1940 के अपने निबंध ‘इनसाइड द व्हेल’ में जॉर्ज ऑरवेल उस एक चीज के माहिर नज़र आते हैं जो हैरतंगेज़ ढंग से गैर ऑरवेलियन है. आपको लग सकता है कि एनिमल फार्म और 1984 जैसी 20वीं सदी की सबसे कठोर नैतिकतावादी रचनाओं का भावी लेखक- जिसने बखूबी यह ऐलान किया हो कि "कला का राजनीति से कोई लेना-देना नहीं होना चाहिए कहना अपने आप में एक राजनीतिक नजरिया है"- पेरिस में निठल्ले अमेरिकियों के एक समूह के बारे में हेनरी मिलर की किताब, एक ऑटो फिक्शनल जनरल, ‘ट्रॉपिक ऑफ़ कैंसर’ को खारिज कर देगा. इसके बजाए उपन्यास के ‘ज़िंदगी के दामन में दाग’ के चित्रण ने ऑरवेल को हक्का-बक्का कर दिया.
सालों पहले दोनों लेखक पेरिस में मिले थे जब ऑरवेल स्पेनिश गृहयुद्ध में शामिल होने के लिए जाते वक्त रास्ते में रुक गए थे. मिलर ने ऑरवेल को कॉरडरॉय जैकेट भेंट की लेकिन उनके राजनीतिक यकीनों से इत्तेफाक नहीं जताया. मिलर के लिए ऑरवेल के "फासीवाद का मुकाबला, लोकतंत्र की रक्षा” आदि के बारे में विचार एकदम बकवास थे. 1930 के दशक के उन दिनों में मिलर का खयाल था कि एक लेखक का स्पेन जाना और लोकतांत्रिक शासन पर जनरल फ्रेंको के कब्जे का मुकाबला करने वाली मिलिशिया में शामिल होना, लेखक की काबीलियत का निहायती घटिया इस्तेमाल था.
मिलर की राजनीतिक उदासीनता में ऑरवेल को कलात्मक भाव की शांत दावेदारी दिखी. उन्होंने लिखा कि क्योंकि "उनका अनुभव पैसिव (प्रत्यक्ष नहीं है) हैं इसलिए मिलर अधिक सोद्देश्य लेखकों की तुलना में सामान्य व्यक्ति के करीब पहुंचने में ज्यादा सक्षम हैं क्योंकि साधारण मनुष्य भी पैसिव है.” अधिक सोद्देश्य लेखक"- और ऑरवेल ने खुद को उनमें ही गिना- कभी-कभी दुनिया में जो हो रहा होता है उसके बारे में अखबारों में आई खबरों की बाढ़ से अभिभूत हो जाते हैं. मिलर और उनकी तरह के हकीकत के मुतमइन, जैसे कि पुराना नियम में योहाना, व्हेल के पेट के भीतर- कलात्मक होने की बेहतर स्थिति में थे, कल्पनाशील रूप से यह चित्रित करने के लिए कि चीजें कैसी थीं. ऑरवेल शायद यह अनुमान लगाते हुए कि दूसरे विश्व युद्ध के अंत तक "प्रमुख साहित्य" का कोई काम नहीं किया गया एक धूमिल बिंदु पर निबंध खत्म कर सकते हैं, लेकिन केवल कोई बेचारा पाठक यह निष्कर्ष निकालेगा कि यह हिस्सा राजनीतिक रूप से प्रतिबद्ध कलाकारों को हेय समझता है. मिलर कुछ हद तक बुनियादी तर्क के लिए मिट्टी के माधव हैं: उपन्यास या कविता में किसी लेखक के इरादे, भले ही वह उदात्त हों या महान, अपने आप में काफी नहीं होते हैं. ऑरवेल ने अपनी बात तब रखी जब वह मिलर को "वास्तव में एक किताब भर का आदमी" कहते हैं.
देर-सबेर मुझे उससे यह उम्मीद कर लेनी चाहिए कि वह नासमझी में या धूर्तता में उतरेगा: उसके बाद के काम में दोनों के संकेत हैं ... कुछ अन्य आत्मकथात्मक उपन्यासकारों की तरह, उसके पास सिर्फ एक काम पूरी तरह से करने के लिए था और उसने ऐसा किया. यह देखते हुए कि 1930 के दशक के फिक्शन कैसे रहे हैं, उसका महत्व है.