साल 2020 की शुरुआत में प्रकाशित हुए शेहान करुणातिलक के उपन्यास चैट्स विद दि डेड उपन्यास के नायक माली अलमीडा, जो एक निडर फोटो जर्नलिस्ट है, के बारे में उपन्यास के शुरू में ही पता चलता है कि वह मर चुका है. इस उपन्यास की पृष्ठभूमि 1989 की है. करुणातिलक के अनुसार, वह आतंक के तूफान समय था. श्रीलंकाई सेना, लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम, भारतीय शांति सैनिक, जनता विमुक्ति पेरमुना पार्टी के सदस्य और राज्य के डेथ स्क्वॉड, सभी श्रीलंकाई धरती पर चल रहे संघर्ष में फंसे हुए थे. वह ऐसा समय था जब कर्फ्यू, बम, हत्या और अपहरण की घटनाएं चरम पर पहुंच चुकी थीं.
उपन्यास में कहानी को माली के हवाले से बताया गया है क्योंकि वह मौत के बाद के जीवन के जटिल परिदृश्य से मुखातिब हो रहा है और अपनी मौत की सच्चाई को स्वीकार करने की कोशिश कर रहा है. उसे याद नहीं है कि उसका हत्यारा कौन है और इस तरह वह दुनिया से और अपने आप से दूर हो गया है. वह खुद को समझाता है कि “सच्चाई खरोंचों और कराहों से सामने आती है.” वह सोचता है, “1980 के दशक के श्रीलंका में “गुमशुदा” शब्द एक पैसिव वर्ब था जो सरकार या जेवीपी अराजकतावादी, टाइगर अलगाववादी या भारतीय शांति सैनिक आपको कर सकते थे."
इस पुस्तक के प्रकाशित होने से पहले करुणातिलक को रहस्य में गुंथी क्रिकेट पर आधारित किताब चाइनामैन : दि लेजेंड ऑफ प्रदीप मैथ्यू के लिए जाना जाता था. इसका नायक श्रीलंकाई एक शराबी पत्रकार डब्ल्यूजी करुणासेना है जो एक दिग्गज गेंदबाज, जो गायब हो गया है, को ढूंढने के लिए प्रतिबद्ध है. जब मैंने करुणातिलक से यह पूछा कि क्या वह वास्तव में ये दोनों पुस्तकें रहस्य से जोड़ कर लिखना चाहते थे, तो उन्होंने इसका जवाब “नहीं” में दिया. उन्होंने कहा, "मैंने दोनों की शुरुआत क्रमशः एक क्रिकेट कहानी और एक भूत की कहानी लिखने के इरादे से की थी. रहस्य एक सरल तरीका है जिसके जरिए आप जो चाहे कह सकते हैं जबकि आप पाठकों को गुमराह किए रहते हैं. अंत में प्रदीप के लिए डब्ल्यूजी की खोज या माली की अपने हत्यारे को खोजने की इच्छा वास्तव में किसी भी कहानी का आधार नहीं थी लेकिन उन्होंने मुझे दिलचस्प जगहों के बारे में जानने का मौका दिया और अजीबो-गरीब लोगों से मिलाया.”
दो दशक पहले प्रकाशित हुई माइकल ओन्डात्जे की अनिल्स गोस्ट (अनिल का भूत) की पृष्ठभूमि भी 1980 के दशक की है जिस पर आधारित है चैट्स विद दि डेड भी. यह वक्त छिपी हिंसा और खुले कोलाहल से भरा था. किताब में बताई गई घटनाओं के बीज स्वतंत्रता और उससे पहले के वक्त में डाले गए थे जब सीलोन के ब्रिटिश शासकों ने विभिन्न जातियों के साथ भेदभाव करने वाला कानूनी ढांचा और संविधान स्थापित किया था जिसने श्रीलंका को वर्षों तक गुलाम बनाए रखा. मिशेल डी क्रेसर द्वारा लिखित दि हैमिल्टन केस स्वतंत्रता से पहले के समय पर आधारित उपन्यास है जो दो विश्व युद्धों के बीच के लंबे अंतराल वाले 1930 के सीलोन की झलक प्रदान करता है. इस पुस्तक पर लिखे गए एक अकादमिक शोध को पढ़ते हुए मैंने सीलोन के चौथे प्रधानमंत्री रहे प्रभावशाली और विवादास्पद व्यक्तित्व एसडब्ल्यूआरडी बंडारनायके की कुछ कहानियां पढ़ी. बंडारनायके देश के चौंथे प्रधानमंत्री भी हुए. बंडारनायके का रुझान क्लासिक जासूसी कथा साहित्य की तरफ अधिक है. इसके अलावा वह औपनिवेशिक माहौल को बताते वक्त डी क्रेसर और भूत-पिशाच के बारे में करुणातिलक की तरह लिखते हैं. पिछले साल प्रकाशित रुवानी पीटर्ज विल्हाउर का उपन्यास दि मास्क कलेक्टर्स श्रीलंका में समकालीन कथा साहित्य में भूतों को लेकर रुचि की ओर हमें ले जाता है जो श्रीलंकाई रीति-रिवाजों से जुड़ी हत्याओं से अटा पड़ा है.
कोविड-19 महामारी के कारण लगाए गए सख्त लॉकडाउन में श्रीलंका में लॉकडाउन नियमों का उल्लंघन करने के आरोप में 60000 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया, वही समय था जब मैं एक ऐसे उपन्यास की तलाश कर रहा था जो मुझे बेचैन कर दे और जिसके अंत में मैं एक संतोषजनक निष्कर्ष तक पहुंच जाऊं जिसमें खलनायकों को उनके किए का फल मिले और पाठकों को, जो एक अच्छी जासूसी कही पढ़ना चाहता थे, अभेद्य प्रश्नों के प्रशंसनीय उत्तर. मैं किसने किया वाले उपन्यास पढ़ना चाहता था. लेकिन मुझे सिर्फ निराशा हाथ लगी. फिर भी इन पुस्तकों को पढ़ते हुए समय में पीछे जाने की आवश्यकता होती है. वे बताती हैं कि कैसे मृत लोग जीवितों को परेशान करने के लिए वापस आते हैं और हमें कभी न खत्म होने वाले विचारों की बेचैनी में डुबो देती हैं, वे जीवन और मृत्यु के बीच की रेखाओं को धुंधला कर देती हैं. इन उपन्यासों में वैज्ञानिक विषमताओं को वश में करने और वर्गीकृत करने का प्रयास किया गया हैं. फिर भी जासूस और पीड़ित दोनों जटिल, अस्पष्ट परिस्थितियों में फंस जाते हैं. साथ ही प्रत्येक उपन्यास अपने पात्रों को इतिहास के महत्वपूर्ण दिक-काल पर रख कर व्यापक सामाजिक और राजनीतिक प्रश्न भी उठाता है. ये किताबें समाज के सहज वर्गीकरण को झुठलाती हैं, आत्मविश्वास से तथ्य और मिथक, अकथनीय और कथनीय, साहित्यिक कथा और सामाजिक टिप्पणी के बीच की सीमाओं को धुंधला करती हैं.
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