भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के तीन विवादास्पद कृषि कानूनों के खिलाफ पंजाब सरकार, राज्य के किसान यूनियन और अन्य लोगों ने आंदोलन तेज कर दिया है. इस बीच 19 अक्टूबर को पंजाब विधानसभा ने कृषि कानूनों के खिलाफ अपना ही एक कानून लाने के लिए दो दिवसीय विशेष सत्र शुरू किया और अगले दिन 20 अक्टूबर को राज्य विधान सभा ने पिछले महीने केंद्र द्वारा पारित कृषि बिलों के खिलाफ तीन कानून पारित भी कर दिए.
पिछले दिनों पंजाब कैबिनेट ने मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह को ऐसे "कानूनी निर्णय लेने" के लिए अधिकृत किया था जो किसानों के अधिकारों की रक्षा के लिए सही हों. उसके बाद अमरिंदर ने 14 अक्टूबर को ट्विटर पर विशेष सत्र आयोजित कराने की घोषणा कर दी. उस दिन किसानों के प्रतिनिधिमंडल और केंद्र सरकार के बीच कानूनों के बारे में दिल्ली में एक बैठक हुई जिसके बाद बैठक में शामिल हुए प्रतिनिधियों ने केंद्रीय कृषि मंत्रालय के बाहर कृषि कानूनों की प्रतियां फाड़ी.
यह पहली बार नहीं है जब मुख्यमंत्री अमरिंदर ने केंद्र सरकार का विरोध किया है. उन्होंने 2004 में, जब वह मुख्यमंत्री थे और कांग्रेस केंद्र में सत्ता में थी, सतलुज-यमुना लिंक नहर विवाद के मामले में भी ऐसा ही रुख अपनाया था. पंजाब उस नहर का विरोध कर रहा था जो पंजाब से होकर बहने वाली नदी के पानी का अच्छा-खासा हिस्सा हरियाणा को भेज देती. सुप्रीम कोर्ट द्वारा केंद्र सरकार को नहर निर्माण के लिए कहने के बाद, अमरिंदर ने कांग्रेस आलाकमान के खिलाफ जाते हुए पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंट एक्ट, 2004 को पारित करने के लिए रातोंरात विधान सभा का सत्र आयोजित किया था. इस कानून ने राज्य के जल साझाकरण समझौतों को समाप्त कर दिया. राज्य ने नहर के निर्माण को रोक दिया. लेकिन नवंबर 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून को रद्द कर दिया.
केंद्र सरकार को जून 2020 से किसानों की आलोचना का सामना करना पड़ रहा है. उस महीने कृषि कानूनों को पहली बार अध्यादेश के रूप में पेश किया गया था. पिछले चार महीनों में पंजाब के किसानों ने इन कानूनों के खिलाफ बड़े आंदोलन किए हैं. ये कानून कृषि उपज की खरीद और बिक्री को नियंत्रित करते हैं. किसान को डर है कि कानून मौजूदा व्यवस्था का निजीकरण कर देंगे, फसल की कीमतों को घटा देंगे और संभवतः सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य को ही खत्म कर दे. लेकिन सरकार ने कहा है कि कानूनों से किसानों को फायदा ही होगा.
किसानों के प्रतिनिधिमंडल और केंद्र सरकार के बीच हुई बैठक की विफलता के बाद केंद्र सरकार के खिलाफ गुस्सा तेज हो गया है. भारतीय किसान यूनियन (राजेवाल) के प्रमुख बलबीर सिंह राजेवाल ने कहा कि यह दूसरी बार है जब केंद्र सरकार ने उन्हें इस मामले पर चर्चा करने के लिए बुलाया था. "पहले आमंत्रण को अस्वीकार करने के बाद, हमने दूसरे को स्वीकार किया ताकि इस गतिरोध को हल नहीं करने के लिए हमें दोषी न ठहराया जाए. हालांकि, हम इस बीजेपी सरकार के अड़ियल रवैये से अच्छी तरह वाकिफ हैं." कृषि सचिव संजय अग्रवाल के साथ 29 किसान यूनियनों के सात सदस्यीय पैनल ने बैठक की. किसान नेताओं के प्रतिनिधिमंडल में जगजीत सिंह दलेवाल, दर्शन पाल, कुलवंत सिंह, जगमोहन सिंह, सतनाम सिंह साहनी और सुरजीत सिंह शामिल थे. राजेवाल ने कहा, "सरकार हमारी मांगों को लेकर गंभीर नहीं है."
राजेवाल ने मुझे बताया कि केंद्र सरकार इस मुद्दे पर कितनी गंभीर है इसका पता इसी बात से चल जाता है कि बैठक में कोई केंद्रीय मंत्री मौजूद नहीं था. यहां तक कि केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर भी नहीं थे. उन्होंने किसान संवाद सम्मेलन का जिक्र करते हुए उसे वर्चु्अल बैठकों द्वारा किसानों को शांत करने की कोशिश करार दिया. "तोमर और अन्य लोगों को सोशल प्रॉपगेंडा शुरू करने और इन कानूनों के बारे में किसानों को गलत जानकारी देने के लिए भेजा जाता है लेकिन इस बैठक में कोई आए इसकी चिंता किसी को नहीं थी," राजेवाल ने कहा. उन्होंने कहा कि केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी, जो कानूनों पर वर्चुअल बैठकें भी कर रहे थे, ने आने की जहमत नहीं उठाई. बाद में जैसा कि बताया गया कि तोमर ने कहा कि बातचीत केवल सचिव स्तर पर तय थी.
प्रतिनिधिमंडल विरोध जताते हुए बैठक से बाहर चला गया. "हमने कृषि सचिव को अपना ज्ञापन सौंपा, जो इन कृषि कानूनों के बारे में हमारी मांगों को बताता है, खासकर न्यूनतम समर्थन मूल्य पर राज्य की खरीद के लिए एक कानूनी गारंटी करने और तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने के बारे में है," राजेवाल ने कहा. किसान प्रतिनिधियों ने दिल्ली में कृषि मंत्रालय के कार्यालय, कृषि भवन के सामने इन कानूनों की प्रतियों को फाड़ दिया.
राजेवाल ने कहा कि देश में फिलहाल "तानाशाही" चल रही है. उन्होंने कहा, "अगर उनके इरादे सही होते, तो उन्होंने इन कानूनों को पारित करने के लिए कोविड महामारी को नहीं चुना होता, वह भी बिना किसी चर्चा के- न तो संसद में, न ही किसानों के साथ, जो मुख्य हितधारक हैं." राजेवाल ने कहा कि वे सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का विरोध कर रहे थे. उन्होंने कहा, ''अदालतें मोदी के दबाव में हैं. यही वे चाहते हैं कि हम अदालत में जाएं और फिर अपना केस हार जाएं, ” उन्होंने कहा. “कोई न्याय नहीं होगा. सरकार फिर इन कानूनों को लागू करते हुए कहेगी कि अदालत ने इनके पक्ष में फैसला दिया है.”
18 अक्टूबर को प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पंजाब के मुख्यमंत्री ने शीर्ष अदालत में कानूनों को चुनौती देने का इरादा किया है. रिपोर्ट के अनुसार, कांग्रेस विधायक दल की बैठक में मुख्यमंत्री ने कहा, "हम इसे सुप्रीम कोर्ट तक लड़ेंगे." रिपोर्ट में कहा गया है कि विधान सभा के तत्काल सत्र के लिए कई किसान यूनियनों द्वारा उठाई गई मांग का जिक्र करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि ऐसा पहले नहीं किया जा सकता था क्योंकि किसी भी कदम को उठाने से पहले सभी कानूनी निहितार्थों की पूरी तरह से जांच की जानी थी. मुख्यमंत्री ने कहा कि कानूनी और स्वतंत्र विशेषज्ञों के परामर्श से कृषि कानूनों का विरोध करने की रणनीति को अंतिम रूप दिया जाएगा. रिपोर्ट में कहा गया है कि ''बीजेपी और उसके नेता जो दावा कर रहे थे, सीएम ने उसके उलट बात करते हुए बताया कि इन कानूनों पर पंजाब से कभी सलाह नहीं ली थी.''
इस बीच राज्य भर में कानूनों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन जारी है. यहां तक कि पंजाबी की जानीमानी हस्तियां, जो अक्सर विरोध प्रदर्शनों से अपनी दूरी बनाए रखती हैं, वे भी बढ़चढ़ कर किसान आंदोलन का समर्थन कर रही हैं और लोगों को कानूनों का विरोध करने के लिए लामबंद कर रही हैं. इन विरोध प्रदर्शनों में दिखाई देने वाले पंजाबी गायकों और अभिनेताओं में एमी विर्क, रंजीत बावा और हरभजन मान शामिल हैं. इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार विर्क ने कहा, “मेरे पिता ने मेरे गाने और एक्टिंग करियर को सहारा देने के लिए अपने खेत की जमीन का एक हिस्सा बेच दिया था, अब उनको सहारा देने की बारी मेरी है.'' इस रिपोर्ट में सितंबर के अंत में दो विरोध प्रदर्शनों का भी उल्लेख किया गया है, जिनमें भारी संख्या में लोग शामिल हुए थे, एक का आयोजन गायक सिद्धू मूसवेवाला ने किया था और दूसरा विरोध प्रदर्शन का आह्वान राजनीतिक कार्यकर्ता लाखा सिधाना और एक अभिनेता दीप सिद्धू ने किया था. कृषि कानूनों का संयुक्त रूप से विरोध करने वाली इकतीस किसान यूनियनों ने अब पंजाब में कलाकारों की एक समिति के साथ समन्वय के लिए सात सदस्यीय पैनल का गठन किया है.
द वायर की एक रिपोर्ट के अनुसार, किसानों का मानना है कि मोदी सरकार गौतम अडानी और मुकेश अंबानी जैसे बिजनेस टायकून के इशारे पर खेत कानून लाई है. नतीजतन, वे कॉर्पोरेट्स के खिलाफ भी विरोध कर रहे हैं. रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि "पूरे राज्य में रिलायंस पेट्रोल पंपों की बिक्री या तो रुक गई है या 50 प्रतिशत तक गिर गई है." रिपोर्ट के अनुसार, प्रदर्शनकारियों ने मोगा में भारतीय खाद्य निगम के साथ उसके साइलो प्रोजेक्ट में "गो बैक अडानी" लिखा है. रिपोर्ट के अनुसार, अक्टूबर की शुरुआत में किसानों ने रिलायंस जियो मोबाइल सिम कार्ड को तोड़ने या नष्ट करने से "रिलायंस सत्याग्रह" को लॉन्च किया था.
बीजेपी और एनडीए में तीखी तकरार हो रही है. द ट्रिब्यून के अनुसार, विभिन्न किसान संगठनों के सदस्यों ने 14 अक्टूबर को संगरूर के एक निजी स्कूल में बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता को तीन घंटे तक बंद रखा. नेताओं ने कैलाश चौधरी और क्षेत्र के कुछ किसानों के बीच एक वर्चुअल बैठक आयोजित की थी.
कई विरोध प्रदर्शनों में किसानों ने मोदी और अन्य कैबिनेट मंत्रियों के पुतले जलाए हैं. बीजेपी के सबसे पुराने सहयोगियों में शिरोमणि अकाली दल सितंबर के अंत में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन से बाहर हो गई. पंजाब में किसानों ने इसका विरोध करने के लिए पार्टी को मजबूर कर दिया था और यहां तक कि एसएडी के सदस्य हरसिमरत कौर बादल के आवास का घेराव भी किया था, जो तब केंद्र सरकार का हिस्सा थीं. बाद में उन्होंने कानूनों के विरोध में कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया. 6 अक्टूबर को हजारों किसान हरियाणा के सिरसा में दशहरा मैदान में एकत्र हुए और राज्य के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला के निवास तक उनके इस्तीफे की मांग करते हुए विरोध प्रदर्शन किया. चौटाला हरियाणा में बीजेपी की सहयोगी जननायक जनता पार्टी के संस्थापक हैं. कई किसानों ने अमृतसर में "रेल रोको" आंदोलन करने का फैसला किया जो सितंबर के अंत से शुरू हुआ है.