ब्राह्मण वर्चस्व को बढ़ावा देने का जरिया है अयोध्या का नया राम मंदिर

22 January, 2024

28 नवंबर 2023 को एक टेलीविजन शो में चित्रकूट के एक महायाजक रामभद्राचार्य ने कहा कि उन्होंने पेशाब जाते वक्त राम को देखा था. उन्होंने बताया कि उन्हें पेशाब जाना था तो एक तीन वर्ष का सुंदर बालक उन्हें हाथ पकड़ कर बाथरूप ले गया और जब कार्यनिवृत हो गए तो वही बालक उन्हें वापस उनके बिस्तर तक पहुंचा आया. रामभद्राचार्य नेत्रहीन हैं लेकिन दिव्य दृष्टि होने का दावा करते हैं.

देश के दलित और बहुजनों के आरक्षण के खिलाफ कार्यक्रम चलाने के लिए कुख्यात सवर्ण पत्रकार सुधीर चौधरी उस टीवी शो में महायाजक की मेजबानी कर रहे थे. चौधरी ने बहुत से हिंदुओं द्वारा पूजे जाने वाले भगवान के बारे में इस तरह के निंदनीय बयान देने पर रामभद्राचार्य की आलोचना नहीं की, बल्कि पुजारी को "गुरुजी" भी कहते रहे. चौधरी ने इसके बजाय पूछा कि उनकी दिव्य दृष्टि उस मंदिर के बारे में क्या कहती है जिसका उद्घाटन जल्द ही होने वाला है.

22 जनवरी को अयोध्या में मंदिर निर्माण की जिम्मेदारी निभा रहा ट्रस्ट, जिसका नाम राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र है, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सहित अपने चयनित आमंत्रितों के बीच नए मंदिर में राम प्रतिमा की स्थापना के लिए समारोह का आयोजन कर रहा है. रामभद्राचार्य ने चौधरी को बताया कि राम ने उनसे कहा था, 'गुरुवर, आप भी आएं और मेरे साथ अमृत महोत्सव मनाएं.' अमृत महोत्सव एक सरकारी प्रचार शब्द है जो भारत की आजादी की 75वीं वर्षगांठ के दौरान ब्राह्मणवादी संस्कृति के उत्सव का जिक्र करता है.

महज एक महीने पहले और मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव से कुछ हफ्ते पहले, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में रामभद्राचार्य को वेदों और अन्य ब्राह्मण साहित्य पर उनके ज्ञान के लिए "राष्ट्रीय विरासत" घोषित किया था. मोदी ने 2015 में रामभद्राचार्य को केंद्र सरकार द्वारा दिए गए सर्वोच्च नागरिक पुरस्कारों में से एक, पद्म विभूषण, से सम्मानित करने पर भी गर्व जताया. उस दिन मोदी की मौजूदगी में, रामभद्राचार्य ने कहा कि उन्होंने भगवान से कहा था कि वह अपने लिए आंखें नहीं चाहते हैं ब​ल्कि भारत में दोबारा जन्म लेना चाहते हैं और वह भी "केवल ब्राह्मण वंश में". रामभद्राचार्य अकेले ऐसे पुजारी नहीं हैं जिनकी बेतुकी बातों को राम के नाम पर सवर्ण पत्रकार और बीजेपी नेता सार्वजनिक रूप से सम्मानित और मंचित कर रहे हैं. पिछले कुछ हफ्तों में जैसे-जैसे मंदिर का उद्घाटन नजदीक आया है, पत्रकार और नेता ब्राह्मण वर्चस्व को बढ़ावा दे रहे हैं और साथ ही किसी भी तर्कसंगत आवाज को राजनीतिक, विवादास्पद और हिंदू आस्था के खिलाफ बता रहे हैं.

हिंदू धर्मगुरु शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती ने पिछले हफ्ते पत्रकारों से कहा था कि वह राम मंदिर के उद्घाटन में शामिल नहीं होंगे क्योंकि मोदी को मूर्ति स्थापित करते देखना उनकी उपाधि के नीचे है, जिसके बारे में उनका मानना है कि यह केवल "धर्माचार्य" का कार्य है. मोदी ने अप्रैल 2019 में सार्वजनिक रूप से दावा किया था कि वह अत्यंत पिछड़े वर्ग से हैं. सरस्वती ने कहा कि जब मोदी समारोह में प्रतिमा को छूएंगे, तब "क्या वह वहां ताली बजाएंगे". शंकराचार्य जाति व्यवस्था के प्रबल समर्थक हैं. पत्रकारों के सामने अपने दिव्य व्यक्तित्व को प्रस्तुत करते हुए, सरस्वती ने कहा था कि, "मैं भगवती सीता को अपनी बड़ी बहन मानता था लेकिन एक बार जब मैं ध्यान में था तब सीता ने मुझसे उन्हें छोटी बहन मानने के लिए कहा था." चौधरी की तरह, कई पत्रकारों ने भी सरस्वती को "गुरुदेव" कह कर संबोधित किया और उनका विरोध नहीं किया, जबकि रामभद्राचार्य जैसे उनके बयान भगवान को कमतर दिखाने वाले थे. इसके तुरंत बाद, सरस्वती को एक राष्ट्रीय टेलीविजन शो, सीएनएन न्यूज 18, में आमंत्रित किया गया, जहां उन्होंने कहा कि कैसे केवल एक ब्राह्मण ही शिक्षक हो सकता है और उपदेश देने के लिए योग्य भी वही हो सकता है. प्रबंध संपादक और एक तमिल अय्यर ब्राह्मण, आनंद नरसिम्हन, ने सरस्वती का साक्षात्कार लिया, जो एक सोफे पर बैठे थे, जबकि नरसिम्हन खुद फर्श पर बैठे थे और उन्हें "गुरुदेव" कह कर संबोधित कर रहे थे. नरसिम्हन ने सरस्वती से ऐसे सवाल पूछे जिनके उत्तर में उन्होंने कहा कि राम मंदिर भारतीयों की धार्मिक चेतना को जागृत करेगा.

उसी हफ्ते, एक लोकप्रिय ब्राह्मण उपदेशक धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने एक सरकार समर्थक टेलीविजन चैनल पर कहा कि "मनुस्मृति मानवता की बात करती है" और जो लोग इसे अन्यथा कहते हैं वे "मानसिक बीमारी" से पीड़ित हैं. हिंदुओं की पवित्र पुस्तक न केवल पदानुक्रमित जाति व्यवस्था को संहिताबद्ध करती है बल्कि इसे धार्मिक स्वीकृति भी देती है. धार्मिक नेताओं के अलावा, बीजेपी प्रवक्ता, सुधांशु त्रिवेदी, जो खुद ब्राह्मण हैं, अंधविश्वासों का प्रचार करने के लिए राम का उपयोग कर रहे हैं. उसी हफ्ते, त्रिवेदी ने एक टेलीविज़न शो में तर्क दिया था कि अस्पतालों की तुलना में मंदिरों की ज्यादा जरूरत है क्योंकि अस्पताल केवल एक व्यक्ति के स्वास्थ्य का इलाज करते हैं जबकि मंदिर सुयोग्य लोगों का निर्माण करते हैं. त्रिवेदी बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव का विरोध कर रहे थे, जिन्होंने पहले कहा था कि लोगों को मंदिरों से ज्यादा अस्पतालों की जरूरत है. दिसंबर में त्रिवेदी ने संसद के पटल पर सुझाव दिया था कि भारत की आर्थिक वृद्धि और इसकी गिरावट क्रमशः राम मंदिर निर्माण अभियान के उत्थान और पतन से जुड़ी हुई है. जनवरी 2023 में, जब राष्ट्रीय जनता दल के नेता, चन्द्रशेखर, जो खुद शूद्र हैं, ने 16वीं शताब्दी के ब्राह्मण लेखक तुलसीदास दुबे को अपनी पुस्तक रामचरितमानस के एक छंद में शूद्रों को अपमानित करने के लिए फटकारा था, तो त्रिवेदी ने इस छंद को सही ठहराते हुए कहा कि जो इसकी आलोचना कर रहे हैं वे इसका सही अर्थ नहीं समझते.

एक तरफ मुख्यधारा का मीडिया राम मंदिर के नाम पर किसी भी बकवास को बढ़ावा दे रहा है, दूसरी तरफ पिछड़े वर्गों और यहां तक कि सवर्ण जाति के नेताओं के तर्कसंगत बयानों को तुरंत राजनीतिक या विवादास्पद करार दिया जा रहा है. हाल ही में, खानाबदोश जनजाति से आने वाले राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता जीतेंद्र आव्हाड ने कहा, “राम बहुजन के हैं. शिकार करके खाने वाला राम हमारा है.”

आव्हाड ने सुझाव दिया कि राम मांसाहारी थे क्योंकि वह 14 साल तक जंगल में रहे थे. उन्होंने वाल्मिकी की रामायण को अपने कथन का आधार बताया. बीआर आंबेडकर ने पहले भी लिखा था कि राम और कृष्ण वैदिक देवता नहीं थे, बल्कि ब्राह्मणों के जरिए कब्जाए जाने से पहले स्थानीय समुदायों के बीच पैदा हुए पंथ थे. मुख्यधारा की विरासती मीडिया ने तुरंत आव्हाड के बयान को विवादास्पद करार दे दिया. रामभद्राचार्य ने एक बयान में आव्हाड के बयान के संदर्भ को स्वीकार करने से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा कि आव्हाड ने जिस अध्याय का उल्लेख किया वह "प्रक्षिप्त" था यानी बाद में जोड़ा गया और "इसे साक्ष्य के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता". एक टेलीविजन शो में त्रिवेदी ने कुछ इसी तरह का सुझाव देते हुए कहा कि जो लोग संस्कृत भाषा के साथ वैदिक विद्यालयों से स्नातक हुए हैं, उन्हें ही केवल धार्मिक पुस्तकों पर टिप्पणी करने के लिए योग्य माना जाना चाहिए. उन्होंने यह भी सुझाया कि धार्मिक पुस्तकों की गैर-ब्राह्मण व्याख्या सही नहीं है. यह जाति श्रेष्ठता की मानसिकता का प्रतीक है जिसने इस विचार को पुष्ट किया कि केवल ब्राह्मण ही धार्मिक किताबों को पढ़ने और उनके बारे में उपदेश देने के योग्य हैं.

आव्हाड ने राम को अपने समुदाय का भगवान माना था और सार्वजनिक रूप से अपने समुदाय के मांसाहारी भोजन पर गर्व प्रदर्शित किया था और फिर भी मीडिया ने इसे एक विवाद के रूप में तोड़-मरोड़ कर पेश किया. उसी हफ्ते, राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के सचिव चंपत राय बंसल ने अपने अनुयायियों की एक सभा को बताया था कि राम पांच साल के बच्चे हैं और यही कारण है कि नए मंदिर में राम के बगल में सीता की मूर्ति स्थापित नहीं की जाएगी. बंसल एक महिला अनुयायी को जवाब दे रहे थे जिसने पूछा था, "क्या हमारी जानकी जी मंदिर में नहीं रहेंगी?" बंसल ने कहा कि सीता को राम के तीन अन्य भाइयों के साथ मंदिर की पहली मंजिल पर स्थापित किया जाएगा लेकिन भूतल पर अकेले राम को स्थापित किया जाएगा. बंसल न केवल भगवान के संरक्षक बन रहे थे बल्कि यह भी तय कर रहे थे कि राम की उम्र क्या होगी.

सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष राम के "हमेशा छोटा रहने" पर लंबी बहस हुई. राम को इंसानों जैसे अधिकारों वाले एक न्यायिक व्यक्तित्व के रूप में स्वीकार किया गया लेकिन उनके हमेशा बाल अवस्था में रहने की स्थिति को सीमित कर दिया गया. इसका मतलब यह था कि राम हमेशा के लिए नाबालिग नहीं रह सकते. राम की नाबालिग स्थिति के चलते ही, हिंदू पक्ष भगवान की ओर से मामला शुरू करने में सक्षम थे. अदालत ने लिखा, “एक देवता की नाबालिग के रूप में कानूनी कल्पना देवता की अपने आप कानूनी कार्यवाही शुरू करने में असमर्थता को दूर करने के लिए विकसित की गई है.'' हालांकि, देवता को सीमा के कानून की प्रयोज्यता से छूट देने के लिए कल्पना का विस्तार नहीं किया गया.

फिर भी ट्रस्ट ने राम को एक उम्र दी है. हालांकि, असली सवाल यह है कि क्या ट्रस्ट केंद्र सरकार द्वारा उसे दी गई 70 एकड़ जमीन और राम के नाम पर खरीदी गई अतिरिक्त जमीन को राम के वयस्क होने पर भगवान को वापस हस्तांतरित करेगा या क्या ट्रस्ट राम का संरक्षक बना रहेगा? इसके अलावा, यह फैसला कौन करेगा कि राम कब वयस्क होंगे, इस बारे में कभी भी सार्वजनिक रूप से बात नहीं की गई. इसकी कोई भी चर्चा मीडिया द्वारा नहीं की गई है. बंसल ने फरवरी 2022 में यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान कहा था कि बीजेपी के लोगों को "राम मंदिर के निर्माण का श्रेय लेने का पूरा अधिकार है" और लोगों को ऐसे ही लोगों को वोट देना चाहिए. यह ट्रस्ट की ओर से पूरी तरह से एक राजनीतिक बयान था जो अदालतों के समक्ष एक निजी संस्था होने का दावा करता है. फिर भी, किसी भी मीडिया ने बंसल के बयान को राजनीतिक या विवादास्पद नहीं कहा. दिसंबर 2023 के द​रमियान, राम की पैड़ी के बगल में चल रहे एक टेलीविजन शो में, बंसल ने अहंकारी हो कर कहा कि, “अगर वे चुप रहेंगे तो यह विपक्षी नेताओं के लिए अच्छा होगा. अगर आप चुप रहेंगे तो आपका नाम निमंत्रण में आ सकता है.” नए मंदिर में राम की मूर्ति की स्थापना को कोई भी उस दिन व्यक्तिगत रूप से तभी देख सकता है, जब उसे ट्रस्ट का निमंत्रण मिले.

ट्रस्ट को अपने सार्वजनिक संग्रह पर कर छूट भी हासिल है. ट्रस्ट के ही अनुसार, मार्च 2023 तक उसकी शेष राशि 3000 करोड़ रुपए थी. जिस तरह से ट्रस्ट मंदिर को नियंत्रित करता है और भगवान की ओर से निर्णय लेता है वह अब बहुत स्पष्ट है. जनवरी 2023 में, राष्ट्रीय जनता दल के नेता और राजपूत जगदानंद सिंह ने भी लगभग यही बात कही थी. वह भी राम के प्रति अत्यधिक भक्ति के साथ और फिर भी मीडिया ने उन्हें विवादास्पद करार दिया. “राम को एक शानदार भवन में कैद कर दिया गया है. वह पहले इस राष्ट्र के कण-कण में रहते थे. भारत अब राम का नहीं होगा बल्कि केवल एक मंदिर राम का होगा,'' सिंह ने कहा था. यह बयान हिंदुओं के लिए एक चेतावनी है कि वे राम को एक स्थान तक सीमित रखने के राजनीतिक प्रचार से खुद को रोकें. इसी तरह अक्टूबर 2023 में समाजवादी पार्टी के पिछड़ा वर्ग नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने ट्रस्ट द्वारा 22 जनवरी को राम की मूर्ति स्थापित करने के लिए आयोजित किए जा रहे अनुष्ठान पर सवाल उठाया था. ट्रस्ट ने राम की मूर्ति की स्थापना को "प्राण प्रतिष्ठा" कहा है- जिसका शाब्दिक अर्थ है किसी मूर्ति में प्राण डालना. मौर्य ने कहा था, ''आप किसी ऐसे व्यक्ति में जीवन कैसे फूंक सकते हैं जिसकी हजारों वर्षों से पूजा की जाती रही है? क्या ऐसा इसलिए है क्योंकि आप दिखाना चाहते हैं कि आप भगवान से ऊपर हैं?”यह एक वास्तविक प्रश्न था जिसे राम का कोई भी वफादार भक्त जानना चाहता होगा लेकिन मीडिया ने उसे फिर से विवादास्पद करार दिया.

मीडिया और बीजेपी नेता राम मंदिर के जरिए ब्राह्मण वर्चस्व, अंधविश्वास, राजनीतिक हिंदू धर्म और राम के एक हठधर्मी संस्करण का प्रचार करके हिंदुओं की मति को कमजोर कर रहे हैं. जातीय विशेषाधिकारों की हिफाजत करने की अपनी कोशिशों में, वे एक मूक आबादी का निर्माण कर रहे हैं जो एक समान और स्वस्थ समाज को चलाने के लिए अच्छा नहीं है.