किसान आंदोलन को मिल रहा अन्य वर्गों का समर्थन

तरन तारन जिले के घरखा गांव के 70 साल के किसान सरदार संतोक सिंह पुलिस की मारपीट में घायल हुए थे. कारवां के लिए शाहिद तांत्रे
तरन तारन जिले के घरखा गांव के 70 साल के किसान सरदार संतोक सिंह पुलिस की मारपीट में घायल हुए थे. कारवां के लिए शाहिद तांत्रे

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2 दिसंबर को दिल्ली-हरियाणा सीमा के कुंडली पर चल रहे किसान आंदोलन में हम किसान देविंदर सिंह से मिले. तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ लाखों किसानों को 26 और 27 नवंबर को "दिल्ली चलो" आंदोलन में भाग लेते हुए राजधानी पहुंचना था लेकिन सुरक्षा बलों ने उन्हें दिल्ली की सीमाओं पर बैरिकेड लगाकर, आंसू गैस के गोले दागकर और पानी की बौछार कर रोक दिया. इसी तकरार के बाद 30 नवंबर को कुंडली पहुंच कर देविंदर विरोध में शामिल हुए. उन्होंने कहा, “मैंने लोगों के संदेश और तस्वीरें देखी. ये लोग अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं और इसलिए मैं भी घर पर नहीं रह सका. पंजाब का हर कोई यहां आना चाहता है. यह हमारे इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण क्षणों में से एक है. मेरा 13 साल का बेटा भी इसमें शामिल होना चाहता है."

उस दिन हमने सुबह 9.30 से शाम 7 बजे तक कुंडली में जमा आंदोलनकारियों से बातचीत की. इनमें अधिकांश पंजाब और हरियाणा से थे. आंदोलनकारियों ने हर तरह से एकजुटता दिखाई और "गोदी मीडिया" के सिवा सभी मीडिया से बात की. उनका कहना है कि “गोदी मीडिया” वह है जो केंद्र सरकार के इशारों पर काम करता है. देविंदर ने बताया कि कुंडली के दुकानों और स्थानीय व्यवसायी भी आंदोलनकारियों का साथ दे रहे हैं. उन्होंने कहा, "सभी एकजुट होकर काम कर रहे हैं और हमें भोजन वितरित करने और लोगों को आश्रय देने में मदद कर रहे है. यहां किसी तरह का विभाजन नहीं है."

यहां ट्रैक्टरों और ट्रकों की चार किलोमीटर लंबी कतारें लगी हैं. एक छोर पर लगी पुलिस बैरिकेडिंग आंदोलन स्थल के द्वार जैसी है. बैरिकेडों से कुछ मीटर की दूरी पर लगभग तीस मीटर लंबे चार अलग-अलग लांगर के तंबू लगाए गए हैं जहां पूरे दिन भोजन परोसा जा रहा था.

पुलिस द्वारा खड़ी की गई कंटीले तारों की दीवार. कारवां के लिए शाहिद तांत्रे

एक लंगर के आयोजक गुरुचरण दीप सैनी ने हमें बताया, "कोई भी यहां से भूखा-प्यासा नहीं जाता." विरोध स्थल के लिए समान और लंगरों के लिए ज्यादातर इंतेजाम सोशल मीडिया, विशेषकर व्हाट्सएप के माध्यम से किया गया था.

सैनी ने कहा, "अगर किसी को किसी भी तरह के भोजन या गद्दे या किसी और चीज की जरूरत है, तो उन्हें सिर्फ एक संदेश भेजना होगा और वह उन तक पहुंच जाएगा. लोगों के बीच एक नेटवर्क होने के कारण हम एक-दूसरे से बात कर सकते हैं और अपने संदेश और चिंताओं को बहुत आसानी से एक दूसरे से साझा कर सकते हैं."

लुधियाना से आए किसान और भारतीय किसान यूनियन के सदस्य इंद्रजीत सिंह ने भी इस बात को दोहराया. उन्होंने हमें अपने व्हाट्सएप के मैसेज दिखाए. इंद्रजीत ने हमें बताया कि हमें पता होना चाहिए कि हमारे बारे में क्या कहा जा रहा है. हम लोगों के गुड मॉर्निंग मैसेज और फर्जी खबरें नहीं पढ़ना चाहते. हम विरोध पर ध्यान केंद्रित रखना चाहते हैं. अगर कोई कुछ भी कहना चाहता है, तो वह हमें मैसेज भेज सकते हैं.

माइक से साथ एक रिपोर्टर. जी न्यूज, रिपब्लिक और आजतक के रिपोर्टर पुलिस बैरिकेड के उस पर से रिपोर्ट कर रहे हैं. कारवां के लिए शाहिद तांत्रे

पूरा विरोध प्रदर्शन सोशल मीडिया की सहायता से चलाया जा रहा है लेकिन यहां मोबाइल नेटवर्क बेहद खराब था और दिन में इंटरनेट की गति धीमी थी. होशियारपुर से आए आंदोलनकारी हरदीप सिंह ने हमें बताया, "रास्ते में इंटरनेट बहुत तेज चल रहा था लेकिन पता नहीं क्यों यहां इतना धीमा क्यों हो गया. शायद वे नहीं चाहते कि हम लोगों तक अपना संदेश पहुंचाएं. शुक्र है यह जम्मू-कश्मीर नहीं है इसलिए हमारे इंटरनेट को काट सकते हैं." हरदीप ने कहा कि रिलायंस समूह के जिओ का सिग्नल भी रुक-रुक कर आ रहा है लेकिन फिर जोड़ा, "हम अंबानी की वजह से इसका इस्तेमाल करना पसंद नहीं करते."

कई आंदोलनकारी किसानों ने बड़े उद्यमियों, विशेष रूप से मुकेश अंबानी के रिलायंस समूह और अडानी समूह के प्रति इसी प्रकार का तिरस्कार भाव दिखाया. उन्हें डर है नए कानून सरकार की किसी भी विधायी जवाबदेही और न्यूनतम समर्थन मूल्य पर उपज की खरीद के आश्वासन के बिना अपनी फसलों के बाजारों को निजी क्षेत्र द्वारा शोषण के लिए खुला छोड़ना पड़ेगा. देविंदर ने हमें बताया, "कई लोगों ने कहा है कि हमें बिना किसी एमएसपी के फायदा मिलेगा. लेकिन हम जानते हैं कि अंबानी और अडानी ही हैं जो जिनको फायदा मिलेगा. पंजाब में हर कोई इसकी सच्चाई जानता है. आप हमसे झूठ नहीं बोल सकते. ऐसा नहीं है कि हम अचानक अपनी नींद से जागे हैं और दिल्ली आए हैं."

पंजाब में किसान जून के महीने से ही, जब अध्यादेश जारी हुए थे, इन कानूनों का विरोध कर रहे हैं. तभी से अन्य व्यवसायों के लोगों ने भी कृषि कानूनों के प्रति अपना विरोध जताया है. विशेष रूप से, पंजाबी सिनेमा से जुड़े लोगों ने किसानों के विरोध का मुखरता से समर्थन किया है. यह 2 दिसंबर को भी दिखाई दे रहा था.

ट्रकों और ट्रक्टरों की चार किलोमीटर लंबी कतार. कारवां के लिए शाहिद तांत्रे

जब हम आंदोलन स्थल के पास एक पेट्रोल पंप के सामने से गुजर रहे थे तब आंदोलन को लेकर कुंवर ग्रेवाल और हर्फ चीमा का एक गाना 'पेंचा' एक ट्रैक्टर में भारी-भरकम स्पीकरों पर तेज आवाज में बज रहा था. 21 नवंबर को रिलीज हुए इस गाने को यूट्यूब पर तीन मिलियन से अधिक बार देखा जा चुका है. इसके वीडियो में किसानों के विरोध प्रदर्शन की तसवीरें हैं और गीत के बोल हैं "खिंच ले जट्टा. खिंच तायारी. पीचा पै गया केंद्र नाल." ग्रेवाल का एक और हालिया गीत, "ऐलान" भी आंदोलनकारी किसानों पर है. आर नाइत और लद्दी गिल का गाना दिल्ली-ए भी विरोध स्थल में सुनाई दिया. इसके वीडियो, जिसे दो मिलियन से अधिक लोगों ने देखा है, में किसानों के विरोध के साथ-साथ अखबारों में छपे विरोध प्रदर्शनों के उद्धरण भी हैं. गीत की एक पंक्ति है, "दिल्ली, आंख पंजाब नाल पंगे थे नी" जिसका मतलब है, ऐ दिल्ली तेरा पंजाब को चुनौती देना ठीक नहीं है.

आंदोलन में अखबार पढ़ते एक बुजुर्ग. कारवां के लिए शाहिद तांत्रे

रैली में एक और लोकप्रिय गीत सुनाई दिया "पगड़ी संभल जट्टा", जो 1907 में ब्रिटिश राज के समय की रैली की याद दिलाता है, जहां इसे पहली बार गाया गया था. रैली का आह्वान करने वालों में स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह के पिता और चाचा किशन सिंह और अजीत सिंह शामिल थे. पंजाबी यूट्यूब समाचार चैनल, "द स्टोरी" के एक वीडियो में पंजाब विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जसबीर सिंह ने किसानों के संकट के संबंध में प्रतिरोध के गीतों के लंबे इतिहास के बारे में बताया. चल रहे आंदोलन को लेकर गीतों की रचना करने वाले कलाकारों के बारे में बताते हुए जसबीर ने कहा, "वे अभी अपना फर्ज निभा रहे हैं. जो कलाकार लगातार आवाज उठा रहे हैं वे सौ साल पहले जो हो रहा था उसे याद दिला रहे हैं."

कुंडली सीमा पर आंदोलनकारी. कारवां के लिए शाहिद तांत्रे

केटीवी, डेली पोस्ट जैसे विश्वसनीय स्थानीय पंजाबी मीडिया पोर्टलों से जुड़े जिन किसानों से हम मिले, वे राष्ट्रीय टेलीविजन मीडिया की कवरेज से नाराज थे. वे उन चैनलों को स्थल से दूर रख रहे थे जिनके बारे में उन्हें पता था कि वे पक्षपाती हैं. 29 नवंबर को हमने देखा कि आंदोलनकारियों के एक समूह ने आजतक की एक पत्रकार मिलन शर्मा को घेर लिया और चैनल के खिलाफ नारे लगाए. 1 दिसंबर को हमने उसे उसी स्थान पर एक-दो बार देखा. वह या तो एक लैपेल माइक या एक सामान्य माइक का उपयोग कर रही थीं जिसमें चैनल का लोगो नहीं था. आजतक, रिपब्लिक और जी न्यूज के पत्रकार पुलिस बैरिकेड के दूसरी तरफ के नजदीकी इलाकों से रिपोर्टिंग कर रहे थे. यह डेली पोस्ट पंजाबी द्वारा किए गए साक्षात्कारों से बिल्कुल अलग था जो कि सभा के बीच से और अच्छी तरह से रिपोर्टिंग कर रहा था.

चे ग्वारा और भगत सिंह की टी-शर्ट पहने एक नौजवान आंदोलनकारी. कारवां के लिए शाहिद तांत्रे

टीवी मीडिया द्वारा आंदोलनकारियों को खालिस्तानी बताने पर इंद्रजीत ने कहा, "यहां बुजुर्ग किसानों की संख्या देखिए. क्या आपको लगता है कि ये लोग आतंकवादी हैं?" आंदोलनकारी मनिंदर सिंह ने हमसे कहा, “वे आंदोलन को कुछ और बनाना चाहते हैं और हमें विभाजित करना चाहते हैं लेकिन देखिए, हमारे हरयाणवी भाई भी हमसे जुड़ गए हैं. जल्द ही अन्य राज्य भी इसमें शामिल होंगे."

रात के आखिर में हमने पुलिस बैरिकेड के पास न्यूजएक्स के एक रिपोर्टर को किसानों से घिरा हुआ पाया. किसान नारे लगा रहे थे, "किसान विरोधी मीडिया वापस जाओ" और "मोदी दा मीडिया वापस जाओ." इंद्रजीत ने कहा, "आप इस पूरी जगह पर घूम चुके हैं और आपने यहां के लोगों को देखा है. हम सभी एक दूसरे को भोजन करा रहे हैं और किसी को भी पीटने के लिए यहां नहीं हैं. हम चाहते हैं कि यह कृषि बिल निरस्त हो."

अनुवाद : अंकिता

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