कटक शहर में करीब एक सदी बिताने वाले जयंत महापात्रा का कहना है कि यह शहर एक हजार साल पुराना है. कटक उनका जन्म स्थान है और वह यहीं पले-बढ़े भी. वह अपने लेखन में बार-बार इसके बारे में बात करते हैं. पिछले साल नवंबर में जब मैं एक उड़िया अखबार पढ़ रहा था तब एक छोटे से लेख ने मेरा ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया. अपने बयान्वे वें जन्मदिन के कुछ हफ्ते बाद महापात्रा ने अपने पाठकों को अपने घर से स्कूल तक के रास्ते के बारे में बताने के लिए उन्हें एक वॉक पर ले जाने का फैसला किया था जिसमें होकर वह अस्सी साल पहले रोज आया-जाया करते थे.
उन्होंने लिखा, "कटक में बहुत सारी कहानियां हैं. कुछ ऐसी भी हैं जो मुझे तब भी समझ नहीं आईं जब मुझे लगा कि मैंने उन्हें देख और समझ लिया है, और इसलिए मैं उन दिनों और उन सड़कों पर लौटूंगा जो मेरे लिए बहुत मायने रखती हैं.” वह 1940 के एक शांत दिन को याद करते हैं जब दूसरा विश्व युद्ध एक साल से चल रहा था और वह और उनका भाई स्कूल जाने के लिए तैयार थे. इसमें कुछ भी असामान्य नहीं था, वे हर दिन की तरह रिक्शा में सवार थे.
लेकिन यह दैनिक अनुभव सांसारिक भावना को संदर्भित नहीं करता है. पुराने औपनिवेशिक शहर (जिसे वह "गांव जैसा शहर" भी कहते हैं) की संकरी गलियों से होते हुए,वह पेड़ों,एक तालाब और अपने दोस्तों के घरों से गुजरे, बहुत सी चीजें उसके पास वापस आ गईं. बिलिमोरिया द्वारा चलाए जा रहे पारसी कैंडी स्टोर जिसमें उनकी पसंदीदा कैंडी बेची जाती थी और खान होटल की स्वादिष्ट मछली बिरयानी जो उन्हें अब कभी नहीं मिल सकती, बिल्कुल वैसे ही जैसे अब नहीं मिल सकते कई दोस्त और परिचित. उन्होंने अपने आस-पास के हर पेड़ और गली के बारे में ऐसी कहानियां साझा कीं, जो उनकी दुख से भरी हुई यादों के जीवंत होने की अनुभूति देती हैं. यह इस शहर की सतत जीवंतता है जिसने उन्हें उन यादों को दुबारा जीने के लिए प्रेरित किया. यह उदासीनता से दूर एक कटक निवासी द्वारा शहर का एक अभिन्न चित्रण था. उन्होंने यह लिखा भी कि उन दिनों कटक न्यूयॉर्क की तरह लगता था.
इस कल्पना की एक झलक 2013 में लिखी गई महापात्रा की आत्मकथा पाहिनी रति- द नाइट इज स्टिल टू डॉन में दिखाई देती है. इसमें वह 1976 की शरद ऋतु में संयुक्त राज्य अमेरिका में बिताए उस क्षण को याद करते हैं जब ठंडी सुबह को अपने माचिस के डिब्बे बराबर अपार्टमेंट से वह मेपल के पेड़ों से बहने वाली कोमल आयोवा नदी को देख रहे थे.पत्तियों पर नया पीला-भूरा रंग चढ़ा था और बहता पानी उन्हें आकर्षित करता था. गगनभेदी सन्नाटे ने उनके आश्चर्य को और बढ़ा दिया था. शोर-शराबे के इतने आदी होने के कारण वह मुश्किल से इस तरह के उजाड़ को बर्दाश्त कर पा रहे थे. उन्हें आश्चर्य हुआ कि “यह एक नहर ही ठीक थी, क्या भला यह कभी नदी हो सकती?" उनके लिए एक नदी की एक अलग छवि बनी हुई थी. कटक में महानदी के आसपास व्यस्त घाट स्नान, मछली पकड़ने, गाय चराने जैसे अपने दैनिक काम करते हुए लोगों से भरे हुए होते थे. महापात्रा का इन शहरों को एक साथ जोड़कर देखना एक स्वप्निल या मनमाना आवेग नहीं था. नए और अपरिचित स्थानों के बारे में लिखे अपने लेख में वह जिस तरह से उनका सामना करते हैं, वह जाना-पहचाना मालूम होता है.वे अपने लेखन और समकालीन समय में साहितिक यात्रा द्वारा - विशेष रूप से भारत के संदर्भ में, अंग्रेजी भाषा के माध्यम से दुनिया के साथ इसके संबंध के बारे में विचार व्यक्त करते हैं.
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