7 जुलाई की रात को दो लोगों ने मुंबई स्थित बी. आर. आंबेडकर के आवास राजगृह में तोड़फोड़ की. आवास परिसर में लगे सीसीटीवी कैमरों के फुटेज में देखा जा सकता है कि ये लोग घर की खिड़कियों को पत्थर मार कर तोड़ रहे हैं, गमले गिरा रहे हैं और घर के बाहर लगे पौधों को उखाड़ रहे हैं. दो दिन बाद मुंबई पुलिस ने उमेश जाधव नाम के 35 साल के एक संदिग्ध को हिरासत में लिया और बताया कि उसके दूसरे साथी की तलाश चल रही है. मुंबई जोन चार के उप पुलिस आयुक्त सौरभ त्रिपाठी ने समाचार पत्र इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि इस बात की जांच चल रही है कि संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के पिछे जाधव और उसके साथी का इरादा क्या था. किसी दलित के लिए इरादे की जांच का दावा कितना हास्यास्पद है.
दलित दावेदारी के प्रतिकों पर उनके निर्माण के बाद से ही हमले होने शुरू हो जाते हैं. हर महीने हम सुनते हैं कि आंबेडकर की मूर्तियों पर हमला हुआ, मूर्तियों पर कालिख पोती गई, जूतों की माला डाली गई या उन्हें गिरा दिया गया. इसके बावजूद हमारी पत्रकारिता, पुलिस और राजनीति दलित समुदाय और उनके प्रतीकों पर होने वाली दैनिक हिंसा के पीछे के कारणों को नजरअंदाज करते हैं.
कोविड-19 महामारी में जातिवादी हिंसा की घटनाएं बढ़ी हैं. पंजाब में दबंग जातियों की पंचायतें मजहबी सिखों के खिलाफ गैर कानूनी और उत्पीड़क फरमान सुना रही हैं. दलित और आदिवासी अधिकारों पर काम करने वाली संस्था नेशनल दलित मूवमेंट फॉर जस्टिस ने एक प्रेस रिलीज में कोरोनावायरस राष्ट्रीय लॉकडाउन में हुईं 92 जातीय हिंसा की सूची दी है. जिन चंद राज्य में इसके कार्यकर्ता तथ्य संकलन करने में सफल हुए हैं, उनसे पता चलता है कि पिछले चार महीनों में आदिवासी और दलित समुदायों के खिलाफ हिंसा बहुत बढ़ी है. तमिलनाडु में दलित विरोधी हिंसा लगभग पांच गुना बढ़ी है. लॉकडाउन के दौरान तमिलनाडु, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश में बाबासाहब की मूर्तियों को तोड़ा गया. तमिलनाडु में दलित आत्मसम्मान आंदोलन के संस्थापक रामास्वामी पेरियार की मूर्ति तोड़ दी गई.
बाबासाहब की विरासत पर हमला सिर्फ चिन्हों पर होने वाले हमलों तक सीमित नहीं हैं. 14 अप्रैल को बाबासाहब के जन्मदिन में महाराष्ट्र पुलिस ने जाने-माने दलित शिक्षाविद और बाबासाहब की नवासी के पति आनंद तेलतुंबडे को राजगृह से गिरफ्तार किया. तेलतुंबडे और कई अन्य कार्यकर्तओं और मानव अधिकार की वकालत करने वालों को 2018 में भीमा कोरेगांव दलित आंदोलन के संबंध में गिरफ्तार किया गया है. तेलतुंबडे की गिरफ्तारी के विरोध में बाबासाहब के जन्मदिन के मौके पर उनके आवास पर काला झंडा फहराया गया.
राजगृह आंबेडकर के समकालीन नेताओं के स्मारकों से अलग है. इस घर का निर्माण 1933 में बाबासाहब ने अपनी लीगल प्रैक्टिस की शुरुआत में करवाया था. इस घर को दक्षिण एशिया के पहले बौद्ध साम्राज्य का नाम दिया गया है. उस साम्राज्य के अवशेष आज भी बिहार में मिलते हैं. प्रतीकात्मक रूप से बड़ा चयन करते हुए आंबेडकर ने दादर की हिंदू कॉलोनी में अपना घर बनाया था. कालांतर में आंबेडकर का यह आवास हर तरह के विरोध का प्रतीक बन गया. यह हिंदू बहुसंख्यकवाद विरोधी और शिक्षा और आत्मसम्मान वाली दलित पहचान के उत्सव का प्रतीक है जो उस बौद्ध अतीत से सबक लेता है जिसमें लोग ब्राह्मणवादी बंधनों से मुक्त थे.
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