कि उनके क्षेत्र में एक के बाद एक पांच किसानों ने आत्महत्या क्यों की. मरने वाले पांचों परिवारों का कहना है कि घटना के दिन से लेकर आज तक एक भी सरकारी नुमाइंदा उनकी खोज-खबर लेने नहीं आया है. मैंने बांदा सदर विधायक प्रकाश द्विवेदी और इलाके के सांसद आर. के. पटेल से प्रतिक्रिया जानने के लिए संपर्क की कोशिश की. पहली बार मुझे बताया गया कि विधायक लखनऊ में और सांसद दिल्ली में हैं. लेकिन इसके बाद उनसे संपर्क करने के मेरे तमाम प्रयास विफल साबित हुए.