कीर्ति किसान यूनियन (केकेयू) के एक प्रमुख किसान नेता निर्भय सिंह धूडिके ने 9 दिसंबर मुझसे कहा कि “हमने उनसे कहा कि अगर आप हमें मारते हैं, तो हम बहादुर कहलाएंगे और अगर लोग हमें पीटेंगे, तो हमें देशद्रोही करार दिया जाएगा.” धूडिके ने 3 दिसंबर से दिल्ली के विज्ञान भवन में प्रदर्शनकारी किसानों और केंद्र सरकार के प्रतिनिधियों के बीच कई मैराथन बैठकों में से एक में तीन केंद्रीय मंत्रियों से यह बात कही थी. “ते गल वी सही है”, उन्होंने जोर दिया.
धूडिके का केकेयू उन दर्जनों किसान संगठनों में से है जो फिलवक्त नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा पारित गए तीन कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं. नवंबर के अंत से हजारों किसान इन कानूनों को खत्म करने की मांग के साथ दिल्ली की सीमाओं पर जमे हुए हैं.
आंदोलन मुख्य रूप से पंजाब के किसानों ने शुरू किया लेकिन जल्द ही हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसानों के बीच व्यापक रूप से फैल गया. आंदोलन शुरू होने के बाद किसान नेताओं ने केंद्रीय मंत्रियों और सरकार के प्रतिनिधियों के साथ कई बार मुलाकात की है. हालांकि मोदी सरकार ने अब तक कानूनों को निरस्त करने से इनकार किया है लेकिन किसान अड़े हुए हैं. उन्होंने बार-बार काननू रद्द करने से कम पर कुछ भी सुनने से इनकार दिया है. अपने कैडरों से हौसला प्राप्त आंदोलन का नेतृत्व अपनी मांग पर दृढ़ है.
मैंने दिल्ली-हरियाणा सीमा (सिंधु बॉडर) पर धूडिके से बात की. सिंधु बॉडर मुख्य आंदोलन स्थल बन गया है. हम अवरुद्ध राष्ट्रीय राजमार्ग पर केंद्रीय मंच से कुछ दो किलोमीटर दूर मिले. वह किसानों नेताओं की एक बंद बैठक से निकले थे. धूडिके ने मुझे बताया कि बैठक में मौजूद सभी किसान नेताओं ने कृषि कानूनों को निरस्त करने के अपने इरादे को दोहराया.
बैनरों और तख्तियों के बीच जुनून तारी था. "नो कॉम्प्रमाइज. आर पारे के मोर्चे पर डटे रहो साथियो", हरियाणा के अपने साथी कार्यकर्ताओं के साथ बैठे एक नौजवान की टी-शर्ट के पीछे पिन किए हुए पोस्टर पर लिखा था. विभिन्न किसान संगठनों के झंडे हजारों ट्रैक्टरों और ट्रॉलियों के ऊपर लहरा रहे थे. उनका संदेश इतना साफ था कि कि इसे मंच से लगातार घोषित किया जा रहा था : "काले कनून वापस लो”.
कमेंट