वोडाफोन और एयरटेल पर घटते मुनाफे और बढ़ते कर्ज का दबाव

रिलायंस जियो से बराबरी करने के लिए संघर्ष कर रही एयरटेल और वोडाफोन की 24 अक्टूबर के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद हालत खस्ता. प्रशांत विश्वनाथन/ब्लूमबर्ग/गैटी इमेजिस
29 November, 2019

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14 नवंबर को वोडाफोन आइडिया लिमिटेड (वीआईएल) ने सितंबर तिमाही की वित्तीय फाइलिंग जमा कराई. सर्वोच्च न्यायालय के हाल ही के फैसले के चलते कंपनी ने 50921 करोड़ रुपए का नुकसान दर्ज कराया. यह कंपनी का अब तक का सबसे बड़ा नुकसान है. 24 अक्टूबर के फैसले पर वोडाफोन समूह के मुख्य कार्यकारी अधिकारी निक रीड का कहना था कि भारत में वीआईएल का भविष्य "असहायक नियामकों," "अत्यधिक करों" और "सुप्रीम कोर्ट के नकारात्मक फैसले" के कारण संदिग्ध हो गया है. भारत के व्यावसायिक समाचार पत्रों में जब यह टिप्पणी प्रकाशित हुई तो रीड अपने बयान से मुकर गए और कहा कि उनके बयान को संदर्भ से हटाकर उद्धृत किया गया. इसके बाद की रिपोर्टों में कहा गया कि रीड ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और संचार मंत्री रविशंकर प्रसाद को एक पत्र लिखा है, जिसमें उन्होंने भारतीय बाजार में "निवेश जारी रखने" की प्रतिबद्धता दोहराई है.

इसके बावजूद अपनी कंपनी के भविष्य को लेकर रीड की चिंता अतिश्योक्तिपूर्ण नहीं लगती. फाइलिंग की मीडिया विज्ञप्ति के मुताबिक, अदालत के फैसले के कारण कंपनी को 44150 करोड़ रुपए का कुल भुगतान करना पड़ा जिसमें लाइसेंस फीस के लिए 27610 करोड़ रुपए और स्पेक्ट्रम-उपयोग शुल्क के 16540 करोड़ रुपए शामिल हैं. भारत की दूसरी सबसे बड़ी टेलीकॉम कंपनी, एयरटेल की हालत भी इससे बेहतर नहीं है. इस फैसले से कथित तौर पर उसे 35586 करोड़ रुपए का भुगतान करना होगा. भारतीय दूरसंचार उद्योग की ये दो प्रमुख कंपनियां बाजार में रिलायंस जियो की वर्चस्वशाली मौजूदगी का सामना कर रही हैं और सर्वोच्च न्यायालय के उपर्युक्त फैसले के बाद ये कंपनियां बर्बादी के कगार पर आ गई हैं.

भारत में दूरसंचार विभाग (डीओटी) और दूरसंचार सेवा प्रदाताओं (टीएसपी) के बीच लाइसेंस समझौते में समायोजित सकल राजस्व (एजीआर) की व्याख्या से संबंधित 153 पृष्ठ के फैसले ने नाजुक और कर्ज में गहरे फंसे दूरसंचार क्षेत्र को हिला कर रख दिया है. एजीआर राजस्व के वार्षिक हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है, जिसे टीएसपी को भारत में अपने संचालन के लिए उपयोग और लाइसेंस शुल्क के रूप में केंद्र सरकार को देना पड़ता है. दूरसंचार कंपनियों ने पहले दूरसंचार विवाद निपटान और अपीलीय न्यायाधिकरण में और बाद में सर्वोच्च न्यायालय को बताया था कि डीओटी ने आय के विभिन्न स्रोतों को एजीआर के दायरे में शामिल किया गया है जो लाइसेंस से अर्जित आय में शामिल नहीं होती. इनमें राजस्व स्रोत जैसे लाभांश से आय, अल्पकालिक निवेश पर ब्याज आय, कॉल पर छूट और अन्य अलग-अलग लाइसेंस प्राप्त गतिविधियों से राजस्व शामिल हैं. सुप्रीम कोर्ट ने इस बारे में डीओटी की व्याख्या को बरकरार रखते हुए इन तर्कों को खारिज कर दिया और टीएसपी को करोड़ों के राजस्व का भुगतान करने के लिए मजबूर होना पड़ा.

विडंबना यह है कि भारतीय दूरसंचार उद्योग के अच्छे दिन, 1999 की राष्ट्रीय दूरसंचार नीति में राजस्व-साझेदारी मॉडल में किए बदलाव के बाद खत्म हो गए. इससे पहले, दूरसंचार ऑपरेटरों को एक निश्चित वार्षिक लाइसेंस शुल्क का भुगतान करना होता था. लेकिन दूरसंचार ऑपरेटरों ने शिकायत की कि शुल्क बहुत अधिक था और प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में भारत ने राजस्व-साझेदारी मॉडल में बदलाव कर दिया.

जब इसे पेश किया गया था तो एजीआर को 15 प्रतिशत पर आंका गया था, जिसे 2013 में डीओटी ने बाद में घटाकर आठ प्रतिशत कर दिया था. इसने उद्योग के लिए अद्भुत काम किया, दूरसंचार कंपनियों ने राजस्व में बड़ी वृद्धि हासिल की. 2004 में 4855 करोड़ रुपए के मामूली सकल राजस्व से टीएसपी 2008 तक 1.05 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच गया. वित्तीय वर्ष 2014-15 तक यह आंकड़ा 2.37 लाख करोड़ रुपए हो गया. इस बीच एजीआर की व्याख्या को लेकर 16 साल लंबी कानूनी लड़ाई चली. जब डीओटी ने 2003 में अपने कार्यकाल की परिभाषा के अनुसार, राजस्व हिस्सेदारी की मांग की तो बेसिक टेलीकॉम ऑपरेटरों और व्यक्तिगत टेलीकॉम एसोसिएशन ने टीडीएसएटी के समक्ष दावे को चुनौती दी. बाद में टीडीएसएटी और सुप्रीम कोर्ट के बीच का यह मामला अंतत: सरकार के अक्टूबर के फैसले में एजीआर की व्याख्या को सही ठहराता है.

फैसले के बाद, दोनों निजी टेलीकंपनियां इसके परिणामों को कम करने के लिए आक्रामक तरीके से पैरवी कर रही हैं. 22 नवंबर को दोनों कंपनियों ने सुप्रीम कोर्ट में फैसले के खिलाफ समीक्षा याचिका दायर की. इस बीच, सरकार ने कंपनियों पर वित्तीय तनाव दूर करने के तरीकों की जांच के लिए सचिवों की एक समिति गठित की. समिति ने पिछले स्पेक्ट्रम बकाया के भुगतान पर दो साल की मोहलत की सिफारिश की, जिसे सरकार ने बाद में मंजूरी दे दी. लेकिन समिति ने एजीआर भुगतान पर कोई राहत देने की सिफारिश नहीं की. इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, यह तब से भंग है.

डीओटी के एक पूर्व वरिष्ठ उप महानिदेशक राम नारायण के अनुसार, शीर्ष अदालत के फैसले से उपभोक्ताओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. फैसले के बाद अपने निजी ब्लॉग पर लिखी एक पोस्ट में, नारायण ने कहा कि अगर टेलीकॉम ने शुरुआत से ही सरकार द्वारा परिभाषित एजीआर का भुगतान किया होता तो "कंपनियां उपभोक्ताओं को टैरिफ के रूप में इन खर्चों को जोड़ सकती थीं." उन्होंने आगे लिखा, “भुगतान नहीं करके, कंपनियों ने सेवाओं के लिए सस्ता टैरिफ प्रदान किया है जिससे सरकार के बड़े नीतिगत उद्देश्य को पूरा किया जा सके यानी डिजिटल कनेक्टिविटी ... कम टैरिफ के रूप में अप्रत्यक्ष और फैले हुए लाभ अन्य कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से सरकार द्वारा किए गए खर्चों की तुलना में अधिक समतावादी और ज्यादा बेहतर हैं."

नारायण लिखते हैं कि अदालत का फैसला ऐसी न्यायिक प्रवृत्ति को दर्शाता है जो परिणामों का संज्ञान लिए बगैर नागरिकों और व्यवसायिक संस्थाओं को दंडित करती है लेकिन सरकार की ओर से होने वाली बड़ी चूकों पर पर्दा डालती है. अक्सर ऐसा होता है कि "नागरिकों या व्यापारिक संस्थाओं को अर्थव्यवस्था और देश को होने वाले नुकसान की भरपाई करनी होती है. माननीय सर्वोच्च न्यायालय का फैसला टीडीएसएटी और ट्राई के खिलाफ उतना ही है जितना टीएसपी के खिलाफ है, लेकिन इसे सीधे टीएसपी को और आगे अप्रत्यक्ष रूप से उपभोक्ताओं को झेलना पड़ेगा."

जैसा कि बाद की घटनाओं से साबित भी हुआ कि नारायण का मूल्यांकन सटीक था. नवंबर के मध्य में, एयरटेल और वीआईएल ने 1 दिसंबर से अपने टैरिफ में बढ़ोतरी की घोषणा की. अगले दिन, भारत के दूरसंचार उद्योग में चोटी की कंपनी रिलायंस जियो ने घोषणा की कि वह "टैरिफ में उपयुक्त बढ़ाव" का पालन करेगी. वास्तव में, ऐसा लगा कि उपभोक्ता सुप्रीम कोर्ट के फैसले के कारण अतिरिक्त कीमत चुकाएंगे.

अपनी शुरुआत के तुरंत बाद, रिलायंस जियो ने एक विघटनकारी टैरिफ युद्ध शुरू किया था, जिसने इसे बाजार में अपना प्रभुत्व स्थापित करने की अनुमति दी, जबकि एयरटेल और वीआईएल ​वित्तीय रूप से बुरी तरह पिट गई. पिछले कुछ वर्षों में, वीआईएल और एयरटेल ने राजस्व में लगातार गिरावट और ऋण में लगातार वृद्धि दर्ज की है. उदाहरण के लिए, सितंबर 2016 को समाप्त हुई तिमाही में एयरटेल का समेकित राजस्व - जब रिलायंस जियो लॉन्च हुआ, 24652 करोड़ रुपए था, जो सितंबर 2019 की तिमाही में 21131 करोड़ रुपए तक गिर गया. इस संदर्भ में, तिमाही के लिए एयरटेल का घाटा 23045 करोड़ रुपए या उसके राजस्व से 1914 करोड़ रुपए अधिक है. इसने जून तिमाही के लिए 2866 करोड़ रुपए का समेकित घाटा दर्ज किया, जबकि पिछले वर्ष 97 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ और जून 2015 को समाप्त तिमाही में 2113 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ हुआ था.

अपने संबंधित ऋण के मामले में, दोनों कंपनियों पर भारी बोझ है. वीआईएल का शुद्ध ऋण पहले ही एक लाख करोड़ को पार कर चुका है और इसका सकल ऋण 1.18 लाख करोड़ रुपए के करीब है. हालिया तिमाही में, एयरटेल ने इसी तरह की हताश स्थिति घोषित की, जिसमें 1.18 लाख करोड़ रुपए का शुद्ध ऋण था.

वास्तव में, यह भी ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि वीआईएल और एयरटेल के परिचालन राजस्व पर बढ़ा बोझ भारतीय बैंकों के लिए शुभसंकेत नहीं है, जो पहले से ही गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) से जूझ रहे हैं. मार्च 2019 में अनुमानित गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां 9.4 लाख करोड़ रुपए से अधिक थीं. सितंबर 2019 तक, दूरसंचार क्षेत्र में बैंकों का कुल निवेश 1.15 लाख करोड़ रुपए था. सितंबर 2016 में, यह आंकड़ा 770 करोड़ रुपए था - आज की स्थिति में इसमें 14835 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. भारत के कई सबसे बड़े निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का टेलीकॉम युद्ध में बहुत बड़ा दांव है : इसमें भारतीय स्टेट बैंक का 37330 करोड़ रुपए से अधिक का निवेश है, इसके बाद एचडीएफसी बैंक का 24515 करोड़ रुपए का और फिर एक्सिस बैंक का 17135  करोड़ रुपए का निवेश है.

इस साल 29 अगस्त को जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में, क्रेडिट रेटिंग एजेंसी, इंडिया रेटिंग्स ने दूरसंचार उद्योग के छमाही करोबार को निराशाजनक बताया. इसमें कहा गया है : “वोडा-आइडिया, भारती (भारतीय कारोबार) और आरजियो का सकल ऋण, वित्त वर्ष 1919 में 3.9 ट्रिलियन रुपए था. भारत के टेलीकॉम उद्योग की तरलता की रूपरेखा संरचनात्मक रूप से कमजोर है क्योंकि उच्च पूंजीगत व्यय तीव्रता (वित्त वर्ष 19 में 1.2 ट्रिलियन रुपए) के कारण मुक्त नकदी प्रवाह नकारात्मक रहने की आशंका है.” सीधे शब्दों में कहें तो इसका मतलब है कि भारतीय दूरसंचार क्षेत्र का नकदी प्रवाह अगले दो वित्तीय वर्षों के लिए नकारात्मक रहने की आशंका है क्योंकि कंपनियों को पूंजीगत बुनियादी ढांचे के निर्माण और रखरखाव पर खर्च करना होगा.

एयरटेल और वोडाफोन आइडिया की वित्तीय निराशा जारी रह सकती है. मैंने नारायण से पूछा कि उनकी समीक्षा याचिकाओं पर टेलीकॉम सुप्रीम कोर्ट से क्या उम्मीद की जा सकती है. उन्होंने कहा, "अगर किसी भी राहत के लिए कोई समीक्षा नहीं होती तो उन दोनों के लिए यह एक अनिश्चित स्थिति होगी, खासकर वोडाफोन आइडिया के लिए. किसी भी मामले में, इन दोनों कंपनियों की ऋण पूंजी और सामान्य शेयरों के मूल्यों का अनुपात बहुत बढ़ जाएगा. यहां तक कि भारती एयरटेल भी लंबे समय तक टिक नहीं पाएगी अगर वह टैरिफ नहीं बढ़ाती. इसका खामियाजा अंतत: ग्राहकों को भुगतना पड़ेगा.”