सरकारी मदद के आभाव में लॉकडाउन से बर्बाद फूल उद्योग, खड़ी फसल पर ट्रैक्टर चलाने को मजबूर फूल किसान

सोशल डिसटेंसिंग के नियमों के लागू होने के चलते रद्द हुए आयोजनों के बाद जयपुर की फूल मंडी में 21 मार्च को सड़क पर बिखरे हुए ताजे फूल. लॉकडाउन ने देशभर के फूल उद्योग को तबाह कर दिया है. विशाल भटनागर/ नूरफोटो/ गैटी इमेजिस

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1 मई को चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ बिपिन रावत ने घोषणा की कि भारतीय वायुसेना “कोरोना वॉरियर्स को धन्यवाद कहने” के लिए अस्पतालों के ऊपर फूलों की बारिश करेगी. दो दिन बाद जब लोग वायुसेना के इस काम की वाहवाही करने में लगे थे तो एक सवाल सिरे से गायब था : फूलों के कारोबार से जुड़े किसान, फूल विक्रेता और अन्य लोग लॉकडाउन का सामना कैसे कर रहे हैं? फिलहाल लॉकडाउन का तीसरा चरण चल रहा है और मैंने फूल कारोबार से जुड़े लोगों से बात की और लॉकडाउन में उनकी मुश्किलों के बारे में जानने की कोशिश की.

उत्तर प्रदेश के अमेठी जिले के मोहनगंज के राजेश कुमार मौर्य दिल्ली के पास गुरुग्राम (गुड़गांव) में फूलों की खेती करते हैं. मौर्य ने साल के 115000 रुपए किराए पर तीन एकड़ खेत लिया है जिसमें वह फूल लगाते हैं. “मैंने कलकत्ता (कोलकाता) से 80000 रुपए की फूलों की पौध मंगवाई थी,” उन्होंने बताया और कहा, “फूल का खेत तैयार करने में लाखों रुपया खर्च होता है- मजदूरी, बिजली-पानी, कीटनाशक, निराई-गुड़ाई सब होता है. लेकिन इस साल लॉकडाउन के कारण हमारा लाखों का नुकसान हो गया है. मैंने अपनी कुछ खेती पर हैरो चला दिया है. कुछ फूलों को बचा कर रखा था क्योंकि लग रहा था कि 3 मई को लॉकडाउन खत्म हो जाएगा. अब तो वह उम्मीद भी खत्म हो चुकी है. हम लोग पूरी तरह तबाह हो गए हैं.”

मौर्य ने बताया कि सरकार उन्हें मुआवजा नहीं देगी क्योंकि खेत उनके नाम नहीं हैं. वह बोले, “हमने इसको किराए पर ले रखा है. अगर मुआवजा मिला भी तो मालिक को ही मिलेगा. हम तो सिर्फ फसल के मालिक थे और उसकी कोई पूछ रही नहीं.”

मौर्य की तरह सैकड़ों फूल किसान कोरोना लॉकडाउन के चलते बर्बादी के कगार में पहुंच गए हैं. फूलों का बाजार मुरझा गया है और मांग के ना रहने से किसान अपनी खड़ी फसल खुद मिटा रहे हैं. फसल में लगी उनकी जमा पूंजी डूब गई है.

मैंने दिल्ली और आसपास के जिन फूल किसानों से बात की उन्हें विश्वास था कि 3 मई को लॉकडाउन खत्म हो जाएगा लेकिन जब लॉकडाउन तीसरी बार बढ़ाया गया तो उनके हौसले पस्त हो गए.

दिल्ली-गुरुग्राम बॉर्डर पर स्थित कापसहेड़ा में फूलों की खेती करने वाले अखिलेश यादव 1998 में गोंडा जिले से दिल्ली आ गए थे और तभी से यहां किराए के खेतों में फूल उगा रहे हैं. यादव ने बताया, “यहां मेरे गांव के अगल-बगल के बहुत से लोग हैं और हम सभी लोगों का इस बार ऐसा नुकसान हुआ है जैसे पहले कभी नहीं हुआ. फिलहाल फूलों का काम पूरी तरह खत्म हो गया है और अब दुबारा कब शुरू होगा कुछ पता नहीं.”

यादव ने बताया कि फूलों की फसल की बुआई अक्टूबर में होती है और बिकवाली फरवरी से लेकर मई जून तक होती है. उन्होंने कहा, “सरकार ने सभी पार्टी, विवाह, शादी और बड़े कार्यक्रमों पर रोक लगा दी है जिसके चलते दो एकड़ में खड़ी उनकी लाखों की फसल को खुद नष्ट करना पड़ा.” उन्होंने कहा, “और करते भी क्या? हम लोगों को समझ नहीं आ रहा है कि ऐसे हालात में करे क्या. हमें सरकार से कोई मदद नहीं मिल रही है और ना कोई आश्वासन. लगता है कि वापस घर लौटना होगा जहां से मैं 1998 में आया था.”

यादव की तरह फूल किसान राजेश राजपूत 20 साल पहले अमेठी के गोंडी गांव से दिल्ली आ गए थे. राजपूत ने बताया कि उनके परिवार में 8 लोग हैं और सभी फूलों की खेती में लगे हैं. लॉकडाउन के बाद राजपूत परिवार के 7 लोग गांव लौट गए हैं और फसल की देखभाल के लिए वह अकेले यहां रुके हैं. उन्होंने बताया, “मैं अभी जहां हूं वहां मेरे लिए खाने की बड़ी समस्या है. मैंने दो एकड़ जमीन 70000 रुपए किराए पर ली है और इस जमीन पर कोलकाता से फूलों के पौधे मंगवा कर रोपे हैं लेकिन लॉकडाउन ने मेरा सब कुछ बर्बाद कर दिया है और अब सिवाए घर जाने के मेरे पास कोई रास्ता नहीं बचा है.” राजपूत ने भी शिकायत की कि सरकार उनकी कोई मदद नहीं कर रही है.

फूलों के कारोबार से बहुत से लोग जुड़े होते हैं और इस वजह से ना सिर्फ फूल किसान बल्कि फूलों के आढ़ती, विवाह-शादी पार्टिंयों में फूलों की सजावट करने वाले, बुके-गुलदस्ता बेचने वाले, धार्मिक स्थल पर फूल-माला बेचने वाले, मेट्रो स्टेशन, रेलवे स्टेशन, पार्क, बस स्टेशन पर गुलाब बेचने वाले भी लॉकडाउन में अपना काम खो चुके हैं.

दया राम लोधी ने, जो गाजीपुर (दिल्ली) की फूल मंडी में आढ़ती हैं, बताया कि जिस समय लॉकडाउन आरंभ हुआ था वह आढ़तियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण समय था. उन्होंने कहा, “इस समय ही फूलों का सीजन होता है. इसी समय शादियां और पार्टियां होती हैं. हमारी मंडी में भारत के अलग-अलग हिस्सों से फूल आता है और साथ ही हम कई जगह लीज पर फूलों के खेत लेते हैं. मैंने जनवरी में हिमाचल प्रदेश में एक खेत 80 लाख रुपए में लीज पर लिया था. मेरा नुकसान हो गया.”

शादियों में फूलों की डैकोरेशन करने वाले आगरा के पवन कुमार ने मुझे बताया कि जारी लॉकडाउन का वक्त उनके लिए कारोबार का वक्त था. “इस सीजन में पहले मेरे साथ 20 मजदूर काम करते थे. ये मजदूर आगरा के भी हैं और जब सजावट की कुछ बड़ी डिमांड होती थी तो हम दिल्ली और कोलकाता से भी लोगों को बुलाते थे. इस लॉकडाउन में पार्टी का काम बंद है तो फूलों की सजावट का काम भी बंद हो गया. हम लोग सजावट के लिए हमेशा दिल्ली से फूल लाते थे.” उन्होंने बताया कि उनके यहां किसानों ने अपने मोगरा के खेतों में ट्रैक्टर चलवा दिया है. उन्होंने मुझे कहा, “मेरे साथ काम करने वाले मजदूर हर सीजन में एक महीने में 15000 रुपए कमा लेता थे लेकिन अब उनकी भी हालत बहुत खराब है. लगता है फूलों की सजावट का काम लंबे समय तक नहीं होगा.”

बनारस के विश्वनाथ मंदिर के पास फूलों की दुकान लगाने वाले संतोष निषाद ने बताया कि लॉकडाउन के कारण उनके जैसे फूल बेचने वाले अपने घरों में बैठे हैं. “किसी के पास कोई काम नहीं है. ज्यादातर लोग दिन में विश्वनाथ मंदिर के पास फूल माल बेचते थे और शाम को गंगा आरती पर घाट पर फूल-माला बेचते थे. लेकिन सब बंद है और फूल बेचने वाले भूख के शिकार हो रहे हैं.”

फूलों का कारोबार एक असंगठित काम है. बनारस के फूल बाजार में सामान्य दिनों में 20 लाख रुपए का व्यापार होता है. शादी और त्योहारों के मौसम में अगर कोई बड़ी पार्टी हो तो ऐसे खास दिनों में तीन करोड़ रुपए के आस-पास कारोबार हो जाता है. लॉकडाउन के चलते पूरा कारोबार ठप्प हो गया है और फूल व्यवसाय से जुड़े हजारों लोग बेरोजगार बन गए हैं.

संतोष ने बताया कि कुछ समय पहले विश्वनाथ मंदिर में एक कॉरिडोर बनाने का प्रस्ताव आया था जिसका 2019 के चुनाव से पहले नरेन्द्र मोदी ने उदघाटन किया था. उस कॉरिडोर के लिए प्रसाद और फूल-माला की करीब 800 दुकानें तोड़ दी गईं. संतोष ने कहा, “अब हम लोग सड़क के किनारे फूलों को टोकरी में रख कर बेचते थे. मेरे परिवार की तीन छोटी दुकानें थीं. दुकानों का हमें 100000 रुपए मुआवजा मिला पर हमारी तीन पीढ़ियां यहां पर फूल-माल बेच कर अपना जीवन यापन करती आ रही थीं.” उन्होंने बताया कि जिन अन्य लोगों की दुकाने कॉरिडोर में टूटी हैं उनमें से ज्यादातर लोग दूसरे कामों में लग गए हैं.

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के कृषि अर्थशास्त्री डॉ. कमलवंशी से मैंने लॉकडाउन के फूल के कारोबार से जुड़े लोगों पर पड़ने वाले असर के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि फूलों की मांग बहुत छोटी अवधि के लिए रहती है. कमलवंशी ने कहा, “फूल यदि दो घंटे में बिक जाए तो ठीक, नहीं तो आप उनको ज्यादा समय तक रख भी नहीं सकते. जैसे ही समय बिताने लगता है वैसे ही उनके दाम गिरने लगते हैं.”

उन्होंने मुझे फूल किसानी के चक्र को भी समझाया. उन्होंने बताया कि अन्य फसलों के मुकाबले फूलों की फसल बहुत जोखिम वाली होती है. “आपको सही से पैक कर भेजना होता है और इसके लिए आपको लेबर चाहिए ताकि वह फूलों को जल्दी से तोड़े कर अपना काम खत्म कर सके. फूलों को उजाला होने से पहले ही बाजार भेजना होता है.” कमलवंशी ने कहा कि कोरोना की वजह से फूल किसानों की तकलीफ बढ़ गई है. “इसे आप दो तरह देख सकते है. एक तो सप्लाई का काम पूरी तरह से रुक गया है जिसके चलते फसल तोड़ने का फायदा नहीं है और ऐसी फसल अब खराब हो गई है क्योंकि आप अगर तोड़ते भी है तो लेकर कहां जाएंगे?” उन्होंने बताया कि इसके साथा ही बाजार में फूलों की मांग भी पूरी तरह खत्म हो गई है क्योंकि जिन जगहों पर फूल जाते थे- मंदिर, धार्मिक स्थल, शादी-विवाह के घर आदि- उन सभी के खुलने में वक्त लगेगा. उन्होंने कहा कि खेत में खड़ी फूलों की फसल में किसानों की पूंजी तो लग ही गई है लेकिन उन्हें मिलेगा कुछ नहीं और उनकी पूंजी भी डूब जाएगी.

उत्तर प्रदेश के अमेठी के ओमप्रकाश लोधी दिल्ली के पास गुरुग्राम में फूलों की खेती करते हैं. उनके आस-पास फूलों की खेती में लगे 200 परिवार रहते हैं. ओमप्रकाश और उनके साथ के लोग दिल्ली और देश के अन्य हिस्सों में फूलों की सप्लाई करते हैं. दिल्ली के कनॉट प्लेस के प्रसिद्ध हनुमान मंदिर में भी उनका फूल सप्लाई होता है और गाजीपुर फूल मंडी में भी उनका फूल बिकता है.  उन्होंने मुझे कहा, “मेरे पास दो एकड़ फूल लगे हुए थे जिस पर मैंने ट्रैक्टर चलवा दिया. मेरा करीब 5 लाख रुपए का नुकसान हुआ है लेकिन परेशानी यह है कि हमारी समस्या कोई नहीं सुन रहा है और ना ही सरकार तक हमारी बात पहुंच रही है.” उन्होंने आगे कहा, “हमें मुआवजा भी नहीं मिलेगा क्योंकि हम खेत के मालिक भी नहीं हैं. मेरे दो बच्चे हैं जो दसवीं और आठवीं में पढ़ते हैं. दोनों की फीस 4000 रुपए महीना जाती है. साथ ही खाने-पीने की परेशानी है.”

रघुनाथपुर (बनारस) के साहिल राजभर भी फूल किसान हैं. उन्होंने बताया, “मैंने 27000 रुपए में आधा बीघा फूलों का खेत लिया था जिसमें मोगरा और बेला के फूल लगे हैं. मेरी पूरी जमा पूंजी इसी में लगी है.” राजभर राजमिस्त्री का काम भी करते हैं और नवंबर में खेत में फूलों की फसल लगाते हैं. “हम उसी समय खेत ले लेते हैं और मार्च से जून तक हमारी फसल चलती है. इससे हमारी रोजाना आमदनी होती है. हम बांस फाटक, चौक, मलहड़िया पर अपने फूल बेचते हैं. लेकिन लॉकडाउन से सब बर्बाद हो गया.” उन्होंने बताया, “मेरी तरह फूलों की खेती खरीदने वाले गांव में 15 परिवार हैं और अपनी खेती में फूल लगाने वाले करीब 25 परिवार हैं. हमने अपनी जमीन के मालिक से कहा था कि इस बार नुकसान हो गया है हमारी कुछ मदद कीजिए, लेकिन उन्होंने मदद करने से इनकार कर दिया.”

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