13 अगस्त को आजादी की 75वीं वर्षगांठ से दो दिन पहले जातीय हिंसा के शिकार 9 साल के इंद्र मेघवाल ने इलाज के दरमियान एक अस्पताल में दम तोड़ दिया. करीब 22 दिन पहले, 20 जुलाई को, राजस्थान के जालौर जिले के मेघवाल को उसके शिक्षक छैल सिंह ने स्कूल में बेरहमी से पीटा था. सिंह राजपूत जाति का है. सिंह ने मेघवाल को इसलिए पीटा क्योंकि वह दलित हो कर उसकी मटकी से पानी पी गया था. इंद्र के चाचा किशोर ने पुलिस को दी अपनी तहरीर में कहा कि, "इंद्र कुमार नादान था इसलिए उसे यह पता नहीं था कि वह मटकी सवर्ण जाती के अध्यापक छैल सिंह के लिए अलग से रखी हुई थी."
इंद्र के चाचा ने आगे लिखा कि, "छैल सिंह ने छात्र इंद्र कुमार को कहा कि 'साला डेढ़, नीच, कौड़ा, नीची जाति का होकर हमारी मटकी से पानी कैसे पिया और मार-पीट कर दी, जिससे उसके दाहिने कान और आंख पर अंदुरुनी चोटें आईं. कान में ज्यादा दर्द होने पर इंद्र कुमार स्कूल के सामने अपने पिता देवाराम की दूकान पर गया और घटना की जानकारी दी." चाचा ने लिखा कि इंद्र के इलाज के लिए उनका परिवार लगभग आधा दर्जन अस्पताल घूमता रहा मगर इंद्र को नहीं बचा सका. उन्होंने लिखा कि, "छैल सिंह ने दुर्भावना से इंद्र कुमार के साथ मारपीट की और इस कदर मारपीट की कि उसकी मृत्यु हो गई".
भारत की आजादी के 75 साल की सच्चाई यही है कि भारतीय समाज में दलितों के खिलाफ अस्पृश्यता की इतनी गहरी पैठ है कि इसका जरा सा अतिक्रमण एक बच्चे को भी नहीं बख्शता.
आजादी के बाद से भारतीय समाज में बहुसंख्यक हिंदुओं का वर्चस्व रहा है. हिंदू धर्मग्रंथ ही अस्पृश्यता को धार्मिक आधार देते हैं. शायद यही वजह है कि 75 साल पहले भारतीय संविधान द्वारा अस्पृश्यता को खत्म किए जाने के बाबजूद यह आज भी पूरी तरह से जिंदा है. ऐसे में संविधान निर्माता बी. आर. आंबेडकर की भविष्यवाणी सच होती नजर आती है, जो उन्होंने फरवरी 1946 में बॉम्बे के नारे पार्क से की थी :