मणिपुर हिंसा, मोदी सरकार के काम करने का नया तरीका

31 मई 2023 को मणिपुर के लैंगचिंग गांव में जातीय हिंसा के दौरान एक चर्च को जला दिया गया. मैतेई और कुकी समुदायों के बीच तनाव ने एक महीने से अधिक समय तक घातक संघर्षों को जन्म दिया है और ऐसे में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक गहरी चुप्पी साध रखी है.
एएफपी/गेटी इमेजिस
31 मई 2023 को मणिपुर के लैंगचिंग गांव में जातीय हिंसा के दौरान एक चर्च को जला दिया गया. मैतेई और कुकी समुदायों के बीच तनाव ने एक महीने से अधिक समय तक घातक संघर्षों को जन्म दिया है और ऐसे में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक गहरी चुप्पी साध रखी है.
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30 मई को चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान ने पत्रकारों से कहा कि “मणिपुर की स्थिति का प्रतिवाद या उग्रवाद से कोई लेना-देना नहीं है. यह मुख्य रूप से दो जातियों के बीच का संघर्ष है.” यह बयान सीधे तौर पर मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह द्वार दिए बयान से बिलकुल उलट था जिन्होंने दो दिन पहले घोषणा की थी कि यह लड़ाई समुदायों के बीच नहीं बल्कि मणिपुर को तोड़ने की कोशिश कर रहे आतंकवादियों के खिलाफ राज्य और केंद्रीय बलों के बीच है. इंफाल में छह साल तक बीजेपी की डबल इंजन सरकार का नेतृत्व करने वाले सिंह के बयान का केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने फिर से खंडन करते हुए 1 जून को अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में जोर देकर कहा कि झड़पें जातीय हिंसा के कारण हो रही हैं.

यह चिंता का विषय होना चाहिए कि एक मुख्यमंत्री पूरी तरह से देश के गृह मंत्री और वरिष्ठतम सैन्य अधिकारी के बयानों से सहमत नहीं है. शाह और चौहान के जातीय संघर्ष के दावे में निहित सच्चाई अधिक चिंताजनक है. इसके परिणामस्वरूप हिंसा हुई है जो एक महीने तक चली है. आधिकारिक तौर पर 98 लोगों की जान गई है, लेकिन जमीनी रिपोर्ट के अनुसार वास्तविक संख्या अधिक है. 272 राहत शिविरों में लगभग चालीस हजार लोग हैं और कई अन्य राज्यों में भाग गए हैं. यहां तक ​​कि कुछ लोग संघर्षग्रस्त म्यांमार भी गए हैं. लगभग ढाई सौ चर्चों को कथित तौर पर जलाकर नष्ट कर दिया गया है. एक केंद्रीय मंत्री और बीजेपी विधायक के घर पर हमला हुआ है. शाह के दौरे और सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे के दौरे के दौरान भी हिंसा कम नहीं हुई. यदि यह एक ही देश के नागरिकों के विरोधी समूहों के बीच युद्ध है, तो इसका सही नाम गृहयुद्ध होना चाहिए.

गृह युद्ध हो चाहे न हो, संघर्षों ने उन खतरों को घर ला दिया है जब विभिन्न जातीयताओं का जटिल ताना-बाना, जो पूर्वोत्तर के राज्यों को बनाता है, खुलता है. क्षेत्र के इतिहास और समाजशास्त्र पर चर्चा इस स्तंभ के दायरे से बाहर है. इस क्षेत्र में प्रतीत होने वाले स्थिर पारस्परिक संबंध दशकों तक चली हिंसा की मार से सामने आए हैं, जिसमें भारतीय राज्य उतना ही बड़ा अपराधी था जितना कि कोई विदेशी शक्ति या उग्रवादी समूह. असंख्य संस्कृतियों, भाषाओं, जातियों और धर्मों के देश में इन नाजुक संबंधों की संवेदनशील प्रकृति को हर स्तर पर और हर तरीके से समावेशी मानसिकता से ही बनाए रखा जा सकता है. इस क्षेत्र में हर नए राज्य के गठन से उस राज्य के अल्पसंख्यकों का निर्माण हुआ  है और उन्हें और भी छोटे राज्यों में विभाजित करना अव्यावहारिक है. अनुच्छेद 370 के सिद्धांतों पर आधारित अनुच्छेद 371 के प्रावधान अल्पसंख्यकों के दावों के साथ बहुसंख्यकों के दावों का समाधान करने का साधन प्रदान करते हैं, ताकि एक अलग अस्तित्व के बजाय एक सह-अस्तित्व विकसित किया जा सके. सुहास पलशिकर के शब्दों में, यह "संघीय ढांचे के भीतर संघवाद के लिए एक खाका" प्रदान करता है.

इसके बजाय, जो हम राष्ट्रीय स्तर पर देखते हैं, वह सत्ताधारी दल का घोर बहुसंख्यकवाद है. एक राष्ट्र का विचार "हिंदी, हिंदू, हिंदुस्तान” राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नारे पर आधारित है. जो किसी भी रूप में गैर-बहुसंख्यक, सह-अस्तित्व और संघवाद के प्रति असहिष्णु है. हिंदुत्व का यह आख्यान, जो एक प्रचारक कॉरपोरेट मीडिया के माध्यम से एक राजनीतिक तर्क के रूप में जनता तक पहुंचाया जाता है, अन्य समूहों को बहुसंख्यक होने की अपनी स्वयं की परिभाषा तैयार करने की छूट दे देता है. धर्म, जाति, भाषा या जातीयता के आधार पर निर्मित बहुसंख्यकों को तब अल्पसंख्यकों के खिलाफ हथियार बनाया जा सकता है. पूर्वोत्तर में, यह बीजेपी द्वारा शासित असम में देखा गया है और मणिपुर भी इसके नक्शे कदम पर चलता दिखता है. हाल ही के एक साक्षात्कार में असम के मुख्यमंत्री और नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक एलायंस के संयोजक हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा कि मणिपुर में, "जनसंख्या का वितरण ऐसा है कि सत्तर प्रतिशत लोग तीस प्रतिशत भूभाग में रहते हैं. कुकी और नागा घाटी में आ सकते हैं, लेकिन मैतेई पहाड़ियों पर नहीं जा सकते. बोडोलैंड को लेकर असम में भी ऐसा ही है.” आंतरिक मणिपुर से बीजेपी सांसद और विदेश राज्य मंत्री आरआर सिंह ने मोदी से अनुच्छेद 371 को खत्म करने के लिए कहा है, जो राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों के लिए विशेष प्रावधान प्रदान करता है.

सरमा ने यह भी दावा किया कि मणिपुर में "सभी समुदायों के साथ बातचीत करने में केंद्र सरकार पूरी तरह से तटस्थ है." इसे राज्य सरकार की गलती के रूप में देखा जा सकता है, जिसने कुकी समुदाय को निशाना बनाने के लिए खुले तौर पर पक्षपातपूर्ण तरीके से काम किया है. लेकिन तटस्थता वह चीज नहीं है जिसकी समुदायों को इस समय आवश्यकता है, उन्हें न्याय चाहिए. आग और फायर ब्रिगेड के बीच कोई तटस्थता नहीं हो सकती. जैसा कि रंगभेद विरोधी कार्यकर्ता डेसमंड टूटू ने कहा है कि "यदि आप अन्याय की स्थितियों में तटस्थ बने रहना चुनते हैं, तो आपने उत्पीड़क का पक्ष चुना है. यदि किसी हाथी का पैर चूहे की पूंछ पर है और आप कहते हैं कि आप तटस्थ हैं, तो चूहा आपकी इस तटस्थता की सराहना नहीं करेगा.” यह कुकी समुदाय के तीखे विरोध से स्पष्ट होता है, जिसने शाह की मणिपुर यात्रा के दौरान विरोध के बैनर दिखाए और पहाड़ी क्षेत्रों के लिए एक अलग प्रशासन की स्पष्ट मांग की.

सुशांत सिंह येल यूनि​वर्सिटी में हेनरी हार्ट राइस लेक्चरर और सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च में सीनियर फेलो हैं.

Keywords: Caravan Columns Manipur ethnic violence
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