नवंबर 2020 में विवादास्पद कृषि कानूनों के खिलाफ हजारों किसानों ने दिल्ली की सीमाओं पर धरना शुरू करते हुए एलान किया कि अगर जरूरत पड़ी तो वे छह महीने तक भी अपना आंदोलन जारी रखेंगे. बाद के महीनों में इन धरनों को दुनिया भर से समर्थन मिला. कोविड-19 महामारी की क्रूर दूसरी लहर के बीच भी यह आंदोलन जारी है. आज भी हजारों किसान सिंघू और टिकरी बॉर्डर पर डेरा डाले हुए हैं. लोहे के तख्ते, बांस, तिरपाल की चादरें और हरे गार्डन शेड से निर्मित उनके अस्थाई घर कई किलोमीटरों तक फैले हुए हैं. टिकरी में एक प्रदर्शनकारी सुरजीत कौर ने मुझे बताया, “इन कानूनों के खत्म होने तक अपनी लड़ाई जारी रखने का इरादा लेकर हम यहां डेरा डाले हैं.”
मई के दूसरे पखवाड़े में मैंने तीन बार धरना स्थल का दौरा किया और देखा कि प्रदर्शनकारियों का इरादा वापस जाने का नहीं है. वहां कई स्वयंसेवक नए आश्रयों के निर्माण के लिए उपकरण ला रहे थे. कई लोग अपने अस्थाई घरों का पुनर्निर्माण भी कर रहे थे क्योंकि वे मूसलाधार बारिश से क्षतिग्रस्त हो गए थे. मई के तीसरे सप्ताह में लगातार तीन रातों तक बारिश होती रही थी.
24 मई को हरियाणा के जींद जिले के निवासी लखबीर सिंह ने मुझसे कहा, “आज मुझे यहां आए पांच महीने और 20 दिन हो गए हैं.” लखबीर ने बताया कि वह एक जरूरी पारिवारिक मामले के सिलसिले से केवल एक दिन के लिए अपने गांव दत्ता सिंह वाला गए थे. उन्होंने कहा, “मैंने अपने परिवार वालों से कह दिया है कि वे मेरी फोटो पर माला पहना दें और जब हम जीत जाएंगे तब मैं वापस जाकर खुद माला हटा दूंगा. लेकिन मैं खाली हाथ नहीं लौटूंगा.” अगले दिन मैंने देखा कि उन्होंने लोहे, बांस, टारप और हरे रंग के जाल से अपने अस्थाई घर की ठीक से मरम्मत कर ली थी.
जबकि लखबीर जैसे कई लोग लगभग कभी घर नहीं लौटे, पंजाब के कई प्रदर्शनकारियों ने बताया कि उनके गांवों में लोगों को धरने पर भेजने के लिए एक रोटेशन प्रणाली चलाई जा रही है. उनमें से एक मुक्तसर जिले के मिल्खा सिंह थे, जो टिकरी में अपने क्षतिग्रस्त अस्थाई घर को ठीक करने के लिए वेल्डिंग कार्य की देखरेख कर रहे थे. मिल्खा ने मुझे बताया कि उनके गांव में एक समिति उनके दौरे का कार्यक्रम तय करती है. उन्होंने कहा, "मैं यहां चौथी बार आया हूं और मैं यहां एक महीने तक रुकूंगा. फिर दूसरा समूह आएगा.” पंजाब के मनसा जिले के किशनगढ़ गांव की एक अधेड़ उम्र की महिला कौर ने कहा कि उनके गांव में भी ऐसी ही व्यवस्था है. “हम गांव से बारी-बारी से यहां आते हैं और फिर कई दिनों तक यहां रहते हैं.” कौर से मेरी मुलाकात 22 मई को हुई. वह एक पखवाड़े से टिकरी बॉर्डर पर थीं. वह छठी बार यहां आई थीं. यह पूछे जाने पर कि क्या प्रदर्शनकारी थक गए हैं, उन्होंने जवाब दिया, "थक्कन लेई ते अस्सी जामिया नहीं, किसान" (किसान थकने के लिए पैदा ही नहीं हुआ है).
कौर ने मुझे बताया कि जब वह और उसके साथी ग्रामीण पहली बार नवंबर 2020 में धरने पर आए थे, तो वे अपनी ट्रॉलियों में सोए थे लेकिन अब दो महीने से वे बांस और तिरपाल के शेड में सो रहे हैं. "हम यहां डेरा डाले हुए हैं भले ही इसमें दो या तीन साल लग जाएं," उन्होंने कहा. वह खीर बना रही थीं. उनके साथ और छह महिलाएं बैठी थीं. सभी उनकी बात से सहमत दिखीं. “यह हमारे बच्चों की रोटी और मक्खन का सवाल है और यहां दुख में बैठना उतना ही अच्छा है जितना कि घर पर बैठना,” कौर ने मुझे बताया. यह पूछे जाने पर कि क्या वह कोविड-19 से डरती हैं, उन्होंने कहा, "कोविड होना या न होना इसकी जिम्मेदारी तो सरकार पर है."
धरनों में कोविड-19 महामारी पर शायद ही चर्चा होती है. सिंघू में डेरा डाले हुए डॉक्टर बलबीर सिंह ने मुझे बताया कि रोकथाम के नियमों का पालन किया जा रहा है और मास्क वितरित किए जा रहे हैं. उन्होंने कहा, "किसान जागरूक हैं और पंजाब से यहां आने वाले ज्यादातर लोगों को अब टीका लगाया जा चुका है." बलबीर ने मुझे बताया कि सिंघू में स्वेच्छा से डॉक्टरों ने "किसान एकता" नामक दस बिस्तरों वाला अस्थाई अस्पताल स्थापित किया है, जिसमें ऑक्सीजन सिलेंडर और कंसंट्रेटर हैं. उन्होंने कहा कि विशेषज्ञ डॉक्टर बारी-बारी से अस्पताल में रुकते हैं. हालांकि, बलबीर ने कहा सरकार ने धरना स्थलों पर कोविड-19 से निपटने के लिए कोई सहायता नहीं दी थी.
टिकरी में प्रदर्शनकारियों के लिए एक स्वास्थ्य केंद्र, पिंड कैलिफोर्निया की स्थापना करने वाले संयुक्त राज्य अमेरिका के एक डॉक्टर सवाईमान सिंह ने दोहराया कि सरकार ने उनकी सहायता नहीं की. पिंड कैलिफोर्निया टिकरी विरोध स्थल के मुख्य मंच से कुछ किलोमीटर दूर एक नए बस स्टैंड परिसर में कुछ कमरों में बना है. धरना स्थल पर कोविड-19 की स्थिति पर टिप्पणी करते हुए सवाईमान ने कहा, "इसमें कोई संदेह नहीं है कि बीमारी है लेकिन यहां के लोगों को तेज बुखार या खांसी की कोई बड़ी शिकायत नहीं हुई है."
सवाईमान सिंह ने करीब पांच महीने पहले इस केंद्र की स्थापना की थी और मुझसे कहा था कि वह तब तक टिकरी में रहेगा "जब तक किसान यहां हैं." उन्होंने स्वीकार किया कि हालांकि दसियों हजारों लोग अभी भी धरने पर मौजूद हैं वर्तमान में विरोध की ताकत दिसंबर और जनवरी की तुलना में लगभग आधी हो गई है. उनके अनुसार, आंदोलन का नेतृत्व करने वाले किसान संघों द्वारा भविष्य की कार्य योजना तैयार करने पर प्रदर्शनकारियों की संख्या बढ़ जाएगी. "लोग अब घोषणा की प्रतीक्षा कर रहे हैं," उन्होंने मुझे बताया. कई ट्रैक्टर ट्रॉलियां विरोध स्थलों पर अलग-अलग जगहों पर सुनसान पड़ी थीं. प्रदर्शनकारियों ने मुझे बताया कि उनके मालिक जल्द ही वापस आ जाएंगे.
सवाईमान ने मुझे बताया कि गर्मी और मानसून की तैयारी के लिए साइट पर अधिक लोहे, बांस, तिरपाल, हरे जाल और तह लकड़ी के तख्तों की जरूरत है. उन्होंने कहा, "हमें उन लोगों के लिए हजारों नए आश्रयों की आवश्यकता होगी जो अभी भी अपने साधारण तंबू और ट्रॉलियों में बारिश और मच्छरों का सामना कर रहे हैं." सवाईमान ने मुझे बताया कि दिल्ली के शहरी मध्यवर्गीय परिवार पहले विरोध प्रदर्शन में मदद कर रहे थे लेकिन 26 जनवरी की ट्रैक्टर रैली के दौरान हुई हिंसा के बाद मदद थम गई थी. “अब मदद फिर से आने लगी है लेकिन धीरे-धीरे,” उन्होंने कहा.
फिल्म निर्माता रणदीप मडोके, जो आंदोलन शुरू होने के बाद से इसका दस्तावेजीकरण कर रहे हैं, के अनुसार, 26 जनवरी की घटना ने यह स्पष्ट कर दिया था कि "अप्रिय परिस्थितियों का फायदा उठाने के लिए सरकार का प्रयास काम नहीं कर रहा है.” उन्होंने मुझे बताया कि प्रदर्शनकारियों में अभी भी आंदोलन को जिंदा रखने की इच्छाशक्ति है. “यह उनकी लड़ाई है न कि किसान यूनियनों के नेताओं की. लोग अपनी मर्जी से यहां इतने दिनों से रुके हुए हैं. यह किसी भी रैली के विपरीत है जहां नेताओं और राजनीतिक दलों द्वारा लोगों को लाया जाता है.” उन्होंने कहा, "प्रदर्शनकारियों की मानसिकता अब यह है कि उनका यहां रहना जीवन का एक सामान्य हिस्सा बन गया है."
लेकिन आंदोलन कब तक चलेगा इसका अंदाजा कोई नहीं लगा सकता. मिल्खा ने मुझसे कहा, “हमें नहीं पता कि यह संघर्ष कब तक चलेगा. यह साल, दो साल या पांच साल तक भी चल सकता है." जम्हूरी किसान सभा के कार्यकारी सदस्य धरमिंदर सिंह ने बताया कि कैसे सरकार ने चार महीने तक मामले को सुलझाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया. उन्होंने बताया कि किसानों ने 26 मई को विरोध प्रदर्शन की छमाही को काला दिवस के रूप में कैसे मनाया. धरमिंदर ने कहा, “आप आज पूरे पंजाब और हरियाणा में घरों के ऊपर काले झंडे देख सकते हैं और सरकार अभी भी चुप है. देश के कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर अब तक चुप हैं. क्या सरकार हमारे लिए है?”
धरमिंदर ने मुझे बताया कि वह 26 नवंबर को दिल्ली की सीमाओं पर आने के लिए बैरिकेड्स तोड़ने वालों में से थे. धर्मिंदर ने कहा कि वह तब से कई बार पंजाब का दौरा कर चुके हैं ताकि विरोध प्रदर्शन में शामिल होने के लिए और अधिक लोगों को संगठित कर सकें. यह पूछे जाने पर कि वह कब तक यहां रहेंगे, धरमिंदर ने जवाब दिया, “मुझे लगता है कि लंबे समय तक. वैसे भी अब हम यहां रह ही रहे हैं.”