पीएस कृष्णन : सामाजिक न्याय का अथक योद्धा

03 दिसंबर 2019
सोको ट्रस्ट
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1957 में आंध्र प्रदेश कैडर के रूप में भारतीय प्रशासनिक सेवा में प्रवेश करने के तुरंत बाद केरल के 24 वर्षीय सवर्ण हिंदू पीएस कृष्णन ने एक सिविल सेवक के तौर पर कुछ ऐसा किया जो अकल्पनीय था. कृष्णन के साथ बातचीत पर आधारित पुस्तक ए क्रुसेड फॉर सोशल जस्टिस की लेखिका वसंती देवी ने मुझे एक घटना के बारे में बताया. उस साल राज्य के अनंतपुर जिले के थाटीचेरला गांव की यात्रा के दौरान कृष्णन ने दलित बस्ती में आधिकारिक कैंप डाला. देवी ने मुझे बताया, "वह वहीं रहते और बस्तियों के लोगों के साथ ही भोजन करते थे." उन्होंने अपने कैंप में जमाबंदी कराई और सरकारी जमीन बांटी. (जमाबंदी सरकारी भूमि को रिकॉर्ड करने का प्रशासनिक काम है.) इसने गांव के उच्च-जाति के लोगों को पहली बार "अछूतों की बस्ती" में प्रवेश करने के लिए मजबूर कर दिया. देवी ने बताया कि ऐसा करने से बस्ती के लोगों को आत्मसम्मान प्राप्त हुआ. इसके अलावा यह ऐसा भूकंप था जिसने गांव के गांवों को हिला दिया.

सामाजिक न्याय के प्रति कृष्णन की गहरी प्रतिबद्धता उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर काम करने के लिए दिल्ली ले गई. 1989 में, राजीव गांधी सरकार के कार्यकाल में उन्होंने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम को अधिकृत कराया. अगले साल मई 1990 में, वीपी सिंह सरकार के कार्यकाल में समाज-कल्याण मंत्रालय में सचिव के रूप में कृष्णन ने कैबिनेट को एक नोट लिखा, जिसके आधार पर सरकार ने मंडल कमीशन की रिपोर्ट पारित की. इस रिपोर्ट में अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण का प्रस्ताव था. इसके साथ ही इतिहास में पहली बार, जाति पदानुक्रम में और शैक्षिक और आर्थिक पिछड़ेपन के शिकार ओबीसी की स्थिति में सुधार के लिए शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में कानूनी रूप से सुधार लाया गया. तीन साल बाद, पीवी नरसिम्हा राव सरकार के कार्यकाल में कृष्णन ने 1993 के इंप्लाइमेंट आफ मैनुअल स्कैवेंजर्स एंड कंस्ट्रक्शन ऑफ ड्राई लैट्रिन्स (प्रोहिबिशन) एक्ट का मसौदा तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

कृष्णन ने कहा, "मेरे भीतर जाति व्यवस्था के लिए इस कदर नफरत है कि मैं अपनी जाति का उल्लेख नहीं करूंगा."

राजनेताओं को परिवर्तनकारी कानून लाने का श्रेय दिया जाता है पर अक्सर ही कृष्णन जैसे अधिकारियों के योगदान को भुला दिया जाता है. लेकिन 10 नवंबर को उनके निधन के बाद उनके सहयोगियों के साथ हुई मेरी बातचीत में, यह स्पष्ट था कि कृष्णन ने सामाजिक न्याय के योद्धा के रूप में अपनी छाप छोड़ी है. राजनीतिक सिद्धांतकार और लेखक कांचा इलैया शेपर्ड ने मुझे बताया, "मुझे लगता है कि केरल के एक ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए कृष्णन, सरकारी मशीनरी और कल्याणकारी तरीकों से दलित, अन्य पिछड़ा वर्ग के उत्थान के लिए खास तौर पर प्रतिबद्ध थे. वह आंध्र प्रदेश में कलेक्टर होने के दिनों से लेकर अंतिम दिन तक प्रतिबद्ध बने रहे."

अपने नौकरशाही कैरियर के शुरुआती दिनों से ही कृष्णन जातिवादी लोगों से टकराते रहे. देवी की पुस्तक के अनुसार, 1958 में, जब कृष्णन को ओंगोल डिवीजन के उप-कलेक्टर के रूप में नियुक्त किया गया था, जो तब आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले का एक हिस्सा था, उन्होंने पहली बार राज्य के सबसे वरिष्ठ अधिकारियों में से एक, अनंतरामन से मुलाकात की. शुरुआती छोटी-सी बातचीत के बाद अनंतरामन ने उनकी जाति के बारे में पूछताछ की. कृष्णन ने इस सवाल का जवाब देने से इनकार कर दिया. कृष्णन ने कहा, "मेरे भीतर जाति व्यवस्था के लिए इस कदर नफरत है कि मैं अपनी जाति का उल्लेख नहीं करूंगा."

श्रीराग पीएस स्वतंत्र पत्रकार हैं.

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