इंडियाबुल्स मामले में दायर नए हलफनामे में यस बैंक पर करोड़ों के संदिग्ध कर्ज का आरोप

“इंडियाबुल्स समूह की एक प्रमुख कंपनी, इंडियाबुल्स हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड ने राणा कपूर और उनकी पत्नी बिंदू, बेटियों राधा, राखी और रोशनी के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से स्वामित्व वाली सात कंपनियों को 2034 करोड़ रुपए की राशि दी.” राजेश कश्यप/हिंदुस्तान टाइम्स/गैटी इमेजिस
25 November, 2019

दिल्ली उच्च न्यायालय को सौंपे गए एक हलफनामे में, सिटीजन ह्विसल ब्लोअर फोरम ने कहा है कि राणा कपूर द्वारा स्थापित यस बैंक ने इंडियाबुल्स समूह की विभिन्न कंपनियों और अन्य को कम से कम 5698 करोड़ रुपए का “संदिग्ध” ऋण दिया है. इंडियाबुल्स के संस्थापक, स्वामी और प्रमोटर समीर गहलोत हैं. हलफनामे में कहा गया है कि "इस एहसान के बदले, "इंडियाबुल्स समूह की एक प्रमुख कंपनी, इंडियाबुल्स हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड ने राणा और उनकी पत्नी बिंदू, बेटियों राधा, राखी और रोशनी के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से स्वामित्व वाली सात कंपनियों को 2034 करोड़ रुपए की राशि दी. राणा, यस बैंक के प्रमोटर भी हैं.

हलफनामे में कहा गया है कि इंडियाबुल्स समूह से जुड़ी 14 कंपनियों को यस बैंक से ऋण मिलता है. ​वास्तव में, हलफनामे में यस बैंक पर एक दशक के दौरान, जब राणा इसके प्रबंधक थे, धन देने का आरोप लगाया गया और कहा कि बदले में आईएचएफएल ने राणा और उनके परिवार द्वारा नियंत्रित कंपनियों में पैसा लगाया. इस तरह सार्वजनिक धन को निजी धन में बदल दिया.

आईएचएफएल के उपाध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी अधिकारी गगन बंगा ने मुझे बताया कि 14 कंपनियों में से दस कंपनियां गहलोत की हैं और इंडियाबुल्स समूह से उनका अन्य कोई संबंध नहीं है. अन्य चार कंपनियां- इंडियाबुल्स हाउसिंग फाइनेंस, इंडियाबुल्स वेंचर्स, इंडियाबुल्स डिस्ट्रीब्यूशन सर्विसेज और इंडियाबुल्स कंज्यूमर फाइनेंस- इंडियाबुल्स ग्रुप का हिस्सा हैं. हलफनामे के आंकड़ों के मुताबिक, यस बैंक ने गहलोत के स्वामित्व वाली दस फर्मों को कम से कम 2698 करोड़ रुपए और इंडियाबुल्स की चार कंपनियों को 3000 करोड़ रुपए का कर्ज दिया. आरोपों के दायर किए जवाब में इंडियाबुल्स समूह ने याचिकाकर्ताओं पर अदालत को "गुमराह" करने का आरोप लगाते हुए कहा कि 21 अक्टूबर तक केवल 1417 करोड़ रुपए बकाया थे जबकि बाकी का भुगतान किया जा चुका था.

सिटीजन ह्विसल ब्लोअर फोरम एक नागरिक-समाज समूह है जो खुलासा करने वालों और वादियों को मंच प्रदान करता है. इसने यह हलफनामा एक पूर्व दायर जनहित याचिका में प्रस्तुत किया जो सितंबर की शुरुआत में दायर की गई थी. जनहित याचिका में कहा गया था कि आईएचएफएल ने कई बड़े व्यावसायिक समूहों को ऐसे ही गलत तरीकों से कर्ज दिया है. इनमें रिलायंस अनिल धीरूभाई अंबानी समूह, डीएलएफ समूह, वाटिका समूह और कॉर्डिया समूह जैसे रियल एस्टेट दिग्गज हैं. पीआईएल और हलफनामे ने इन सब को मिलाकर इंडियाबुल्स समूह पर 11000 करोड़ रुपए से अधिक के संदिग्ध कर्ज देने का आरोप लगाया.

इंडियाबुल्स और यस बैंक के बीच लेन-देन के बारे में याचिकाकर्ताओं द्वारा "कुछ और जानकारी प्राप्त करने" के बाद सीडब्ल्यूबीएफ ने 31 अक्टूबर को दिल्ली उच्च न्यायालय में हलफनामा प्रस्तुत किया. हालांकि, फोरम ने अदालत में पहले दायर किए गए हलफनामें में भी यही आरोप लगाया था. मूल जनहित याचिका के जवाब में, इंडियाबुल्स समूह ने उन आरोपों से इनकार किया था और सीडब्ल्यूबीएफ के खिलाफ झूठा हलफनामा देने के लिए कार्यवाही शुरू करने की अर्जी दी थी. 22 अक्टूबर को झूठा हलफनामा देने की अर्जी के जवाब में फोरम ने सबसे पहले यस बैंक और राणा कपूर के खिलाफ आरोप पेश किए थे. अगले दिन, इंडियाबुल्स समूह ने उस आवेदन के लिए एक प्रतिवाद दायर किया, जिसमें उसने इन आरोपों का जवाब भी दिया.

सीडब्ल्यूबीएफ के हलफनामे में, जो परिवाद आवेदन के जवाब में आरोपों की पुष्टि करता है, ने कहा कि वित्तीय वर्ष 2009-10 और 2018-19 के बीच के दशक में, यस बैंक ने इंडियाबुल्स समूह से जुड़ी 14 संस्थाओं को एक "विशाल और स्थिर" कर्जा मंजूर कर दिया. हलफनामे में उल्लेख है कि इनमें से कई कंपनियां शैल कंपनियां हैं. इन्हें "नकारात्मक शुद्ध संपत्ति वाली, करोबार से आय न होने वाली और बड़ी मात्रा में संचित घाटे वाली कंपनियों" के रूप में वर्णित किया गया है.

आईएचएफएल के सीईओ बंगा ने इस बात से इनकार किया कि ये सभी इंडियाबुल्स समूह का हिस्सा थीं और उनमें से कोई भी शैल कंपनी थीं. जब मैंने उनसे पूछा कि इन कंपनियों की खराब वित्तीय स्थिति को देखते हुए ये कंपनियां ऋण प्राप्त करने के योग्य कैसे हैं तो बंगा ने मेरे इस सवाल को ही खारिज कर दिया. गहलोत का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, "इससे कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि ऋण सुरक्षित हैं - समीर की व्यक्तिगत संपत्ति और व्यक्तिगत गारंटी द्वारा सुरक्षित हैं." उन्होंने कहा कि आज गहलोत की "व्यक्तिगत संपत्ति दस हजार करोड़ रुपए है और वह काफी सक्षम हैं." कंपनी के प्रवक्ता के एक ईमेल में भी इसी बात का उल्लेख है. ईमेल में लिखा है, "ये कंपनियां समीर गहलोत के प्रत्यक्ष 100 प्रतिशत स्वामित्व से संचालित होती हैं, समीर की व्यक्तिगत संपत्ति 15000 करोड़ रुपए से अधिक है."

हलफनामे में यस बैंक से इंडियाबुल्स समूह और गहलोत-नियंत्रित कंपनियों को कथित रूप से दिए गए कर्ज को विस्तार से बताया गया है. उदाहरण के लिए, यह नोट किया गया कि आईएचएफएल को वित्त वर्ष 2018-19 में 750 करोड़ रुपए की राशि सहित कुल 850 करोड़ रुपए मिले. हलफनामे के अनुसार, समूह की वित्तीय सेवा कंपनी इंडियाबुल्स वेंचर्स ने वित्तीय वर्ष 2011-12 में 50 करोड़ रुपए प्राप्त किए, जबकि उसकी पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी, इंडियाबुल्स कंज्यूमर फाइनेंस लिमिटेड ने वित्तीय वर्ष 2017-18 और 2018-19 में 2100 करोड़ रुपए की राशि प्राप्त की.

हलफनामे में यह भी कहा गया है कि यस बैंक ने गहलोत के स्वामित्व वाली अन्य कंपनियों को बड़ी मात्रा में पैसा उधार दिया था. बोबिनार इंफ्रास्ट्रक्चर को 310 करोड़ रुपए, कीशा माइनिंग को 190 करोड़ रुपए, पेडिया सॉफ्टिनफो को 150 करोड़ रुपए, चक्रिका प्रॉपर्टीज को 200 करोड़ रुपए, टुपेलो लैंड डेवलपमेंट को 375 करोड़ रुपए और टुपेलो कंस्ट्रक्शन को 335 करोड़ रुपए मिले.

हलफनामे में शैल कारपोरेशनों के विवरण से मेल खाने वाली कंपनियों को दिए गए बड़े ऋण दर्ज किए गए. मिसाल के तौर पर, यह कहा गया कि एयरमिड एविएशन सर्विसेज लिमिटेड नकारात्मक कमाई करने वाली कंपनी है, लेकिन वित्त वर्ष 2016-17 में इसे यस बैंक से 245 करोड़ रुपए मिले. इंडियाबुल्स के एक प्रवक्ता ने मुझे बताया कि एयरमिड का प्राथमिक व्यवसाय निजी जेट को किराए पर देना था. इसी तरह, पेडिया कॉन्कनेक्शन प्राइवेट लिमिटेड, हलफनामे के अनुसार जिसकी शुद्ध सम्पत्ति नकारात्मक है साथ ही साथ व्यवसाय संचालन से जिसकी कोई आय नहीं हुई, वित्तीय वर्ष 2015-16 और 2016-17 के दौरान यस बैंक से 408 करोड़ रुपए मिले. हलफनामे में यह भी कहा गया है कि इस तरह की दो अन्य इकाइयां, गोमिनी प्रॉपर्टीज लिमिटेड और विश्वामुख प्रॉपर्टीज प्राइवेट लिमिटेड को क्रमशः 315 करोड़ और 170 करोड़ रुपए मिले.

इंडियाबुल्स समूह के प्रत्युत्तर के अनुसार, इंडियाबुल्स की दो कंपनियों और एयरमिड एविएशन को उधार दी गई राशि को छोड़कर बाकी उधार पूरा चुकाया गया है. प्रत्युत्तर में यह भी बताया गया है कि इन तीनों कंपनियों से कुल 1417 करोड़ रुपए का भुगतान बाकी है.

कारपोरेट मामलों के मंत्रालय के साथ सार्वजनिक रूप से उपलब्ध दस्तावेज इस बात की पुष्टि करते हैं कि इनमें से कई कंपनियों की शुद्ध संपत्ति नकारात्मक है यानी देनदारियां उनकी संपत्ति से अधिक हैं. बंगा ने मुझे बताया कि ये ऋण गहलोत की व्यक्तिगत संपत्ति और गारंटी के साथ सुरक्षित थे.

कारपोरेट मंत्रालय के दस्तावेज पुष्टि करते हैं कि गहलोत ने पूरा कर्ज लौटा दिया है. उन दस्तावेजों में यह भी दर्ज है कि इनमें से अधिकांश कंपनियां घाटे में चल रही थीं. उदाहरण के लिए यस बैंक ने पैडिया सॉफ्टइंफो को वित्त वर्ष 2017-18 में 50 करोड़ रुपए का कर्ज दिया जबकि पिछले साल उसने 11 करोड़ रुपए का घाटा दिखाया था. इसी दौरान गोमिनी प्रोपर्टीज को 115 करोड़ रुपए का कर्ज बैंक ने दिया. पिछले वित्त वर्ष में इस कंपनी ने 5.75 करोड़ रुपए की शुद्ध संपत्ति दिखाई थी. 16.33 करोड़ रुपए का शुद्ध घाटा दिखाने वाली एयरमिड एविएशन को बैंक ने 2015-16 में 245 करोड़ रुपए का कर्ज दिया.

कारपोरेट मंत्रालय के दस्तावेजों के मुताबिक इनमें से अधिकांश कर्ज चालू संपत्ति और चल स्थाई संपत्ति के एवज में दिया गया. बोबिनार, केशा, गोमिनी, पैडिया सॉफ्टइंफो और पैडिया कनेक्शन कंपनियों ने श्री समीर गहलोत की अनंतरणीय और निशर्त निजी गारंटी में ये कर्ज प्राप्त किए थे. बांगा ने मुझे बताया था कि इंडियाबुल्स समूह से बाहर की 10 कंपनियों को गहलोत की निजी गारंटी में कर्ज दिया गया था. इंडियाबुल्स समूह की कारपोरेट संपर्क टीम ने गहलोत का फोन नंबर या ईमेल मुझे देने से इनकार कर दिया. बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज में दिए ईमेल पर संपर्क करने का लाभ नहीं हुआ.

हलफनामे में कहा गया है कि बदले में, आईएचएफएल ने राणा कपूर के परिवार के सदस्यों द्वारा सीधे या सहायक कंपनियों के माध्यम से मालिकाने वाली सात फर्मों को 2034 करोड़ रुपए का ऋण दिया. इन कंपनियों में से किसी ने भी कारपोरेट मामलों के मंत्रालय के समक्ष संबंधित कागजी कार्रवाई दायर नहीं की या अपनी वार्षिक रिपोर्ट में लेनदेन का खुलासा नहीं किया. हलफनामे के अनुसार, "इस प्रकार आईबीएचएफएल द्वारा प्राप्त धन का उपयोग पॉश इलाकों में आवासीय अपार्टमेंट खरीदने और निजी इक्विटी के अधिग्रहण के लिए किया गया है, संक्षेप में, निजी संपत्ति बनाने के लिए किया गया."

सात कंपनियों में, बिंदू कपूर के स्वामित्व वाली एक फर्म रब एंटरप्राइजेज (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड को सबसे ज्यादा 735 करोड़ रुपए ऋण मिला. हलफनामे के अनुसार, रब की तीन सहायक कंपनियां- जिनमें से सभी बिना किसी अचल संपत्ति के घाटे में चल रही हैं - को भी ऋण प्राप्त हुआ. ब्लिस हैबिटेट, जिसने 31 मार्च 2017 तक कुल 15.47 लाख रुपए का नुकसान दिखाया है, को 200 करोड़ रुपए प्राप्त हुए हैं. हलफनामे के अनुसार, इमेजिन रियल्टी जिसे 31 मार्च 2016 तक 64921 रुपए का नुकसान हुआ था और व्यवसाय संचालन से कोई आय नहीं थी उसे 225 करोड़ रुपए प्राप्त हुए और ब्लिस एबोड, जो 31 मार्च 2018 को 1.40 करोड़ रुपए के घाटे में चल रही थी और व्यवसाय से जिसकी कोई आय नहीं थी, उसे 375 करोड़ रुपए का ऋण मिला.

हलफनामे के अनुसार, मॉर्गन क्रेडिट्स प्राइवेट लिमिटेड (जो 3.03 प्रतिशत शेयरों के साथ यस बैंक की एक प्रमोटर ग्रुप कंपनी है) को 300 करोड़ रुपए मिले. यह भी कहा गया कि कंपनी "राधा, राखी और रोशनी कपूर" के स्वामित्व में है. ये तीनों राणा की बेटियां हैं. हलफनामे में आगे कहा गया है कि मॉर्गन क्रेडिट्स के दो सहायक, डिट अर्बन वेंचर्स (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड और डिट क्रिएशंस (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड को क्रमशः 30 करोड़ रुपए और 169 करोड़ रुपए मिले.

इंडियाबुल्स के प्रवक्ता ने एक ईमेल के जवाब में लिखा कि सात कंपनियों को ऋण "सामान्य व्यापारिक तौर पर दिया गया था." प्रवक्ता ने आगे कहा, "संपत्ति के बंधक द्वारा सुरक्षित राणा कपूर के परिवार के ऋणों के बारे में याचिकाकर्ताओं द्वारा प्रदान किए गए आंकड़े गलत हैं और सही आंकड़ों की जांच करने और एक सच्ची तस्वीर पेश करने के लिए याचिकाकर्ताओं द्वारा कोई प्रयास नहीं किया गया है."

प्रवक्ता ने मुझे इंडियाबुल्स का प्रत्युत्तर दिखाया, लेकिन इसमें भी राणा और उनके परिवार की कंपनियों को दिए गए ऋण के बारे में कोई विशिष्ट आंकड़े प्रदान नहीं किए. इसमें कहा गया है कि कुछ ऋण "पहले ही पूर्ण रूप से वापस कर दिए गए हैं." इसमें यह भी कहा गया है, "सभी बकाया ऋण मानक ऋण हैं, नियमित रूप से किश्तों का भुगतान हुआ है और कोई ब्याज या प्रमुख किस्त उनकी तरफ से लंबित नहीं हैं."

इंडियाबुल्स ने प्रत्युत्तर में रवनीत गिल के एक बयान का भी हवाला दिया है, जिन्होंने राणा के बाद इस साल जनवरी में यस बैंक के सीईओ का पदभार संभाला है. अक्टूबर की शुरुआत में, मीडिया के साथ एक साक्षात्कार में गिल ने कहा था, "हम इंडियाबुल्स के साथ अपने संबंधों में 100 प्रतिशत सहज महसूस करते हैं." इंडियाबुल्स ने गिल के बयान को "महान विश्वसनीयता" के रूप में प्रस्तुत किया और तर्क दिया कि सीडब्ल्यूबीएफ ने अपने हलफनामे में इस बात को "जानबूझकर दबा दिया".

पिछले कुछ वर्षों में यस बैंक के लिए बढ़ती परेशानियों का कारण राणा की जगह पर गिल के काबिज होने की संभावना थी. आउटलुक बिजनेस में राणा कपूर की अक्टूबर 2019 की प्रोफाइल में बताया गया कि यस बैंक के रिलायंस एडीएजी, दीवान हाउसिंग और एस्सार शिपिंग जैसी कई "बड़ी" कंपनियों से "घनिष्ट संबंध" हैं. लेख के अनुसार, 2016 में राणा के नेतृत्व में यस बैंक ने केवल 1 प्रतिशत से कम की गैर-निष्पादित संपत्ति की सूचना दी थी, जबकि इसका कारपोरेट एक्सपोजर 65 प्रतिशत था. लेकिन जब भारतीय रिजर्व बैंक ने बैंकिंग क्षेत्र में बुरे ऋणों की छानबीन की तो पता चला कि यस बैंक अपने बुरे ऋणों को गलत तरीके से दिखा रहा है. लेख में उल्लेख किया गया है कि वित्तीय वर्ष 2016 में, "गैर-निष्पादित ऋण, या सकल एनपीए, का मूल्यांकन 4900.25 करोड़ रुपए किया गया था, जबकि आधिकारिक संख्या 749 करोड़ रुपए थी यानी 4172 करोड़ रुपए का फर्क था. अगले वित्तीय वर्ष यह अंतर 6355 करोड़ रुपए हो गया.

साल की शुरुआत में मिंट की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि गिल, यस बैंक को राणा के प्रभाव से दूर करने की फिराक में थे और पूरे शीर्ष प्रबंधन को बदलना चाह रहे थे. लेख में कहा गया है कि इसमें राणा के कुछ करीबी सहयोगी शामिल थे, ताकि "कारपोरेट नियंत्रण की त्रुटियों और केंद्रीय बैंक द्वारा इंगित किए गए सुस्त जोखिम प्रबंधन का उपाय किया जा सके." 2018 में आरबीआई ने कारपोरेट दुर्व्यवहार के मुद्दों को उठाया था और बैंक की "अत्यधिक अनियमित" क्रेडिट-प्रबंधन प्रथाओं को चिह्नित किया था. उस साल जून में, आरबीआई ने राणा को तीन साल के विस्तार के लिए यस बैंक के अनुरोध को अस्वीकार कर दिया था और ऋणदाता को एक उत्तरवर्ती योजना बनाने के लिए कहा.

हलफनामे में उल्लेख किया गया है कि इंडियाबुल्स, यस बैंक और उनके संबंधित प्रमोटरों, गहलोत और कपूर के आपस के लेन-देन, अन्य वित्तीय कंपनियों, जैसे आईसीआईसीआई बैंक, आईएल एंड एफएस और दीवान हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड से जुड़े घोटालों के तुरंत बाद ही सामने आ गया. हलफनामे में कहा गया है कि “यह दिखाता है कि कैसे प्रमोटरों और बड़े एनबीएफसी के प्रभारी व्यक्ति ने सार्वजनिक निवेश की लूट की और शेल कंपनियों का इस्तेमाल कर अपनी-अपनी कंपनियों को बांट दिया. उन्होंने कहा, “इस प्रक्रिया में लाखों करोड़ों की सार्वजनिक धनराशि लूटी जा रही है. ऐसा प्रस्तुत किया गया कि इन कंपनियों के प्रवर्तकों का दबदबा ऐसा है कि नियामकों ने अपनी नाक के नीचे हो रही इन धोखाधड़ी को अनदेखा कर लिया."

मूल पीआईएल और अनुपूरक हलफनामे में कहा गया है कि इंडियाबुल्स समूह के आसपास के ऋणों के कथित तौर-तरीके काफी हद तक एक जैसे ही रहे हैं, हालांकि लेन-देन का मार्ग बाद में भिन्न था. पूर्व में, इंडियाबुल्स कंपनियों ने विभिन्न सार्वजनिक और निजी बैंकों से बड़ी रकम उधार ली और फिर शेल कंपनियों के चक्रव्यूह के माध्यम से बड़ी कंपनियों के स्वामित्व वाली फर्मों के पास भेज दिया. पीआईएल ने उल्लेख किया है कि न्यूजक्लिक की सितंबर 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक बदले में इन बड़ी-बड़ी कंपनियों ने इंडियाबुल्स के प्रवर्तकों के स्वामित्व वाली संस्थाओं में निवेश किया, जिसमें इसके संस्थापक और अध्यक्ष, समीर गहलोत भी शामिल थे, जो राजनीतिक रूप से जुड़े हुए व्यक्ति है. यस बैंक को ऋण देने के मामले में, निजी ऋणदाता पर इंडियाबुल्स समूह और गहलोत की कंपनियों को पैसा उधार देने का आरोप है, जबकि आईएचएफएल ने राणा के परिवार के सदस्यों के स्वामित्व वाली कंपनियों को बड़ी रकम दी.

राणा कपूर ने फोन और संदेशों का कोई जवाब नहीं दिया. यस बैंक में कारपोरेट कम्युनिकेशंस के प्रमुख क्रुनाल मेहता ने मुझे अपनी टीम की सदस्य स्वाति सिंह से बात करने को कहा. कई फोन और संदेश के बावजूद सिंह की कोई टिप्पणी नहीं प्राप्त की जा सकी. इस मामले की अगली सुनवाई 29 नवंबर को होगी.


तुषार धारा कारवां में रिपोर्टिंग फेलो हैं. तुषार ने ब्लूमबर्ग न्यूज, इंडियन एक्सप्रेस और फर्स्टपोस्ट के साथ काम किया है और राजस्थान में मजदूर किसान शक्ति संगठन के साथ रहे हैं.