केरल के इडुक्की जिले के 59 वर्षीय किसान श्रीकुमार, छोटे खेत में सब्जी, काली मिर्च और जायफल की खेती किया करते थे. उनका पूरा खेत यानी 2. 3 एकड़ का क्षेत्र, अगस्त 2018 में केरल में आई भयंकर बाढ़ में नष्ट हो गया. उस बाढ़ में सबसे अधिक प्रभावित होने वाले क्षेत्रों में से एक था इडुक्की. श्रीकुमार के बेटे अनूप एस ने कहा कि उनके पिता के ऊपर फेडरल बैंक लिमिटेड का 7 लाख रुपए और इडुक्की जिला सहकारी बैंक का 17 लाख रुपए का कर्जा था और खेत के नष्ट हो जाने के बाद इसे चुकाने का कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था. अनूप ने मुझे बताया, “दोनों बैंकों ने भुगतान के लिए कई नोटिस भेजे थे.” उनके पिता ने ऋण का भुगतान करने के लिए जमीन को बेचने की कोशिश की लेकिन कोई खरीदार नहीं मिला क्योंकि यह "कीचड़ धंसने के खतरे वाली जमीन” घोषित कर दी गई थी. कर्ज चुकाने में असमर्थ होकर श्रीकुमार ने 15 जनवरी को जहर खा लिया और अगले दिन उनकी मौत हो गई.
2018 में केरल में आई बाढ़, राज्य में सदी की सबसे गंभीर बाढ़ थी. संयुक्त राष्ट्र संघ ने राज्य में बाढ़ से हुए कुल नुकसान का अनुमान 31000 करोड़ रुपए और केरल आर्थिक समीक्षा रिपोर्ट-2018 ने फसल के नुकसान का अनुमान 3500 करोड़ रुपए से अधिक किया है. 20 अगस्त 2018 को केरल में राज्य स्तरीय बैंकर समिति ने बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों के लिए राहत उपायों को मंजूरी दी. इसके तहत प्रभावित क्षेत्रों में फसलों के नुकसान को 50 प्रतिशत ऊपर स्वीकारते हुए कृषि, आवास और शिक्षा तथा अन्य प्रयोजनों के ऋण की वसूली पर रोक के दिशानिर्देश जारी किए.
पिछले साल अक्टूबर में राज्य सरकार ने कृषि कर्ज वसूली पर तकरीबन एक साल की रोक लगा दी. इसके बावजूद केरल के इडुक्की जिले के किसानों को व्यवसायिक और सहकारी बैंकों से वसूली के नोटिस प्राप्त होते रहे जिनमें कर्ज न चुकाने पर संपत्ति को जब्त करने की धमकियां होती थीं. 52 वर्षीय किसान और समाजिक कार्यकर्ता शाजी थुंडाथिल के मुताबिक इन बैंकों के दबाब की वजह से इस साल इलाके के 8 किसानों ने आत्महत्या कर ली. इडुक्की के किसानों पर लदे कर्ज, फसल की कम कीमत और 2016 और 2018 की बाढ़ ने यहां के किसानों की समस्या को बढ़ा दिया. थुंडाथिल के अनुसार आमतौर पर इडुक्की के किसान “मजबूत” और “आशावादी” हैं लेकिन “अब लगता है कि उन लोगों ने हार मान ली है”.
आत्महत्याओं के मद्देनजर राज्य सरकार की कैबिनेट ने 5 मार्च के दिन विशेष बैठक की और वसूली पर लगी रोक को इस साल 31 दिसंबर तक के लिए बढ़ा दिया. इसके अगले दिन राज्य के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने बैंकों को आदेश दिया कि वे आदेश के अनुसार कर्ज वसूली को रोक दें और किसानों के प्रति “संवेदनशील व्यवहार” करें. लेकिन राज्य के मुख्य सचिव टॉम जोस ने दो दिनों के अंदर रोक संबंधी नोटिस को जारी नहीं किया, जैसा कि राज्य सरकार के कायदे और प्रक्रियाओं को बताने वाली केरल सचिवालय मैनुअल में बताया गया है. इस बीच 10 मार्च को लोक सभा चुनावों की घोषणा के साथ ही चुनाव आचार संहिता लागू हो गई जिससे “नई योजनाओं/परियोजनाओं और नई राहत घोषणाओं पर रोक लग गई”.
परिणामस्वरूप, केरल सरकार को राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी टीका राम मीणा के समक्ष प्रस्ताव की मंजूरी के लिए अनुरोध करना पड़ा. मीणा ने सरकार से पूछा कि आचार संहिता लागू रहते हुए वह आदेश क्यों पास कराना चाहती है. खबरों के मुताबिक विजयन ने कर्ज वसूली पर रोक संबंधी नोटिस जारी न करने के लिए जोस झाड़ भी लगाई. फिर 30 मार्च को मीणा ने कहा कि उन्होंने प्रस्ताव की मंजूरी की सिफारिश करते हुए इस मामले को भारतीय निर्वाचन आयोग के समक्ष भेज दिया है. यह आदेश अभी तक पारित नहीं हुआ है. केरल कांग्रेस (एम) के सदस्य और इडुक्की निर्वाचन क्षेत्र के विधायक रोशी ऑगस्टाइन ने मुझे बताया, “यह सरकारी मुलाजिमों की कमजोरी नहीं बल्कि कृषि संकट को कम करने की सरकार की अरुचि को दिखाता है”.
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