सवर्णतंत्र

उत्तराखंड : दलित दमन पर परवान चढ़ता सवर्ण राज्य

अक्टूबर 1994 में, दिल्ली पुलिस ने उत्तराखंड राज्य की मांग कर रहे प्रदर्शनकारियों पर आंसू गैस छोड़ी. हालांकि, राज्य की जातिगत हिंसा की ख़बरें कभी कभार ही सुर्ख़ियां बनती हैं, लेकिन उत्तराखंड राज्य का आधार वंचना ही है. (बीसीसीएल)
अक्टूबर 1994 में, दिल्ली पुलिस ने उत्तराखंड राज्य की मांग कर रहे प्रदर्शनकारियों पर आंसू गैस छोड़ी. हालांकि, राज्य की जातिगत हिंसा की ख़बरें कभी कभार ही सुर्ख़ियां बनती हैं, लेकिन उत्तराखंड राज्य का आधार वंचना ही है. (बीसीसीएल)

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{एक.}

जीप शिलापानी पुल के पास पहुंच चुकी थी, जगदीश चंद्र इस बात से बेख़बर थे कि उन पर नज़र रखी जा रही है. पिछले कुछ हफ़्ते मुश्किल और उथल-पुथल भरे थे, सो वह ज़िंदगी को दुबारा पटरी पर लाने के लिए प्रयत्नशील थे. उन्हें और उनकी नई नवेली दुल्हन, दोनों को इसकी सख़्त दरकार थी.

राजपूत परिवार से संबंध रखने वाली गीता के निष्ठुर सौतेले पिता जोगा सिंह, दूसरी शादी के कारण कड़ुवाहट से भरी मां भावना और सौतेले भाई गोविंद सिंह को उसका किसी दलित से ब्याह कर लेना हर सूरत में स्वीकार नहीं था. शादी को महज चार दिन गुज़रे थे कि 27 अगस्त 2022 के दिन गीता के सौतेले बाप, भाई और मां ने वकील नारायण राम के घर धावा बोल दिया. नव-विवाहित दंपति को वहां न पाकर उन्होंने नारायण राम के घर जबर्दस्त तोड़-फोड़ की और उन्हें बुरी तरह पीटा. नव दंपति ने तुरंत उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के अध्यक्ष पी. सी. तिवारी को घटना से अवगत कराया और अल्मोड़ा जिला पुलिस को पत्र लिखकर सुरक्षा मांगी. सुरक्षा नहीं मिली.

अर्थोपार्जन ज़रूरी था, सो वकील नारायण राम के घर पर हमले के एक सप्ताह बाद जगदीश को जल जीवन मिशन परियोजना पर अपने काम पर लौटना पड़ा. शिलापानी पुल पार करने के कुछ मिनट बाद ही उन्हें जोगा सिंह, भावना और गोविंद सिंह ने धर लिया. तीनों उन्हें पास के एक छोटे से कमरे में ले गए. अगले दिन गीता के परिवार वाले सड़क के किनारे एक ओमनी वैन से जगदीश की ख़ून से लथपथ लाश को ठिकाने लगाने का प्रयास करते हुए पकड़े गए.