गोरखपुर विश्वविद्यालय में दलित छात्रा की मौत के बाद परिसर में जातिवादी उत्पीड़न का मामला गरमाया, परिजनों ने उठाई जांच की मांग

प्रियंका कुमारी का शव 31 जुलाई को गोरखपुर विश्वविद्यालय के गृह विज्ञान विभाग के स्टोर रूम में फांसी के फेंदे से लटकता हुआ मिला था. सौजन्य : राजेश कुमार आर्य

गोरखपुर के दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय की एक दलित छात्रा प्रियंका कुमारी की मौत पर रहस्य का पर्दा अभी तक बरकरार है. परिजन इसे हत्या बता रहे हैं, वहीं प्रशासन इसे आत्महत्या बताने में जुटा हुआ है. हालांकि छात्रा के पिता की शिकायत पर पुलिस ने हत्या का मामला दर्ज किया है. इसमें विश्वविद्यालय के गृह विज्ञान विभाग की प्रमुख और उनके सहयोगियों को आरोपी बनाया गया है.

21 साल की प्रियंका कुमारी गोरखपुर के शिवपुर सहबाजगंज की एक दलित बस्ती की निवासी थी. वह 31 जुलाई को गोरखपुर विश्वविद्यालय में मृत पाई गई थी. उसका शव गृह विज्ञान विभाग के स्टोर रूम में फांसी के फंदे से लटकता हुआ मिला था. शव एक दुपट्टे के सहारे लटका हुआ था. बीएससी (गृह विज्ञान) के तीसरे साल की छात्रा प्रियंका परीक्षा देने विश्वविद्यालय गई थी.

प्रियंका के पिता विनोद कुमार की शिकायत पर गोरखपुर की कैंट थाना पुलिस ने विश्वविद्यालय के गृह विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष और उनके सहयोगियों पर हत्या का मामला दर्ज किया है लेकिन इसमें एससी-एसटी एक्ट की धाराएं नहीं लगाई गई हैं.

विनोद कुमार और उनका परिवार शिवपुर सहबाजगंज में दो कमरे के एक मकान में रहता है. सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करने वाले विनोद कुमार तीन लड़कियों और एक लड़के के पिता हैं. प्रियंका लड़कियों में सबसे छोटी थी. उसकी सबसे बड़ी बहन संगीता की शादी हो चुकी है. उनसे छोटी अनीता ने 12वीं तक की पढ़ाई की है. एएनएम का कोर्स करने के बाद वह अपने घर के पास स्थित एक प्राइवेट अस्पताल में नौकरी करती है. वहीं प्रियंका का भाई मनीष कुमार आईटीआई का छात्र है. प्रियंका ने अपनी इंटर तक की पढ़ाई शहर के बौलिया रेलवे कॉलोनी स्थित राष्ट्रीय इंटर कॉलेज से की थी.

परिजनों का कहना है कि प्रियंका पढ़ने में तेज थी. उसने हाई स्कूल और इंटर की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की थी. परिजनों के मुताबिक विश्वविद्यालय में 'रक्ताल्पता एवं कुपोषण से बचाव के लिए कम मूल्य, उच्च गुणवत्ता युक्त आहार का निर्माण' विषय पर एक प्रतियोगिता हुई थी. इसमें प्रियंका के बनाए 'गेहूं और मक्के के आटे की बर्फी' को पहला पुरस्कार मिला था. परिजन इस प्रतियोगिता पर अखबार में आई एक खबर की कटिंग भी दिखाते हैं. इसके मुताबिक प्रतियोगिता 28 जुलाई को आयोजित की गई थी यानी की प्रियंका का शव मिलने के तीन दिन पहले. परिजनों का कहना है कि इस इनाम से प्रियंका काफी खुश थी.

प्रियंका के पिता विनोद कुमार बताते हैं कि इस घटना की सबसे पहले सूचना बाइक से आए एक व्यक्ति ने उन्हें दी, उसने कहा कि विश्वविद्यालय में कोई घटना हुई है, जाकर देख लो. लेकिन वह यह नहीं जान पाए कि वह व्यक्ति कौन था और कहां से आया था. वह बताते हैं कि इसके बाद कैंट थाने से एक फोन आया. लेकिन फोन करने वाले ने यह नहीं बताया कि हुआ क्या है, केवल विश्वविद्यालय पहुंचने को कहा. वह कहते हैं कि अपने बेटे के साथ मोटरसाइकिल से वह करीब 12.40 पर विश्वविद्यालय पहुंच गए.

विनोद कुमार बताते हैं कि जब वह घटनास्थल पर पहुंचे तो देखा कि उनकी बेटी प्रियंका का शव लटका हुआ था. वह बताते हैं, ''प्रियंका का शव ट्यूबलाइट के रॉड के सहारे लटका हुआ था. उसके पैर के दोनों पंजे जमीन पर थे और घुटना थोड़ा मुड़ा हुआ था.''

प्रियंका के पिता बताते हैं, '' प्रियंका के कपड़े के पिछले हिस्से पर धूल लगी हुई थी. उसका कुर्ता दाहिने कंधे पर फटा हुआ था और उसके सिर के पिछले हिस्से पर चोट के निशान थे. उसकी चप्पलें थोड़ी दूरी पर रखी हुई थीं.''

विनोद कुमार यह मानने को तैयार नहीं हैं कि उनकी बेटी ने आत्महत्या की होगी. वह कहते हैं कि घटनास्थल पर जो नजर आया, वह साफ तौर पर हत्या की ओर इशारा करता है. वह कहते हैं कि जिस ट्यूबलाइट के रॉड से शव लटका हुआ था, वह इतना मजबूत नहीं है कि किसी का वजन बर्दाश्त कर सके.

प्रियंका की मां लीलावती देवी भी सवालिया लहजे में पूछती हैं कि क्या कोई व्यक्ति लोट-पोट कर आत्महत्या करेगा. वहीं उनके पिता विनोद कुमार कहते हैं कि पिछले तीन साल में उन्हें प्रियंका के अंदर डिप्रेशन का कोई लक्षण नजर नहीं आया था.

बहन के साथ अनहोनी की सूचना पाकर उनकी बड़ी बहन अनीता भी वहां पहुंची थीं. वह कहती हैं कि बार-बार अनुरोध करने पर भी पुलिस ने उनकी बहन का शरीर उन्हें नहीं दिखाया. वह बताती हैं कि उन्होंने ही प्रियंका का एडमिशन विश्वविद्यालय में करवाया था. अनीता कहती हैं कि प्रियंका टीचर बनना चाहती थी. इस पर उन्होंने कहा था कि तुम बीटीसी की तैयारी करो, तुम्हें पढ़ाया जाएगा.

प्रियंका अपने परिवार के साथ शिवपुर सहबाजगंज में दो कमरे के एक मकान में रहती थी. उसके पिता विनोद कुमार सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करते हैं. विनोद कुमार तीन बेटियों और एक बेटे के पिता हैं. परिवार का कहना है कि प्रियंका पढ़ने-लिखने में तेज थी. फोटो : राजेश कुमार आर्य

घटना वाले दिन प्रियंका के भाई मनीष कुमार उन्हें बाइक से सुबह करीब साढ़े 8 बजे विश्वविद्यालय के गेट तक छोड़कर आए था. प्रियंका ने उससे कहा था कि परीक्षा खत्म होने के बाद वह उन्हें किसी के फोन से फोन करेगी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. मनीष ने भी अपनी बहन की हत्या की आशंका जताई. वह कहते हैं कि पोस्टमॉर्टम के लिए भी उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा. धरना-प्रदर्शन और नारेबाजी के बाद रविवार तड़के करीब डेढ़-दो बजे पोस्टमॉर्टम शुरू हुआ.

विनोद कुमार कहते हैं, ''हमारी मांग थी कि पोस्टमॉर्टम पांच डॉक्टरों का एक पैनल करे और उसमें एससी-एसटी समुदाय के डॉक्टर भी शामिल हों. लेकिन पोस्टमॉर्टम केवल दो डॉक्टरों ने किया.'' 

पोस्टमॉर्टम के बाद भी प्रियंका का परिवार पांच डॉक्टरों के पैनल से पोस्टमॉर्टम कराने की मांग पर अड़ा रहा. इसके लिए परिवार ने प्रियंका के शव को बर्फ पर रखकर इंतजार करना शुरू कर दिया. लेकिन प्रशासन इस मांग पर तैयार नहीं हुआ. अधिकारियों ने परिवार पर दबाव डालकर सोमवार सुबह प्रियंका के शव का अंतिम संस्कार करवा दिया. इस दौरान बड़े पैमाने पर पुलिस और पीएसी के जवान तैनात रहे. जिला प्रशासन के अधिकारियों ने अपनी मौजूदगी में प्रियंका अंतिम संस्कार करवाया.

प्रियंका की मां कहती हैं कि प्रशासन को अंतिम संस्कार की इतनी जल्दी थी कि अधिकारियों ने रविवार को ही घाट पर चिता सजा दी थी, जबकि हम पांच डॉक्टरों के पैनल से फिर पोस्टमॉर्टम करवाने की मांग कर रहे थे.

विनोद कुमार कहते हैं कि पांच डॉक्टरों के पैनल से दोबारा पोस्टमॉर्टम की मांग पर एडीएम साहब ने कहा कि एक बार पोस्टमॉर्टम हो जाने की वजह से दोबारा पोस्टमॉर्टम नहीं हो सकता है. उन्होंने कहा कि अगर लाश सड़ जाए तब भी वह दोबारा पोस्टमॉर्टम नहीं करवाएंगे.

प्रशासन ने दोबारा पोस्टमॉर्टम की मांग को दरकिनार कर दिया. जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने जिलाधिकारी के आदेश पर पोस्टमॉर्टम की वीडियोग्राफी और रिपोर्ट का विश्लेषण करने के लिए पांच डॉक्टरों की एक कमेटी बना दी. इसमें एससी-एसटी समुदाय के दो डॉक्टरों को शामिल किया गया. विनोद कुमार पांच डॉक्टरों के इस पैनल के गठन को एक औपचारिकता भर बताते हैं.

पोस्टमॉर्टम के बाद जब प्रियंका का शव उनके घर गया तो वहां लोगों की भीड़ लग गई. लोग नारेबाजी करने लगे. वहां गोरखपुर शहर के बीजेपी विधायक डॉक्टर राधामोहन दास अग्रवाल भी पहुंचे. परिजनों की मांग पर उन्होंने पुलिस से प्रियंका की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट मंगाई और लोगों को पढ़ कर सुनाया. पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट को गुलरिहा पुलिस थाने के एसएचओ ने भी पढ़कर लोगों को सुनाया. इसका वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था. डॉक्टर अग्रवाल शहर में बच्चों के वरिष्ठ डॉक्टर हैं.

डॉक्टर अग्रवाल बताते हैं कि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में एंटीमॉर्टम इंजरी यानी की जिंदा रहते चोट लगने और सांस घुटने का उल्लेख था. उन्होंने मुझे बताया कि ''मैं प्रियंका के परिजनों से यह कहकर चला आया था कि अब आप लोग तय करिए कि आपको आगे क्या करना है. मैं आप लोगों के निर्णय के साथ हूं. इसके बाद से उनके परिजनों में से किसी ने भी मुझसे संपर्क नहीं किया. मैंने अगले दिन अखबारों में पढ़ा कि परिजनों ने अंतिम संस्कार कर दिया है. इसका मतलब हुआ कि वह प्रशासन की कार्रवाई से संतुष्ट हैं.''

 

पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में एंटीमॉर्टम इंजरी यानी की जिंदा रहते चोट लगने और सांस घुटने का उल्लेख है. सौजन्य : राजेश कुमार आर्य

डॉक्टर अग्रवाल कहते हैं, '' मैंने उनसे कहा था कि अगर आप दोबारा पोस्टमॉर्टम चाहते हैं तो मैं दोबारा पोस्टमॉर्टम करवाउंगा. यह बात मैंने एसएसपी को भी कही थी कि यह उनका कानूनी अधिकार है कि वह दोबारा पोस्टमॉर्टम के लिए अर्जी दें. लेकिन अगर परिजनों ने लाश जला दी तो इसका मतलब यह हुआ कि उन्होंने पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट को मान लिया. अगर उनको दोबारा पोस्टमॉर्टम चाहिए था तो लाश जलानी नहीं चाहिए थी.''

विधायक की ओर से पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट पढ़कर सुनाए जाने के बाद से परिजनों ने गोरखपुर के कैंट पुलिस थाने में विश्वविद्यालय के गृह विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष और उनके सहयोगियों के खिलाफ हत्या के आरोप में मामला दर्ज कराया.

दिव्यारानी सिंह इस समय गृह विज्ञान विभाग की अध्यक्ष हैं. वह 2015-16 के सत्र से इस पद पर हैं. वह बताती हैं, ''घटना वाले दिन मैं एक ऑनलाइन वर्कशॉप कंडक्ट करवा रही थी. मेरे कमरे में 7-8 लोग बैठे थे और 116 लोग ऑनलाइन जुड़े थे. तब तक शोर मचने लगा. लोग कह रहे थे कि लटकी हुई है, लटकी हुई है. यह सुनकर हम सब लोग अपने कमरे से बाहर निकले. मैं उधर बढ़ी, जहां से शोर आ रहा था. वहां का अजीब ही दृश्य था.''

वह बताती हैं, '' क्लासरूमों के अंत में छात्रों के लिए एक शौचालय है. वहीं पर एक जगह है, जहां शव मिला था. जब मैं वहां गई तो काफी अंधेरा था लेकिन हल्की सी रोशनी आ रही थी. इससे उसमें नजर आ रहा था कि कोई लटका हुआ है. यह देखकर मैंने प्रॉक्टर, कुलपति और अन्य को फोन किया तो वे आए.''

प्रियंका के परिवार की ओर से एफआईआर दर्ज कराए जाने के सवाल पर प्रोफेसर सिंह कहती हैं, '' मुझे इस पर कुछ नहीं कहना है. उस समय मुझे जो करना चाहिए था किया. इस मामले की जांच पुलिस कर रही है. हम इस मामले में सहयोग कर रहे हैं. हमसे जो पूछा जा रहा है, वह बता रहे हैं. यह घटना हम लोगों के लिए बहुत ही तनाव और दुख का विषय है. मेरे लिए यह घटना बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है. इस घटना से पूरा विभाग इतने तनाव में हैं और इतने व्यथित हैं कि हम लोग पीड़ित परिवार से संवेदना तक नहीं जता पाए हैं. मैं चाहती हूं कि इस मामले की निष्पक्ष जांच हो और सत्य सामने आए. यह हमारे लिए चिंता का विषय है क्योंकि हमको तो लौटकर उसी विभाग में ही जाना है.''

प्रोफेसर दिव्यारानी सिंह से जब यह पूछा गया कि क्या उन्होंने देखा था या जैसा कि उनका परिवार आरोप लगा रहा, वैसा कुछ उनको नजर आया था. इस सवाल पर उनका कहना था कि नहीं, मैंने शव को ध्यान से नहीं देखा था क्योंकि शव मिलने की खबर मिलते ही मैं फोन करने में व्यस्त हो गई थी. वह बताती हैं कि घटना के समय विभाग में सभी टिचिंग और नॉन टिचिंग स्टाफ मौजूद था.

प्रियंका को व्यक्तिगत रूप से जानने के सवाल पर प्रोफेसर दिव्यारानी सिंह नकारात्मक जवाब देती हैं. वह कहती हैं कि वह उसे एक स्टूडेंट के तौर पर ही जानती थीं. वह यह भी नहीं बता पाईं कि वह पढ़ने में कैसी थी. उनका कहना था कि केवल पहले साल ही ऑफलाइन क्लास हुई थी और दूसरे साल सभी छात्रों को कोरोना महामारी की वजह से प्रमोट कर दिया गया था. और इस साल उसने केवल एक ही पेपर की अभी परीक्षा दी थी. उन्होंने कहा कि ऑनलाइन पढ़ाई के लिए जो वाट्सअप ग्रुप बना था, प्रियंका उसमें जुड़ी हुई थी.

रेसपी कंपटीशन में प्रियंका के फर्स्ट आने के प्रियंका के परिजनों के दावे पर प्रोफेसर सिंह कहती हैं कि वह प्रतियोगिता सबके लिए थी. उसमें छात्रों के अलावा आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और अन्य ने भी भाग लिया था. उन्होंने यह भी कहा कि डॉक्यूमेंट देखने के बाद ही वह यह बता पाएंगी कि प्रियंका फर्स्ट आई थी या नहीं.

प्रियंका के परिजनों ने बताया कि उसका प्रवेश पत्र, पेन बॉक्स, पेपर और घड़ी लापता हैं. प्रियंका के पिता इस मामले में पुलिस की भूमिका भी संदिग्ध देख रहे हैं. वह कहते हैं, ''वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) ने उनसे कुछ और कहा और मीडिया में कुछ और बयान दिया. लगता है कि पुलिस किसी दबाव में काम कर रही है. वह मामले को रफा-दफा करने की कोशिश कर रही है. मुझे अब पुलिस पर विश्वास नहीं हो रहा है. मुझे लगता है कि मामले को दबा दिया जाएगा.''

प्रोफेसर दिव्यारानी सिंह से जब यह पूछा कि क्या उनके कार्यकाल में किसी दलित छात्र ने किसी तरह के भेदभाव या उत्पीड़न की शिकायत उनसे की थी, तो उन्होंने न में जवाब देते हुए कहा कि उनके लिए सभी छात्र एक समान होते हैं.

वहीं प्रियंका के पिता विनोद कुमार से भी यही सवाल पूछा कि क्या उसने कभी किसी तरह के भेदभाव, उत्पीड़न या छेड़छाड़ की शिकायत की थी, इस सवाल का उन्होंने न में जवाब दिया.

इस संबंध में बात करने के लिए विश्वविद्यालय के चीफ प्रॉक्टर प्रोफेसर सतीशचंद पांडेय से उनके मोबाइल नंबर पर संपर्क किया गया लेकिन उन्होंने इस संबंध में बात करने से इनकार कर दिया. हालांकि विश्वविद्यालय प्रशासन ने एक लिखित बयान में कहा है, ''छात्रा प्रियंका कुमारी के मामले की न्यायिक जांच सेवानिवृत्त न्यायधीश की अगुवाई में चार सदस्यीय कमेटी से कराई जाएगी. घटना की जानकारी मिलने के बाद विश्वविद्यालय के अधिकारियों के साथ कुलपति जी गृह विज्ञान विभाग पहुंचे. उन्होंने चीफ प्रॉक्टर को पुलिस और असिस्टेंट रजिस्ट्रार को छात्रा के परिवार को हरसंभव सहयोग देने के लिए दिशा-निर्देश दिया. पुलिस प्रशासन को भी जांच में सहयोग किया जा रहा है. विद्यार्थियों के तनाव को दूर करने के लिए सप्ताह में एक बार अलग अलग दिन विद्यार्थियों की काउंसिलिंग कराने का दिशा-निर्देश विभागाध्यक्षों और संकयाध्यक्षों को दिए गए हैं.''

अनुसूचित जाति का मामला होने की वजह से इस मामले की जांच चौरीचौरा के सर्किल अधिकारी (सीओ) जगत कन्नौजिया कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि अभी केवल साक्ष्य का संकलन किया जा रहा है. उसी के आधार पर आगे जांच की जाएगी. मुख्यमंत्री का दौरा होने का कारण बताकर उन्होंने ज्यादा बात करने से इनकार कर दिया. इस बीच पोस्टमॉर्टम की प्रक्रिया और रिपोर्ट का विश्वेषण करने वाली पांच सदस्यीय टीम ने अपनी रिपोर्ट इस मामले के जांच अधिकारी को सौंप दी है. मीडिया में गोरखपुर के एसएसपी दिनेश कुमार प्रभु का बयान छपा है. इसमें उन्होंने कहा है, ''कमेटी ने विवेचक को अपनी रिपोर्ट सौंपी है. इसमें पुरानी पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट को सही बताया गया है. फॉरेंसिक रिपोर्ट भी जल्द ही आ जाएगी. उसके बाद से मौत की वजह पूरी तरह से साफ हो जाएगी.''

वहीं एक और बयान में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक ने पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के हवाले से प्रियंका की मौत की वजह अस्फीसिया एज ए रिजल्ट ऑफ एंटेमॉर्टम हैंगिंग या मृत्युपूर्व दम घुटना बताया है.

प्रियंका का शव मिलने की खबर आते ही विश्वविद्यालय का माहौल गर्म हो गया. छात्र संगठन मामले की निष्पक्ष जांच और न्याय की मांग को लेकर प्रदर्शन करने लगे तो शिक्षकों और कर्मचारियों के संगठन ने शोक जताया. लेकिन यह विरोध प्रदर्शन भी रस्मी होकर ही रह गया. विश्वविद्यालय में छात्र का रहस्यम परिस्थितयों में शव मिलने पर उस तरह का आंदोलन नहीं खड़ा हो पाया, जैसा हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय में रोहित वेमुला की आत्महत्या पर हुआ था.

स्थानीय मीडिया में आ रही खबरों को देखने से लगता है कि इस मामले को आत्महत्या का मामला बनाया जा रहा है. लेकिन आत्महत्या का कोई स्पष्ट कारण नजर नहीं आ रहा है.

प्रियंका के पिता विनोद कुमार की शिकायत पर गोरखपुर की कैंट थाना पुलिस ने विश्वविद्यालय के गृह विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष और उनके सहयोगियों पर हत्या का मामला दर्ज किया है लेकिन इसमें एससी-एसटी एक्ट की धाराएं नहीं लगाई गई हैं. सौजन्य : राजेश कुमार आर्य

देश के बाकी हिस्सों की तरह गोरखपुर में भी दलितों का हर स्तर पर भेदभाव का सामना करना पड़ता है. विश्वविद्यालय भी इससे अछूता नहीं हैं. गोरखपुर विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति ब्राह्मण बनाम राजपूत की रही है. इस विश्वविद्यालय के छात्र संघ के इतिहास में अबतक एक गैर सवर्ण ही छात्र संघ के अध्यक्ष का चुनाव जीता है. साल 2016-17 में अमन यादव छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गए थे. उस समय विश्वविद्यालय में 'जय भीम, जय समाजवाद' का नारा जोरों से लगा था.

मनोविज्ञान से डॉक्टरेट करने वाली अन्नू प्रसाद गोरखपुर विश्वविद्यालय की पूर्व छात्र नेता हैं. इस समय वह समाजवादी पार्टी के छात्र संगठन समाजवादी छात्र सभा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं. अन्नू प्रसाद ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत 2004 में स्थापित हुए संगठन 'आंबेडकरवादी छात्र सभा' से की थी. इस संगठन ने विश्वविद्यालय के दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक वर्ग के छात्रों को संगठित और लामबंद करने का काम किया. 

अन्नू प्रसाद बताती हैं कि 2018 के छात्र संघ चुनाव में उनकी जीत तय लग रही थी. लेकिन चुनाव हारता देख प्रदेश में सत्ताधारी दल ने मतदान के दो दिन पहले ही चुनाव रद्द करवा दिया. अगर वह जीत जातीं तो वह गोरखपुर विश्वविद्यालय की पहली दलित छात्र संघ अध्यक्ष होतीं. प्रियंका कुमारी की मौत के सवाल पर वह कहती हैं कि पुलिस ने बिना जांच-पड़ताल के ही इस मामले को आत्महत्या कैसे बता दिया.

वह कहती हैं कि विश्वविद्यालय का नाम बदनाम न हो इसलिए दलित छात्रों से जुड़े मामलों को दबा दिया जाता है या उन्हें रफा दफा कर दिया जाता है. इसके लिए वह विभागाध्यक्ष की प्रताड़ना से तंग आकर आत्महत्या की कोशिश करने वाले दर्शन विभाग के छात्र दीपक कुमार का उदाहरण देती हैं.

अन्नू प्रसाद कहती हैं कि इस विश्वविद्यालय में दलित वर्ग के छात्रों को मानसिक तौर पर प्रताड़ित किया जाता है. लेकिन दलित छात्रों में जागरूकता की कमी होने की वजह से उनसे जुड़े मामले बड़ा मुद्दा नहीं बन पाते हैं. उन पर आंदोलन नहीं खड़ा हो पाता है. वह कहती हैं कि देखिएगा, एक हफ्ते में प्रियंका कुमारी का मामला भी ठंडा पड़ जाएगा.

वह कहती हैं कि जिस तरह जेएनयू और जामिया मिल्लिया के प्रोफेसर सही मुद्दों पर अपने छात्रों के साथ खड़े होते हैं, वैसा यहां नहीं होता है. वह कहती हैं कि जब हम किसी दलित के मामले पर कोई आंदोलन खड़ा करते हैं तो, दलित प्रोफेसर ही काली पट्टी बांध कर हमारा विरोध करने चले आते हैं या उन्हें हमारे खिलाफ खड़ा कर दिया जाता है. वह कहती हैं कि बताइए ऐसे में कोई लड़ाई कैसी लड़ी जाएगी.

अन्नू प्रसाद ने जिस दीपक कुमार का उदाहरण दिया था, उनका मामला जानने के लिए मैंने उनसे संपर्क किया. दीपक बताते हैं कि उन्होंने बीए और एमए की पढ़ाई गोरखपुर विश्वविद्यालय से की है. साल 2015 में एमए की परीक्षा पास करने वाले दीपक ने 2017 में यूजीसी नेट की परीक्षा पास की थी. इसके बाद उन्होंने पीएचडी करने के लिए विश्वविद्यालय के दर्शनशास्त्र विभाग में एडमिशन लिया. वह बताते हैं कि पहले उन्होंने विभागाध्यक्ष द्वारिकानाथ श्रीवास्तव के निर्देशन में पीएचडी करने की सोची लेकिन उनके कुछ वरिष्ठ साथियों ने बताया कि प्रोफेसर श्रीवास्तव पीएचडी को समय पर न कराने और फंसाने के लिए जाने जाते हैं. इसके बाद दीपक ने उनके साथ पीएचडी करने का इरादा बदल दिया. उन्होंने प्रोफेसर डीएन यादव के निर्देशन में पीएचडी करने का फैसला किया. उन्होंने यह बात प्रोफेसर श्रीवास्तव को उस दिन बताई जिस दिन गाइड के चयन के लिए इंटरव्यू होना था. दीपक बताते हैं कि इसके बाद से प्रोफेसर श्रीवास्तव उनसे खुन्नस रखने लगे.

दीपक बताते हैं कि प्रोफेसर श्रीवास्तव सार्वजनिक तौर पर उन्हें अपमानित करने लगे. उन पर जातिगत टिप्पणियां करने लगे. वह कहते थे, ''आरक्षण की वजह से आए ये नीच-चमार कभी सुधरेंगे नहीं.'' उन्होंने बताया कि विभागाध्यक्ष के साथ-साथ उस समय आर्ट फैकल्टी के डीन प्रोफेसर चंद्र प्रकाश श्रीवास्तव भी उनका अपमान करते थे. कई बार उन्होंने डीन ऑफिस बुलाकर मुझे अपमानित किया. डीन भी दर्शनशास्त्र के ही प्राध्यापक हैं.

वह बताते हैं कि इसकी लिखित शिकायत उन्होंने प्राक्टर, रजिस्ट्रार और कुलपति से की थी लेकिन किसी ने भी मेरी शिकायत पर ध्यान नहीं दिया. इस बीच 18 सितंबर 2018 को चार नकाबपोश लोगों ने उन पर हमला कर दिया. हमलावर विभागाध्यक्ष से की गई शिकायतों को वापस लेने की बात कह रहे थे.

दीपक के पिता राजमिस्त्री का काम करते हैं. यही काम करते हुए ही उन्होंने अपने तीन बेटों और एक बेटी को उच्च शिक्षा दिलवाई है. गरीब परिवार से आने वाले दीपक ने कहीं से कोई कार्रवाई न होता देख 18 सितंबर 2018 को जहर खाकर आत्महत्या की कोशिश की लेकिन डॉक्टरों ने उन्हें बचा लिया था.

वह बताते हैं कि उनके दो वरिष्ठों ने एफिडेविट देकर कहा था कि प्रोफेसर श्रीवास्तव जातिगत तौर पर दीपक को अपमानित करते हैं लेकिन पुलिस ने एफिडेविट को दरकिनार कर प्रोफेसर द्वारिकानाथ श्रीवास्तव को क्लीन चिट दे दी. इसके एक महीने बाद ही उन्हें फिर से विभाध्यक्ष बना दिया गया. वह बताते हैं कि उनका मुकदमा अब जाकर दीपक बनाम द्वारिकानाथ के रूप में शुरू हुआ है.

दीपक अपने मामले में विश्वविद्यालय की ओर से बनाई गई जांच कमेटी की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाते हैं. वह कहते हैं कि जांच कमेटी में प्रोफेसर रजवंत राव और प्रोफेसर चंद्रशेखर शामिल थे. लेकिन दोनों ही प्रोफेसर मेरे खिलाफ दिए गए शिक्षकों के धरने में शामिल हुए थे. वह सवाल उठाते हैं कि जब जांचकर्ता ही मेरे खिलाफ धरना दे रहे हैं, तो उनसे निष्पक्ष जांच की उम्मीद कैसे की जा सकती है.

प्रोफेसर रामनरेश चौधरी गोरखपुर विश्वविद्यालय के लॉ विभाग का विभागाध्यक्ष और डीन रह चुके हैं. वह दलितों के सवाल पर काफी मुखर भी रहते हैं. प्रियंका कुमारी का शव मिलने की घटना को विश्वविद्यालय को शर्मसार करने वाली बताते हैं. वह कहते हैं कि विश्वविद्यालय में इस तरह की घटना पहले कभी नहीं हुई थी. वह कहते हैं कि मीडिया में जिस तरह की बातें आ रही हैं, उससे यह बात तो बिल्कुल स्पष्ट है कि उस लड़की ने आत्महत्या नहीं की है. वह कहते हैं कि प्रियंका के कपड़े जैसे थे, उससे लगता है कि उसने संघर्ष किया था. इसके साथ ही वह पोस्टमॉर्टम में हुई देरी पर भी सवाल उठाते हैं, उनका कहना था कि यह सबूतों को दबाने की कोशिश हो सकती है. वह कहते हैं कि इसी तरह की कोशिश हाथरस जिला प्रशासन ने वहां की एक बलात्कार पीड़ित दलित युवती के साथ किया था. जिला प्रशासन ने हाथरस की युवती को बदनाम करने की कोशिश की थी. डॉक्टर चौधरी पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट का विश्लेषण करने के लिए पांच सदस्यीय कमेटी बनाने को नाटक बताते हैं. वह इसे मामले को दबाने की कोशिश बताते हैं. वह कहते हैं कि दोबारा पोस्टमॉर्टम की मांग बिल्कुल जायज थी लेकिन घालमेल करने के लिए प्रशासन ने यह बात नहीं मानी. वह बताते हैं कि कब्र से निकालकर भी शवों का पोस्टमॉर्टम किया गया है.

प्रोफेसर चौधरी इस मामले की एक निष्पक्ष जज से जांच कराने की मांग करते हैं. इसके साथ ही वह जस्टिस गोगोई का उदाहरण देते हुए आशंका भी जताते हैं कि सरकार के दबाव में रहते हुए क्या कोई जज इस मामले की निष्पक्ष जांच कर पाएंगा.

जब मैं प्रियंका के घर उनके परिजनों से बात करने गया था. इस दौरान ही एडीएम, एसपी (सिटी) और मामले की जांच कर रहे चौरीचौरा के सीओ भी वहां पहुंचे थे. अधिकारी प्रियंका के परिजनों की मुलाकात जिलाधिकारी (डीएम) से कराने की बात कर रहे थे. उनका कहना कि पीड़ित परिवार को न्याय दिलाया जाएगा. वह प्रशासन पर भरोसा रखें. इसके साथ ही अधिकारियों ने प्रियंका की बहन अनीता को अपने सभी कागजात के साथ आने की सलाह दी, जिससे उसे नौकरी देने की प्रक्रिया शुरू की जा सके.

इस मामले की पुलिस जांच का नतीजा भविष्य में क्या निकलेगा, यह तो समय ही बताएगा. लेकिन प्रियंका का परिवार जो सवाल उठा रहा है, उसका जवाब देने में जिला प्रशासन अब तक असफल रहा है.