3 अप्रैल 2020 को राजकमल प्रकाशन ने लेखक विनोद कुमार शुक्ल और उनके पाठकों के बीच एक आभासी बातचीत की मेजबानी करने के लिए फेसबुक लाइव किया. वीडियो उनके यह कहने के साथ शुरू होत है कि “मैं, विनोद कुमार शुक्ल, अपने घर पर हूं.” यह एक पंक्ति उनके लेखन की मैटर-ऑफ-फैक्ट शैली की नजीर है जो गहराई से उनके लेखन में दिखाई देती है. उनके लाइव वीडियो को फेसबुक पर 17000 से अधिक बार देखा गया है. देश भर के पाठकों ने उस पर टिप्पणियां कीं. ये ऐसे पाठक हैं जिनको शायद ही कभी शुक्ल को घटनाओं पर या साहित्य समारोह में सुनने का अवसर मिलता है. आज हमारे समय के सबसे प्रसिद्ध समकालीन हिंदी लेखकों में से एक शुक्ल छत्तीसगढ़ के रायपुर में रहते हैं और साहित्यिक सुर्खियों से दूरी बनाए रखते हैं.
"कहने के लिए इतना अधिक और बिखरा हुआ है कि मैं अपने को समेट नहीं पाता," एफबी लाइव में उन्होंने कहना जारी रखा, “मैं अपने विचारों को अपनी किताबों के माध्यम से व्यक्त करना पसंद करता हूं न कि सोशल मीडिया पर बोल कर. वास्तव में मेरा कोई फेसबुक पेज भी नहीं है.”
शुक्ल तकनीक के साथ सहज नहीं हैं और उन्हें अपने बारे में बात करना या अपने जीवन या काम के बारे मे बात करना असहज करता है. शुक्ल लिखते हैं क्योंकि वह यही करते हैं. उन्होंने अपने लाइव सत्र के दौरान कहा कि “जब वह सोचते हैं कि क्या लिखना है, तो उनके दिमाग में एक देखा हुआ पक्षी पिंजड़े में आ जाता है और मैं लिख कर उस पिंजड़े में आए पक्षी को पिंजड़े का दरवाजा खोल कर स्वतंत्र करने की कोशिश करता हूं. इसीलिए लिखता हूं. लिखना मेरे लिए लोगों से बात करने का तरीका है.” वह कहते हैं कि कभी-कभी वह यह भी नहीं जानते कि वह क्या लिखने जा रहे हैं और शुरू करने के बाद ही पता चलता है कि वह क्या लिख रहे हैं.
83 वर्ष की आयु में शुक्ल दिन में सात से आठ घंटे और रात में दो या तीन घंटे पढ़ते और लिखते हैं. आठ साल पहले दिल का दौरा पड़ने से वह शारीरिक रूप से कमजोर हो गए थे लेकिन कोई भी चीज उन्हें अपनी किताबों से दूर नहीं रख सकती. वह अपनी आंखों के कमजोर होने के कारण अब खुद टाइप नहीं कर पाते लेकिन अपनी कहानियों, कविताओं को अपनी पत्नी और बेटे शाश्वत को डिकटेट करते है जिन्हें वे उनके लिए कंप्यूटर पर टाइप कर देते हैं.
शुक्ल को उनकी विशिष्ट लेखन शैली के लिए पहचाना जाता है. वह उन लोगों और विषयों के बारे में लिखते हैं जिन्हें वह गहराई से जानते हैं. उसके द्वारा रचित संसार कल्पनाओं से भरा हुआ है. उनकी शैली को अक्सर "जादुई यथार्थवाद" के करीब माना जाता है. लेकिन इस विधा के बारे में शुक्ल को लिखना शुरू करने से पहले खुद भी पता नहीं था. उनकी भाषा और शैली अंतरराष्ट्रीय लेखन या वैश्विक साहित्यिक आंदोलनों से प्रभावित नहीं हुई. मैंने उनसे पूछा कि उन्हें अपने लेखन में जादू बिखेरने की प्रेरणा कहां से मिली, तो उन्होंने कहा, "जादू और खुशी जीवन की चाहत में हैं."
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