“पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक कहावत है कि किसान अपने लिए पैदा नहीं करता और अपना पैदा किया कभी नष्ट नहीं करता,” क्षेत्र में लंबे समय से किसान आंदोलन का नेतृत्व कर रहे नरेंद्र सिंह राणा फोन पर मुझे लॉकडाउन में वहां के किसानों की स्थिति के बारे में समझा रहे थे. उन्होंने कहा, “लेकिन इस लॉकडाउन की पीड़ा किसान और मजदूर दोनों को सहनी पड़ रही है. साल का यह वक्त खेती-किसानी के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है क्योंकि गेहूं की फसल पक चुकी होती है और उसकी कटाई के साथ सब्जियों का मौसम आ जाता है. लेकिन इस साल फल-फूल, मछली, पोल्ट्री, आदि सभी पूरी तरह नष्ट हो चुके हैं और अब लॉकडाउन तीन शुरू हो गया है. किसानों ने अपने फूलों और सब्जियों को खुद ही खत्म करना शुरू कर दिया है.”
राणा किसान अधिकार आंदोलन से भी जुड़े हैं. उन्होंने मुझे बताया कि इस साल किसानों ने कई मुसीबतों का सामना किया है. “मौसम की मार इस बार हमने बहुत सही. लगता है कि भगवान भी हम किसानों से नाराज चल रहा है. बेमौसम बारिश के चलते गेहूं की बुआई कम हुई और देर से हुई. जब फसल काटने का समय आया तो बारिश हो गई और ओले पड़े जिससे पूरा गेहूं काला पड़ गया. अब हमें कोई खरीदार मिल नहीं रहा है.” उन्होंने बताया, “किसानों की समस्या का हल किसी के पास नहीं है. जिनके पास है वे करना नहीं चाहते. आदित्यनाथ सरकार ने कुछ समय पहले बिजली के दाम बढ़ा दिए लेकिन हमारी आमदनी तो बढ़ी नहीं. गन्ने का भुगतान मिलों ने किया नहीं और अब समय से पर्ची भेज नहीं रहे हैं. लॉकडाउन के शुरू के दिनों में सभी काम बंद थे. उससे भी फसल लेट हो गई. यह नुकसान भी किसान का हुआ है.”
क्षेत्र के जानेमाने किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत के शुरुआती दिनों के सहयोगी हरवीर सिंह ने मुझे कहा, “इस बार हमें गेहूं काटने में बड़ी दिक्कत हुई क्योंकि हमारा क्षेत्र कोरोना हॉटस्पॉट है. जैसे-तैसे गेहूं घर आ गया है पर अब उसका कोई खरीदार नहीं मिल रहा है. कोई 1700 रुपए क्विंटल, तो कोई 1725 देने की बात कर रहा है जबकि सरकारी भाव 1925 रुपए क्विंटल है. हॉटस्पॉट होने की वजह से किसान डरे हुए हैं. कोई मवाना मंडी गेंहू नहीं ले जा रहा है. बारिश होने की वजह से गेहूं काल पड़ गया था तो मंडी में उसको कोई खरीदेगा भी नहीं है और इसमें भी कई समस्या आ रही है. पहले मोबाइल पर रजिस्ट्रेशन करना पड़ रहा है जिससे किसानों को दिक्कत हो रही है.” हरवीर सिंह 1987 में चले किसान आंदोलन में तीन महीने तक जेल में भी रहे. वह आंदोलन मेरठ कमिश्नरी पर हुआ था और उसका नेतृत्व टिकैत ने किया था.
पीलीभीत जिले के कुरैया कला गांव के किसान कुलविंदर सिंह और बागपत के सैदपुर गांव के किसान नाहर सिंह भी गेहूं खरीदार और सही दाम के ना मिलने से तनाव में हैं.
कुलविंदर बिसनपुर मंडी में अपना गेहूं लेकर गए थे. उन्होंने बताया, “मैं अपना गेहूं बेचने मंडी गया था. वहां मुझे एक क्विंटल गेहूं पर 70 रुपए अलग से पल्लेदारी के देने पड़े. सरकारी दाम 1925 रुपए प्रति क्विंटल है. अब आप 70 रुपए निकाल दीजिए एक किसान को कितना मिला 1855 रुपए. लेकिन यह पैसा भी आपके खाते में आएगा और उसमें कुछ समय लग जाता है. मैं पिछले 18 साल से बीजेपी का कार्यकर्ता हूं. जब मेरे साथ ऐसा हो रहा तो आम किसान की क्या हालत होगी.”
नाहर सिंह का कहना है कि उनके यहां कोई सरकारी तोल नहीं हो रहा है. “बाहरी बनिया 1750 रुपए क्विंटल मांग रहा है. हम लोगों की हालत खराब होती जा रही है. इस बंदी में तो और भी नुकसान किसानों और मजदूरों का हुआ है और यह हालात अब कई वर्षों तक नहीं सुधरेंगे.”
शामली जिले के कसेरवा कला गांव के तेजिंदर देशवाल ने बताया कि उनके यहां सरकारी खरीद केंद्र है “पर हम लोग पहले से ही करनावल मंडी में अपना गेंहू ले कर जाते थे. इस लॉकडाउन के चलते इस बार यातायात बंद तो हम नहीं ले जा पा रहे हैं और शामली में अभी कोई तोल शुरू नहीं हुई है. हमारे पास दस बीघा गेंहू है वह काट ही रहे थे कि बारिश हो गई. पता नहीं बारिश का भीगा कोई खरीदेगा भी या नहीं.”
पूर्ण सिंह मुज्जफरनगर के नसीरपुर गांव के किसान हैं और पिछले दिनों हुए गन्ना आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे. पूर्ण सिंह भारतीय किसान मजदूर संगठन के अध्यक्ष हैं. उन्होंने बताया कि मुजफ्फरनगर में कोई तौल शुरू नहीं हुई है. बुआई बारिश की वजह से लेट हुई है और अभी कटाई चल रही है. “बेमौसम बारिश ने हमारे गेहूं की स्थिति खराब कर दी है अब वह काला पड़ जाएगा और सरकारी तौल पर उसको कोई खरीदेगा नहीं. एक तो लॉकडाउन और दूसरा मौसम, दोनों ही किसान के दुश्मन हो गए हैं. हर कोई अपनी चीज की सुरक्षा कर सकता है. किसान कुछ नहीं कर सकता है.”
किसानों की हालत पर मैंने कृषि विशेषज्ञ देवेंद्र शर्मा से बात की. शर्मा किसानों की खराब हालत के लिए सरकार की नीतियों को दोष देते हैं. उन्होंने कहा, किसानी को पहले चरण के लॉकडाउन में बहुत नुकसान हुआ.” उन्होंने आगे कहा, “मेरा मानना है 50 प्रतिशत किसान को अपनी फसल फेंकनी पड़ी या जानवरों को खिलानी पड़ी. किसानों को अपनी लगात का 25 प्रतिशत भी वसूल नहीं हुआ और 50 से 70 प्रतिशत किसान को तो कुछ भी नहीं मिला. इन लोगों को बहुत बड़ा नुकसान झेलना पड़ा.” शर्मा ने मुझे बताया, “फल और सब्जियां ऐसी पैदावार हैं जिसमें हम दुनिया के दूसरे नंबर पर आते हैं. अब आप अंदाजा लगा सकते है कितना बड़ा नुकसान हुआ होगा.”