भूतों का एक देश

देश के इतिहास से जूझते श्रीलंकाई अपराध उपन्यास

साल 2020 की शुरुआत में प्रकाशित हुए शेहान करुणातिलक के उपन्यास चैट्स विद दि डेड उपन्यास के नायक माली अलमीडा, जो एक निडर फोटो जर्नलिस्ट है, के बारे में उपन्यास के शुरू में ही पता चलता है कि वह मर चुका है. इस उपन्यास की पृष्ठभूमि 1989 की है. करुणातिलक के अनुसार, वह आतंक के तूफान समय था. श्रीलंकाई सेना, लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम, भारतीय शांति सैनिक, जनता विमुक्ति पेरमुना पार्टी के सदस्य और राज्य के डेथ स्क्वॉड, सभी श्रीलंकाई धरती पर चल रहे संघर्ष में फंसे हुए थे. वह ऐसा समय था जब कर्फ्यू, बम, हत्या और अपहरण की घटनाएं चरम पर पहुंच चुकी थीं.

उपन्यास में कहानी को माली के हवाले से बताया गया है क्योंकि वह मौत के बाद के जीवन के जटिल परिदृश्य से मुखातिब हो रहा है और अपनी मौत की सच्चाई को स्वीकार करने की कोशिश कर रहा है. उसे याद नहीं है कि उसका हत्यारा कौन है और इस तरह वह दुनिया से और अपने आप से दूर हो गया है. वह खुद को समझाता है कि “सच्चाई खरोंचों और कराहों से सामने आती है.” वह सोचता है, “1980 के दशक के श्रीलंका में “गुमशुदा” शब्द एक पैसिव वर्ब था जो सरकार या जेवीपी अराजकतावादी, टाइगर अलगाववादी या भारतीय शांति सैनिक आपको कर सकते थे." 

इस पुस्तक के प्रकाशित होने से पहले करुणातिलक को रहस्य में गुंथी क्रिकेट पर आधारित किताब चाइनामैन : दि लेजेंड ऑफ प्रदीप मैथ्यू के लिए जाना जाता था. इसका नायक श्रीलंकाई एक शराबी पत्रकार डब्ल्यूजी करुणासेना है जो एक दिग्गज गेंदबाज, जो गायब हो गया है, को ढूंढने के लिए प्रतिबद्ध है. जब मैंने करुणातिलक से यह पूछा कि क्या वह वास्तव में ये दोनों पुस्तकें रहस्य से जोड़ कर लिखना चाहते थे, तो उन्होंने इसका जवाब “नहीं” में दिया. उन्होंने कहा, "मैंने दोनों की शुरुआत क्रमशः एक क्रिकेट कहानी और एक भूत की कहानी लिखने के इरादे से की थी. रहस्य एक सरल तरीका है जिसके जरिए आप जो चाहे कह सकते हैं जबकि आप पाठकों को गुमराह किए रहते हैं. अंत में प्रदीप के लिए डब्ल्यूजी की खोज या माली की अपने हत्यारे को खोजने की इच्छा वास्तव में किसी भी कहानी का आधार नहीं थी लेकिन उन्होंने मुझे दिलचस्प जगहों के बारे में जानने का मौका दिया और अजीबो-गरीब लोगों से मिलाया.” 

दो दशक पहले प्रकाशित हुई माइकल ओन्डात्जे की अनिल्स गोस्ट (अनिल का भूत) की पृष्ठभूमि भी 1980 के दशक की है जिस पर आधारित है चैट्स विद दि डेड भी. यह वक्त छिपी हिंसा और खुले कोलाहल से भरा था. किताब में बताई गई घटनाओं के बीज स्वतंत्रता और उससे पहले के वक्त में डाले गए थे जब सीलोन के ब्रिटिश शासकों ने विभिन्न जातियों के साथ भेदभाव करने वाला कानूनी ढांचा और संविधान स्थापित किया था जिसने श्रीलंका को वर्षों तक गुलाम बनाए रखा. मिशेल डी क्रेसर द्वारा लिखित दि हैमिल्टन केस स्वतंत्रता से पहले के समय पर आधारित उपन्यास है जो दो विश्व युद्धों के बीच के लंबे अंतराल वाले 1930 के सीलोन की झलक प्रदान करता है. इस पुस्तक पर लिखे गए एक अकादमिक शोध को पढ़ते हुए मैंने सीलोन के चौथे प्रधानमंत्री रहे प्रभावशाली और विवादास्पद व्यक्तित्व एसडब्ल्यूआरडी बंडारनायके की कुछ कहानियां पढ़ी. बंडारनायके देश के चौंथे प्रधानमंत्री भी हुए. बंडारनायके का रुझान क्लासिक जासूसी कथा साहित्य की तरफ अधिक है. इसके अलावा वह औपनिवेशिक माहौल को बताते वक्त डी क्रेसर और भूत-पिशाच के बारे में करुणातिलक की तरह लिखते हैं. पिछले साल प्रकाशित रुवानी पीटर्ज विल्हाउर का उपन्यास दि मास्क कलेक्टर्स श्रीलंका में समकालीन कथा साहित्य में भूतों को लेकर रुचि की ओर हमें ले जाता है जो श्रीलंकाई रीति-रिवाजों से जुड़ी हत्याओं से अटा पड़ा है. 

कोविड-19 महामारी के कारण लगाए गए सख्त लॉकडाउन में श्रीलंका में लॉकडाउन नियमों का उल्लंघन करने के आरोप में 60000 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया, वही समय था जब मैं एक ऐसे उपन्यास की तलाश कर रहा था जो मुझे बेचैन कर दे और जिसके अंत में मैं एक संतोषजनक निष्कर्ष तक पहुंच जाऊं जिसमें खलनायकों को उनके किए का फल मिले और पाठकों को, जो एक अच्छी जासूसी कही पढ़ना चाहता थे, अभेद्य प्रश्नों के प्रशंसनीय उत्तर. मैं किसने किया वाले उपन्यास पढ़ना चाहता था. लेकिन मुझे सिर्फ निराशा हाथ लगी. फिर भी इन पुस्तकों को पढ़ते हुए समय में पीछे जाने की आवश्यकता होती है. वे बताती हैं कि कैसे मृत लोग जीवितों को परेशान करने के लिए वापस आते हैं और हमें कभी न खत्म होने वाले विचारों की बेचैनी में डुबो देती हैं, वे जीवन और मृत्यु के बीच की रेखाओं को धुंधला कर देती हैं. इन उपन्यासों में वैज्ञानिक विषमताओं को वश में करने और वर्गीकृत करने का प्रयास किया गया हैं. फिर भी जासूस और पीड़ित दोनों जटिल, अस्पष्ट परिस्थितियों में फंस जाते हैं. साथ ही प्रत्येक उपन्यास अपने पात्रों को इतिहास के महत्वपूर्ण दिक-काल पर रख कर व्यापक सामाजिक और राजनीतिक प्रश्न भी उठाता है. ये किताबें समाज के सहज वर्गीकरण को झुठलाती हैं, आत्मविश्वास से तथ्य और मिथक, अकथनीय और कथनीय, साहित्यिक कथा और सामाजिक टिप्पणी के बीच की सीमाओं को धुंधला करती हैं. 

हो सकता है चाइनामैन ने करुणातिलक को अधिक ख्याति दिलाई हो लेकिन चैट्स विद दि डेड मुझे अधिक महत्वाकांक्षी उपन्यास लगा, जो श्रीलंकाई साहित्यिक क्षेत्र में उनके मजबूत स्थान को सही ठहराता है. कुछ हद तक ऐसा उनके भाषा के प्रयोगों के कारण है. उनके संवाद ज्ञानपूर्ण है, उनके वाक्यों की धार तेज है और वह उन्हें नाटकीय रूप से प्रस्तुत करते है. यह पुस्तक चुटकुलों और हल्के-फूल्के मजाक से भी भरी हुई है, जिनसे श्रीलंकाई पहले से परिचित हैं और करुणातिलक ऐसे व्यक्ति के रूप में सामने आते हैं जो श्रीलंका में रह कर, श्रीलंका के बारे में और श्रीलंका के लोगों के लिए लिखता है. 

करुणातिलक वर्तमान में ब्रिटेन और संयुक्त राज्य अमेरिका के पाठकों के लिए चैट्स के कुछ भागों पर नए सिरे से काम कर रहे हैं क्योंकि पुस्तक के प्रकाशकों का मानना ​​​​है कि यह पुस्तक विदेशी पाठकों के लिए बहुत ही संकुचित और पढ़ने में कठिन साबित हो सकती है. मैं उनके चिंतित होने की वजह को देख सकता हूं, शुरुआती अध्यायों में सघन बातचीत होने इसका एक कारण है, हालांकि यह भी कहा जाना चाहिए कि करुणातिलक के संदर्भों के अर्थ तक पहुंच जाने पर मुझे एक अलग किस्म की संतुष्टि मिलती है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि एक बिंदु पर यह लेखक के साथ खेले जाने वाले एक खेल की तरह एहसास कराना बंद कर देता है और कहानी गति पकड़ लेती है. अंत में आप बस सवारी की तरह ही साथ हैं. 

करुणातिलक की कहानी की दुनिया में भूत सर्वज्ञ नहीं हैं. इसके बजाए माली एक गहरी भूलने की बीमारी की चपेट में है और याद कर सकना उसके लिए काफी दर्दनाक है, भौतिक दुनिया को प्रभावित करने की शक्ति की बहुत अधिक कीमत चुकानी होती है और इसलिए वह उन जगहों को भूताहा कर सकता है जहां उसका नाम पुकारा गया है या जहां वह जीवित रहते हुए कभी गया था. शायद सबसे ज्यादा निराशा तब होती है जब वह उन लोगों के साथ बात करने का प्रयास करता हैं जिनसे वह प्यार करता था. एक जगह माली दर्दनाक रूप से कमजोर दिखाई पड़ता है जब वह उसकी रूम-मेट, सबसे अच्छी दोस्त और नकली प्रेमिका जाकी के सामने मंडराता है. और एक बेईमान आध्यात्मिक मध्यस्थ के जरिए उससे जुड़ने की कोशिश करता है जिसे क्रो अंकल के नाम से पहचाना जाता है. 

उसे देख कर आप रोने लगते हो भले ही आपके पास आंखें, आंसू या सुबकने के लिए कुछ भी न हो. और रोना एक ऐसी चीज है जो आप उतनी ही सहजता से करते हैं जैसे आप लड़कियों के साथ सेक्स करते हैं. आप तब नहीं रोए जब आप बाघों की तस्वीर लेने के लिए शवों के ऊपर कदम रख हुए थे, जब आपने आठ साल के बच्चे को अपनी मृत बहन की गोद में बैठते देखते हैं या तब जब अपने पिता की मृत्यु की खबर सुनी थी जबकि आप रीति-रिवाजों को पूरा कर रहे थे. 

जाकी और माली का सीक्रेट बॉयफ्रेंड डीडी और माली की मां सेना के साथ मिल कर उसे खोजने की कोशिश कर रहे हैं. वे पुलिस से उसके पूर्व सहयोगियों से पूछताछ करने की मांग करते हैं और यहां तक ​​​​कि तांत्रिक के पास भी जाते हैं. और माली यह सब दुख, असहाय और क्रोध के मिले जुले भावों के साथ देखता है. 

संभावित हत्यारों की सूची लंबी है, इसने उसे ढूंढने में कोई मदद नहीं की. माली के पूर्व मालिकों ने उत्तर में तमिल उग्रवादियों के साथ संबंध बनाए रखे और दक्षिण में मौत के दल चलाते रहे. वे या तो हथियारों के डीलर थे या विदेशी खुफिया एजेंसियों के एजेंट. उसने बहुत से प्रेमियों को धोखा दिया है, संदिग्ध हालातों में चालाकी दिखाते हुए अधिकारियों का अपमान किया. और अब माली का समय समाप्त हो रहा है. वह बीच में फंसा है और अगर वह आगे नहीं बढ़ता है तो वहां और अधिक फंसने का जोखिम है. 

माली के मरने के बाद के जीवन को उसके पहले के जीवन की तरह ही जटिल दिखाया गया है. काफकाई नौकरशाही की लालफीताशाही उतनी ही कसी हुई है जितनी आप अपने स्थानीय सरकारी कार्यालय में देखते हैं जहां बेहद भीड़भाड़ वाली लॉबी में अंतहीन कतारें होती हैं. काउंटर के पीछे क्रीम और सफेद रंग के हर शेड के साड़ी और कुर्ता पहनने वाले कर्मचारी काम करते हैं. गुस्साए ग्राहक जंगले पर चिल्लाते हैं और गाली-गलौज करते हैं. आफ्टरलाइफ एक टैक्स ऑफिस की तरह है और हर कोई अपने लिए विशेष छूट चाहता है. हर किसी का एक मुद्दा होता है और माली को अपना पाला बदलने और याकों से लेकर मोल-भाव करना है. श्रीलंकाई लोककथाओं में याक एक ऐसा राक्षस हैं जो दयालू और दुष्ट दोनों बन सकता हैं. कुछ को मनुष्यों के पास जाकर उन्हें बीमार करने के लिए जाना जाता है, जिन्हें बाद में अनुष्ठान के माध्यम से अपनी बीमारी से पीछा छुड़ाना पड़ता है. हालांकि करुणातिलक की कहानी में ये मिथक और किंवदंती वाले प्राणी नहीं हैं बल्कि बहुत ही वास्तविक दर्द और आतंक में गढ़े हुए हैं. 

याक पैदा नहीं होते, बनते हैं और प्रत्येक की एक कहानी होती है जिसे वह अब नहीं बताता. एक नरभक्षी अंकल पेट्टा बम विस्फोट का शिकार हुआ था. जख्मी आदमी को 1971 में जिंदा जला दिया गया था. जंगली बच्चे को बाघों के लिए अपने चाचाओं को मारने के लिए तैयार किया गया था. और लाचार महिला के साथ सेना ने सामूहिक दुष्कर्म किया था. समुद्री दानव को विश्वविद्यालय में मौत के घाट उतार दिया गया था. नास्तिक पिशाच जेवीपी का एक प्रांतीय पार्षद था. और काली साड़ी वाली महिला ने युद्ध में अपने पांच बच्चों को खो दिया था.

 

करुणातिलक अपने पात्रों और श्रीलंका के युद्ध के दौरान जीने और मरने के लिए प्रसिद्ध लोगों के बीच तुलना करने में संकोच नहीं करते हैं. कोलंबो में उपन्यास के विमोचन के दौरान उन्होंने कहा था कि उन्होंने रिचर्ड डी जोयसा, रजनी थिरानागामा और रोहाना विजेवीरा के भूतों के बीच एक तर्क-वितर्क की कल्पना करने के बाद उपन्यास पर काम करना शुरू किया. यह आंकड़े जनता की यादों में आज भी जिंदा हैं. इस वर्ष रिचर्ड डी जोयसा की मृत्यु की तीसवीं वर्षगांठ थी. यह प्रसिद्ध अभिनेता, कवि और पत्रकार 31 वर्ष के थे जब उनका एक सशस्त्र गिरोह द्वारा अपहरण कर हत्या कर दी गई थी, जिसे राज्य द्वारा प्रायोजित मौत देने वाला दल माना जाता था. माली डी जोयसा की तरह एक अंदरूनी और बाहरी व्यक्तित्व वाला मिश्रित परिवार में पला-बढ़ा इंसान है और एक ऐसे देश में समलैंगिक है जहां समलैंगिकता को अभी भी एक अपराध माना जाता है. 

लेखक के अन्य प्रभावशाली पात्र बहुत कम छिपे हुए हैं खासकर जब डॉ रानी श्रीधरन के चरित्र की बात आती है, जिनकी मृत्यु तमिल मानवाधिकार कार्यकर्ता और डॉक्टर रजनी थिरानागामा की तरह ही हुई थी जिनकी लिट्टे द्वारा उनकी हिंसक रणनीतियों की आलोचना करने के बाद हत्या कर दी गई थी. रानी अक्सर माली के लिए एक गूढ़ और अक्सर निराशाजनक मार्गदर्शिका रही है और अगर वह उसकी सलाह पर भरोसा करने के बाद भी वह पूरी तरह से निश्चित नहीं दिखता है. 

कहानी में रोहाना विजवीरा नाम का पात्र भी नजर आता है. वह एक मार्क्सवादी नेता थे जिन्होंने जेवीपी की स्थापना की थी और 1971 और 1987 में दो खूनी विद्रोहों का नेतृत्व किया था. विजवीरा करुणातिलक की कल्पना में सेना पथिराना के भूत के रूप में पुनर्जन्म लेते हैं, एक ऐसा चरित्र जो कभी गमपाहा जिले में जेवीपी के लिए मुख्य आयोजक था और अपने ही हत्यारों का पीछा करते हुए निर्दयी और हिंसक हो जाता है. 

पूरी दुनिया में गायब होने की उच्चतम दर वाले देश श्रीलंका में चैट्स और वास्तविक जीवन के बीच समानताएं अपरिहार्य हैं. जब इतने सारे श्रीलंकाई परिवार अभी भी अपने परिवार वालों की वापसी का इंतजार कर रहे हैं तब माली की घटनाओं को याद करने की कोशिशें, उसके परिवार को उसे खोजने और उसकी रक्षा करने की जरूरत भी समझ आती है. हम यह पहले से जानते हैं कि माली के परिवार को कभी शोक करने के लिए उसका शरीर नहीं मिलेगा. इसकी अनुपस्थिति में भूत और उसके सहयोगी उसके हत्यारे को खोजने के लिए एक जैसे तरीके अपनाते हैं यह उम्मीद करते हुए कि इससे कम से कम थोड़ा साहस तो मिलेगा. 

माली अपनी आपत्तिजनक नैतिकता और अपने द्वारा की गई कई गलतियों के बारे में शर्मिंदा नहीं है. न्याय की तलाश में होने के बावजूद, वह अक्सर सवाल करता है कि क्या वह खुद इसके लायक है और क्या इसे हासिल करना संभव है. इस मामले में भी किताब दर्दनाक वास्तविकता को दर्शाती है क्योंकि थिरनगामा के परिवार को न्याय से वंचित कर दिया गया था; डी जोयसा के हत्यारों कभी नहीं पकड़ा गया और विजवीरा की मौत की परिस्थितियां संदिग्ध बनी हुई हैं. अनिवार्य रूप से न्याय का प्रश्न पुस्तक के केंद्रीय विषयों में से एक बन जाता है. 

भगवान के पास कोई दूरबीन नहीं है और वह सच्चाई देखने को लिए बहुत दूर है. कौन परवाह करता है कि दबंग बेगुनाहों को लूटते हैं, कौन परवाह करता है कि लालची सब हड़प जाता है और गरीब भूखा रह जाता है, कौन परवाह करता है कि इतिहास लिखा गया है, संपादित किया गया है या मिटा दिया गया है? जल्द सुबह हो जाएगी, डीजे बंद हो जाएगा और बाउंसर आपको दरवाजे तक लेकर जाएंगे. और जल्द ही अच्छा,बुरा, गौरवशाली, भयानक और यहां तक की पत्थर पर उकेरे गए शब्द भी, सब दूर हो जाएगा. 

करुणातिलक की चंचलता उसकी कहानी की दुनिया की गंभीरता को नहीं छिपा सकी और आपको अन्यायपूर्ण मौतों से भरे क्षेत्र में सिर्फ एक हत्यारे को न्याय के दायरे में लाने पर सवाल उठाने के लिए विवश करती है. क्या आप बदला लेने की चाह में उत्पीड़क नहीं बन सकते? जब सच्चाई डरावनी और दर्द से भरी हो तब क्या आपके प्रियजनों के आखिरी लम्हों का ज्ञान उस समय सुकून दे सकता है? 

यह आश्चर्य की बात नहीं है कि ‘अनिल का भूत’ करुणातिलक की किताब में उठाए गए कई सवालों के साथ मेल खाता है क्योंकि यह लगभग एक ही सामाजिक परिवेश पर लिखी गई हैं. इसका नायक अनिल टिसेरा एक फोरेंसिक रोगविज्ञानी है जो श्रीलंका में पला-बढ़ा और बाद में काम करने के लिए विदेश चला गया और बाद में मानवाधिकार जांच में संयुक्त राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करने के लिए स्वदेश लौट आया. 

पहले भी लापता हुए लोगों की सामूहिक कब्रों को देखने वाले अनिल उनके परिवारों के सामने आने वाली दुष्कर समस्यों को समझता है : एक ऐसा विचार घूमता रहता जिसका अर्थ है कि आपका प्रिय व्यक्ति आपकी पहुंच से परे था, आप उसकी मदद नहीं कर सके और आप अब केवल शोक ही कर सकते हैं; फिर भी एक आशा है कि आप एक दिन उन्हें फिर से मिल सकते हैं. 

हमेशा मन में दो सवाल रहते थे कि यह उनका ही बेटा है जो कब्र में है या यह कोई और है, जिसका मतलब था कि आगे उसकी और खोज की जाएगी. अगर यह स्पष्ट हो गया कि शरीर एक अजनबी था तो हफ्तों के इंतजार के बाद परिवार उठ कर चला जाता. वे पश्चिमी हाइलैंड्स में अन्य खुदाई वाली जगहों पर जाते और उनके खोए हुए बेटे के मिलने की उम्मीद करते.

 

कोलंबो पहुंचने पर अनिल के साथ एक स्थानीय पुरातत्वविद सरथ डायसेना है जो न्याय की उम्मीद के अनिल के विश्वास को पूरी तरह से साझा नहीं करती है. जब उन दोनों को एक कंकाल मिलता है जिसे अनिल नाविक बताता है. तब उन्हें लगता है कि उनके पास निर्विवाद सबूत हैं कि राज्य की सेनाएं न्यायेतर हत्याओं में शामिल हैं. कंकाल की उनकी जांच उन उदाहरणों/मापदंड़ो में से एक है जिसमें अनिल का भूत एक जासूसी उपन्यास की अपेक्षाओं के अनुरूप काम करता है. 

हड्डी पर लगे जख्मों को देख कर वह नाविक के आखिरी क्षणों के बारे में जान सकती थी. वह अपने हाथों को अपने चेहरे पर रख कर खुद को प्रहार से बचा रहा था. उसे राइफल से गोली मारी जाती है जो उसके हाथ से होकर गर्दन में जा लगती है. जब वह जमीन पर गिर जाता है वे ऊपर आते हैं और उसे मार डालते हैं ... फिर वे उसे आग लगाने का प्रयास करते हैं और उस जलती हुई रोशनी में उसकी कब्र खोदने लगते हैं. 

उपन्यास में इस तरह के भयानक तथ्य शामिल हैं कि टेलीविजन पर दिखाए जाने वाले क्राइम आधारित शो अक्सर नहीं दिखा पाते. आप सीखते हैं कि कीट लार्वा एक मौत का वक्त पता करने में कैसे मदद कर सकता है या जब शरीर मांस चढ़ा हो या जब हड्डियों के सिवा कुछ नहीं बचा हो तब शरीर के जलने के बारे में कैसे पता लगाया जा सकता है. 

गुमशुदा लोगों पर केंद्रित होने के साथ ‘अनिल का भूत’ आधुनिक श्रीलंकाई राजनीति की गहराई में जाती है, जहां पीड़ितों और खलनायक को अलग करने वाली रेखाएं धुंधली हो जाती हैं और अपराध को निर्धारित करना लगभग असंभव होता है. जैसे ही अनिल और सरथ रहस्यमय कंकाल के पास जाते हैं, वह अपने सहकर्मी (अनिल) पर शक करते हुए सोचती है कि क्या कहीं उसने पहले से ही राजनीतिक लोगों से कोई समझौता किया हुआ है. वह अनिल से कहती है, "मुझे पता है कि आपको लगता है कि सच्चाई का उद्देश्य अधिक जटिल होता है, अगर आप सच बताते हैं तो यह कभी-कभी अधिक खतरनाक होता है." उसकी प्रतिक्रिया यह इंगित करने के लिए है कि अनिल को खुद डरने की जरूरत नहीं हैं. “आप कोलंबो से छह घंटे दूर हैं और आप फुसफुसा रहे हैं, जरा इस पर सोचिए." फिर भी अनिल को यकीन है कि इस एक आदमी के लिए न्याय पाने का मतलब होगा कि बाकि सभी खोई हुई आवाजों को भी न्याय मिल सकता है." 

अनिल के संघर्ष ने श्रीलंका के समाजशास्त्री और मानवविज्ञानी मलाथी डी एल्विस की याद दिलाई. उनके कुछ शुरुआती कार्यों में श्रीलंकाई सरकार द्वारा तमिल युवाओं की सामूहिक गिरफ्तारी के विरोध में 1984 में जाफना में गठित मदर्स फ्रंट आंदोलन में काम करना भी शामिल था. डी एल्विस के अनुसार किसी ऐसे व्यक्ति का पता लगाने की कोशिश करना जो गायब हो गया था, आमतौर पर शिविरों के साथ-साथ रेड क्रॉस और सरकारी कार्यालयों के लिए एक थकाऊ और कठिन और नौकरशाहों के साथ सौदेबाजी करने वाला काम होता था; वहां मामला अत्याधुनिक विज्ञान और अंतरराष्ट्रीय परीक्षणों की तुलना में लालफीताशाही और कागजी कार्रवाई को लेकर अधिक था. इसका एक सरल कारण था. डी एल्विस ने मुझे बताया, "जब मैंने पहली बार उन परिवारों के साथ काम करना शुरू किया तो कई मामलों में हम एक जीवित व्यक्ति का पता लगाने की कोशिश पर अधिक ध्यान दे रहे थे. उन परिवारों ने यह मानने से इनकार कर दिया कि उनके प्रियजन मर चुके हैं. फोरेंसिक की सुविधा बहुत बाद में आई थी, "यह जानते हुए भी कि यह न्याय की कोई गारंटी नहीं है.” 

किताब में अनिल जो करने की कोशिश कर रहा है उसके लिए एक कीमत चुकानी होगी जो यकीनन बहुत अधिक है. ‘अनिल का भूत’ उन लोगों के लिए सीमित विकल्प रखती है जो भविष्य को नहीं जानते और निर्णय लेकर जोखिम उठाते हैं. डी एल्विस ने मुझे बताया, “जिस स्पष्टता से ओन्डात्जे ने हंगामे के दौरान श्रीलंका में रहने की स्थिति के बारे में बताया है उस कारण उनका उपन्यास सफल रहा.” उन्होंने कहा, "उनके बीच रहने वाले मुखबिरों, झूठे आरोपों और प्रतिशोध के कार्यों के कारण सभी समुदाय इससे आहत थे. ओन्डात्जे का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इतना सम्मान होने के कारण इतने सारे लोगों को श्रीलंका में होने वाली इन घटनाओं के बारे में पहली बार पता चला और इन पर विश्वास कर पाए. दक्षिण एशिया की घटनाओं पर काम करने वालों के अलावा किसी को श्रीलंका की स्थिति की सही जानकारी नहीं थी.” 

1980 के दशक में इस द्वीप में इस तरह की भयानक स्थिति उत्पन्न होने के कारणों को समझने के लिए औपनिवेशिक काल के बारे में कुछ समझना होगा जिसने कई जातीय, धार्मिक और वर्गों के बीच तनावों को बढ़ाया और इस कदर भड़काया कि अंग्रेजों के जाने के तीन साल बाद भी यह जगह जलाती रही. 

मिशेल डी क्रेसर का दि हैमिल्टन केस 1930 के दशक में शुरू होता है. ओबयसेकर लोग एक जमींदार परिवार हैं जो पीढ़ियों से वैसे ही जी रहे हैं जबकि विश्वयुद्ध के बाद उनके इर्द-गिर्द की दुनिया बदल रही है. जनता में राष्ट्रवाद और बेचैनी की हलचल एक आसन्न उथल-पुथल का संकेत देती है. स्काइप पर हुई वार्तालाप के दौरान सिडनी में रहने वाली डी क्रेटर ने मुझे बताया कि उन्होंने सैम ओबयसेकर और उसके परिवार का चित्रण “उपनिवेशवाद के सहयोगियों” के रूप में की है. 

सैम इसे पक्ष चुनने के नजरिए से नहीं देखता और स्वाभाविक ही समझता है कि वह औपनिवेशिक अभिजात वर्ग के बीच अपनी जगह ले रहा है. सैम के विरोध में उसके बचपन के प्रतिद्वंदी और बहनोई डोनाल्ड जय सिंघे है जो इतना कुरूप है कि उसे ‘जंगल जया’ उपनाम दिया गया है. एक चतुर चापलूस जय राजनीति में अपने तेजी से बढ़ते कद का आनंद लेता है और राष्ट्रवादी विचारधारा को अपनाने और भिक्षुओं को अपना सहयोगी बनाने के लिए अनेक काम करता है जो उन्हें द्वीप के सिंहाली बौद्ध बहुमत के बीच पकड़ दिलाने में मददगार साबित होंगे. 

एक अनपेक्षित लेकिन संभवतः अच्छे नतीजे के तौर पर सैम ने अपने जीवन को जिन आधारों पर बनाया था वह सब कुछ नजरअंदाज कर देता है. इन आधारों के प्रति अंधा सैम जय के पाखंड और अवसरवाद को देख कर नाराज है, 

हमारे पूर्व संस्कृति मंत्री नस्लीय घृणा के वास्तुकार हैं. वह सिंहाली का चैंपियन बनता है लेकिन भाषा को पढ़ और लिख नहीं सकता. वह कैम्ब्रिज शैली में लिप्यांत्रित स्क्रिप्ट से पढ़ कर अपना भाषण देता था और अपनी भाषा में अटकता है. प्रसिद्ध जंगल जय ने आर्यन सुपरमैन की अपनी बातों से ग्रामीणों को घमंडी बनाया और अपनी पार्टी को शानदार चुनावी जीत दिलाई. 

इन बातों को ध्यान में रखते हुए दि हैमिल्टन केस को तीन तरह से देखा जाता है : निजी, सार्वजनिक और ऐतिहासिक. डी क्रेसर ने मुझे बताया कि वह ऐतिहासिक पहलू को उन तरीकों की खोज के रूप में देखती हैं जिसमें उपनिवेशवाद ने सीलोन की पहचान को आकार दिया था. कैसे परिवार अपने ही देशवासियों का शोषण करने में सहभागी हो गए और उन्हें नस्लवादी साम्राज्यवादी की नजर से देखने लगे. सैम इसका प्रतीक है लेकिन फिर भी खुद को एक असामान्य स्थिति में पाता है जब उसका नाम हैमिल्टन नामक एक बागान मालिक की हत्या के बारे में चर्चा करते समय लिया जाता है. 

डी क्रेसर 1941 में एक चाय बागान के अधीक्षक जॉर्ज पोप की निर्मम हत्या से प्रेरित थीं. (औपनिवेशिक सरकार में एक कनिष्ठ अभियोजक रहे उनके पिता ने मामले के बारे में लिखा है.) बाद की जांच में असंतुष्ट श्रमिकों को अपराध के लिए दोषी ठहराया  जिनमें से दो पर मुकदमा चला कर उन्हें फांसी दे दी गई. सैम का जासूसी का काम अलग तरह से समाप्त होता है. उसे वृक्ष लगाने वाले श्रमिकों पर नहीं बल्कि एक अंग्रेज पर संदेह है और फैसले से सैम को वाहवाही और बदनामी दोनों मिली जो उसके बाकी करियर में परेशानी का कारण बनेगी. 

सत्य, तर्क और अपनी अचूकता में सैम का विश्वास उतना ही गहरा है जितना कि ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति उसकी प्रतिबद्धता. वह लिखता है,"अंग्रेजों की यादें गहरी हैं. उनकी महान प्रतिभा न्याय और समझौता के सामंजस्य में निहित है. मुझे आज भी उनकी कमी खलती है." 

हालांकि सैम ने अंग्रेजों की ताकत को कम करने की हिम्मत करके खुद को औपनिवेशिक अभिजात वर्ग और न्यायपालिका की श्रेणी से बाहर कर लिया. हालांकि सबसे गहराई में मौजूद रहस्य जो वास्तव में इस उपन्यास का आधार है और इसे परिभाषित करता है वह यही है. जब सैम के पिता की मृत्यु हो जाती है तब वह अपने पीछे गैर-जिम्मेदार और बेहद खूबसूरत सैम की मां मौड, उसकी नाजुक और अस्थिर बहन क्लाउडिया और बचपन में मारे गए भाई लियो की यादों को पीछे छोड़ जाते हैं, जो उनके परिवार के प्रत्येक सदस्य को इस तरह से सताती है कि वे कभी भी पूरी तरह से उसकी मौत को स्वीकार नहीं कर पाते. डी क्रेसर ने मुझे बताया, "पुस्तक में भूत अधूरे काम को पूरा करता हैं." कुछ पात्रों उनकी उपस्थिति को अस्वीकार करते हैं तो कुछ स्वीकार. लेकिन अपने बुढ़ापे में मौड विशेष रूप से एक भूत होने की बात को मानती है : 

फिर भी एक उपस्थिति उसके साथ चलती है. उसके लिए जगह भी बनाई. उसने कभी उसके बारे में कुछ बुरा नहीं सोचा, लेकिन उसने उसकी हलचल को महसूस किया. भूत क्या हैं, वही ना जिनको हम याद करने से डरते हैं. कभी-कभी एक कमरे में प्रवेश करने पर उसे लगता था कि कुछ बदल गया है, एक कुर्सी अलग तरह से झुकी हुई है, एक दराज खुली हुई है. एक बंद कमरे के दरवाजे में चौखट पर रखा हाथ देख कर वह जानती थी कि ऐसा पहले भी हो चुका है.

डी क्रेसर के लिए भूताहा होने का अहसास एक गहरे सत्य की ओर इशारा करता है. उन्होंने बताया, "आप कह सकते हैं हमारा सारा इतिहास एक तरह का भूताहा है.” मैंने डी क्रेसर को विल्हौर और करुणातिलक की नई किताबों के बारे में बताया और उन्हें ‘अनिल के भूत’ की याद दिलाई. "श्रीलंका अभी तक भी अतीत का हिसाब-किताब कर रहा है. मैं और मेरा परिवार गृहयुद्ध से पहले ही वहां से निकल आए थे लेकिन जो कोई भी इस पूरे समय में वहां रहा वह उन घटनाओं और उनके अंत से बुरी तरह डरा हुआ है. यह एक दर्दनाक घटना थी. मुझे उम्मीद है कि जिसकी, श्रीलंकाई साहित्य के जरिए, यादों को ताजा रखा जाएगा." 

दि हैमिल्टन केस एक ऐसी किताब है जिसे पढ़ने के बाद मैं कई दिनों तक सोचती रही और मेरे नोट्स हाइलाइट की गई पंक्तियों से भरे हुए थे. इन नोट्स में श्रीलंका के दृश्य इतने ज्वलंत थे कि परिदृश्य और इमारतें भी भावनाएं बयां कर रही थीं. मैं डी क्रेसर की किताब की प्लॉटिंग और जिस तरह से उन्होंने एक जासूसी कहानी को सिर के बल खड़ा कर दिया था, से मंत्रमुग्ध थी. 

अगर बंडारनायके कभी दि हैमिल्टन केस पढ़ने का मौका मिला होता तो वह सैम और जय दोनों में अपने बारे में कुछ समझ सकते. बंडारनायके की सरकार ही सिंहाला अधिनियम लाने के लिए जिम्मेदार थी जिसे औपचारिक रूप से 1956 के राजभाषा अधिनियम के रूप में जाना जाता था. हिंसक विरोध को भड़काने वाले इस कानून ने सिंहाली को सीलोन की आधिकारिक भाषा के रूप में स्थापित कर तमिल को दरकिनार कर दिया था. इसके यही मायने निकाले गए कि नए श्रीलंका में अल्पसंख्यकों का बहुत कम सम्मान था. धीमी गति से जलने वाले इस राजनीतिक संघर्ष के कारण 1983 के दंगें भड़के, कई लोगों के अनुसार इसी घटना ने लिट्टे और श्रीलंकाई राज्य के बीच तनाव को एक पूर्ण युद्ध में बदल दिया था. 

जिसके बाद नीतिगत विफलताओं के लिए बंडारनायके की भारी आलोचना की गई थी. "श्रीलंका में जातीय संघर्ष का विकास" पेपर में लेखक अरुल एस अरुलिया और अनुषा अरुलिया ने बताया कि बंडारनायके के पिता एक एंग्लोफाइल थे जिन्होंने ब्रिटिश गवर्नर जेम्स वेस्ट रिजवे के नाम पर अपने बेटे का नाम रखा था. विडंबना सिंहाल एक्ट को पारित करने में उनकी भूमिका को लेकर भी है क्योंकि बंडारनायके खुद सिंहाली को बहुत कम समझते थे और वास्तव में वह ऑक्सफोर्ड में पढ़े-लिखे अंग्रेजी भाषा बोलने वाले व्यक्ति थे. हालांकि स्वतंत्रता के बाद बंडारनायके श्रीलंका में सत्ता में आए लेकिन उनका जन्म 1899 में हुआ था और उनका जीवन अंग्रेजों द्वारा सीलोन के उपनिवेशीकरण और छोड़ कर चले जाने के अनुभवों से प्रभावित था. 

दि हैमिल्टन केस के बारे में अकादमिक प्रदीप जगन्नाथन ने 2005 के एक पेपर में तर्क दिया कि बंडारनायके का लेखन ही डी क्रेसर की पुस्तक का आधार था और उनके कई पात्र उनके व्यक्तित्व और परिवार के सदस्यों से प्रेरित थे. उपन्यास पूरे तौर पर इन लोगों की नकल नहीं करता है लेकिन समानताएं साफ दिखाई देती हैं क्योंकि मैं जानता हूं कि अगर आप श्रीलंकाई अभिजात वर्ग के औपनिवेशिक खुमार के बारे में लिखते हैं तो इससे बचना मुश्किल होता है. 

अपनी पुस्तक स्पीचेस एंड राइटिंग्स में शामिल कुछ छोटी कहानियों से ऐसा प्रतीत होता है कि बंडारनायके ने अपने रहस्यों को डी क्रेटर की तुलना में अधिक संक्षिप्त रखा है. "दि मिस्ट्री ऑफ द मिसिंग कैंडिडेट," "दि हॉरर ऑफ महाहेना" और "दि एडवेंचर्स ऑफ द सोलेस मैन" शर्लक होम्स की तरह की लघु कथाएं हैं जिसमें जॉन रतसिंघे और उसके सहयोगी रिचर्ड परेरा की जासूस की कहानी बताई गई हैं जो जब तक भ्रमित रहता है जब तक रतसिंघे अहसान दिखाते हुए उसे और सभी को मामले के अंत में रास्ता नहीं दिखाता. मेरे विचार से तीनों में से सबसे अच्छी किताब "दि हॉरर ऑफ महाहेना" है. 

कहानी में रिचर्ड और जॉन चर्चा करते हैं कि कैसे ग्रामीणों को शक है कि एक रिरी याक भीषण हत्याओं की एक श्रृंखला के पीछे हो सकता है जहां पीड़ितों के गले फटे और खून से लथपथ पाए जाते हैं. लोगों को लगता हैं कि हत्याएं करने वाला दानव कभी मानव रक्त के लिए लालची रहने वाला एक राजकुमार था. बंडारनायके लिखते हैं, "ऐसा माना जाता है कि उसके पास अठारह अलग-अलग रूप लेने की शक्ति है. ध्यान देने वाली बात है कि जिनमें से एक चमकादड़ का रूप भी है. भूत भगाने के बजाए मुख्य पात्र एक बहुत ही मानवीय अपराधी को सामने लेकर आता है. फिर भी रिरी-याक वार्तालाप पाठकों को इस बात की याद दिलाता है कि कैसे रोजमर्रा के श्रीलंकाई जीवन की धारणाओं में असाधारण चीजों की जगह अभी भी है. 

2019 में प्रकाशित रुवानी पीटर्ज विल्हाउर का उपन्यास दि मास्क कलेक्टर्स, मीडिया पर आधारित है जिसमें पत्रकार एंजी ओसबॉर्न की स्कूल के पुनर्मिलन समारोह के दौरान हत्या करके शरीर को जंगल में छोड़ दिया जाता है. घटनास्थल पर मौजूद पुरुषों में से एक मानवविज्ञानी डंकन मैकक्लाउड जब उसके शरीर को देखता है तो उसे एक थोविल की याद आती है जिसकी जीभ बहुत लंबी और उसके मुंह से बाहर निकली हुई होती है. 

श्रीलंका में पली-बढ़ी और अब संयुक्त राज्य अमेरिका में रहने वाली विल्हाउर ने मुझे बताया कि वह लंबे समय से याक थोविल के बारे में सोचती रही हैं जो एक ऐसा अनुष्ठान है जिसे बीमारी या दुर्भाग्य का कारण माने जाने वालों राक्षसों को भगाने के लिए किया जाता है. वे अनुष्ठान घंटों तक चलते हैं, कभी-कभी रात भर भी. और वेशभूषा, मंत्र और ड्रामे से कुछ हद तक सिनेमाई लग सकते हैं. हालांकि दर्शक इस प्रक्रिया के अभिन्न अंग हैं. और यह शायद ही कभी रिकॉर्ड होकर अजनबियों तक पहुंचता है. उनके बारे में लेखक द्वारा लिखे गए विवरण में वे अनुष्ठानों में ऊर्जा, शारीरिकता और सुंदरता का जश्न मनाते हैं और यह पुस्तक में बताए गए सबसे ज्वलंत और चौंकाने वाले दृश्य भी हैं. 

विल्हाउर के पिता ने एक बार एक थोविल में देखी गई किसी चीज के बारे में बताया था : मानों पीड़ित रोगी से भूत को बाहर निकाला गया था और फिर वह दर्शकों में एक लड़के में घुस गया. उसके पिता ने बताया कि लड़के ने इतनी ऊंची छलांग लगाई कि जैसे वह एक नारियल के पेड़ की चोटी को छू कर आया हो. यह एक असाधारण चीज थी और इसे देखने वालों में कोई स्पष्ट तौर पर नहीं बता सकता था कि उन्होंने क्या देखा था. विल्हाउर जानती हैं कि उसके पिता अतिशयोक्ति वाली बातें करने वालों में से नहीं हैं. उन्होंने मुझे बताया कि यह कहानी सुनने से उन्हें इस तरह की घटनाओं के बारे में खुले दिमाग से सोचने में मदद मिली. श्रीलंका में पली-बढ़ी और भारत, थाईलैंड, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया में भी रह चुकीं विल्हाउर ने बताया, "मैंने बहुत से ऐसे लोगों का सामना किया जिनके विचार वैज्ञानिकों के विचारों से बहुत भिन्न थे और मैंने हमेशा महसूस किया वे अपने आप में बेहद अहम थे. मैं उनके बारे में बिना किसी पूर्व धारणा के लिखना चाहती थी." 

उनके उपन्यास में मैकक्लाउड उन कुछ पश्चिमी शोधकर्ताओं में से एक है जिन्होंने थोविल देखा है. उसे यह जान कर अच्छा लगता है कि उसकी विशेषज्ञता एक फार्मास्यूटिकल दिग्गज के लिए रुचिकर है, जो अरबों राजस्व अर्जित करने की क्षमता वाली दवा जारी करने जा रहा है. कहानी के साथ-साथ थोविल अनुष्ठान भी आगे बढ़ता है और मैकक्लाउड एक वीडियो पर अध्ययन कर रहा है जिससे वह जिस रोजमर्रा की कारपोरेट दुनिया में रहता है, उसमें एक अतियथार्थवादी ख्याति भी जोड़ सके. मैकक्लाउड को इसका एहसास नहीं है लेकिन उसके नए काम ने उसे और उसकी पत्नी ग्रेस को एक विशाल साजिश के बीच लाकर खड़ा कर दिया है, जो जीवन जाने के बाद के जीवन को भी परेशानी में रखेगा. ग्रेस श्रीलंकासे जुड़ी हुई है और उसका अपनी विरासत के साथ एक विवादित रिश्ता है लेकिन जब उसका परिवार संकट में पड़ जाता है तब वह घर लौट आती है और कुछ सहयोगियों की मदद से प्राचीन अनुष्ठान के रहस्यों को उजागर करने के लिए निकल पड़ती है. 

जब वे संयुक्त राज्य अमेरिका से श्रीलंका तक की यात्रा करते हैं तब उपन्यास की गति न के बराबर रहती है. और लोगों की संख्या एक खतरनाक दर से बढ़ जाती है और हाल ही में देह त्यागने वालों की किसी को पर्याप्त जानकारी नहीं है. कहानी कुछ असंबद्ध दिशाओं में भी भटकती है, हालांकि एक घटना जिस पर मुझे विश्वास करना सबसे मुश्किल लगा, वह सत्य पर आधारित थी. 

मुझे ऐसी संभावना नहीं थी कि फार्मास्यूटिकल बीहमोथ एक मानवविज्ञानी को इतना महत्व देगा या वह प्लेसीबो प्रभाव को उजागर करने में सक्षम होगा. हालांकि न्यूयॉर्क में मनोविज्ञान के प्रोफेसर रही विल्हाउर यह अपने अनुभव से लिखा है. एक छात्र जीवन में अपनी पढ़ाई उन्होंने आणविक आनुवंशिकी से शुरू की थी लेकिन बाद में उनकी रूचि शरीर मन को और मन शरीर को कैसे प्रभावित करता है, में अधिक हो गई. खराब तरीके से समझा गया लेकिन फिर भी शक्तिशाली प्लेसीबो प्रभाव तब होता है जब मस्तिष्क को यकीन हो जाता है कि उपचार या प्रक्रिया वैध है, भले ही मुख्य उपचार सिर्फ मीठी गोली निगलना हो. अपनी थीसिस पर शोध करते समय विल्हाउर जटिल न्यूरोबायोलॉजिकल प्रक्रियाओं में अधिक रुचि दिखाती थीं जो इस प्रभाव को कृत्रिम रूप से उत्तेजित करने की अनुमति दे सकता था, लेकिन उनके पर्यवेक्षक इन मानवविज्ञानी, सांस्कृतिक और धार्मिक उपचार अनुष्ठानों में अधिक रुचि रखते थे और इस पर भरोसा भी करते थे. उन्होंने याद करते हुए बताया, "वह वास्तव में मशीनों के स्पष्टीकरण की परवाह नहीं करती थीं. उनके साथ काम करना वास्तव में मेरे लिए आंखें खोलने वाला था." अब उनमें से कुछ बातचीत और परस्पर विरोधी दृष्टिकोणों ने उनके उपन्यास में जगह बना ली हैं. 

कहानी सबसे दिलचस्प तब होती है जब वह उस स्थान पर पहुंचती है जो विज्ञानिक रूप से देखने और समझा सकने के बीच होती है. विल्हाउर भ्रम और गलत दिशा के साथ खेलते हुए हमें एक निष्कर्ष पर लाती हैं जिसमें मैकक्लाउड दुनिया के सामने सच्चाई को उजागर करता है जिसे थोविल के पुजारी दिखाने का प्रयास करते हैं : 

“इसी तरह ओझा लोग अनुष्ठानों को देखते हैं. राक्षस छल करने में दक्ष हैं. और मनुष्यों को छल से प्रभावित करने की उनकी क्षमता ही उन्हें उनकी शक्ति देती है. भूत भगाने की रस्में इसी शक्ति को हाथों पर नचाने के लिए बनाई गई हैं. यह राक्षसों को बरगलाने, उनकी चालबाजी को बेनकाब करने और मरीज की आंखों से पर्दा हटाने का भी काम करती हैं." 

अंत में डी क्रेटर और करुणातिलक की तरह विल्हाउर भी हम जो देखते और सुनते हैं उससे परे एक दुनिया के बारे में बताने के बाद भी एक अस्पष्टता बनाए रखती हैं.कुछ रहस्यों को अनसुलझा छोड़ देती हैं. हम अक्सर इस उम्मीद में जासूसी कहानियों की ओर रुख करते हैं कि हमें दुनिया के बारे में हमारे दृष्टिकोण को मुश्किल बनाने के बजाए स्पष्ट समाधान और आदर्शों के बारे में बताया जाएगा जो हमारी अपेक्षाओं के अनुरूप हों. फिर भी यह सभी लेखक हत्या और पहचान के तरीकों के साथ-साथ अपनी पसंद की समय अवधि और राजनीति में वास्तविकता को रख कर एक अस्पष्ट दृष्टिकोण पेश करते हैं. यह एक ऐसा दृष्टिकोण है जो शायद आधुनिक, उत्तर-औपनिवेशिक परिदृश्य का मार्ग निर्देशन करने वाले कई समकालीन श्रीलंकाई लोगों के बारे में बताता है. 

इस निबंध को लिखने के दौरान मैंने पत्रकारों, शिक्षाविदों और लेखकों से पूछा कि क्या वे श्रीलंकाई लोगों द्वारा या उनके बारे में लिखे गए अन्य रहस्य उपन्यासों या जासूसी कथाओं के बारे में जानते हैं? जिन लोगों से मैंने बात की उनमें से कोई भी चंद योग्य उदाहरणों से अधिक कुछ नहीं बता सके. मैंने करुणातिलक से पूछा कि वह स्थिति के बारे में क्या सोचते हैं? उन्होंने बताया, "मैं भी नहीं जानता कि ऐसा क्या है जबकि यह द्वीप अनसुलझे रहस्यों और अप्रकाशित अपराधों से भरा है." उनका अनुमान है कि ऐसा इसलिए है क्योंकि माइकल ओन्डात्जे और रोमेश गुणसेकर जैसे लेखकों की सफलता और प्रभाव के कारण श्रीलंकाई लेखकों में जानर उपन्यासों से अधिक साहित्यिक कथाओं पर काम करने की रुचि है. कारण जो भी हो, ऐसा लगता है कि यह एक और छोटा रहस्य है जिसे हमें अनसुलझा ही छोड़ देना चाहिए. 

(कारवां अंग्रेजी के नवंबर 2020 में प्रकाशित इस आलेख का हिंदी अनुवाद अंकिता ने किया है. मूल अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

 


स्मृति डैनियल कल्चर, राजनीति, विकास और इतिहास पर लिखती हैं. उनका काम अल जजीरा, दि एटलांटिक और अन्य पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित है.

Mika Tennekoon is a visual artist, illustrator and graphic designer based in Sri Lanka. Her art focusses on nature, the environment and the divine feminine.