उत्तर प्रदेश में कुआनो नदी के एक तरफ संत कबीर नगर जिला पड़ता और दूसरी ओर मुख्यमंत्री आदित्यनाथ का गृह जिला गोरखपुर. 25 अप्रैल को सुरेंद्र साहनी उन कुछ मल्लाहों में से थे जो अपनी नावों में सब्जियों की फेरी लगा कर गोरखपुर की तरफ बेचने जा रहे थे. नोवेल कोरोनावायरस के चलते हुए लॉकडाउन से उत्तर प्रदेश में निषाद समुदाय, जो परंपरागत रूप से मछली पकड़ने और नदियों पर केंद्रित अन्य काम से जुड़ा था, रोजी कमाने के लिए संघर्ष कर रहा है.
दोपहर करीब 1 बजे गोरखपुर की तरफ वाले किनारे पर पुलिसवाले आ गए. साहनी ने बताया, ''पुलिस ने हमें किनारे पर बुलाया. जब उन्होंने हमें बुलाया तो किनारे पर खड़ा एक लड़का डर गया और भागने लगा. पुलिस उसे गाली देने लगी. जब मैं अपनी नाव के साथ किनारे पर पहुंचा, तो मैंने उनसे पूछा कि क्या हुआ लेकिन उन्होंने कुछ भी नहीं बताया.” पुलिस वाले आधे घंटे बाद जेसीबी मशीनों के साथ आए "और हमारी 8 नावें ले ली." साहनी ने कहा कि जब पुलिस नावों को ले जा रही थी तो कुछ नावें टूट गईं. उन्होंने बताया कि “वे गोरखपुर में सिकरीगंज पुलिस स्टेशन तक नावें ले गए. मेरा गांव संत कबीर नगर जिले के बसवारी में है.''
मैंने सिकरीगंज थाने के स्टेशन हाउस अधिकारी जटाशंकर से बात की. उन्होंने कहा कि कोरोनावायरस बीमारी का एक मामला सामने आने के बाद संत कबीर नगर जिले की सीमा को सील कर दिया गया था. “ये लोग लोगों को एक किनारे से दूसरे किनारे ले जा रहे थे. हमने उन्हें चेतावनी दी, लेकिन वे नहीं माने.” जटाशंकर ने बताया कि सब्जी बेचने पर कोई प्रतिबंध नहीं था. "वे सब्जियां बेच सकते हैं, लेकिन वे लोगों को नदी पार नहीं ले जा सकते." उन्होंने दावा किया कि पुलिस ने कुछ नावों को वापस कर दिया है और जल्द ही बाकी नावों के मालिकों को भी बुलाकर उन्हें वापस कर दिया जाएगा.
लेकिन साहनी ने बताया कि मल्लाह लॉकडाउन के दौरान पैसे कमाने के लिए सब्जियां बेचने की कोशिश कर रहे थे और वे नदी पार गए बिना ऐसा नहीं कर सकते थे. साहनी ने कहा, "यहां हर मल्लाह नदी के आसपास 50 बीघा जमीन पर खेती करता है और सब्जियां उगाता है, जिसे हम नदी के दोनों तरफ सिकरीगंज बाजार में बेचते हैं. अब नावें टूट गई हैं और इसकी मरम्मत के लिए हमें हजारों रुपया खर्च करना होगा. इस समय पैसा कहां मिलेगा?”
मैंने संत कबीर नगर निर्वाचन क्षेत्र के सांसद भारतीय जनता पार्टी के प्रवीण निषाद से इस बारे में बात करने के लिए फोन किया. उनके पिता संजय निषाद ने 2016 में निषाद पार्टी की स्थापना की थी और बाद में बीजेपी के साथ गठबंधन कर लिया था. प्रवीण निषाद ने मेरे फोन का जवाब नहीं दिया.
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