कांशीराम की रणनीति पर आधारित पिछड़े वर्गों का गठबंधन ही था, जिसने यूपी चुनाव जीता, न कि हिंदुत्व और आर्थिक संकट के डर ने.
अमृतपाल अगस्त में भारत लौटा. अपनी वापसी के बाद की छोटी अवधि में, उसने खुद को सिख समुदाय का रक्षक बना लिया और खालिस्तान की मांग का सबसे स्पष्ट समर्थक बन गया.