बुलडोज़र न्याय और भारतीय राज्य की अराजकता

23 नवंबर 2023 को राजस्थान के जयपुर में विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान बुलडोज़र के साथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ. आदित्यनाथ को हिंदुत्व की राजनीति के हथियार के रूप में बुलडोज़र के आविष्कारक के रूप में श्रेय दिया जा सकता है. विशाल भटनागर/नूरफोटो/गैटी इमेजिस
19 January, 2024

भारतीय राज्य अपने नागरिकों के एक हिस्से के ख़िलाफ़ खुली दुश्मनी के चलते बेखौफ़ स्तर पर अराजक हो गया है. आज बुलडोज़र उस राज्य की अराजकता प्रतीक बन गया है जो ख़ौफ़नाक ढंग से दंभी और पक्षपातपूर्ण है. इनका इस कदर इस्तेमाल देश के नागरिकों, विपक्ष और अदालतों के लिए चेतावनी है कि संवैधानिक शासन और धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र, दोनों पर ख़तरा मंडरा रहा है.

बीजेपी-शासित कई राज्यों में आने वाली राज्य सरकारों ने ज्यादातर मुस्लिम नागरिकों को बुलडोज़र से निशाना बनाया है, उनकी संपत्तियों को तबाह कर दिया है, संवैधानिक निष्पक्षता तो दूर, उचित कानूनी प्रक्रिया का शायद ही कोई दिखावा किया गया हो. माहौल आम तौर पर उत्सव जैसा होता है. इमारतों को बुलडोजरों से गिराते हुए, अक्सर दर्शक और टेलीविजन मीडिया खुशी मनाता है और चुने हुए नेता धार्मिक बदले की कार्रवाई बता इसकी सराहना करते हैं.

ऐसा लगता है कि बुलडोज़र भेजने में अधिकारी संवैधानिक अधिकारों और कानून के शासन की अनिवार्यताओं से बेपरवाह हैं. आख़िरकार, किसी भी भारतीय क़ानून में ऐसा कोई क़ानून नहीं है जो राज्य को केवल अपराध के संदेह पर किसी व्यक्ति की संपत्ति को नष्ट करने का अधिकार देता हो. जैसा कि दिल्ली उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश एपी शाह ने समाचार पोर्टल कोडा से पुष्टि की, "आपराधिक गतिविधि में महज कथित संलिप्तता कभी भी संपत्ति के विध्वंस का आधार नहीं हो सकती." इसके अलावा, यह निष्कर्ष निकालने के लिए कि किसी व्यक्ति ने अपराध किया है, संविधान और कानून ने आरोपी के अधिकारों की रक्षा के लिए एक विस्तृत प्रक्रिया स्थापित की है. इसे भी लापरवाही से दरकिनार कर दिया गया है.

अराजक बुलडोज़र "न्याय" का सहारा लेने के बावजूद, देश की न्यायपालिका द्वारा कार्यपालिका पर शायद ही कभी अंकुश लगाया गया हो. कुछ अवसरों पर, अदालतों ने विध्वंस पर रोक लगाई. लेकिन गंभीर क्षति होने के बाद ही. इस साल अगस्त में एक दुर्लभ उदाहरण में, हरियाणा के नूंह जिले में मुस्लिम नागरिकों की स्वामित्व वाली संपत्तियों के विध्वंस के चार दिन बाद पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के दो न्यायाधीशों ने पूछा कि क्या "राज्य द्वारा जातीय सफाए की कोई कवायद की जा रही है?" न्यायाधीशों ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा विध्वंस से पहले हुई सांप्रदायिक हिंसा की जांच पूरी करने से पहले ही गृहमंत्री ने घोषणा कर दी थी कि विध्वंस "इलाज" या इलाज का हिस्सा था.