जोगिंदर सिंह उगराहां पंजाब के किसान आंदोलन का बड़ा नाम है. वह पंजाब के सबसे बड़े किसान संगठन भारतीय किसान यूनियन (एकता उगराहां) के संस्थापक और प्रधान हैं. इस संगठन का पंजाब के सबसे बड़े क्षेत्र मालवा में अच्छा-खासा आधार है. जोगिंदर सिंह संगरूर जिले के सुनाम कस्बे से ताल्लुक रखते हैं. वह भारतीय फौज में भी नौकरी कर चुके हैं. सन 2002 में उन्होंने अपने संगठन का गठन किया था. वह एक ओजस्वी वक्ता हैं और किसानों को उनके मुद्दों पर लामबंद करने का लंबा अनुभव रखते हैं. उनका संगठन अनेक किसान संघर्ष कर चुका है. मौजूदा किसान आंदोलन में उनका संगठन टिकरी बॉर्डर पर डटा हुआ है. स्वतंत्र पत्रकार और पंजाबी वेबसाइट सूही सवेर के मुख्य संपादक शिव इंदर सिंह ने कारवां के लिए जोगिंदर सिंह उगराहां से बातचीत की.
शिव इंदर सिंह : किसान आंदोलन के मौजूदा सफर और सरकार के साथ हुई बातचीत के बारे में आप क्या कहेंगे?
जोगिंदर सिंह उगराहां : 4 जनवरी को सरकार के साथ हुई सातवीं बैठक के बारे में हमें पहले ही पता था कि कोई नतीजा नहीं निकलेगा. अब सरकार ने 8 जनवरी की तारीख रखी है. सरकार के मंत्री बैठक में पुरानी बातें ही दोहराते रहे कि ‘कानून बहुत बढ़िया हैं’, ‘आप संशोधनों पर मान जाइए’, ‘देश के नागरिक इन कानूनों को बहुत पसंद करते हैं’. जैसे कि हम देश के नागरिक ही नहीं हैं. लेकिन हम कानूनों को रद्द करवाने पर अड़े रहे.
सरकार बेशक जिद्द पर अड़ी हुई है पर सच्चाई यह है कि जिस मुकाम पर यह किसान आंदोलन पहुंच चुका है, सरकार दबाव में है. मोदी सरकार ने जो अपनी छवि बनाई हुई थी कि एक बार जो बोल दिया वह वापिस नहीं होता, वह छवि टूटी है. सियासी तौर पर सरकार को बहुत नुकसान हो रहा है. पंजाब से बीजेपी का सफाया हो गया है. हरियाणा और बिहार की सरकारों के लिए खतरा खड़ा हो गया है. पटना, तमिल नाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र में कृषि कानूनों के खिलाफ बड़े आंदोलन हो रहे हैं. जो राज्य इस सरकार के खिलाफ पहले कभी नहीं खड़े थे, वे उठ रहे हैं. अब यह किसान आंदोलन पूरे भारत का जन आंदोलन बन गया है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी चर्चा हो रही है.
शिव इंदर सिंह : पंजाब के किसान संगठन कृषि कानूनों के खिलाफ इस आंदोलन में बेशक एक दिख रहे हैं लेकिन उनमें काफी मतभेद हैं, क्या यह मतभेद दूसरी राजनीतिक पार्टियों की तरह ही हैं या इनके पीछे कोई वैचारिक आधार है?
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