अंबेडकर, अराजकता और आशा

बीआर अंबेडकर के भाषण, "अराजकता का व्याकरण", संविधान को औपचारिक रूप से अपनाए जाने से एक दिन पहले दिया गया था, जो उस अराजकता का पूर्वाभास देता है, जिसमें आज भारत फंसा हुआ है.
विकिमीडिया कॉमन्स
बीआर अंबेडकर के भाषण, "अराजकता का व्याकरण", संविधान को औपचारिक रूप से अपनाए जाने से एक दिन पहले दिया गया था, जो उस अराजकता का पूर्वाभास देता है, जिसमें आज भारत फंसा हुआ है.
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भारत के अपने संविधान को अपनाने के महीनों पहले, इसके मुख्य वास्तुकार, बीआर अंबेडकर चिंताओं से घिरे थे. वह भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के झूलते पालने में खड़े थे और अन्य संस्थापक सदस्यों की तुलना में निजी तौर पर ज्यादा बेहतर जानते थे कि भारत गंभीर जन्मजात दोषों के साथ पैदा होगा. हमारा समाज बारीकी तक वर्गीकृत गैरबराबरी पर आधारित समाज था, जिसने खुद को एक ऐसा संविधान दिया जो कहता है कि हम सभी समान हैं. लेकिन हम जानते थे, सब बराबर नहीं थे.

नवंबर 1949 में संविधान का आखिरी मसौदा तैयार हो गया था. भारत को दो महीने में गणतंत्र होना था. अंबेडकर जानते थे कि संविधान, जितना भी प्रगतिशील हो, उतना ही अच्छा था, जितना कि लोग इसे मानने के लिए इस पर भरोसा करते थे. "इसने एक बार अपनी आजादी खो दी थी. क्या वह इसे दूसरी बार खो देगा?'' अंबेडकर ने 25 नवंबर को संसद के केंद्रीय कक्ष में अपने सबसे महान भाषणों में से एक, "अराजकता का व्याकरण" देते हुए कहा. अगले दिन संविधान को औपचारिक रूप से अपनाया गया, अंबेडकर को हैरानी हुई कि क्या भारत में उस आजादी को पचा पाने का दम भी है जो वह हासिल करने वाला था.

अंबेडकर ने "अराजकता का व्याकरण" भारत के इतिहास में वास्तव में अराजक समय में, 1947 और 1950 के बीच लिखा था जब भारत आजाद था लेकिन अभी तक कोई संविधान नहीं था. अब कोई नियम नहीं थे. संविधान एक शानदार और सावधानीपूर्वक नुस्खा है उन हालात से बचने के लिए जहां भारत अभी पहुंच गया है यानी पूरी तरह से अराजकता की स्थिति में, जो आजाद होने की निंदा करता है, जो सत्ता में राजनीतिक दलों के साथ यह मानते हुए कि सत्ता का असल मकसद बड़े डेस्क के पीछे से सभी को दबाना है, जहां करदाताओं के पैसे से बने शानदार कार्यालयों में हर किसी ने लोकतंत्र को नष्ट करने के लिए इसी की भाषा का उपयोग करना सीख लिया है.

अंबेडकर की विस्तृत समझदारी पर चौंके बिना संविधान को पढ़ना मुश्किल है - वह अपनी रचना के विघटन की भविष्यवाणी कर रहे थे. उनके द्वारा 1949 में 2023 के भारत की भविष्यवाणी की गई थी. हमारे वर्तमान शासकों को अराजकता से उतना ही प्यार है जितना संस्थापक सदस्यों को इससे नफरत थी. अराजकता पैदा करने के लिए हर दिन, हर सेकंड का इस्तेमाल जर्मन सटीकता के साथ किया गया है. जैसे-जैसे हम 2024 में बदसूरत चुनाव की ओर बढ़ रहे हैं, वैसे-वैसे हर महीना और अधिक अराजक होता जा रहा है.

पिछले चार हफ्तों में, अराजकता का राज रहा है.

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