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8 अगस्त को दोपहर 12 बज कर 45 मिनट पर लोकसभा एक बार फिर बाधित हुई. लेकिन यह रुकावट बेवजह नहीं थी. कांग्रेस नेता गौरव गोगोई के नरेन्द्र मोदी सरकार के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में बोल रहे थे. बात शुरू करने के लगभग बीस मिनट बाद संसद टीवी फ़ीड का टिकर अचानक रीसेट हो गया और विभिन्न मंत्रालयों की उपलब्धियों की सूचना देने लगा. वास्तव में, ऐसा इसलिए किया जा रहा था कि जो लोग टीवी पर बहस देख रहे थे उन्हें गोगोई के सवालों का खंडन भी साथ-साथ मिलता रहे.
विपक्षी सांसदों के सामने सदन के अंदर विशाल स्क्रीन पर टिकर चल रहा था. गोगोई के भाषण समाप्त करने के बाद इसका खूब विरोध हुआ. हालांकि, घरों पर टीवी पर बहस देख रहे दर्शक को समझ नहीं आ रहा होगा कि विपक्षी सांसद किस लिए भड़क रहे हैं क्योंकि जैसा कि अब संसद टीवी में आम बात है, विरोध को ब्लेकआउट कर दिया गया. (ऐसा केवल विपक्ष के व्यवधानों के लिए किया जाता है. जब सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के सदस्यों ने गोगोई की किसी बात पर आपत्ति जताई, तो उनके विरोध को जोर-शोर से और साफ़-साफ़ देखा-सुना जा सकता था.) पंद्रह मिनट में से अधिक समय तक विरोध जारी रहा किंतु स्क्रीन पर केवल विपक्ष को डांटते स्पीकर ओम बिड़ला नज़र आ रहे थे. जब चिल्लाना बहुत तेज़ हो गया, तो बिड़ला ने विपक्ष की चिंताओं का संज्ञान लेने का वादा किया, बिना यह बताए कि वे चिंताएं क्या थीं.
जैसे ही बिड़ला ने एक सहयोगी से बात की वैसे ही लाइव फ़ीड को कुछ देर के लिए म्यूट कर दिया गया. दोपहर 12.53 बजे टिकर बंद हो गया और नारेबाजी कम हो गई लेकिन जल्द ही दोनों, टिकर और लाइव फ़ीड, फिर से शुरू हो गए. “संसद टीवी बीजेपी टीवी है, सर!” एक सांसद की आवाज सुनाई दी. बिड़ला ने विपक्ष को आश्वासन दिया कि उन्होंने निर्देशों पर अमल किया है. उन्होंने मज़ाक में कहा, "मेरे पास इसके लिए बटन नहीं है." दोपहर 12.58 बजे, टिकर के ठीक होने तक, फ़ीड को दुबारा से म्यूट कर दिया गया और सामान्य सेवा फिर से शुरू हो गई.
हालांकि देखने में यह एक मामूली सी बात थी लेकिन इस प्रकरण ने दिखाया है कि कि कैसे मोदी सरकार ने विपक्ष के विरोध को मैनेज करने में महारत हासिल कर ली है. इसने यह भी दिखाया कि कैसे संसद टीवी, जो भारतीय सार्वजनिक प्रसारण के दो सबसे अच्छे उदाहरणों के मर्जर से शुरू हुआ है, बीजेपी सरकार का भोंपू बन गया है. यह प्रक्रिया इस बात का घोतक है कि कैसे देश की लोकतांत्रिक संस्थाएं राज्य के कब्ज़े के प्रति अतिसंवेदनशील साबित हुई हैं. संसद को लोगों के सामने लाने के दृष्टिकोण के ख़िलाफ़ मोदी सरकार ने जो कृत्य किया है, उसके लिए उसकी निंदा करना आसान है, लेकिन यह समझना महत्वपूर्ण है कि यह गिरावट केवल इसलिए संभव हुई क्योंकि संसद टीवी के पूर्ववर्ती टीवी चैनलों, लोकसभा टीवी और राज्यसभा टीवी, का आधार अस्थिर नींव पर रखा गया था, जिसे मोदी सरकार द्वारा नियुक्त लोगों के खोखला कर दिया है.