किसान आंदोलन 2020 : किसान नेताओं के लिए समझौतावादी नीति विकल्प नहीं

किसान-यूनियन के नेता 5 दिसंबर को दिल्ली के विज्ञान भवन में मौजूदा किसान आंदोलन पर केंद्र सरकार के साथ अपनी पांचवीं बैठक के लिए पहुंचे. बैठक बेनतीजा रही. किसान नेता अपने कार्यकर्ताओं की मांगों के प्रति निष्ठा से हाल ही में लागू किए गए कृषि कानूनों को पूरी तरह से वापस लेने पर डटे हैं. सोनू मेहता / हिंदुस्तान टाइम्स

कीर्ति किसान यूनियन (केकेयू) के एक प्रमुख किसान नेता निर्भय सिंह धूडिके ने 9 दिसंबर मुझसे कहा कि “हमने उनसे कहा कि अगर आप हमें मारते हैं, तो हम बहादुर कहलाएंगे और अगर लोग हमें पीटेंगे, तो हमें देशद्रोही करार दिया जाएगा.” धूडिके ने 3 दिसंबर से दिल्ली के विज्ञान भवन में प्रदर्शनकारी किसानों और केंद्र सरकार के प्रतिनिधियों के बीच कई मैराथन बैठकों में से एक में तीन केंद्रीय मंत्रियों से यह बात कही थी. “ते गल वी सही है”, उन्होंने जोर दिया.

धूडिके का केकेयू उन दर्जनों किसान संगठनों में से है जो फिलवक्त नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा पारित गए तीन कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं. नवंबर के अंत से हजारों किसान इन कानूनों को खत्म करने की मांग के साथ दिल्ली की सीमाओं पर जमे हुए हैं.

आंदोलन मुख्य रूप से पंजाब के किसानों ने शुरू किया लेकिन जल्द ही हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसानों के बीच व्यापक रूप से फैल गया. आंदोलन शुरू होने के बाद किसान नेताओं ने केंद्रीय मंत्रियों और सरकार के प्रतिनिधियों के साथ कई बार मुलाकात की है. हालांकि मोदी सरकार ने अब तक कानूनों को निरस्त करने से इनकार किया है लेकिन किसान अड़े हुए हैं. उन्होंने बार-बार काननू रद्द करने से कम पर कुछ भी सुनने से इनकार दिया है. अपने कैडरों से हौसला प्राप्त आंदोलन का नेतृत्व अपनी मांग पर दृढ़ है.

मैंने  दिल्ली-हरियाणा सीमा (सिंधु बॉडर) पर धूडिके से बात की. सिंधु बॉडर मुख्य आंदोलन स्थल बन गया है. हम अवरुद्ध राष्ट्रीय राजमार्ग पर केंद्रीय मंच से कुछ दो किलोमीटर दूर मिले. वह किसानों नेताओं की एक बंद बैठक से निकले थे. धूडिके ने मुझे बताया कि बैठक में मौजूद सभी किसान नेताओं ने कृषि कानूनों को निरस्त करने के अपने इरादे को दोहराया.

बैनरों और तख्तियों के बीच जुनून तारी था. "नो कॉम्प्रमाइज. आर पारे के मोर्चे पर डटे रहो साथियो", हरियाणा के अपने साथी कार्यकर्ताओं के साथ बैठे एक नौजवान की टी-शर्ट के पीछे पिन किए हुए पोस्टर पर लिखा था. विभिन्न किसान संगठनों के झंडे हजारों ट्रैक्टरों और ट्रॉलियों के ऊपर लहरा रहे थे. उनका संदेश इतना साफ था कि कि इसे मंच से लगातार घोषित किया जा रहा था : "काले कनून वापस लो”.

पहले पंजाब से कम से कम 32 संगठनों के नेतृत्व में आंदोलन शुरू हुआ. इनमें धूडिके के केकेयू और भारतीय किसान यूनियन या बीकेयू के एकता-उग्राहं प्रमुख थे. इन समूहों ने 26 और 27 नवंबर को दिल्ली मार्च का आह्वान किया था. जब पुलिस ने पहले पंजाब-हरियाणा सीमा और फिर  दिल्ली सीमा पर किसानों को रोक दिया तो आंदोलनकारियों ने राजमार्गों को रोकने का फैसला किया.

बीकेयू एकता-उग्राहं और केकेयू के अलावा पंजाब किसान यूनियन शामिल थी जिसका नेतृत्व ऋतु सिंह के पास है. कुलवंत सिंह संधू के नेतृत्व में जम्हूरी किसान सभा, कंवलप्रीत सिंह पन्नू के नेतृत्व में किसान संघर्ष समिति पंजाब, सुरजीत सिंह फूल की अगुवाई वाली बीकेयू-क्रांतिकारी, हरमीत सिंह के नेतृत्व वाले बीकेयू-कादियान, बलविंदर सिंह औलख के नेतृत्व में माजा किसान समिति, जंगबीर सिंह के नेतृत्व में दोआबा किसान संघर्ष समिति, जगमोहन सिंह के नेतृत्व में बीकेयू-एकता डाकुंडा और दर्शन पाल के नेतृत्व में क्रांतिकारी किसान यूनियन.

बीकेयू एकता-उग्राहं इनमें सबसे दृण संगठन है और इसके एक लाख से अधिक आंदोलनकारी यहां हैं. इसके दो नेताओं, जोगिंदर सिंह उग्राहं और झंडा सिंह जेठुके, की मांग दिल्ली प्रदर्शन के पहले दिन से स्पष्ट है : “कानूनों को रद्द करें. "सरकार को अपना अहंकार छोड़ना होगा," उग्राहं ने मुझसे कहा.

हर सुबह जेठुके और उग्राहं कौन चला गया, कौन शामिल हुआ, कितने लोग हैं... जानने के लिए अपनी "जिलेवार" इकाइयों की नेतृत्व समितियों की बैठक करते हैं. वे अपने जिला नेताओं को विज्ञान भवन में सरकार के साथ होने वाली बैठकों के लिए आवश्यक संदेश भी देते हैं. “हम अपने कैडरों के प्रति जवाबदेह हैं और आप राजमार्ग पर लाखों में उनकी मौजूदगी देख सकते हैं. हमारे लोगों ने पिछले चार महीनों में बहुत मेहनत की,” उग्राहं ने कहा.

जून में जब से केंद्र सरकार ने कृषि अध्यादेश पारित किए है, जिन्हें सितंबर में कानून का रूप दिया गया, बीकेयू एकता-उग्राहं के कैडरों में कई गुना वृद्धि हुई है. संगठन ने पंजाब में एक सक्रिय जन-जागरूकता अभियान चलाया और लोगों को "दिल्ली चालो" कार्यक्रम के लिए प्रेरित किया. यह पहले पंजाब के संगरूर और बठिंडा जिलों में मुख्य रूप से सक्रिय था और तब से 14 जिलों तक फैल गया है. बीकेयू एकता-उग्राहं की प्रत्येक जिला इकाई में एक रजिस्टर होता है जिसमें दिल्ली-रोहतक राजमार्ग पर कई किलोमीटर की परिधि पर फैले गांव के लोगों के नामों को नोट किया जाता है.

इस किसान संगठन के नेतृत्व ने पहली बार 25 नवंबर को पंजाब-हरियाणा सीमा पर खनौरी में अपने कैडरों की इच्छा परखी. किसान आंदोलनकारियों को दिल्ली तक पहुंचने से रोकने के लिए हरियाणा पुलिस ने सीमा पर मोर्चाबंदी कर दी थी. उस दिन एकता-उग्राहं ने नए कृषि कानूनों को निरस्त करने के लिए "नरेन्द्र मोदी को एक सप्ताह का अल्टीमेटम" देने की घोषणा की और कहा कि अगर ऐसा नहीं किया गया तो किसान दिल्ली के लिए मार्च करेंगे. यह घोषणा उस इलाके के युवा प्रदर्शनकारियों के बीच अच्छी तरह से नहीं पहुंच पाई, जो पंजाब के मालवा क्षेत्र से थे जो संगठन का गढ़ है. युवाओं ने इसे ठुकरा दिया और मांग की कि नेता अगले दिन दिल्ली पहुंचने की योजना पर कायम रहें.

युवाओं का दबाव लुधियाना-दिल्ली हाईवे पर दिखाई दे रहा था. दिन के दौरान कुछ युवा किसानों ने हरियाणा में आसपास के ग्रामीणों की मदद से बैरिकेड हटा दिया, पानी की बौछार का सामना किया और हरियाणा पुलिस को पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया. पंजाब और हरियाणा के बीच करनाल में शंभू बॉर्डर पर और सोनीपत में युवा किसानों ने पानी की बौछारों का सामना करते हुए सीमाओं पर भारी कंक्रीट की बैरिकेडिंग को उखाड़ फेंका. वे किसी भी एक खास किसान संगठन के बैनर तले नहीं आए. बीकेयू एकता-उग्राहं नेताओं को उस रात पीछे हटने पर मजबूर होना पड़ा और अगली सुबह दिल्ली के लिए मार्च शुरू करने की घोषणा की.

किसानों के नेतृत्व के बीच बीकेयू का एक अन्य गुट, जिसने अपनी उपस्थिति दर्ज की है, बलबीर सिंह राजेवाल का है. वरिष्ठ किसान नेता राजेवाल को उनकी धाक के लिए जाना जाता है. वह भी कानूनों को निरस्त करने की अपनी मांग पर मजबूती से खड़े हैं. फसलों की सरकारी खरीद का जिक्र करते हुए राजेवाल ने 9 दिसंबर को मीडिया से कहा, “ये अधिनियम पूरी तरह से असंवैधानिक हैं. सरकार एमएसपी पर झूठ बोल रही है क्योंकि यह खरीद के बिना कुछ भी नहीं है.”

एक दिन पहले राजेवाल ने सिंघू सीमा पर मुख्य मंच से एक भावुक भाषण दिया था, जिसमें उन्होंने युवा प्रदर्शनकारियों को आगाह किया था और विरोध में अनुशासित रहने के लिए कहा था. राजेवाल ने उन्हें ''हमारे आंदोलन में तोड़फोड़ करने वाले कुछ तत्वों के नापाक मंसूबों” के खिलाफ चेतावनी दी.

राजेवाल केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह द्वारा 8 दिसंबर की शाम को अनौपचारिक बैठक के लिए आमंत्रित 13 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा थे. यह बैठक पहले शाह के निवास पर होने वाली थी लेकिन राजेवाल और अन्य नेताओं के वहां जाने से इनकार करने के बाद इसे एक अलग जगह पर आयोजित किया गया. 13 नेताओं में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बीकेयू के एक गैर-राजनीतिक गुट के प्रमुख राकेश टिकैत, क्रान्तिकारी किसान यूनियन के नेता दर्शन पाल, बीकेयू (मनसा) के बोग एस मनसा, जम्हूरी किसान सभा के सतनाम अजनाला, बीकेयू (डकौंडा) के बूटा एस बर्गिल, बीकेयू (डओबा) के मंजीत एस राय और हरियाणा में बीकेयू गुट के प्रमुख गुरनाम सिंह चढूनी शामिल हैं. अस्सी मिनट तक चली यह बैठक बेनतीजा रही.

शाह ने किसान नेताओं से कृषि कानूनों में कुछ संशोधनों के लिए सरकार के 20 सूत्री प्रस्ताव के बारे में बात की. हरियाणा बीकेयू के चढूनी ने कहा, “अमित शाह संशोधनों पर अड़े रहे और हमने इसे खारिज कर दिया. शाह ने कहा कि वह हमें संशोधन का मसौदा भेजेंगे लेकिन उसमें क्या होगा यह हम पहले से जानते थे और हम सभी ने अपनी समीक्षा बैठक में इसे सर्वसम्मति से खारिज कर दिया.” चढूनी सिंघू सीमा पर अगले दिन आयोजित किसान नेतृत्व की एक बड़ी बैठक का उल्लेख किया. टिकैत ने भी मीडिया में दोहराया कि सरकार को नए कृषि कानूनों को वापस लेना होगा.

बीकेयू एकता-उग्राहं, केकेयू और इसी तरह के अन्य ऐसे समूहों का नेतृत्व जिनके लाखों कैडर हैं और जो कानून रद्द करने की अपनी मांग से पीछे हटने को तैयार नहीं हैं, उन्हें शाह की बैठक में आमंत्रित नहीं किया गया था. सिंघू सीमा पर सभी किसान संगठनों की 9 दिसंबर की बैठक में इन समूहों ने 13 नेताओं से कहा कि उन्हें अलग से शाह से मिलने नहीं जाना चाहिए.

जेठुके ने मुझसे कहा, "अमित शाह के साथ चुने हुए नेताओं की मुलाकात को टाला जा सकता था." उन्होंने कहा कि सभी नेताओं ने एक राय से इस बात को मंजूर किया.

यह याद रखने योग्य है कि 28 नवंबर को जब आंदोलन की शुरुआत हुई थी, शाह ने बातचीत के लिए बीकेयू एकता-उग्राहं नेतृत्व को आमंत्रित किया था. नेतृत्व ने शाह के निमंत्रण को अस्वीकार कर दिया था और गृहमंत्री से एक ही बार में सभी समूहों से बात करने को कहा था.

10 दिसंबर को राजेवाल ने किसानों के रुख को दोहराया और मीडिया से कहा, "हम अपने रुख पर कायम हैं. हमने कल मिले सरकार के प्रस्ताव को नामंजूर कर दिया है. आज तक सरकार के साथ कोई और बैठक निर्धारित नहीं है.” राजेवाल ने कहा कि 12 दिसंबर को प्रदर्शनकारी देश भर के सभी टोल प्लाजा को बंद करवाएंगे. उन्होंने जिओ सिम सेलफोन कनेक्शन के बहिष्कार का आह्वान करने और रिलायंस के स्वामित्व वाले शॉपिंग स्टोर और मॉल के सामने आंदोलन करने की घोषणा की. (प्रदर्शनकारी किसानों का मानना ​​है कि कानूनों से रिलायंस जैसे मोदी सरकार के चहेते बड़े निगमों को फायदा होगा.)

चढूनी की बीकेयू के अलावा, हरियाणा के अन्य किसान समूहों ने भी आंदोलन के नेतृत्व को अपना अटूट समर्थन दिया है और काननू निरस्त करने की मांग के साथ खड़े हैं. सोनीपत में एक मजबूत आधार वाले अपेक्षकृत एक नए संगठन भारतीय किसान पंचायत का नेतृत्व करने वाले भगत सिंह बलहारा के अनुसार, “हरियाणा के लोग मुख्य नेतृत्व के अब तक के फैसलों से पूरी तरह संतुष्ट हैं.” बलहारा ने बताया, “हम बड़ी यूनियनों के फैसले का पालन करेंगे. लोग चाहते हैं कि वे समझौतावादी नीति न अपनाएं. किसानों का नेताओं पर दबाव है कि वे समझौता न करें.”

बलहारा ने आगे कहा, “किसान केवल आंदोलन कर सकते थे ... और वे मरने के लिए तैयार हैं. विरोध शांतिपूर्ण है लेकिन वे अंदर से बहुत गुस्सा हैं.” उन्होंने कहा कि हरियाणा के किसानों और संगठनों ने पंजाब से शांतिपूर्ण विरोध के तरीके सीखे हैं. “अगर इतने सारे किसान हरियाणा में उठ खड़े होते, तो विरोध इस कदर शांतिपूर्ण नहीं हो सकता था. लेकिन हमने पंजाब के किसानों से बहुत कुछ सीखा है.” उन्होंने कहा कि उनका संगठन शांतिपूर्ण विरोध बनाए रखने पर आमादा था.

जाहिर है, मोदी शासन के लिए इस आंदोलन को बांटना मुश्किल हो रहा है जो अब पंजाब के 32 संगठनों की विनम्र शुरुआत से एक राष्ट्रव्यापी आंदोलन के रूप में विकसित हो गया है. यह उन स्थितियों से अलग है जो सरकार ने हाल के वर्षों में नागरिकता (संशोधन) अधिनियम जैसे कानूनों को पारित करने के बाद या अनुच्छेद 370 के तहत कश्मीर की विशेष स्थिति को निरस्त करने के बाद की है. आखिरी बात, जो सीधे आंदोलनरत किसानों से उभर कर आई है कि किसान संगठन कानूनों को निरस्त करने की अपनी मांग पर डटे रहेंगे.