छोटे शहरों में चालू सहारा के कार्यालय निवेशकों के पैसे कर रहे दूसरी कंपनियों में हस्तांतरित

08 जून 2022
लखनऊ की सहारा सिटी सहारा ग्रुप के चेयरमैन सुब्रत रॉय का निवास और कार्यालय है.
प्रशांत विश्वनाथन/ब्लूमबर्ग/गैटी इमेजिस
लखनऊ की सहारा सिटी सहारा ग्रुप के चेयरमैन सुब्रत रॉय का निवास और कार्यालय है.
प्रशांत विश्वनाथन/ब्लूमबर्ग/गैटी इमेजिस

बिहार के नालंदा जिले में राष्ट्रीय राजमार्ग-33 से कुछ ही दूरी पर स्थित है सहारा इंडिया का एक जिला कार्यालय. वैसे तो अपने आकार और स्वरूप में यह किसी बैंक जैसा ही है : 1500-2000 वर्ग फीट का क्षेत्रफल, लंबी-लंबी डेस्कें और कुर्सियां, कोने में बने शीशे के कैबिन और ग्राहकों के खड़े होने के लिए बड़ा सा लॉबी एरिया. हालांकि यह अब सिर्फ समय में जम चुके किसी परित्यक्त भवन जैसा दिखता है. यहां सिर्फ दो कर्मचारी काम करते हैं. एक निवेश एजेंट, सी.एस. प्रसाद, जो दरवाजे से सटी कुर्सी पर एक डेस्क के पीछे बैठे होते हैं. और दूसरे इस कार्यालय के मैनेजर, जो सूट और टाई पहनते हैं, और कोने पर बने एक कैबिन में कुर्सी पर बैठते हैं. मैनेजर को लोग "तिवारी जी" के नाम से जानते हैं. बाकी की मेज और कुर्सियां खली पड़ी रहती हैं. जबकि एक बड़े कमरे में बोरियों में भर-भर के कागज और फाइल्स रखी हैं. इस कार्यालय के सामने ही, उसी माले पर, इतना ही बड़ा कंपनी का एक और ऑफिस है जिसमें प्रसाशनिक काम होते हैं. वहां भी इक्के-दुक्के कर्मचारी ही थे, जबकि बाकी की कुर्सियां और मेज खाली थीं.  

27 तारीख की दोपहर जब मैं वहां पहुंचा तो निवेश एजेंट प्रसाद के सामने एक अधेड़ उम्र की महिला बैठी थी. उसका नाम निर्मला देवी था. निर्मला पास के ही एक गांव से थी और सहारा की एक छोटी निवेशकर्ता भी है. उसने सहारा की रियल एस्टेट की किसी योजना में अपने पड़ोस के एक एजेंट के कहने पर अपने जेब खर्च से बचाया हुआ पैसा लगाया था. उसके निवेश की अवधि साल भर पहले ही पूरी हो गई थी मगर कंपनी ने वादे के मुताबिक उनका करीब पांच लाख रुपए नहीं लौटाया है. एक साल तक वह कार्यालय आती रही मगर कर्मचारी उन्हें बार-बार अगली तारीख देकर दौड़ाते रहे. पिछली बार प्रसाद ने निर्मला को अपने निवेश को सहारा की ही एक सहकारी समिति की योजना में हस्तानांतरण करने की सलाह दी थी, और तीन साल बाद पैसे दोगुने होने का लालच भी दिया. निर्मला को विश्वास नहीं हुआ कि तीन साल बाद उनके पैसे कंपनी सूद समेत वापस करेगी मगर कोई रास्ता न जान कर 27 तारीख को उसने पैसे हस्तानांतरण करने की हामी भर दी. मेरे सामने ही उसके फॉर्म भरे जा रहे थे. उस फॉर्म पर एक रेवैन्यू टिकट लगा था मगर कोई न्यायिक स्टाम्प नहीं था. मैंने जब उर्मिला को बताया कि बिना स्टाम्प उस फॉर्म का कोई महत्व नहीं है तो प्रसाद मुझ पर भड़क गए. निर्मला अपने साथ अपना पासपोर्ट साइज फोटो, पैन कार्ड और आधार कार्ड भी लाई थी. उसे नहीं पता था कि प्रसाद कौन सी योजना में उसके पैसे आगे निवेश कर रहे हैं.   

अभी यह मामला निपटा भी नहीं था कि कुछ ही दूरी पर कैबिन में मैनेजर तिवारी के सामने बैठा एक हट्टा-कट्टा, अधेड़ उम्र का आदमी प्रसाद पर बिफर पड़ा. वसीम अपने निवेश प्रतिभूति के पूरा होने पर 15 लाख रुपए मांगने आए थे. निर्मला की तरह वसीम की योजना की अवधि भी महीनों पहले पूरी हो गई थी. वसीम तेज आवाज में तिवारी को भला बुरा कह रहे थे. उनका कहना था कि वह हमेशा की तरह आज भी कंपनी से अपने पैसे मांगने आए हैं मगर मैनेजर उन्हें सुनने की बजाए उन पर हंसने लगा. वसीम को अपने पैसे के लिए लड़ता देख एक बूढ़े निवेशकर्ता, अशोक कुमार, को भी हिम्मत आ गई. वसीम की तरफदारी में वह भी मैनेजर की मेज के सामने खड़े हो गए. अशोक पास के किसी दुकान में काम करते हैं. उनके जीवन की जमापूंजी, कुछ 7 लाख रुपए, भी कंपनी खा गई. मैंने सहारा के नालंदा जिले के कार्यालय में करीब दो घंटा बिताए. इस बीच कई छोटे निवेशकर्ता आए, कुछ ने मिन्नतें की, कुछ गुस्सा हुए, कुछ चुप-चाप रहे, तो कुछ प्रसाद के बहकावे में आकर अपना निवेश हस्तानांतरण करवा कर लौट गए.  

अगर हम सहारा के देश के 4799 कार्यालयों के ऑपरेशनल खर्च को देखें तो बिहार शरीफ के कार्यालय का किराया ही 86000 रुपए मासिक है. अगर बिहार शरीफ के कार्यालय के ऑपरेशनल खर्च का एक संकुचित अनुमान भी लगाएं तो दो लाख रुपए महीने तो लगता ही होगा. अगर हम इसे 4000 गुना भी करें तो यह करीब 80 करोड़ मासिक होता है. सहारा ये पैसे कहां से कमा रही है?

मेरे वहां रहने के दौरान मुझे पता चला कि सहारा इंडिया के कर्मचारी अपने छोट-छोटे निवेशकर्ताओं को उनके पैसे लौटने के बजाए उन्हें बरगला कर लगातार उनके निवेश का हस्तानांतरण अपनी दूसरे योजनाओं में कर दे रहे हैं. वे निवेशकर्ताओं से हवाई वादे कर उनकी पूंजी को तीन से पांच साल तक के लिए आगे निवेश कर दे रहे हैं. न्यायालाओं के पूर्व फैसलों की अनदेखी करते हुए वह उन योजनाओं में भी निवेश का हस्तानांतरण कर रहे हैं जिन्हें कानूनन प्रतिबंधित कर दिया गया है. इसके आलावा, कंपनी अपने निवेशकर्ताओं के सामने इस प्रचार को भी बल दे रही है कि कानून के पूरे प्रकरण में कंपनी ही पीड़ित है, जबकि निवेशकर्ताओं के पैसे छीनने वाले सरकार और न्यायलाय हैं. उनकी यह धोखाधड़ी अनवरत जारी है. सहारा से जुड़े न्यायिक मामलों को समझने के लिए यह जरूरी है कि हम उनके अतीत को थोड़ा समझें.  

सागर कारवां के स्‍टाफ राइटर हैं.

Keywords: Sahara India Group SEBI Income Tax Sahara group
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