ज़ुबां पर मोहर

बोलने की आज़ादी और मीडिया का गला घोंटने वाले पांच नए कानून

इलस्ट्रेशन : सिद्धेश गौतम
03 April, 2024

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10 नवंबर 2023 को सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने प्रसारण सेवा (विनियमन) विधेयक का मसौदा जारी किया. यह ऐसा पांचवां कानून है जिसे नरेन्द्र मोदी सरकार ने पिछले दो सालों में तेज़ी से बदलते मीडिया परिदृश्य के लिए एक नियामक ढांचा बनाने के घोषित उद्देश्य के साथ पेश किया था. ये पांचों विधेयक राज्य को विरोधी स्वरों और अभिव्यक्ति की आज़ादी को नियंत्रण में रखने और उन पर अंकुश लगाने के लिए खतरनाक उपकरणों और प्रावधानों से लैस करते हैं.

इसकी शुरुआत सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश एंव डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 से हुई. इसके बाद भारतीय दूरसंचार विधेयक, 2022 का मसौदा पेश किया गया. फिर सरकार डिजिटल निजी डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 ले कर आई जिसे पिछले साल अगस्त में पारित कर दिया गया. लगभग उसी समय, राज्यसभा ने प्रेस और आवधिक पंजीकरण विधेयक भी पारित कर दिया. फिर बहुचर्चित डिजिटल इंडिया विधेयक भी है, जो सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की जगह लेगा.

इन कानूनों के जरिए एक ऑरवेलियन व्यवस्था का निर्माण होगा जो मीडिया को नियंत्रित करने, सामग्री को सेंसर करने और ज़रूरी आवाज़ों को निशाना बनाने की शक्तियां सरकार को देगा. इस ढांचे की ख़तरनाक बात यह है कि सरसरी तौर पर उपरोक्त सभी बिल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए महत्वपूर्ण किसी एक पहलू को छूते दिखते हैं लेकिन एक साथ वे एक विशाल संजाल का निर्माण करते हैं जिससे बचना नामुमकिन हो जाता है. इस महीन जाल में ऐसे तंत्र और प्रावधान शामिल हैं जो मीडिया आउटलेट्स की निगरानी की सरकार की शक्तियों का विस्तार करते हैं. इससे सरकार को अपने लिए समस्याग्रस्त सामग्री को प्रतिबंधित करने या हटाने की ताकत मिल जाती है. साथ ही लोगों को प्रिंट प्रकाशन चलाने के अधिकार से वंचित किया जा सकता है. सरकार ने बिना किसी न्यायिक निरीक्षण के और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के विरुद्ध जा कर ख़ुद को ये व्यापक शक्तियां दे दी हैं.

मिसाल के लिए आईटी नियमों को लें, जिन्हें मार्च 2021 में अधिसूचित किया गया था. इनमें कई प्रावधान हैं जो डिजिटल समाचार मीडिया पर विवादास्पद प्रतिबंध लगाते हैं और वास्तव में केंद्र सरकार को देश में कहीं भी प्रकाशित समाचारों को ब्लॉक करने, हटाने या संशोधित करने का अधिकार देते हैं. ये नियम त्रि-स्तरीय शिकायत निवारण प्रणाली के निर्माण की बात करते हैं. इसके शीर्ष अंतर-मंत्रालय समूह है जो बिना किसी न्यायिक निरीक्षण के काम करेगा. पिछले साल की शुरुआत में व्यापक शक्तियों के साथ सरकार द्वारा नियुक्त तथ्य-जांच यूनिट की स्थापना को अधिकृत करने के लिए इन नियमों में संशोधन किया गया था. यूनिट के पास इंटरनेट सेवा प्रदाताओं सहित "मध्यस्थों" को फ़ेक या भ्रामक मानी जाने वाली सामग्री को हटाने का निर्देश देने की शक्ति होगी.