अगस्त 2015 में केरल सरकार और अडानी समूह ने राज्य की राजधानी के नजदीक बनने वाले विझिनजाम अंतर्राष्ट्रीय डीपवॉटर बंदरगाह परियोजना समझौते किया. मई 2017 में परियोजना की माली हालत और इसे सौंपने की प्रक्रिया पर गंभीर एतराज वाली नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट जारी होने के यह समझौता विवादों में फंस गया. दो महीने बाद, ‘‘राज्य सरकार ने कैग की रिपोर्ट में उल्लेखित चिंताओं के मद्देनजर राज्य के हितों के खिलाफ निर्णय करने वाले लोगों की पहचान करने के लिए” तीन सदस्यीय आयोग का गठन किया. लगभग एक साल तक इस आयोग ने कैग के निष्कर्षों के परिप्रेक्ष में पक्ष और विपक्ष की दलीलों को सुना, पर्यावरणविदों, सरकारी अफसरों और अडानी समूह के प्रतिनिधियों के शपथपत्र प्राप्त किए. लेकिन हैरतअंगेज करने वाले घटनाक्रम में आयोग की अंतिम सुनवाई से ठीक पहले इसके जनादेश को बदल दिया गया और आयोग को कैग की ही रिपोर्ट की सत्यता की जांच करने को कहा गया.
कैग की रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि राज्य सरकार और अडानी के बीच हुए समझौतों की शर्तों ने निजी साझेदार को अनुचित लाभ पहुंचाया है. शुरू में केरल उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश सीएन रामचंद्रन नायर की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय आयोग का गठन इसलिए किया गया था कि वह राज्य सरकार को दोषियों का पता लगा कर दे और उन प्रक्रियाओं के बारे में भी बताए जिससे सरकार को हुए घाटे की परिपूर्ति हो सके. इस साल 18 जुलाई को अंतिम सुनवाई से एक सप्ताह पहले आयोग के गठन की संदर्भ शर्तों अथवा टर्म्सऑफ रेफरेन्स (टीओआर) को संशोधित कर दिया गया. सुनवाई समाप्त होने के बाद भी बदले हुए टीओआर को सार्वजनिक नहीं किया गया जिससे सरोकार वालों को परियोजना के बारे में अपनी चिंताओं को जाहिर करने का अवसर नहीं मिला. आयोग को जनवरी 2019 में अपनी रिपोर्ट जमा करानी है.
पिछले साल मई की अपनी रिपोर्ट में कैग ने उन परिस्थितियों के बारे में गंभीर सवाल उठाए थे जिसके चलते 7 हजार 525 करोड़ रुपए की इस परियोजना पर बोली लगाने के लिए केवल अडानी समूह उपयुक्त पाया गया था. कैग के अनुसार, केरल सरकार के पूर्ण स्वामित्व वाली विझिनजाम अंतर्राष्ट्रीय बंदरगाह लिमिटेड (वीआईएसएल) ने बोली प्रक्रिया के बीच में ही परियोजना की पूरी संरचना को मनमाने ढंग से बदल दिया. राज्य सरकार ने ऐसा करने को यह कह कर उचित ठहराया कि निजी बोली लगाने वालों के लिए परियोजना को आकर्षक बनाने के लिए योजना आयोग द्वारा उल्लेखित मॉडल रियायत समझौते या एमसीए को अपनाया गया था. एमसीए बंदरगाह परियोजनाओं में निजी-सार्वजनिक साझेदारी या पीपीपी के लिए केंद्र सरकार का प्ररूप है. हालांकि, न्यायिक जांच के दौरान, राज्य सरकार के पूर्व आईटी कंसलटेंट जेम्स मैथ्यू ने एमसीए की वैधता और इसे अपनाने पर सवाल उठाते हुए विस्तृत बयान आयोग के समक्ष दर्ज कराया था. इसके अतिरिक्त कैग ने यह भी देखा कि अंतिम रियायत करार में एमसीए का पूरी तरह पालन नहीं किया था. कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘‘राज्य सरकार मनमाने तरीके से प्रवधानों का प्रयोग कर रही है और इससे अडानी समूह को अतिरिक्त लाभ मिल रहा है.’’
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