इंडियाबुल्स, रिलायंस और डीएलएफ ने करोड़ों का सरकारी धन बनाया निजी, कोर्ट में दायर याचिका

समीर गहलोत ने मध्यस्थ कंपनियों के जाल के जरिए, जिनके तार एसजी फैमिली ट्रस्ट से जुड़ते हैं, लंदन में तीन शीर्ष संपत्तियां खरीदी. यह ट्रस्ट समीर गहलोत की पत्नी दिव्या गहलोत के माता-पिता के नाम है. उमेश गोस्वामी/द इंडिया टुडे ग्रुप/गैटी इमेजिस
06 September, 2019

आज दिल्ली उच्च न्यायालय में दायर एक जनहित याचिका में आरोप लगाया गया है कि इंडियाबुल्स समूह की कंपनी इंडियाबुल्स हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड (आईबीएचएफएल) ने रिलायंस अनिल धीरूभाई अंबानी समूह और डीएलएफ संघ जैसी बड़ी कंपनियों के साथ मिलकर बड़ी मात्रा में सार्वजनिक धन को शैल कंपनियों के जरिए हासिल किया है. पीआईएल में बताया गया है कि आईबीएचएफएल ने विभिन्न निजी और सार्वजनिक बैंकों से हजारों करोड़-रुपए का कर्ज लेकर शैल कंपनियों की जटिल संरचना में निवेश किया है. ये शैल कंपनियां बड़े व्यवसायिक समूहों द्वारा संचालित हैं. याचिका में कहा गया है इन समूहों ने इस धन को इंडियाबुल्स के प्रमोटरों सहित संस्थापक और चेयरमैन समीर गहलोत की कंपनियों में निवेश किया. याचिका कहती है, “ऐसा करने का उद्देश्य सार्वजनिक धन की कीमत पर निजी संपत्ति का निर्माण करना है.” याचिका में इस लेनदेन को “राउंड ट्रिपिंग” (घुमा कर निवेश करना) और आईसीआईसीआई बैंक और दीवान हाउसिंग फाइनेंस की तरह का “घोटाला” बताया है जिसमें लाखों-करोड़ रुपए के सार्वजनिक धन की लूट की गई है. याचिकाकर्ता ने कहा है, “इन प्रमोटरों का प्रभाव इतना व्यापक है कि नियामक संस्थाएं आंखें मूंदे रहीं और अपनी नाक के नीचे घोटाला होने दिया.”

जनहित याचिका में जिन कंपनियों का नाम लिया गया है वे हैं: अनिल अंबानी रिलायंस समूह, कुशालपाल सिंह की डीएलएफ, हरीश फैबियानी की अमेरीकोर्प और रियल एस्टेट कंपनियां वाटिका समूह और चोरदिया समूह. याचिका में कहा गया है कि अनिल अंबानी की एडीएजी ने 1580 करोड़ रुपए का कर्ज लेकर इंडियाबुल्स में 570 करोड़ रुपए का निवेश किया. इसी तरह डीएलएफ ने 1705.54 करोड़ों का कर्ज लेकर 66 करोड़ रुपए गहलोत की कंपनी में निवेश किया. आईबीएचएफएल ने गौतम भल्ला के स्वामित्व वाले वाटिका समूह की 51 कंपनियों को 4601.01 करोड रुपए का कर्ज दिया. याचिका में आरोप लगाया गया है कि इंडियाबुल्स की कई शैल कंपनियां हैं जो कई हजार-करोड़ रुपए के भ्रष्ट लेनदेन में लिप्त हैं.

उपरोक्त जनहित याचिका सिटीजन विसलब्लोअर्स फोरम ने दाखिल की है. आईबीएचएफएल द्वारा धन की राउंड ट्रिपिंग आयकर संबंधी कानूनों, भारतीय रिजर्व बैंक, भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड और राष्ट्रीय आवासीय बैंक के नियमों का उल्लंघन है. याचिका में इंडियाबुल्स के वित्तीय खातों और आईबीएचएफएल के प्रमोटरों की गैरकानूनी गतिविधियां एंव नियमों का उल्लंघन और बेइमानी की जांच के लिए विशेष जांच दल गठन करने की मांग की गई है.

आईबीएचएफएल भारत की दूसरी सबसे बड़ी होम फाइनेंस कंपनी है. इसकी 110 शहरों और नगरों में 220 शाखाएं हैं. याचिका के अनुसार समूह के सालाना टर्नओवर (व्यापार) में इस कंपनी की हिस्सेदारी 80 प्रतिशत है. याचिका में सार्वजनिक रूप से उपलब्ध दस्तावेजों के हवाले से आईबीएचएफएल की वित्तीय स्थिति को इस तरह बताया गया है : वित्त वर्ष 2017-18 में आईबीएचएफएल ने पिछले वित्त वर्ष के मुकाबले 34.3 प्रतिशत की वृद्धि की थी और 122578 करोड रुपए का कर्ज बांटा था. पिछले वित्त वर्ष के मुकाबले उसके राजस्व में 25.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई है जो 14640 करोड़ रुपए है. 2017-18 वित्त वर्ष में कंपनी का लाभ (कर चुकता करने के बाद) 3847 करोड रुपए था. हालांकि याचिका के अनुसार कंपनी के ऊपर 96204.58 करोड रुपए का कर्ज है और मार्च 2019 में कंपनी की कुल देनदारी 113463.50 करोड़ रुपए है जो पिछले साल के मुकाबले 13 करोड़ रुपए अधिक है. कंपनी की शुद्ध संपत्ति 17258.92 करोड रुपए है. याचिका ने जोर दिया है कि आईबीएचएफएल ने विभिन्न सरकारी बैंकों से कर्ज लिया है जिसका मतलब है आईबीएचएफएल के शेयरधारकों और निवेशकों के धन के साथ साथ इसमें सरकारी धन भी शामिल है.”

इस याचिका में आईबीएचएफएल द्वारा पांच कंपनियों को दिए गए कर्ज का विश्लेषण भी है. याचिका में बताया गया है कि आईबीएचएफएल ने जिन कंपनियों को लोन दिया है उनमें से “कई कंपनियों की पेडअप पूंजी छोटी” है. इन कंपनियों की कोई अचल संपत्ति नहीं है और ये किसी प्रकार की व्यवसायिक गतिविधियों में संलग्न नहीं हैं.” कई कंपनियों की पेडअप पूंजी चंद लाख रुपए है लेकिन इन कंपनियों ने करोड़ों रुपए बराबर का कर्ज प्राप्त किया है. इनमें से बहुत सी कंपनियों का निदेशक और कार्यालयों का पता एक ही है. याचिका में कहा गया है कि इनमें से अधिकांश कंपनियों ने कॉर्पोरेट मामले मंत्रालय में चार्ज जमा नहीं किया है. (कर्ज लेने के लिए बंधक की तरह इस्तेमाल की जाने वाली कंपनी की ऐसी संपत्ति जो कंपनी रजिस्ट्रार के यहां दर्ज हो.) याचिका में कहा गया है कि इंडियाबुल्स के पते पर सैकड़ों कंपनियां पंजीकृत हैं जिससे पता चलता है कि “इंडियाबुल्स ने ढेरों डमी कंपनियां बना रखी है.”

याचिका में कहा गया है कि रिलायंस अनिल धीरूभाई अंबानी समूह की कंपनियों ने आईबीएचएफएल से 1580 करोड़ रुपए प्राप्त किए. रिलायंस इनसेप्टम ने 106 करोड़ रुपए, रिलायंस बिग एंटरटेनमेंट ने 210 करोड़, रिलायंस कम्युनिकेशंस इंटरप्राइजेज ने 200 करोड़ रुपए, रिलायंस इंटरएक्टिव एडवाइजर्स ने 908 करोड रुपए और जपाक डिजिटल एंटरटेनमेंट ने 156 करोड़ रुपए का कर्ज हासिल किया. इनमें से पहली चार कंपनियां मुंबई के सैंटाक्रूज के एक ही पते पर रजिस्टर्ड हैं. याचिका में यह भी कहा गया है कि रिलायंस अनिल धीरूभाई अंबानी समूह की कंपनियों ने गहलोत के प्रत्यक्ष स्वामित्व या प्रोत्साहन वाली 9 कंपनियों में 570 करोड़ रुपए का निवेश किया है. याचिका में कहा गया है कि इस धन का निवेश वैकल्पिक परिवर्तनीय डिबेंचर के माध्यम से 0.01 प्रतिशत ब्याज दर पर किया गया है. डिबेंचर ऐसा ऋण होता है जिसे निवेशक चाहे तो इक्विटी या साधारण शेयर में बदल सकता है.

पीआईएल के अनुसार रिलायंस कैपिटल ने इंडियाबुल्स की 6 सहायक कंपनियों में लोन के रूप में पैसा लगाया. ये इस प्रकार हैं: आईफीटो प्रॉपर्टीज में 10 करोड़ रुपए, आईफीटो रियल एस्टेट में 20 करोड रुपए, मायरीना रियल एस्टेट में 10 करोड़ रुपए, ओरथिया रियल एस्टेट में 35 करोड़ रुपए और ईएमयू कंस्ट्रक्शन ने 50 करोड़ रुपए. इसके अलावा रिलायंस कॉर्पोरेट एडवाइजरी ने इंडियाबुल्स की 3 सहायक कंपनियों को कर्ज दिया है जो इस प्रकार है : गैलेक्स मिनरल्स को 50 करोड़ रुपए, मेरु मिनरल्स को 150 करोड़ रुपए और पैडिया कनेक्शन को 200 करोड़ रुपए. याचिका में बताया गया है कि गैलेक्स मिनरल्स के एकमात्र स्वामी समीर गहलोत हैं और कंपनी की बैलेंसशीट में इतनी सिक्योरिटी नहीं है कि उसे इतना बड़ा कर्ज मिल सके.

गैलेक्स ने 726.50 करोड़ रुपए का कुल कर्ज लिया है जो इस तरह है : रिलायंस कॉर्पोरेट एडवाइजरी से 50 करोड़ रुपए, मायरीना रियल एस्टेट से 589 करोड़ रुपए और आईफीटो से 87.50 करोड रुपए. रिलायंस कॉर्पोरेट एडवाइजरी से इस कंपनी को मिला कर्ज डिवेंचर के रूप में है जिसका वार्षिक ब्याज 0.01 प्रतिशत है. याचिका में कहा गया है, “गैलेक्स मिनरल्स के बहीखाते में वर्तमान संपत्ति नहीं या न के बराबर है. अपवाद स्वरूप एक निवेश है जो चार्ज नहीं है यानी इस पर कोई संपत्ति बंधक नही है. जिसका मतलब है कि यह कर्ज सुरक्षा केवल पर्दा डालने के लिए है. इससे साबित होता है कि यहां राउंड ट्रिपिंग हुई है.”

इस याचिका के अनुसार आईबीएचएफएल ने डीएलएफ समूह की 48 कंपनियों को 1705.54 करोड़ रुपए से ज्यादा का कर्ज दिया है. याचिका में बताया गया है कि इन कंपनियों की बाजार कीमत कुछ नहीं है और यह ऐसी कंपनियां हैं जो बड़े कर्ज लेकर घोषित उद्देश्य से अलग निवेश करती हैं. याचिका कहती है, “इनका मूल्य कुछ भी न होने के बावजूद आईबीएचएफएल ने एथेरोल बिल्डर्स एंड डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड को 173.40 करोड रुपए का कर्ज दिया. यह कंपनी फैलिसाइट बिल्डर एंड कंस्ट्रक्शन की सहायक कंपनी है... कर्ज का इस्तेमाल जमीन खरीदने और समूह की कंपनियों को कर्ज देने के लिए इस्तेमाल किया गया.” याचिका में आगे लिखा है कि गहलोत की अन्य कंपनी ईएमयू रियलकोन को डीएलएफ समूह ने प्रेफरेंस शेयर के रूप में 66 करोड़ रुपए कर्ज दिया.

याचिका में कहा गया है कि आईबीएचएफएल ने गौतम भल्ला के वाटिका समूह की 51 कंपनियों को 4601.0 करोड़ रुपए का कर्ज दिया. इन कंपनियों में 40 एक ही पते पर रजिस्टर्ड हैं और अधिकांश की पेडअप पूंजी मात्र एक लाख रुपए है. इन कंपनियों को 16 करोड़ से लेकर 184.50 करोड रुपए तक का कर्ज दिया गया. याचिका में लिखा है कि सबसे ज्यादा चौंकाने वाला मामला शिवसागर बिल्डर्स का है. हालांकि इस कंपनी की पेडअप पूंजी 25 लाख रुपए है लेकिन आईबीएचएफएल ने इस कंपनी को 1575 करोड़ रुपए का कर्ज दिया है. स्पष्ट है कि आईबीएचएफएल ने किसी प्रकार की सतर्कता का अभ्यास न करते हुए बड़े कर्ज दिए.”

हरीश फैबियानी प्रवासी (एनआरआई) भारतीय हैं जो मैड्रिड में रहते हैं. फैबियानी अमेरीकार्प के प्रमोटर हैं. इस कंपनी की 4 सहायक कंपनियों ने 151.9 करोड़ रुपए का कर्ज आईबीएचएफएल से प्राप्त किया. याचिका के अनुसार यह धन इक्विटी के रूप में इंडियाबुल्स की कंपनियों में वापस निवेश कर दिया गया. याचिका ने इसे राउंड ट्रिपिंग कहा है. अमेरीकार्प की दो सहायक कंपनियां- जसोल इन्वेस्टमेंट एंड ट्रेडिंग कंपनी और जॉइंड्रे फाइनेंस- ने इंडियाबुल्स की पांच कंपनियों में 254.87 करोड रुपए का निवेश किया. इंडियाबुल्स वेंचर्स ने उनसे 39.58 करोड़ रुपए और इंडियाबुल्स हाउसिंग फाइनेंस ने 22.88 करोड रुपए हासिल किए. मायरीना बिल्डर्स ने 31 करोड़ रुपए, आईफीटो रियल एस्टेट ने 44 करोड रुपए, इंडियाबुल्स रियल एस्टेट ने 117.41 करोड़ रुपए प्रप्त किए.

रियल स्टेट का धंधा करने वाली चोरदिया समूह की 3 सहायक कंपनियों को आईबीएचएफएल ने 1209 करोड़ रुपए दिए. यह कर्ज चोरदिया समूह की कंपनी महालूंगा लैंड डेवलपर्स के उस धन से चुकता किया गया जो उसने आईबीएचएफएल से उधार लिया था. “इसके अतिरिक्त इंडियाबुल्स रियल एस्टेट लिमिटेड को 50 करोड़ रुपए प्रोफेशनल फीस के रूप में दिए गए.”

इन पांच कॉरपोरेट समूहों ने कुल 9248 करोड़ रुपए का कर्ज प्राप्त किया. याचिका कहती है, दूसरे शब्दों में कर्ज लेने वाली कंपनियों ने आईबीएचएफएल के एहसान का बदला आईबीएचएफएल के शेयरधारकों और उसके चेयरमैन को फायदा पहुंचा कर चुकाया.

अप्रैल 2016 में गहलोत का नाम पनामा पेपर्स में आया था. इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित एक रिपोर्ट को उद्धृत करते हुए याचिका में बताया गया है, “समीर गहलोत ने मध्यस्थ कंपनियों के जाल के जरिए, जिनके तार एसजी फैमिली ट्रस्ट से जुड़ते हैं, लंदन में तीन शीर्ष संपत्तियां खरीदी. यह ट्रस्ट समीर गहलोत की पत्नी दिव्या गहलोत के माता-पिता के नाम है.”

याचिका में गहलोत द्वारा प्रमोटेड कंपनियों की भ्रष्ट गतिविधियों को भी विस्तार से बताया गया है. प्रमुख अनियमितता अनिवार्य परिवर्तनीय डिबेंचर (सीसीडी) को जारी करने से संबंधित है. “लेकिन इसे (अनिवार्य परिवर्तनीय डिबेंचर) को वैकल्पिक रखा गया है और इसका इस्तेमाल सार्वजनिक धन को निजी संपत्ति में बदलने के लिए किया गया.” याचिका में इंडियाबुल्स या गहलोत द्वारा प्रमोटेड 18 कंपनियों के नाम हैं. इनमें ईएमयू रियलकोन, मायरीना रियल एस्टेट, मायरीना बिल्डर्स और गैलेक्स मिनरल्स के नाम है.

याचिका में बताया गया है कि ईएमयू रियलकोन, जिसके मालिक समीर गहलोत हैं, को डीएलएफ की तीन कंपनियों ने 66 करोड़ रुपए दिए, इन कंपनियों ने सीसीडी का इस्तेमाल कर लगभग न के बराबर ब्याज दर पर निवेश किया. याचिका में कहा गया है, “ सीसीडी के इस्तेमाल की शर्तों में मानक व्यवहार का उल्लंघन हुआ है. हालांकि ये डिवेंचर सैद्धांतिक रूप से अनिवार्य है लेकिन सीसीडीधारक के पास निवेश वापस प्राप्त करने का विकल्प रहता है. याचिका में लिखा है कि धन को एक कंपनी से दूसरी कंपनी में बिना अनुमति और बिना ब्याज और इस हस्तांतरण पर लगने वाले कर के भुगतान के ले जाया गया.

याचिका के अनुसार, “आईबीएचएफएल और उसके प्रमोटरों ने लेनदेन में धोखेबाजी की है और कंपनी कानून 2013 की विभिन्न धाराओं का उल्लंघन किया है. साथ ही, यहां भारतीय दंड संहिता की धारा 403, 406 और 420 के अलावा भारतीय रिजर्व बैंक और राष्ट्रीय आवासीय बैंक के विभिन्न नियमों और दिशानिर्देशों का उल्लंघन हुआ है. आज दायर याचिका में राष्ट्रीय आवासीय बैंक, कॉर्पोरेट मामले मंत्रालय, गंभीर धोखेबाजी जांच कार्यालय और भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड को प्रतिवादी बनाया गया है. याचिका में आईबीएचएफएल के खिलाफ “कोई कार्रवाई” न करने के लिए इन कंपनियों निंदा की गई है और तत्काल जांच की मांग की गई.

याचिका में कहा गया है, “ यह निमिष घोटाला आईसीआईसीआई बैंक, आईएल एंड एफएस और दीवान हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड द्वारा किए गए घोटालों की मानिंद है. यह दर्शाता है कि कैसे गैर-बैंकिंग वित्तीय कॉरपोरेशनों के प्रमोटरों और इनके इंचार्जों ने निवेश किए गए धन को लूटा और शैल कंपनियों के सहारे अपनी कंपनियों में लगाया.” याचिका में लिखा है कि इसके खिलाफ कार्यवाही न करना जनहित और कानून के राज की अवधारणा के विपरीत होगा और यह नियामक ढांचे को महत्वहीन और लचर बना देगा. उसके अलावा इससे सरकारी खजाने को संभावित घाटा होगा.”

अपडेट : इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने के बाद वाटिका समूह के एक प्रतिनिधि ने समूह के प्रबंध निदेशक गौतम भल्ला की ओर से कारवां को ईमेल कर कहा, “वाटिका लिमिटेड और समूह की कंपनियों का समीर गहलोत की किसी भी कंपनी से संबंध नहीं है. इसकेअलावा वाटिका लिमिटेड और समूह की किसी भी कंपनी ने गहलोत से संबद्ध किसी कंपनी में निवेश नहीं किया है.”


तुषार धारा कारवां में रिपोर्टिंग फेलो हैं. तुषार ने ब्लूमबर्ग न्यूज, इंडियन एक्सप्रेस और फर्स्टपोस्ट के साथ काम किया है और राजस्थान में मजदूर किसान शक्ति संगठन के साथ रहे हैं.