किसान आंदोलन के लिए बढ़ता जनसमर्थन

15 दिसंबर 2020
सिंघू बॉर्डर पर आंदोलन कर रहे किसान.
संचित खन्ना / हिंदुस्तान टाइम्स
सिंघू बॉर्डर पर आंदोलन कर रहे किसान.
संचित खन्ना / हिंदुस्तान टाइम्स

8 दिसंबर को सेवानिवृत्त इंजीनियर सुमन मलिक हरियाणा और दिल्ली के बीच सिंघु बॉर्डर पर चल रहे किसानों के आंदोलन में शामिल थे. वह 70 के आस-पास की उम्र में सांस की समस्या से पीड़ित है. कोविड-19 लॉकडाउन के लागू होने के बाद से उन्होंने खुद को घर के भीतर ही रखा था लेकिन किसानों का आंदोलन शुरू होने के बाद, वह उसमें शामिल होने से खुद को रोक नहीं पाए. 

मलिक ने दक्षिण-पश्चिम दिल्ली से सिंघू बॉर्डर तक लगभग 35 किलोमीटर की दूरी तय की. मैंने मलिक से पूछा कि उन्होंने अपने स्वास्थ्य को जोखिम में क्यों डाला तो उन्होंने कहा, "सरकार और मीडिया के एक बड़े हिस्से द्वारा आंदोलनकारी किसानों को खालिस्तानी और राजनीतिक रूप से प्रेरित कहने से मैं आहत था. किसानों के साथ जिस प्रकार का सरकार का व्यवहार रहा है, यह देखकर मुझे बहुत दुख हुआ. इसलिए मैंने किसानों की सभा में शामिल होने और अपनी उपस्थिति से उनकी संख्या बढ़ाने का फैसला किया." 

उत्तराखंड के लगभग 50 साल के रमेश मुमुक्षु अस्थमा से पीड़ित हैं लेकिन वह भी 8 दिसंबर को सिंघू बॉर्डर पर थे. मुमुक्षु गांधी शांति प्रतिष्ठान के उत्तराखंड केंद्र के अध्यक्ष हैं. इस संगठन का उद्देश्य है गांधी के शिक्षा और अभ्यास पर अध्ययन और अनुसंधान करना. उन्होंने मुझे बताया, "मैं यहां आंदोलनकारी किसानों का एक हिस्सा बनकर आया हूं. उत्तराखंड के किसानों की हालत कमजोर है और वहां बुनियादी सुविधाओं की कमी है और प्राकृतिक जल संसाधन तेजी से घट रहे हैं. किसान के लिए आजीविका अर्जित करना और ऐसी दयनीय स्थिति में केवल कृषि पर निर्भर रहना संभव नहीं है. हालांकि, मैं बचपन से अस्थमा का मरीज हूं, फिर भी मैं खुद को यहां आने और उन लोगों की आवाज में आवाज मिलाने से नहीं रोक सका जो भविष्य की पीढ़ियों के लिए लड़ रहे हैं. वे जीतने के लिए पूरी दृढ़ता के साथ आंदोलन कर रहे हैं."

26 नवंबर के बाद से हजारों किसान, मुख्य रूप से पंजाब और हरियाणा के किसान, हाल ही में लागू किए गए तीन विवादास्पद कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं. यह आंदोलन “दिल्ली चलो” रैली का हिस्सा है जिसमें 26 और 27 नवंबर को देश भर के किसानों को राष्ट्रीय राजधानी पहुंचने का आह्वान किया गया था. पंजाब से हरियाणा होते हुए दिल्ली की ओर आ रहे किसानों को हरियाणा और दिल्ली सीमा पर रोकने के लिए पुलिस ने विभिन्न सड़कों पर मोर्चाबंदी की और आंसू गैस और वाटर कैनन से हमला किया.

मलिक और मुमुक्षु की तरह ही कई आम लोग किसानों के समर्थन में आंदोलन में भाग ले रहे हैं. देश भर के सामुदायिक समूह, सामाजिक संगठन और सामाजिक कार्यकर्ता अपनी एकजुटता जता रहे हैं. नागरिक समाज संगठनों और लोगों के समूहों द्वारा विभिन्न राज्यों में जिला और ब्लॉक स्तरों पर आंदोलन किए जा रहे हैं. यहां तक ​​कि शिक्षकों, प्रोफेसरों और कारपोरेट पेशेवरों ने भी अपना समर्थन देना शुरू कर दिया है. वाराणसी में एक प्रोफेसर और और नागरिक समाज समूह ऑल इंडिया सेक्युलर फोरम यूपी के संयोजक मोहम्मद आरिफ को 8 दिसंबर को वाराणसी में आंदोलन करते हुए गिरफ्तार किया गया था. उन्होंने मुझसे कहा, "पूरा देश किसानों के समर्थन में है. इन बिलों को वापस लिया जाना चाहिए. अब बुद्धिजीवी, सामाजिक संगठन, राजनीतिक संगठन सभी ने किसानों से हाथ मिला लिया है और वे लोकतंत्र को बचाने के लिए दृढ़ हैं. पर्चे बांटने हो या गांवों में जुलूस और सभाएं करनी हो हम किसानों के समर्थन में अपनी पूरी ताकत लगा देंगे."

अखिलेश पांडे दिल्ली के पत्रकार हैं.

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