हाल ही में गठित हुई देश की भ्रष्टाचाररोधी संस्था “लोकपाल” की संरचना में सामाजिक ताने-बाने की अनदेखी पर एक चुप्पी सी छाई हुई है. लोकपाल का गठन प्रधानमंत्री, मंत्रियों, सासंदों और अन्य के खिलाफ आने वाली शिकायतों की जांच करने के लिए हुआ है. लोकसभा के सदस्यों में से 77.7 प्रतिशत सवर्ण और दूसरी प्रभावशाली जातियों से आते हैं. इनमें 55.5 प्रतिशत केवल सवर्ण जाति के हैं. इसमें अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और अनूसूचित जनजाति (एसटी) का एक भी सदस्य नहीं है. लोकपाल में केवल एक दलित सदस्य है और धार्मिक अल्पसंख्यकों में से जैन सदस्य को इसमें शामिल किया गया है. विडंबना यह है कि जनवरी 2014 में अल्पसंख्यक का दर्जा मिलने तक जैन समुदाय को हिंदू धर्म का हिस्सा माना जाता था.
लोकपाल की यह विषम सरंचना लोकपाल एवं लोकायुक्त कानून, 2013 का उल्लंघन करती है, जिसमें कहा गया है कि इसके सदस्यों के लिए आरक्षण होगा. कानून में इसे “9 सदस्यों वाली संस्था” कहा गया है, जिसमें "एक अध्यक्ष और बाकी आठ सदस्यों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक और महिला सदस्य होने चाहिए."
कानून में कहा गया है कि लोकपाल के सदस्यों का चयन प्रधानमंत्री (जो मानद अध्यक्ष) होंगे, लोकसभा अध्यक्ष, नेता विपक्ष, भारत के मुख्य न्यायाधीश या उनके द्वारा नियुक्त सदस्य, चेयरपर्सन द्वारा नामित कानून का जानकार व्यक्ति और 3 अन्य सदस्यों वाली समिति द्वारा किया जाएगा. हालांकि, लोकपाल को चुनने वाली समिति में विपक्ष का कोई प्रतिनिधि नहीं था क्योंकि कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने इस प्रक्रिया का बहिष्कार किया था. खड़गे, लोकपाल कानून में संशोधन की मांग कर रहे थे, जिसके तहत सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता को समिति का सदस्य बनाया जाए. समिति को लोकपाल के उम्मीदवारों को चुनने के लिए एक सात सदस्यीय समिति बनानी होती है. लोकपाल कानून में खोज समिति (सर्च कमेटी) में भी 50 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया है.
कानून में इस बात पर जोर दिया गया है कि चयन समिति लोकपाल कानून में खामियों के आधार पर उच्च जातियों का प्रभाव बढ़ाने के लिए सबसे निचले समुदायों को प्रतिनिधित्व देने से रोक नहीं सकती. अगर कानून की शाब्दिक व्याख्या की जाए तो इसमें आरक्षण का प्रावधान हर समुदाय के लिए आरक्षण की बात नहीं करता, बल्कि इसमें कहा गया है कि लोकपाल के 50 प्रतिशत सदस्य विशेष निचले समुदायों से आने चाहिए. नतीजतन, चयन समिति कानून द्वारा आरक्षित श्रेणियों से चार उम्मीदवारों को चुनने के लिए बाधित थी. इसके सदस्यों का चुनाव यह दिखाता है कि यह पारदर्शिता और प्रतिनिधित्व देने का एक दिखावा मात्र था.
लोकपाल के सदस्यों के जातीय पहचान पता करने के लिए मैंने पत्रकारों, वकीलों और नेताओं समेत अलग-अलग स्रोतों से उनकी सामाजिक पृष्ठभूमि की जांच की. मैंने कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग के अतिरिक्त सचिव से भी बात करने की कोशिश की, जिन्होंने लोकपाल सदस्यों की अधिसूचना जारी की थी, लेकिन मेरे फोन कॉल्स और ईमेल का कोई जवाब नहीं आया.
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