7 अगस्त को मध्य प्रदेश के मुरैना जिले में सहारा के कार्यकर्ता (एजेंट) राजीव विसारिया दिल्ली के जंतर-मंतर पर सहारा इंडिया के खिलाफ तीन दिवसीय धरना-प्रदर्शन में शामिल होने के लिए आए हुए थे. विसारिया कहते हैं, "मैं क्या करूं? घर-परिवार छोड़कर कहीं भाग जाऊं या फिर कुछ ऐसा कर लूं जिससे मुझे ग्राहकों का पेमेंट करने से छुटकारा मिल जाए. जमाकर्ता रोज गालियां दे रहे हैं, घर से बाहर निकलना मुश्किल हो गया है. जैसे मेरा परिवार है, उनका भी परिवार है और मैं उनकी बद्दुआएं लेकर नहीं जी सकता."
उस दिन राजीव जैसे सहारा इडिंया के हजारों एजेंट कपंनी के खिलाफ हो रहे इस प्रदर्शन में शामिल होने के लिए दिल्ली के जतंर-मंतर में जमा हुए थे. सहारा समूह में 2017 के बाद से ग्राहकों का पेमेंट न कर पाने की शिकायतें आने लगीं थी. इन शिकायतों के बाद एजेंटों को काम मिलने में दिक्कत आनी शुरू हो गईं. इसके बाद मजबूरी में ही सही उन्हें काम बंद करना पड़ा, जो उनके लिए बेरोजगार होने जैसी स्थिति थी. एक तरफ काम नहीं मिल रहा था, दूसरी तरफ कंपनी की तरफ से भी उन्हें सहयोग नहीं मिला जिससे वे ग्राहकों को समझा कर रख पाते, इस कारण वे हर तरफ से मुसीबतों से घिरने लगे, कंपनी के साथ सरकार ने भी उनकी शिकायतों पर ध्यान नहीं दिया. इस तरह सहारा के एजेंटों को कपंनी और सरकार द्वारा बे-सहारा छोड़ देने के पांच साल बाद जब इनके पास कोई और रास्ता नहीं बचा, तब जाकर देशभर के कार्यकर्ता यहां पहुंचे थे. जंतर-मंतर में प्रदर्शन में शामिल होने आए एक एजेंट ने बताया कि समूह द्वारा ग्राहकों को पेमेंट न लौटाने की तमाम शिकायतों के बाद और कार्यकर्ता समूह के खिलाफ सहारा कपंनी में भुगतान की दिक्कतें शुरू होने के बाद जमाकर्ताओं के पैसे वापस न दिला पाने के दबाव के चलते देशभर में अब तक 350 से ज्यादा सहारा एजेंट आत्महत्या कर चुके हैं. (प्रदर्शन के मंच पर आत्महत्या करने वाले एजेंटों से संबंधित खबरों का बैनर लगा हुआ था.) देश के अलग-अलग हिस्सों में पहले भी सहारा के खिलाफ इस तरह के धरना-प्रदर्शन होते रहे हैं लेकिन उनकी समस्या का समाधान अब तक नहीं हुआ.
ऐसे ही एक एजेंट हैं रविंद्र कुमार, जो 2005 में बतौर एजेंट सहारा इंडिया से जुड़े थे और 2013 तक उसके साथ काम किया. रविंद्र हरियाणा की करनाल शाखा में सहारा के एजेंट के तौर पर काम कर चुके हैं. इस साल के मई महीने में बेहतर इलाज के अभाव में उनकी पत्नी की मृत्यु हो गई. फोन पर बात करते हुए वह कहते हैं कि "सहारा के चक्कर में सब बर्बाद हो गया. पत्नी की मृत्यु हो गई, जमाकर्ता पैसा मांग रहे हैं. पत्नी के इलाज के लिए कर्ज लिया, उसकी देनदारी अलग है, समझ नहीं आ रहा है कि क्या करूं. सुब्रत रॉय को उसके किए की सजा मिल जाए तो मैं आत्महत्या करने को तैयार हूं."
रविंद्र आगे बताते हैं, "पांच साल पहले मेरी पत्नी को किडनी की समस्या हुई तो मैने कंपनी में लगाया पैसा वापस मांगा तब भी इन्होंने पैसा नहीं दिया. इसके विपरीत इन्होंने मेरे पैसे को यह कह कर दूसरी एमआईएस स्कीम में डाल दिया कि इससे पैसा जल्दी और आसानी से मिलता रहेगा, जिससे घर का खर्च और पत्नी का इलाज कराने में आसानी होगी. इन्होंने मुझे मार्च 2022 तक बीच-बीच में कुछ-कुछ पैसे दिया लेकिन उसके बाद से एक भी पैसा न मुझे और न मेरे ग्राहकों को मिला. पैसा बंद होने के बाद मई 2022 को मेरी पत्नी का देहांत हो गया."
राजीव बिसारिया 2004 से सहारा इंडिया के एजेंट हैं. वह बताते हैं, "2015-16 तक कंपनी में सबकुछ ठीक चल रहा था. जमाकर्ताओं को समय से भुगतान मिल रहा था और एजेंटों को उनका कमिशन. वह बताते हैं, "उसके बाद से स्थितियां खराब होनी शुरू हुईं. जिसका नतीजा यह हुआ कि अकेले मेरे एजेंट कोड पर 600 जमाकर्ताओं का लगभग एक करोड़ रुपए का पेमेंट सहारा में फंसा हुआ है. 2017 के बाद मेरे एक भी जमाकर्ता को पेमेंट नहीं मिला है. मेरे जैसे लगभग 12 लाख कार्यकर्ता और 10 करोड़ जमाकर्ता सहारा समूह से पेमेंट निकलवाने के लिए यहां-वहां भटक रहे हैं. "जमाकर्ताओं का पेमेंट मिल जाए, इसके लिए बिसारिया पुलिस में शिकायत दर्ज कराने से लेकर कंपनी रजिस्ट्रार ऑफिस, प्रधानमंत्री, वित्त मंत्रालय, हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट तक शिकायतें कर चुके हैं. वह कहते हैं, "जमाकर्ताओं का पेमेंट न मिलने से होने वाली परेशानियों का सामना हम जैसे कार्यकर्ताओं को करना पड़ रहा है. जमाकर्ता कंपनी से पैसा वापस दिलाने के लिए हमारे ऊपर दबाव बना रहे हैं. जमाकर्ताओं का कहना है कि पैसा जमा कराने के लिए हमारे पास कपंनी के एजेंट बनकर आप आए थे. पैसा निकालने का समय पूरा हो गया है,इसके लिए हम आपसे न कहें तो किससे कहें. कंपनी और अधिकारियों से क्या लेना-देना? आप तो हमारा पैसा वापस कराईए, हम कुछ नहीं जानते."
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