जारी किसान आंदोलन में पंजाब के कलाकार भी बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं. यह अभूतपूर्व है क्योंकि आमतौर पर भारत में फिल्मी कलाकार, कुछेक अपवाद को छोड़ कर, अमूमन राजनीतिक स्टैंड लेने से बचते है, तब भी जब देश की राजनीति उन्हें सीधे प्रभावित करती है. हाल में हिंदी फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या के बाद कुछ विशेष कलाकारों पर दक्षिणपंथियों के हमले के समय भी देखा गया कि हिंदी फिल्म जगत के बड़े कलाकार खामोश रहे. इस बीच पंजाब के कलाकारों ने न सिर्फ किसान आंदोलनों को समर्थन दिया है बल्कि कई कलाकार आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग ले रहे हैं.
कारंवा के लिए पत्रकार मनदीप पुनिया ने पंजाब के सुपरिचित फिल्म निर्माता-निर्देशक जतिंदर मोहर से बात की. मोहर की 2010 में आई फिल्म “मिट्टी” किसानी पृष्ठभूमि पर आधारित थी. बातचीत में मोहर ने आम जन के प्रति एक कलाकार की प्रतिबद्धता, कला और राजनीति का संबंध और किसान आंदोलन की मौलिकता पर अपने विचार रखे.
मनदीप पुनिया : आप टिकरी बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन में शामिल हैं. ऐसी क्या वजह है कि एक फिल्म निर्माता को किसान आंदोलन में भाग लेने आना पड़ा?
जतिंदर मोहर : मुझे लगता है कि कला और समाज में जब कोई भी घटनाक्रम चल रहा होता है या कोई लोक लहर चल रही होती है तो उस लहर का जैसा असर लोगों पर पड़ता है वैसा ही असर कला के क्षेत्र से जुड़े लोगों पर भी पड़ता है. दूसरी बात यह है कि कला के क्षेत्र से जुड़े व्यक्ति को भी यह फैसला करना पड़ता है कि वह किसके साथ खड़ा है. जब लोगों के साथ बेइंसाफी हो रही है और उनके हक छीने जा रहे हैं तो आपको फैसला करना पड़ता है कि आप हक छीनने वाले के साथ खड़े हैं या फिर जिनके हक छीने जा रहे हैं उनके साथ खड़े हैं. आपको फैसला करना पड़ता है कि आप बेइंसाफी करने वालों के साथ खड़े हैं या फिर जो बेइंसाफी बर्दाश्त कर रहा है उसके साथ खड़े हैं. यह सवाल सिर्फ बतौर कलाकार होने से नहीं बल्कि बतौर मनुष्य होने से भी जुड़ा है कि हम किस धड़े के साथ खड़े हैं. अगर हमें लगता है कि दो जून की रोटी, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजी पर सबका हक है, तो रोजी-रोटी और जमीन बचाने की जो लड़ाई है उसमें बतौर कलाकार ही नहीं बल्कि बतौर मनुष्य भी जो अपनी जमीन, अपनी रोजी-रोटी बचाने की लड़ाई लड़ रहा है, उस धड़े के साथ खड़े होना हमारा फर्ज है.
मनदीप : फिल्म निर्देशकों/निर्माताओं के निष्पक्ष होने पर बहुत जोर क्यों दिया जाता है?
जतिंदर : जो आदमी यह कहता है कि वह राजनीति नहीं कर रहा है. मुझे लगता है कि वह भी एक तरह की राजनीति का हिस्सा है. असल में राजनीति सभी लोग कर रहे होते हैं. लेकिन यह आपके ऊपर निर्भर करता है कि आप किस तरह से राजनीति करते हैं और आप कैसे अपनी कला में राजनीति इस्तेमाल कर रहे हैं. आप जो ‘निष्पक्ष’ शब्द का प्रयोग कर रहे हैं, हो सकता है कि कुछ लोग निष्पक्ष रहते हों. पर मुझे नहीं लगता है कि निष्पक्षता जैसी कोई चीज होती है. खासकर उस समाज में जिसमें इतनी गैर-बराबरी हो और लोगों के हक छीने जा रहे हों. जहां गरीब और अमीर का इतना फर्क हो. जहां तरह-तरह से आवाम के साथ धोखा होता हो. उस समाज में आप निष्पक्ष नहीं हो सकते. आपको कोई ना कोई पक्ष चुनना ही पड़ेगा. और इसी वजह से मैंने अपना पक्ष संघर्षरत लोगों के साथ खड़ा होना चुना है. जो लोग नहीं बोल रहे हैं, या फिर कोई पक्ष नहीं ले रहे हैं, उनको उनकी सोच मुबारक है.
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