प्रदेश में किसान आंदोलन को दबाने के लिए पुलिस हमें सता रही है : यूपी के किसान नेता

किसान नेताओं का कहना है कि उन्हें किसान आंदोलन में भाग लेने से रोकने के लिए सरकार द्वारा परेशान किया जा रहा है. सुनील कश्यप

उत्तर प्रदेश के तीन किसान नेताओं के मुताबिक राज्य में तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ जारी आंदोलन को पुलिस दबाने की कोशिश कर रही है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के रामजन्म यादव ने 27 दिसंबर 2020 को किसानों की सभा में भाषण दिया था जिसके दो दिन बाद उनके खिलाफ उत्तर प्रदेश गुंडा नियंत्रण कानून, 1970 के तहत जांच शुरू कर दी गई. इसी प्रकार वाराणसी में भारतीय किसान यूनियन (अराजनीतिक) के जिला अध्यक्ष लक्ष्मण प्रसाद मौर्या ने मुझे बताया कि पुलिस ने उन्हें फोन कर आंदोलनों में शामिल न होने की धमकी दी. वहीं सीतापुर जिले की वरिष्ठ नेता ऋचा सिंह ने भी बताया कि 8 जनवरी को पुलिस ने उन्हें आंदोलन में शामिल होने से रोकने की कोशिश की और इसके अगले दिन उन्हें घर से बाहर निकलने नहीं दिया. रामजन्म यादव कहते हैं कि सरकार ऐसा दिखाना चाहती है कि उत्तर प्रदेश के किसानों को इन कानूनों से कोई समस्या नहीं है.

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के सामाजिक कार्यकर्ता और किसान नेता रामजन्म यादव पिछले 30 सालों से किसान अधिकारों के लिए संघर्षरत हैं और फिलहाल स्वराज भारत दल के सदस्य हैं. उन पर बनारस प्रशासन ने गुंडा एक्ट लगा दिया. इससे पहले यादव पर कभी कोई आपराधिक मुकदमा नहीं रहा.

रामजन्म ने फोन पर मुझसे कहा, “हम अपने दो साथियों के साथ 25 दिसंबर को किसान आंदोलन में शामिल होने दिल्ली आए थे. मेरे साथ भारतीय किसान यूनियन (अराजनीतिक) के जिलाध्यक्ष लक्षमण प्रसाद मौर्या और बुनकर नेता फैजुल रहमान अंसारी थे. हम पांच दिनों तक दिल्ली की सभी सीमाओं पर गए और 27 तारीख को हमने शाहजहांपुर बॉडर पर भाषण भी दिया. उसी समय संचालन कर रहे व्यक्ति ने मुझे बताया कि आपका वीडियो अब तक आपके डीएम और एसएसपी को पहुंच गया होगा.” उन्होंने आगे बताया, “मैं 30 दिसंबर की शाम दिल्ली से बनारस के लिए रवाना हुआ और 29 दिसंबर को मेरे खिलाफ गुंडा एक्ट के तहत जांच शुरू कर दी गई. मुझ पर जो धाराएं लगाई गई हैं वे 19 दिसंबर 2019 को सीएए और एनआरसी विरोधी आंदोलन में जब हम 70 लोगों की गिरफ्तारी हुई थी, उसी समय लगाई गई थीं.”

गुंडा एक्ट लगाने के संबंध में जारी नोटिस में उनके किसान आंदोलन में शामिल होने की बात नहीं है बल्कि उसमें कहा गया है कि दिसंबर 2019 में उनके खिलाफ दर्ज एक मामले में यह जांच शुरू की गई है.

उन्होंने कहा, “जब से योगी आदित्यनाथ की सरकार आई है, उत्तर प्रदेश में पुलिसिया राज चल रहा है. हम लोग जो स्वतंत्रता, समता और संविधान को बचाने वाले कार्यकर्ता हैं उन पर सरकार इस तरह के झूठे मुकदमें लगाती रहती है. उस समय हम लोग 17 दिनों तक जेल में थे.”

सीतापुर की नेता ऋचा सिंह संघतिन मजदूर किसान संगठन की सदस्य हैं. उन्होंने बताया कि जब पूरे देश में 8 जनवरी को किसान मार्च का आह्वान किया गया तो सीतापुर के भी तमाम सामाजिक और किसान संगठनों ने इसमें बढ़-चढ़ कर हिस्सेदारी करने की अपील की. उन्होंने कहा, “पर जैसे ही 8 तारीख की सुबह मैं आंदोलन स्थल, आरएमपी कॉलेज जाने के लिए अपने घर से निकली, तो देखा कि मेरे घर के दस कदम पर दो पुलिस वाले बैठे हैं. उन्होंने मुझे रोक लिया. मैंने कहा मैं किसानों के ट्रेक्टर मार्च में जा रही हूं. वे मुझे काफी देर तक समझाते रहे कि मार्च रद्द हो गया है. मैंने उन लोगों से कहा, ‘कोई बात नहीं मैं वहां तक जाऊंगी और अगर वहां कोई नहीं हुआ तो वापस आ जाऊंगी.’ मैं वहां गई तो मार्च हो रहा था. वे दो पुलिस वाले भी मेरे साथ थे.”

सिंह ने बताया कि उन्हें अगले दिन चिकित्सा संबंधी जांच के लिए लखनऊ जाना था लेकिन वह घर से जब निकलने को हुईं तो चार-पांच पुलिस वाले आ गए. उनमें एक महिला पुलिस भी थी और सदर चौकी इंचार्ज भी थे. पुलिस ने उनसे कहा कि वह कोतवाल से बात कर लें. “मैंने कोतवाल (एसएचओ) तेज प्रकाश सिंह  से बात की तो वह बोले कि ‘मेरा अनुरोध है आप बाहर न जाएं.’ मैंने उनसे कहा, “यह तो डिटेन करना माना जाएगा, तो वह बोले नहीं हम अनुरोध कर रहे है. मैंने उनसे कहा आप मुझे कागज दिखाएं कि किस आधार पर आप मुझे डिटेन कर रहे हैं या फिर मुझे जाने दें.”

सिंह ने बताया कि इसके बाद सब डिविजनल मजिस्ट्रेट अमित भट्ट, एक अधिकारी और एक महिला पुलिसकर्मी उनके घर पर आए. “उन्होंने मुझे लखनऊ नहीं जाने दिया. मजिस्ट्रेट ने मुझसे कहा, ‘हमारा ऑफिस अभी खुल रहा है. अभी हस्ताक्षर कर आपको कागज दे देंगे.’ मजिस्ट्रेट यह बात कह कर चले गए. रात के 10.30 बज गए लेकिन कोई कागज नहीं आया और रात भर मेरे घर के बाहर एक पुलिस वाले की ड्यूटी लगी रही.” 9 जनवरी को जब मैं उनसे फोन पर बात कर रहा था तो उन्होंने बताया कि उस वक्त भी पुलिस वाला सादी वर्दी में उनके घर के बाहर खड़ा था.

भारतीय किसान यूनियन (अराजनीतिक) के जिलाध्यक्ष लक्षण प्रसाद मौर्या ने बताया कि जब दिल्ली से आंदोलन के लिए राष्ट्रीय अपील की जाती है तो वे लोग वाराणसी में उसका जमकर समर्थन करते हैं. 8 दिसंबर को उनके साथियों और अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं ने वाराणसी में प्रदर्शन का विचार बनाया था लेकिन सुबह-सुबह उनके घर में सराय मोहाना चौकी इंचार्ज आ गए और धमकी दी कि सलारपुर सतरंगी तिराहे पर जो कार्यक्रम हो रहा है उसमें वह हिस्सेदारी नहीं कर सकते. उन्होंने बताया, “किसी तरह हम लोग तिराहे पर पहुंचे और अपना विरोध प्रदर्शन किया पर पुलिस की संख्या अधिक थी और उन्होंने हमारा कार्यक्रम नहीं होने दिया. हमारा लाउडस्पीकर बंद कर दिया. अब हाल यह है कि दिल्ली से जब भी आंदोलन की अपील होती है, तो पुलिस फोन कर धमकी देने लगती है कि बनारस में कोई कार्यक्रम नहीं होना चाहिए.”

उन्होंने बताया कि 23 दिसंबर को किसान दिवस कार्यक्रम जिला मुख्यालय पर था तो पुलिस का फिर फोन आ गया. “इसके बाद जब हम दिल्ली आंदोलन में शामिल होने चले आए तो बीच-बीच में भी चौकी इंचार्ज का बराबर फोन आता रहा और सारनाथ थाना के इंस्पेक्टर भी दबाव बना रहे थे कि मैं जल्दी लौट आऊं.”

मैंने मौर्या को दी गई धमकी के बारे में सराय मोहाना चौकी के अभय से बात की. अभय ने माना कि उन्होंने मौर्या से बात की थी लेकिन कहा कि उन्होंने कभी उन्हें धमकी नहीं दी और कभी उन्हें आंदोलन करने से नहीं रोका. वहीं एसएचओ तेज प्रकाश ने मुझसे कहा कि वह ऋचा सिंह को निजी रूप से जानते हैं क्योंकि दोनों ही आजमगढ़ से आते हैं. उन्होंने कहा, “मैं अक्सर उनके घर जाता हूं और अगर हमने उन्हें डिटेन किया होता, तो हम उन्हें इसके कागजात दिखाते.” लेकिन सिंह ने कहा कि तेज प्रकाश आजमगढ़ से भले आते हों लेकिन उन्हें इसका पता उसी दिन चला था और “वह मेरे घर इससे पहले कभी नहीं आए.”

मैंने सब डिविजनल मजिस्ट्रेट भट्ट को फोन लगाया लेकिन उन्होंने मेरा फोन नहीं उठाया. जब मैंने तेज प्रकाश से यह पूछा कि ऋचा सिंह के घर पर भट्ट क्यों पहुंचे थे, तो उन्होंने कहा कि उन्हें इसकी कोई जानकारी नहीं है. मैंने वाराणसी के जिला मजिस्ट्रेट कौशल राज शर्मा को संदेश भेजा और यह जानने के लिए ईमेल किया कि यादव के खिलाफ चल रही जांच में क्या हो रहा है लेकिन उन्होंने जवाब नहीं दिया. 7 जनवरी को पीयूसीएल के सदस्यों ने वाराणसी संभाग के आयुक्त दीपक अग्रवाल के कार्यालय में जाकर यादव के खिलाफ जांच की शिकायत की. वाराणसी के सामाजिक कार्यकर्ता अफलातून देसाई ने बताया कि उन्हें लगता है कि मुख्यमंत्री प्रशासन का गैर वाजिब इस्तेमाल कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि जब योगी आदित्यनाथ की सरकार अपनी पार्टी के जरिए किसान आंदोलन को नहीं दबा पाई तो अब वह इस काम के लिए सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल कर रही है. उन्होंने कहा, “हमारे यहां एक कहावत है कि गुंडा वह होता है जो कमजोर को दबाता है और ताकतवर आदमी के जूते चाटता है. योगी ऐसे ही आदमी हैं.”