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विनोद कुमार शुक्ल का (अ)साधारण जीवन और लेखन

विनोद कुमार शुक्ल साहित्यिक जगत की चकाचौंध से दूर रहने वाले लेखक हैं. 1 जनवरी 1937 को छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में जन्में शुक्ल की जड़ें हमेशा अपने जन्मस्थान में रही हैं. सौजन्य : शाश्वत गोपाल शुक्ला
विनोद कुमार शुक्ल साहित्यिक जगत की चकाचौंध से दूर रहने वाले लेखक हैं. 1 जनवरी 1937 को छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में जन्में शुक्ल की जड़ें हमेशा अपने जन्मस्थान में रही हैं. सौजन्य : शाश्वत गोपाल शुक्ला

3 अप्रैल 2020 को राजकमल प्रकाशन ने लेखक विनोद कुमार शुक्ल के साथ फ़ेसबुक लाइव किया. शुरू में ही वह कहते हैं, “मैं विनोद कुमार शुक्ल अपने घर पर हूं.” यह एक पंक्ति उनके लेखन की मैटर-ऑफ-फ़ैक्ट शैली की नज़ीर है जो उनके लेखन में हमेशा दिखाई देती है. उनके लाइव वीडियो पर देश भर से उनके पाठकों ने कमेंट-टिप्पणियां कीं. शुक्ल शायद ही कभी साहित्य उत्सव में शिरकत करते हैं. वह रोज़ाना की घटनाओं में टिप्पणी नहीं करते. इसलिए फ़ेसबुक लाइव उनके पाठकों के लिए उन्हें जानने का दुर्लभ अवसर था. वह हमारे समय के सबसे प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार हैं शुक्ल. वह छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में रहते हैं और साहित्यिक सुर्ख़ियों से दूरी बनाकर रखते हैं.

फ़ेसबुक लाइव में उन्होंने बताया, "कहने के लिए इतना कुछ है लेकिन बिखरा हुआ है कि मैं अपने को समेट नहीं पाता हूं. मैं अपने विचारों को अपनी किताबों के माध्यम से व्यक्त करना पसंद करता हूं, न कि सोशल मीडिया पर. वास्तव में मेरा कोई फ़ेसबुक पेज भी नहीं है.”

शुक्ल तकनीक के साथ सहज नहीं हैं और उन्हें अपने बारे में बात करना या अपने जीवन या काम के बारे में बात करना असहज करता है. शुक्ल फ़ेसबुक लाइव में कहते हैं, “जब मैं सोचता हूं कि क्या लिखना है, तो मेरे दिमाग के पिंजड़े में पक्षी आ जाता है और मैं लिख कर पिंजड़े का दरवाज़ा खोल उस पक्षी को स्वतंत्र करने की कोशिश करता हूं. इसीलिए लिखता हूं. लिखना मेरे लिए लोगों से बात करने का तरीका है.” वह कहते हैं कि कभी-कभी वह यह भी नहीं जानते कि वह क्या लिखने जा रहे हैं और शुरू करने के बाद ही पता चलता है कि वह क्या लिख रहे हैं.

83 वर्ष की उम्र में शुक्ल दिन में सात से आठ घंटे और रात में दो या तीन घंटे पढ़ते और लिखते हैं. आठ साल पहले, दिल का दौरा पड़ने से वह शारीरिक रूप से कमज़ोर हो गए थे लेकिन वह किताबों से दूर नहीं रह सकते. आंखें कमज़ोर हो गई हैं इसलिए ख़ुद टाइप नहीं कर पाते लेकिन अपनी कहानियों, कविताओं को अपनी पत्नी और बेटे शाश्वत को डिक्टेट कराते हैं.