"कृषि विधेयकों से किसानी पर हो जाएगा कॉरपोरेटों का कब्जा," पंजाब के आंदोलनरत किसान

14 सितंबर को लगभग एक दर्जन यूनियनों के किसानों ने पंजाब में राजमार्गों पर विरोध प्रदर्शन किया और यातायात अवरुद्ध किया. राज्य के विभिन्न किसान संगठनों ने कृषि विधेयकों के विरोध में 25 सितंबर को भारत बंद का आह्वान किया है. समीर सहगह / हिंदुस्तान टाइम्स / गैटी इमेजिस

14 सितंबर को जब पंजाब और हरियाणा में किसान संगठन विरोध कर रहे थे केंद्र सरकार ने संसद में कृषि से संबंधित तीन विधेयक पेश किए. इन विधेयकों ने जून में घोषित किए गए तीन अध्यादेशों, किसान उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश (2020), किसानों के (सशक्तिकरण और संरक्षण) के लिए मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा समझौता अध्यादेश (2020) और आवश्यक वस्तु (संशोधन) अध्यादेश (2020) को प्रतिस्थापित कर दिया. (उस स्थिति में जब संसद सत्र नहीं चल रहा हो तो राष्ट्रपति द्वारा जारी किए जा सकने वाले अस्थायी कानूनों को अध्यादेश कहते हैं.) संसद सत्र शुरू होने के छह सप्ताह के भीतर इन्हें अनुमोदित किया जाना चाहिए. लोक सभा के मानसून सत्र में पहले दो विधेयक 17 सितंबर को और तीसरा 15 सितंबर को पारित हो गया थी. 20 सितंबर को राज्य सभा में भारी हंगामें के बीच इनमें से दो ध्वनिमत से पारित हो गए.

पंजाब भर के किसान तीन महीने से भी ज्यादा समय से इन अध्यादेशों का विरोध कर रहे हैं. संसद के दुबारा शुरू होने के बाद से उनका विरोध तेज हो गया है. 14 सितंबर को लगभग एक दर्जन यूनियनों से जुड़े किसानों ने विरोध प्रदर्शन किया और पंजाब में राजमार्गों पर यातायात रोक दिया. बिलों के पारित होने के बाद पंजाब के किसान संगठन किसान मजदूर संघर्ष समिति ने 24 से 26 सितंबर तक "रेल रोको" विरोध प्रदर्शन की घोषणा की है. राज्य के अन्य किसान समूहों ने कृषि से संबंधित इन विधेयकों के विरोध में 25 सितंबर को भारत बंद का आह्वान किया है.

विधेयक के तौर पर आए ये अध्यादेश कृषि उपज को बेचने के तरीके में बदलाव लाते हैं. वर्तमान में किसान अपनी उपज को सरकारी मंडियों या बाजार यार्डों में बेचते हैं जो कृषि उपज बाजार समिति या एपीएमसी अधिनियम के तहत काम करते हैं. सरकारी खरीद एजेंसियां न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर गेहूं और धान खरीदने के लिए बाध्य हैं. ये एजेंसियां राज्य सरकार को बाजार और ग्रामीण विकास शुल्क के साथ-साथ किसानों से उपज लेने और साफ करने वाले कमीशन एजेंटों को शुल्क का भुगतान करती हैं. निजी व्यापारी भी मंडियों में फसल खरीद सकते हैं. वर्तमान में कम से कम 22 फसलों के लिए एक निश्चित एमएसपी है. एमएसपी किसानों को बाजार में उतार-चढ़ाव से बचाने के लिए सरकार द्वारा दी जाने वाली सहूलियत है.

किसान उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक, राज्य सरकार द्वारा विनियमित मंडियों के बाहर कृषि उपज को खरीदने और बेचने की अनुमति देता है. यह उन्हें राज्य और अन्य राज्यों में निजी व्यापारियों को कहीं भी अपनी उपज बेचने की अनुमति देता है. लेकिन किसान इस विधेयक का विरोध इसलिए कर रहे हैं कि यह वर्तमान व्यवस्था को निजी हाथों में सौंप देगा, फसल की कीमतों को गिरा देगा और एमएसपी व्यवस्था का खात्मा कर सकता है.

किसानों के (सशक्तिकरण और संरक्षण) के लिए मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा समझौता विधेयक, 2020, बड़े व्यवसायों को अनुबंध पर भूमि पर खेती करने की अनुमति देता है. तीसरा विधेयक आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020 खाद्य पदार्थों के स्टॉक पर मौजूदा प्रतिबंधों को हटाता है. यह केंद्र सरकार को कुछ विशेष खाद्य पदार्थों की आपूर्ति को केवल असाधारण परिस्थितियों, जैसे युद्ध, अकाल, असाधारण मूल्य वृद्धि या प्राकृतिक आपदा के तहत विनियमित करने की अनुमति देता है.

28 अगस्त को पंजाब विधानसभा ने एक प्रस्ताव पारित कर तीनों अध्यादेशों को खारिज कर दिया और केंद्र सरकार से उन्हें वापस लेने का आग्रह किया. पंजाब के सख्त विरोध को व्यक्त करने के लिए संसद के दोनों सदनों में प्रस्ताव भेजा गया था. अध्यादेशों को “किसान विरोधी” बताते हुए, मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने अन्य कृषि आधारित राज्यों से अपील की कि वे पार्टी लाइन से ऊपर उठकर अध्यादेशों का विरोध करें. उन्होंने कहा कि अध्यादेश पांच एकड़ से कम जमीन पर खेती करने वाले पंजाब के 70 प्रतिशत किसानों को बर्बाद कर देगा.

इससे पहले सिंह ने 15 जून को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को किसानों के हित में और "सहकारी संघवाद" की भावना से इन अध्यादेशों की समीक्षा करने और पुनर्विचार करने के लिए लिखा था. उन्होंने कहा कि भारतीय खाद्य निगम द्वारा एमएसपी में कृषि उपज की सुनिश्चित खरीद ने पंजाब में बफर फूड स्टॉक बनाने और देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. उन्होंने कहा कि वर्तमान एपीएमसी प्रणाली समय की कसौटी पर खरी रही और लाखों किसानों और खेत मजदूरों की आजीविका को सुरक्षित करने में मदद की है.

सिंह ने कहा कि किसानों के बीच यह आशंका थी कि कृषि उपज के लिए प्रस्तावित बाधा मुक्त राष्ट्रव्यापी बाजार का मतलब व्यापारियों के लिए एक राष्ट्रव्यापी बाजार होगा जो पहले से ही कर्ज में डूबे किसानों के लिए नुकसानदायक है. उन्होंने कहा कि बाजार के अनुकूल होने के इंतजार में लाखों छोटे और सीमांत किसान अपनी उपज को लंबे समय तक नहीं रख पाएंगे. उन्होंने कहा कि किसानों के पास मुक्त बाजार में सबसे अधिक पारिश्रमिक मूल्य पाने के लिए सौदेबाजी की शक्ति नहीं होगी. उन्हें निजी व्यापारियों की दया पर छोड़ दिया जाएगा. सिंह ने आगे लिखा है कि एपीएफसी जो शुल्क और लेवी लगाता है उसका उपयोग ग्रामीण विकास और राज्य के बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए किया जाता है. उन्होंने कहा कि कृषि भारतीय संविधान के तहत राज्य का विषय है.

विधानसभा में 28 अगस्त का प्रस्ताव पेश करते हुए सिंह ने कहा कि केंद्र सरकार को एमएसपी में कृषि उपज की खरीद को किसानों के वैधानिक अधिकार बनाने के लिए नए सिरे से अध्यादेश लाना चाहिए और भारतीय खाद्य निगम के माध्यम से सरकारी खरीद जारी रखना सुनिश्चित करना चाहिए.

जुलाई में पंजाब और हरियाणा में हजारों किसानों ने भारतीय किसान यूनियन, पंजाब किसान यूनियन, क्रांतिकारी किसान यूनियन और किसान संघर्ष समिति, पंजाब जैसे विभिन्न किसान संगठनों के बैनर तले इन अध्यादेशों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया. किसानों ने एमएसपी प्रणाली के खत्म होने की आशंका जताई.

भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष बलबीर सिंह राजेवाल ने कहा, "इन अध्यादेशों के जरिए मोदी सरकार व्यापारियों और निगमों को फायदा पहुंचा रही है. सरकार चाहे जो दावे करे लेकिन इनमें से कोई भी अध्यादेश किसी भी तरह से किसानों के हितों में नहीं है. बल्कि वे उनके हितों के लिए हानिकारक साबित होंगे. निस्संदेह वे बड़े निगमों की मदद करेंगे. कॉरपोरेट्स के एकाधिकार के साथ कीमतें आधे तक गिर जाएंगी जो बाजार को भी बुरी तरह प्रभावित करेंगे.” उन्होंने अध्यादेशों को राज्यों के मामलों में अतिक्रमण और देश की संघीय व्यवस्था पर सीधा हमला बताया.

राजेवाल ने कहा, "सभी किसान संगठन इन अध्यादेशों का विरोध कर रहे हैं. केंद्र सरकार पंजाब और हरियाणा में उपलब्ध मौजूदा विपणन ढांचे को बर्बाद करने पर तुली हुई है." उन्होंने यह भी जोर दिया कि राज्य वर्तमान मंडी प्रणाली के माध्यम से एकत्र की गई फीस से वंचित होगा जबकि यह उसकी आय का स्रोत है और इस आय का उपयोग सड़कों का निर्माण और रखरखाव जैसी ग्रामीण परियोजनाओं के लिए किया जाता है. वित्तीय वर्ष 2019-20 में पंजाब ने बाजार और ग्रामीण विकास शुल्क में 3623 करोड़ रुपए एकत्र किए थे. उन्होंने आगे कहा कि एक दोषपूर्ण मंडी प्रणाली का व्यापक प्रभाव लाखों कमीशन एजेंटों, मंडी मजदूरों और परिवहन कर्मचारियों पर पड़ेगा जिनके रोजगार छिन जाएंगे.

राजेवाल की तरह तरनतारन जिले के एक किसान और पट्टी गांव के निवासी अमरजीत सिंह चिंतित थे कि खाद्यान्न की खरीद को सुनिश्चित किया जाएगा और पारंपरिक मंडी प्रणाली को बदलकर किसानों को कॉर्पोरेट खरीदारों की दया पर छोड़ दिया जाएगा.

नई दिल्ली स्थित किसान संगठन, भारत कृषक समाज, के अध्यक्ष अजय वीर जाखड़ ने प्रस्तावित प्रणाली को "जिसकी लाठी उसकी भैंस" बताया. उन्होंने कहा कि अध्यादेश भले ही अच्छी नीयत में जारी किए गए हों लेकिन बिना किसी परामर्श प्रक्रिया के जल्दबाजी में किए गए हैं.

मैंने पूर्व पत्रकार और आम आदमी पार्टी से विधानसभा के सदस्य कंवर संधू से भी बात की. उन्होंने पंजाब राज्य विधानसभा के 28 अगस्त के प्रस्ताव का समर्थन किया. "अगर सरकार इन कानूनों को लागू करने के लिए उत्सुक ही थी तो उन्हें इस आशय का एक विधेयक पेश करना चाहिए था जिस पर पहले से सूचना देकर बहस की जानी चाहिए थी," उन्होंने कहा. “अध्यादेशों को आगे बढ़ाने की क्या जल्दी थी? इसके अलावा केंद्र को हमेशा हमारे संविधान में निहित संघवाद की भावना के अनुसार ऐसे मुद्दों पर पंजाब सहित कृषि राज्यों से परामर्श करना चाहिए." संधू ने यह भी दोहराया कि भविष्य में एमएसपी को बंद किए जाने की संभावना पर सभी आशंकाओं को दूर करने के लिए केंद्र को अध्यादेश में एक खंड को शामिल करना चाहिए कि एमएसपी व्यवस्था कम से कम आगे के 10 सालों तक जारी रहेगी.

कई कृषि विशेषज्ञों ने अध्यादेशों के बारे में इसी तरह के सवाल उठाए हैं. पंजाब के एक अर्थशास्त्री और कृषि संबंधी मुद्दों के विशेषज्ञ रणजीत सिंह घुमन ने मुझे बताया, "तीनों अध्यादेशों का उद्देश्य कॉरपोरेट के लिए अनुकूल महौल तैयार करना है जिससे यह क्षेत्र को पूरी तरह से उनके नियंत्रण में आ जाए और इस तरह किसानों को निचोड़ लें. इन अध्यादेशों का उद्देश्य निजी कम्पनियों को खुली छूट देना है." घुमन ने कहा, "सरकार कह रही रही है कि ये अध्यादेश खरीद, विपणन और भंडारण की मौजूदा व्यवस्था के खिलाफ नहीं हैं. यह पूरा सच नहीं है क्योंकि ये अध्यादेश खरीद की मौजूदा व्यवस्था को अप्रासंगिक बना देते हैं." उन्होंने आगे कहा कि तीसरा अध्यादेश, आवश्यक वस्तु (संशोधन) अध्यादेश, निजी कारोबारियों को कितनी भी मात्रा में कृषि उपज का भंडारण करने की इजाजत देता है. उन्होंने कहा, ''इससे जमाखोरी और कालाबाजारी भी हो सकती है और उपभोक्ताओं के लिए कीमतें बढ़ सकती हैं. ऐसा परिदृश्य कृषि-उत्पादन के उपभोक्ताओं को प्रभावित करेगा क्योंकि ये कंपनियां खरीद मूल्य और बिक्री मूल्य दोनों को विनियमित करने की स्थिति में होंगी. किसी मुकदमेबाजी के मामले में इन विशालकाय कॉरपोरेटों से किसानों का कोई मुकाबला नहीं होगा.”

घुमन ने कोविड-19 महामारी के दौरान इन अध्यादेशों को जारी करने के समय और तरीके की भी आलोचना की. "क्या जल्दी पड़ी थी कि सरकार ने नीतिगत निहितार्थों तक पहुंचने के लिए अध्यादेश का रास्ता अपनाया? हो सकता है कि ये अध्यादेश 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के सरकार के वादे की विफलता को छिपाने के उद्देश्य से लाए गए हों.

खाद्य नीति विशेषज्ञ देविंदर शर्मा ने एमएसपी की आवश्यकता क्यों है इसके बारे में बताते हुए कहा, “सरकार को किसानों के कानूनी अधिकार के रूप में एमएसपी सुनिश्चित करने के लिए एक चौथा अध्यादेश लाने की आवश्यकता है ताकि कोई भी किसान एमएसपी से नीचे व्यापार करने के लिए मजबूर न किया जाए. एक सुनिश्चित मूल्य की प्रतिबद्धता कोई समस्या नहीं होनी चाहिए क्योंकि इन अध्यादेशों का विचार बेहतर कीमतों को सुनिश्चित करना है." उन्होंने कहा कि सभी अंतर-राज्य बाधाओं को हटाकर किसानों को देश में कहीं भी अनाज बेचने की अनुमति देने के कोई मायने ही नहीं हैं क्योंकि 86 प्रतिशत किसानों के पास दो हेक्टेयर से कम भूमि है जिससे अपने ही जिले में उनकी पहुंच बहुत कम है.

शर्मा के अनुसार इसी तरह का एक मुक्त-व्यापार मॉडल बिहार में लागू किया गया था और विफल रहा था. 2006 में बिहार ने अपने एपीएमसी एक्ट को हटा दिया था. शर्मा ने बताया कि इस एक्ट को हटाने का परिणाम यह हुआ है कि किसानों को फसलों के दाम कम मिलने लगे और बेईमान व्यापारी कम दाम पर अनाज खरीद कर पंजाब और हरियाणा में बेचने लगे जहां एमएसपी बिहार में अनाज की दरों से अधिक था. उन्होंने नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट द्वारा एक सर्वेक्षण के बारे में बताया जिसमें कहा गया है कि वर्ष 2015-2016 में बिहार में एक कृषि परिवार की औसत 7175 रुपए प्रति माह है जबकि पंजाब के कृषि परिवार की मासिक औसत आय 23133 रुपए है.

मैंने चंडीगढ़ स्थित शोध संस्थान सेंटर फॉर रिसर्च इन रूरल एंड इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट के अर्थशास्त्री और सीनियर प्रोफेसर सुच्चा सिंह गिल से भी बात की. गिल ने यह कहा कि अध्यादेश बड़े व्यापारियों और निर्यात कंपनियों को कृषि उपज का स्टॉक करने और देश में कहीं से भी कर या शुल्क का भुगतान किए बिना खरीद करने की अनुमति देंगे. उन्होंने कहा कि इससे कॉरपोरेट दिग्गज कृषि उत्पाद की कीमतों में बढ़ोतरी कर सकेंगे.

अगस्त में, पंजाब में प्रदर्शकारी किसानों भारतीय जनता पार्टी के सहयोगी शिरोमणि अकाली दल के संसद सदस्यों और विधान सभा के सदस्यों के निवासों के समक्ष प्रदर्शन किया. जब पंजाब विधानसभा ने 28 अगस्त के प्रस्ताव पर मतदान किया, तो एसएडी के सदस्य सदन से गैरहाजिर रहे.

26 जुलाई को एसएडी के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने अध्यादेशों पर किसानों की आशंका व्यक्त करते हुए केंद्र सरकार को पत्र लिखा. इसके जवाब में 26 अगस्त को कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने सुखबीर को लिखा कि अध्यादेश "किसान समुदाय के सर्वोत्तम हित की रक्षा" के लिए है. उन्होंने कहा कि अध्यादेश किसानों को "अतिरिक्त विपणन चैनल" प्रदान करेगा और एपीएमसी अधिनियम के तहत मौजूदा मंडियों को बदलने का "बिल्कुल भी इरादा नहीं है." उन्होंने कहा कि राज्य विनियमित मंडियां कार्य करना जारी रख सकती हैं.

एमएसपी पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने लिखा, "उपरोक्त अध्यादेशों की घोषणा का एमएसपी पर खरीद की नीति पर कोई असर नहीं है जो केंद्र सरकार की प्राथमिकता है." उन्होंने कहा कि एमएसपी पर कृषि उपज की खरीद करने वाली राज्य एजेंसियों की नीति में कोई बदलाव नहीं होगा. उन्होंने आगे बताया कि राज्य विनियमित बाजारों में मंडी शुल्क लागू करना जारी रख सकता है.

इसके तुरंत बाद सुखबीर ने तोमर के बयान को दोहराया और अध्यादेशों का बचाव करते हुए जोर दिया कि वे किसानों के हित में हैं. हालांकि सितंबर में पार्टी ने अपना रुख बदलना शुरू कर दिया. एसएडी के प्रवक्ता दलजीत सिंह चीमा ने 12 सितंबर को एक बयान में कहा कि कोर कमेटी की बैठक में पार्टी ने संसद में अध्यादेश लाने से पहले किसानों की चिंताओं को दूर करने के लिए केंद्र से अनुरोध करने का फैसला किया है. 15 सितंबर को बादल ने अध्यादेशों के खिलाफ संसद में बात की. बादल ने कहा, "पहले तो अध्यादेशों लाया ही नहीं जाना चाहिए था ... अध्यादेश लाने से पहले चर्चा होनी चाहिए थी." दो दिन बाद एसएडी नेता और केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने कृषि विधेयकों के विरोध में मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया.

किसान संगठनों के नेता भी तोमर के आश्वासन से सहमत नहीं हैं. तोमर के पत्र पर पलटवार करते हुए राजेवाल ने कहा कि खरीदारों को मंडियों के बाहर व्यापार करने के लिए कोई शुल्क नहीं देना होगा तो कोई भी मौजूदा चैनलों के माध्यम से नहीं आएगा. उन्होंने कहा कि हो सकता है शुरू में किसानों को उन व्यापारियों से अधिक पैसा मिले जो बाजार और कमीशन एजेंट शुल्क का भुगतान न करके काफी बचत करेंगे, "लेकिन एक बार एपीएमसी संरचना टूट जाने के बाद वे किसानों के लिए अपनी शर्तों को निर्धारित करना शुरू कर देंगे और इस बात की कोई गारंटी या बाध्यता नहीं होगी कि किसान की फसल खरीदी जाएगी और कितने में खरीदी जाएगी. अगर निजी खरीदार उदासीनता दिखाते हैं तो किसानों को अपनी फसल को कम दरों पर बेचने के लिए मजबूर किया जाएगा और फिर ये खरीदार अपनी इच्छा के अनुसार बेचेंगे."