13 सितंबर की आधी रात को खबर मिली कि उमर खालिद को लोधी कॉलोनी स्थित दिल्ली पुलिस के विशेष प्रकोष्ठ के कार्यालय में कई घंटों की पूछताछ के बाद गिरफ्तार कर लिया गया है. जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से झारखंड के आदिवासी इतिहास में पीएचडी करने वाले उमर को एक साजिश में तथाकथित भूमिका के लिए हिरासत में लिया गया था. दिल्ली पुलिस ने दावा किया था कि फरवरी के अंतिम सप्ताह में उत्तर पूर्वी दिल्ली में भड़की हिंसा में उमर का हाथ है. उमर को मैं एक दशक से अधिक समय से जानता हूं. वह असहज करने वाले सवाल पूछने वाला नौजवान है जो पुराने किस्म के नेताओं से अलग है और जो कठिन वक्त की राजनीति में पैदा हुए अपने साथियों को प्रेरित करता है. वह अमन और सांप्रदायिक सद्भाव की खातिर कई तरह की पहलों में शामिल रहता है.
उमर को आरोपी बनाया गया है और 6 मार्च को दायर एफआईआर संख्या 59/2020 के तहत गिरफ्तार किया गया है. उस पर घृणा फैलाने, जिसके चलते हुई मौत, धन उगाहने और षडयंत्र करने से संबंधित दमनकारी गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 (यूएपीए) की चार धाराओं, हत्या और दंगे से लेकर अतिक्रमण से संबंधित भारतीय दंड संहिता की 18 धाराओं, सार्वजनिक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम, 1984 की दो धाराओं और शस्त्र अधिनियम, 1959 की दो धाराओं के तहत आरोप लगाए गए हैं. समाचार रिपोर्टों के अनुसार 14 सितंबर को, कड़कड़डूमा जिला अदालत के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत ने उमर को दस दिन की पुलिस हिरासत में भेज दिया है. पुलिस ने अदालत को बताया था कि वे 11 लाख पेजों के दस्तावेजों के बारे में उमर से पूछताछ करना चाहती थी. इससे पहले 31 जुलाई को पुलिस ने उमर से पांच घंटे पूछताछ की थी और उनका फोन जब्त कर लिया था. गिरफ्तारी के दिन लगभग 12 घंटे तक पूछताछ की.
हिंसा की दिल्ली पुलिस की जांच बेतुकी है. उमर को पुलिस की अपराध शाखा के नारकोटिक्स यूनिट के सब इंस्पेक्टर अरविंद कुमार को आए एक अनाम मुखबिर द्वारा दिए गए बयान के आधार पर आरोपी बनाया गया है. प्राथमिकी के अनुसार, मुखबिर ने उमर, दानिश नामक एक शख्स और दो अन्य व्यक्तियों की गुप्त बैठकें कराईं थी. क्या यह मुमकिन लगता है कि नारकोटिक्स यूनिट का एक मुखबिर उन "गुप्त बैठकों" में शरीक रहा जिनमें "दिल्ली में दंगा भड़काने की सोची-समझी साजिश" रची जा रही थी. लेकिन हम अनुभव से जानते ही हैं कि दिल्ली पुलिस की कल्पना शक्ति कितनी विशाल है.
उन तमाम लोगों की तरह जिन्हें दिल्ली पुलिस ने हिंसा के मामले में फंसाया है, उमर के नाम का जिक्र उसके खिलाफ दायर कम से कम पांच प्राथमिकियों में आरोपपत्र या पूरक आरोपपत्रों में और 13 सितंबर को पुलिस के एक हलफनामे में मिलता है. इसमें एफआईआर संख्या 65/2020 शामिल है, जिसमें आम आदमी पार्टी के पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन इंटेलिजेंस ब्यूरो के कर्मचारी अंकित शर्मा की हत्या के आरोपी हैं और एफआईआर संख्या 101/2020 भी, जिसमें 24 फरवरी को खजूरीखास इलाके में हुई हिंसा का मुख्य आरोपी हुसैन को बनाया गया है. इन दोनों एफआईआर की चार्जशीट में उमर का नाम "दंगा साजिश" के लिए लॉजिस्टिकल सपोर्ट और फंडिंग मुहैया कराने के लिए दर्ज है. फिर 22 फरवरी को जाफराबाद में नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में शामिल होने के लिए एफआईआर संख्या 50/2020 और 48/2020 दर्ज है. स्क्रॉल डॉट इन में प्रकाशित एक समाचार रिपोर्ट के अनुसार, इन दोनों एफआईआर से संबंधित तीन आरोपियों के खुलासे में खालिद का नाम आया है. ये बयान, जिनकी सत्यता पर गंभीर सवाल है, पिंजरा तोड़ नामक औरतों के एक समूह की संस्थापक देवांगना कालिता और नताशा नरवाल तथा गुलफिशा फातिमा के हैं. द वायर की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि न केवल कालिता और नरवाल के बयानों में वर्तनी में एक जैसी त्रुटियां हैं बल्कि इन बयानों पर "मैं हस्ताक्षर करने से इनकार करती हूं" लिखा है. उमर का नाम इन बयानों में फंड मुहैया कराने वाले के रूप में आया है, जिसने "गुप्त बैठकें" आयोजित कीं और भड़काऊ भाषण दिए.
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