2 मई को मेरे राज्य गोवा ने राष्ट्रव्यापी लॉगडाउन के चलते राज्य में फंसे उन प्रवासी मजदूरों का रजिस्ट्रेशन शुरू किया जो वापस अपने-अपने घर लौटना चाहते हैं. घर लौट पाने की उम्मीद में सैकड़ों लोग तुरंत लाइन लगाकर खड़े हो गए. 4 मई की सुबह मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने यह घोषणा कर चौंका दिया कि 48 घंटों के भीतर ही 71000 लोगों ने वापस लौट जाने के लिए रजिस्ट्रेशन कराया है और उन्हें और लोगों के रजिस्ट्रेशन कराने की उम्मीद है. उस शाम गोवा के एक बड़े व्यवसायी मनोज काकुलो ने अपने फेसबुक पेज पर पोस्ट लिखी, “यह तथाकथित प्रवासियों का पलायन गोवा में उद्योग को बर्बाद करके रख देगा. इन लोगों ने हमारा फायदा उठाया और जब हमें काम को शुरू करने के लिए इनकी जरूरत है तो हमें छोड़कर जा रहे हैं. कुछ लोगों का पलायन कर जाना तो समझ में आता है लेकिन इतनी बड़ी तादाद में लोगों का जाना, गोवा के अर्थतंत्र के लिए खराब बात है. काकुलो होटल, ऑटोमोबाइल और रियल एस्टेट का कारोबार करते हैं. काकुला समूह गोवा के कारोबार जगत का जाना-माना नाम है और राजधानी पणजी में जो एकमात्र मॉल है उसका नाम काकुलो मॉल है. पिछले साल मई में मनोज काकुलो 111 साल पुराने गोवा चेंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के अध्यक्ष चुने गए हैं.
अपनी फेसबुक पोस्ट के अगले दिन काकुलो ने राज्य के मुख्यमंत्री को चेंबर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष की हैसियत से एक खत लिखा जिसमें उन्होंने शिकायत की, “हमारे संज्ञान में लाया गया है कि लॉकडाउन के पूरे वक्त इन प्रवासी मजदूरों को रहने की जगह और खाने का खाना व मजदूरी दी गई. सच तो यह है कि ये लोग फंसे हुए नहीं थे. लेकिन अब इन लोगों को अपने राज्य लौटने का फ्री का टिकट दिया जा रहा है. बहुत से मजदूर अपने मालिकों को बर्बाद करने के बाद छोड़ कर अपने राज्य वापस जा रहे हैं.”
काकुलो ने आगे लिखा कि इस तरह बेरोकटोक पलायन से स्थानीय उद्योग, निर्माण क्षेत्र और कृषि पर नकारात्मक असर पड़ेगा. उन्होंने कहा कि हमें लगता है कि सरकार को स्क्रीनिंग या काउंसलिंग की प्रक्रिया चलानी चाहिए ताकि पता लगाया जा सके कि रोजगार किन लोगों के पास है और उन्हें राज्य में रुके रहने के लिए कैसे मनाया जा सकता है. हमें डर है कि यदि ये लोग अभी चले जाएंगे तो इनको राज्य में वापस आने में वक्त लगेगा और इससे उपरोक्त क्षेत्रों पर असर पड़ेगा.
काकुलो की ये बातें गोवा के उद्योगपतियों की पुरानी सोच है. उनके जैसे बहुत से उद्योगपतियों ने भी इसी तरह की प्रतिक्रियाएं दी हैं. 6 मई को कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदुरप्पा ने राज्य के बड़े निर्माण व्यवसायियों से मुलाकात की और बाद में राज्य से मजदूरों को बाहर ले जाने वाली ट्रेने रद्द कर दीं. देशभर में हुई थू-थू के बाद ट्रेनों को दुबारा चलाया गया. दो दिन बाद करोड़ों प्रवासी मजदूरों के गढ़ उड़ीसा ने तय किया कि जिन लोगों का कोविड-19 परीक्षण नकारात्मक आएगा बस उन्हें ही राज्य में लौटने दिया जाएगा. ऐसा लगता है कि राज्य सरकार का यह निर्णय अपने राज्य के मजदूरों को लौटने से निरुत्साहित करने के लिए लिया गया था.
इस बीच भारतीय जनता पार्टी द्वारा शासित उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश ने आजादी के बाद मजदूरों के संरक्षण के लिए बने महत्वपूर्ण कानूनों को खत्म करने की दिशा में कदम उठा लिए हैं. खत्म किए जा रहे कानूनों में महत्वपूर्ण माने जाने वाला कानून न्यूनतम वेतन कानून, 1948 और उससे संबंधित अन्य कानून हैं जो वेतन, ओवरटाइम की गारंटी और काम के घंटों से संबंधित हैं.
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