18 जुलाई 2020 को जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले के पूछल ए-2 पंचायत की दलित सरपंच कमलेश भगत ने पद से इस्तीफा दे दिया. इस्तीफा देने से पहले भगत ने जिलाधिकारियों, जम्मू-कश्मीर के लेफ्टिनेंट गवर्नर और भारत के राष्ट्रपति को कई पत्र लिख कर स्थानीय प्रशासन में बढ़ते भ्रष्टाचार और जातिवादी भेदभाव की शिकायत की थी. कमलेश भगत इस साल अप्रैल से ही दलित और मुसलमान श्रमिकों को महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून (मनरेगा) के तहत किए गए उनके काम की मजदूरी दिलवाने के लिए संघर्ष कर रही हैं.
मनरेगा के तहत, एक वित्तीय वर्ष में ग्रामीण श्रमिकों को 100 दिन का गारंटी रोजगार मिलता है. भगत ने बताया कि उनके अधिकार क्षेत्र में आने वाले 4 वार्डों में रहने वाले दलित और मुसलमान श्रमिकों के साथ जाति और धर्म के आधार पर भेदभाव किया जा रहा था. उन्होंने बताया कि मजदूरी देना जूनियर इंजीनियर की जिम्मेदारी है लेकिन वह पूरी मजदूरी देने के बदले मजदूरों से कमीशन मांग रहा था और ऐसा न करने वाले मजदूरों को झूठ ही काम से गैरहाजिर दिखा रहा था. भगत ने मुझे बताया कि जब उन्होंने वरिष्ठ अधिकारियों के भ्रष्टाचार की शिकायत की तो किश्तवाड़ खंड विकास परिषद (बीडीसी) के अध्यक्ष सुरेश शर्मा ने उनकी तौहीन की और उन्हें जातिवादी गालियां दीं.
भगत के अनुसार, जम्मू-कश्मीर में वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिए नरेगा के तहत दी जाने वाली मजदूरी 189 रुपए प्रतिदिन है. दलित और मुस्लिम रोजगार कार्ड धारकों को गोशाला निर्माण का काम दिया गया था. 100 दिन मजदूरी करने के अतिरिक्त इन श्रमिकों ने निर्माण के लिए औजारों और निर्माण सामग्री का पैसा भी खुद लगाया. भगत ने कहा, “100 दिन की मजदूरी 18900 रुपए के अलावा इन मजदूरों ने 40000 से 50000 रुपए अपनी जेब से लगाया है. मुझे यह देख कर बड़ा झटका लगा कि मजदूरों को प्रति मजदूर 4000 रुपए का भुगतान किया गया.” भगत ने जूनियर इंजीनियर विजय परिहार, खंड विकास अधिकारी शीतल शर्मा और पंचायत के अन्य सदस्यों के बारे में बताया कि संबंधित जूनियर इंजीनियर ने झूठ-मूठ ही इन मजदूरों को काम के अधिकांश दिन गैरहाजिर कर दिया था. उन्होंने कहा, “मुझे किश्तवाड़ के बीडीओ और कुछ पंचों ने कहा कि मैं कागजों पर झूठे दस्तखत कर दूं. मैंने 2 जून को किश्तवाड़ जिले के विकास आयुक्त से इस संबंध में शिकायत कर दी.” भगत ने बताया कि 15 अप्रैल को उन्होंने भ्रष्ट अधिकारियों, जिनमें जूनियर इंजीनियर भी शामिल है, की शिकायत वाला ज्ञापन पत्र विभिन्न वरिष्ठ अधिकारियों को भेजा था लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. अप्रैल 15 वाले ज्ञापन पत्र में भगत ने लिखा है कि जूनियर इंजीनियर ने रोजगार कार्ड धारकों को 20 या 30 दिन के काम का भुगतान किया है और जिन लोगों ने उसे कमीशन दिया उनका पूरे 100 दिनों का भुगतान हुआ है.
कमलेश ने बताया की पूछल ए-2 के तहत आने वाले 7 वार्डों में से दो राजपूत बहुल हैं. उन्होंने दावा किया कि उन दो वार्डों में रहने वाले हर रोजगार कार्ड धारक के खाते में 14000 जमा कराए गए हैं जबकि शेष वार्डों में दलित और मुसलमान रहते हैं और वहां के रोजगार कार्ड धारकों के खातों में 100 दिनों के काम के एवज में मात्र 4000 रुपए प्रति खाता जमा कराया गया है.
मैंने पूछल ए-2 पंचायत में कई श्रमिकों से बात की जिन्होंने भगत के आरोपों की पुष्टि की. दलित श्रमिक उदय राज, जो वार्ड नंबर तीन में रहते हैं, ने कहा, “जो काम मुझे दिया गया था उसे मैंने 9 रोगजार कार्ड धारकों के साथ पूरा किया और इस काम पर मैंने कम से कम 50000 से 55000 रुपए लगाए. मुझे काम पूरा होने पर 18900 मिलने चाहिए थे लेकिन मेरे खाते में सिर्फ 4000 या ऐसी ही कोई रकम आई है.” उदय राज ने कहा कि बाकी के मजदूरों को भी 4000 से 4300 रुपए के बीच भुगतान किया गया है.
चार नंबर वार्ड में रहने वाले संजय शान ने बताया कि उन्होंने अपनी बीवी बदियाल, मां शीला देवी और चाची पूर्णी देवी के साथ नरेगा योजना के तहत काम किया था. उन्होंने दावा किया कि उन्होंने 100 दिन की मजदूरी के अलावा निर्माण कार्य में अपने 300000 रुपए लगाए हैं लेकिन उन्हें बहुत कम भुगतान किया गया है. उन्होंने कहा कि वे लोग कुल मिलाकर छह रोजगार कार्ड धारक थे लेकिन उन्हें सिर्फ 35000 रुपए मिला है. शान मजदूरी में जातिवादी भेदभाव को लेकर बहुत गुस्से में थे.
वार्ड नंबर एक में रहने वाले शाहनवाज अहमद ने एक साथी मजदूर के साथ गायों के लिए गोशाला बनाने का काम किया था. इस काम में उन्होंने अपनी बचत का बड़ा हिस्सा लगाया था. दोनों मजदूर यह देखकर दंग रह गए उनके खातों में 4000 रुपए आए हैं. अहमद ने बताया कि उन्हें 100 दिन के श्रम के लिए 18000 रुपए और गोशाला निर्माण में लगाए गए पैसे मिलने चाहिए.
इन सभी के लिए भगत लड़ रही हैं. भगत ने मुझे बताया कि अप्रैल से उन्होंने सरकारी फाइलों में दस्तखत करना बंद कर दिया है और अधिकारियों से कह दिया है कि वह कागजों में दस्तखत करना तब शुरू करेंगी जब दलित और मुसलमान श्रमिकों को पूरा पैसा मिल जाएगा.
10 मई को भगत ने परिहार के भ्रष्ट आचरण के खिलाफ किश्तवाड़ पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई. 15 मई को बीडीसी सुरेश शर्मा ने उन्हें अपने ऑफिस में आने को कहा. भगत ने बताया कि ऑफिस में शीतल और परिहार भी मौजूद थे. “वहां मुझसे कहा गया कि मैं अपने विभाग में भ्रष्टाचार की अपनी सभी शिकायतों को वापस ले लूं और जिन अधिकारियों का नाम मैंने अपनी शिकायतों में लिया है उनसे समझौता कर लूं और उन फाइलों पर दस्तखत करने लगूं जिन पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर रही थी. मैंने उनसे कहा कि पहले श्रमिकों का बकाया उन्हें दे दिया जाए उसके बाद मैं उनके सभी आदेश मान लूंगी.” भगत ने बताया कि इसके बाद शर्मा ने गुस्से में आकर उन्हें धक्का दिया. भगत ने कहा कि वहां शिकायत वापस लेने के लिए उन पर दबाव डाला गया और जब उन्होंने ऐसा करने से इनकार किया तो सुरेश शर्मा उन्हें जातिवादी गालियां दी.
भगत ने बताया, “उसने मुझसे बोला, ‘चांडाल सरपंच दफा हो जा यहां से. निकल जा यहां से चांडाल कहीं की.’” भगत ने बताया कि पूरे ऑफिस ने ये गालियां सुनी लेकिन किसी ने एक शब्द नहीं कहा. “मैं वहां तो कुछ नहीं बोली लेकिन ऑफिस से बाहर निकल कर बहुत रोई. इन महीनों में मुझ पर इतना दबाव डाला गया, इतनी बेज्जती की गई है. इसके बाद ये लोग मेरे खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लेकर आए लेकिन उससे पहले ही मैंने पद से इस्तीफा दे दिया.” कमलेश ने मुझे बताया कि नवंबर 2019 में वह इस पद पर निर्वाचित हुई थीं और तब से ही उन्हें जातिवादी भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है और उनके दलित होने की वजह से कोई उन्हें गंभीरता से नहीं लेता. “मैंने एक निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीता था क्योंकि मैं समाज सेवा कर रही थी. लेकिन जो जातिवादी भेदभाव मुझे ऊंची जाति के नेताओं और अधिकारियों से सहना पड़ा है उसकी मैंने कभी कल्पना नहीं की थी.”
15 मई को भगत ने सुरेश शर्मा के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज की और उस पर अभद्र भाषा में बात और गालीगलौज करने का आरोप लगाया. शिकायत में लिखा है कि ब्लॉक विकास परिषद के अध्यक्ष ने उन्हें जातिवादी गालियां दी. शिकायत में भगत ने पुलिस को एफआईआर दर्ज करने के लिए कहा है. भगत ने बताया कि 11 जून को यानी शिकायत दर्ज करने के 28 दिन बाद पुलिस ने सुरेश के खिलाफ अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) कानून के तहत एफआईआर दर्ज कर ली. लेकिन भगत और उनके पति अजीत भगत का कहना है कि यह एफआईआर एक दिखावा है क्योंकि सुरेश के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई है. भगत ने बताया कि उन्हें सुरेश, शीतल और परिहार से धमकियां मिल रही हैं. “उन्होंने मुझसे कहा कि हम तुम्हें सरपंच के पद से हटा देंगे.” भगत ने बताया कि उन्हें अन्य स्थानीय नेताओं और अधिकारियों से भी धमकियां मिल रही हैं. “वे लोग मेरे घर को आग लगा देने और मेरे बच्चों को और मुझे मार देने की धमकी दे रहे हैं.” किश्तवाड़ के वरिष्ठ पुलिस सुपरिटेंडेंट हरमीत सिंह ने मेरे उन फोन कॉलों और संदेशों का जवाब नहीं दिया जिनमें मैं उनसे भगत के आरोपों पर उनकी राय जानना चाहती थी.
18 जुलाई को भगत ने ज्ञापन पत्र और प्रेस रिलीज जारी कर लोगों को अपने इस्तीफे की जानकारी दी. प्रेस रिलीज में उन्होंने लिखा है, “ऊंची जाति के हिंदुओं द्वारा अनुसूचित जाति के खिलाफ किए जाने वाले जातिवादी भेदभाव पर आधारित अत्याचार और घृणा की आग में जलने के बाद, और बचाव का कोई रास्ता दिखाई न पड़ने और मेरे और मेरे परिजनों के जीवन के ऊपर लगातार मंडरा रहे खतरे और केंद्र प्रशासित राज्य जम्मू-कश्मीर की व्यवस्था में, खासतौर पर किश्तवाड़ में भ्रष्टाचार और घृणा के हावी हो जाने के चलते मैं सरपंच के अपने पद से आज इस्तीफा देने जा रही हूं.” उन्होंने मुझे बताया कि उन्होंने अपना इस्तीफा राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग और ऊंचे ओहदों पर बैठे अन्य लोगों को भेज दिया है. उन्होंने बताया कि उन्होंने इस्तीफा उन लोगों के दबाव और उत्पीड़न के कारण दिया है जो श्रमिकों का बकाया भुगतान करने की उनकी मांग को दबाना चाहते हैं.
9 जून को भगत की बेटी अलका भगत ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिख कर अपनी मां पर हो रहे उत्पीड़न की जानकारी दी. पत्र में अलका भगत ने लिखा है, “हम लोग अनुसूचित जाति में आते हैं जो दिमागी रूप से बीमार लोगों के लिए पाप और अपराध है.” अलका ने पत्र में लिखा है कि एक ओर सरकार स्त्री स्वाभिमान और बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ जैसी महिला सशक्तिकरण योजनाएं ला रही है वहीं दूसरी ओर महिलाओं के साथ लैंगिक और जातिगत भेदभाव और उत्पीड़न किया जाता है. ग्रामीण विकास विभाग के बारे में अलका ने पत्र में लिखा है कि पिछले कई महीनों से बीडीसी के अध्यक्ष सुरेश शर्मा, कुछ पंच और ग्रामीण विकास विभाग के अधिकारी भ्रष्ट गतिविधियों में संलिप्त हैं. अलका ने पुलिस में दर्ज अपनी मां की शिकायत का उल्लेख करते हुए लिखा है कि पिछले कुछ हफ्तों से ब्लॉक विकास परिषद के अध्यक्ष और अन्य अधिकारी मेरी मां का उत्पीड़न कर रहे हैं जिसकी वजह से वह भारी तनाव में रहती हैं और उन्हें दिल की बीमारी हो गई है. पत्र में अलका ने लिखा है कि इस वजह से उनका पूरा परिवार तनाव में है और जिस तरह से ऊंची जाति के लोग उन्हें नीचा दिखा रहे हैं वह उनके लिए असहनीय है.
14 जून को भगत ने जम्मू-कश्मीर के लेफ्टिनेंट गवर्नर के सलाहकार बशीर अहमद खान को पत्र लिखा. उस पत्र में उन्होंने बताया कि उन पर भ्रष्ट गतिविधियों में शामिल होने के लिए दबाव डाला जा रहा है. उन्होंने यह भी लिखा है कि इस बार ग्रामीण विकास विभाग के अधिकारी ने पंचायत बिलों का ऐसा प्रारूप तैयार किया है जिसमें सरपंच के हस्ताक्षर की जगह नहीं है. अधिकारी लोग ग्रामीण विकास विभाग के उस पैसे को लूट रहे हैं जो स्थानीय लोगों के विकास और समृद्धि में लगना चाहिए.
मैंने सुरेश, शीतल और परिहार से इस बारे में पूछा. परिहार ने भ्रष्टाचार के आरोपों से इनकार किया और कहा कि आरोप और शिकायत कोई भी कर सकता है और बताया कि भगत ने कई अधिकारियों के खिलाफ शिकायत की है. उन्होंने बताया कि उन्होंने मनरेगा के बिल का भुगतान जमीन पर हुए काम के आंकलन के बाद किया है. उन्होंने बताया कि पंचायत का बजट 1.5 करोड़ रुपए था और उन्होंने मनरेगा के तहत कराए गए काम के लिए 24 लाख रुपए का भुगतान किया है. शीतल ने माना कि उन्हें परिहार के खिलाफ शिकायत मिली है और उन्होंने वरिष्ठ अधिकारियों को रिपोर्ट भेज दी है लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया कि अपनी रिपोर्ट में उन्होंने क्या कहा है. सुरेश शर्मा ने मेरे फोन कॉलों और संदेशों का जवाब नहीं दिया.
मैंने जम्मू संभाग की ग्रामीण विकास विभाग की आयुक्त सचिव शीतल नंदा और किश्तवाड़ जिला मजिस्ट्रेट राजेंद्र सिंह तारा से भी बात की. नंदा ने बताया कि उन्हें इस केस की जानकारी नहीं है और भगत की शिकायत या उनका इस्तीफा उन्हें प्राप्त नहीं हुआ है. लेकिन भगत ने नंदा के इस दावे को खारिज करते हुए कहा कि उन्होंने नंदा के विभाग को अपना इस्तीफा भेजा दिया था और नंदा को व्हाट्सएप पर मैसेज भी कर दिया था. तारा ने कहा कि भगत की शिकायत पर सुरेश शर्मा के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो गई है और भ्रष्टाचार से संबंधित अन्य शिकायतों का अध्ययन किया जा रहा है.
इस्तीफा देने के एक दिन बाद, 19 जुलाई को भगत ने भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिखा जिसमें उन्होंने स्थानीय नेताओं और अधिकारियों द्वारा उन पर किए गए अत्याचारों की जानकारी विस्तार से दी और किश्तवाड़ में जारी भ्रष्टाचार, उनके इस्तीफे से संबंधित घटनाक्रमों की उच्च स्तरीय जांच कराए जाने की मांग की है. उन्होंने अपने पत्र में लिखा है, “यहां लोकतंत्र की हत्या हो चुकी है.”