1873 में प्रकाशित जोति राव फुले की गुलामगिरी, जिसे आमतौर परउनकी सबसे महत्वपूर्ण पुस्तक माना जाता है, के पहले पन्ने पर लिखा है कि पुस्तक समर्पित है "संयुक्त राज्य के अच्छे लोगों को जिन्होंने नीग्रो दासता के खिलाफ उदात्त निस्वार्थ आत्म-बलिदान दिया.” 1865 में संयुक्त राज्य अमेरिका में दासता के उन्मूलन का संदर्भ, पुस्तक के लिए भावी तर्कों को तैयार करता है. फुले गुलमगिरी में गुलामी के बारे में होमर और भारतीय समाज में ब्राह्मणों की भूमिका पर दो पश्चिमी लेखकों को उद्धृत करते हैं.
इसके बाद किताब में अंग्रेजी में एक प्रस्तावना है जो औपनिवेशिक अधिकारियों के लिए है. यह औपचारिक गद्य शैली में लिखी गई है जो अंग्रेजी में तो पहले से प्रचलित थी लेकिन तब तक मराठी में विकसित नहीं हुई थी. फुले पौराणिक मिथकों के अनुसार ब्राह्मण समुदाय और गैर-ब्राह्मणों पर उनके वर्चस्व की बात तो करते हैं लेकिन इन मिथकों को वह इतिहास और नृविज्ञान में हुए नए विकास के चश्मे से देखते हैं. जोति राव पारंपरिक पुराण कथा के हवाले से "भारत में ब्राह्मण वर्चस्व का इतिहास" बताते हैं और आगे मनुस्मृति का हवाला देते हुए बताते हैं कि किस तरह ब्राह्मणों ने गैर-ब्राह्मणों का दमन और शोषण करने के लिए जाति को कायम रखा. प्रस्तावना औपनिवेशिक अधिकारियों के लिए एक याचिका के साथ समाप्त होती है, जिनसे फुले को उम्मीद थी कि, "वे अपने पुराने चालचलन की कमियों को देखेंगे, उन लेखकों या पुरुषों पर कम भरोसा करेंगे जो लोगों को उच्च श्रेणी के चश्मे से देखते हैं और शूद्र भाइयों को उन बंधनों से, जो ब्राह्मणों ने कुंडलियों की तरह उनके चारों ओर बनाए हैं, मुक्त करने का गौरव अपने हाथों में लेंगे.”
अंग्रेजी प्रस्तावना के बाद मराठी में परिचय है. लेकिन जैसे ही पुस्तक की भाषा बदलती है यह अपने गद्य रूप को तो बनाए रखती है लेकिन अब सब के बजाए यह मराठी गैर-ब्राह्मण पाठकों को संबोधित करती है. फुले लिखते हैं कि किन चालाकियों से ब्राह्मणों ने आध्यात्मिक और धर्मनिरपेक्ष अर्थों में संसाधनों पर नियंत्रण बनाए हुए गैर-ब्राह्मणों को उनकी सेवा में लगाया. इसके बाद वह पश्चिम में विकास के बारे में लिखते हैं, जहां दासता को समाप्त कर दिया गया था.