संविधान और बराबरी की बात करने वाले उमर खालिद से क्यों डरती है सरकार

21 फरवरी 2016 को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में उमर खालिद. यह तस्वीर कश्मीरी कवि आगा शहीद अली की कविता कंट्री विदाउट द पोस्ट ऑफिस शीर्षक से आयोजित एक कार्यक्रम के दो हफ्ते बाद की है. इस कार्यक्रम में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के सदस्यों ने हमला किया था. उमर को इस मामले में पुलिस ने गिरफ्तार किया था. इशान तन्खा
18 September, 2020

13 सितंबर की आधी रात को खबर मिली कि उमर खालिद को लोधी कॉलोनी स्थित दिल्ली पुलिस के विशेष प्रकोष्ठ के कार्यालय में कई घंटों की पूछताछ के बाद गिरफ्तार कर लिया गया है. जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से झारखंड के आदिवासी इतिहास में पीएचडी करने वाले उमर को एक साजिश में तथाकथित भूमिका के लिए हिरासत में लिया गया था. दिल्ली पुलिस ने दावा किया था कि फरवरी के अंतिम सप्ताह में उत्तर पूर्वी दिल्ली में भड़की हिंसा में उमर का हाथ है. उमर को मैं एक दशक से अधिक समय से जानता हूं. वह असहज करने वाले सवाल पूछने वाला नौजवान है जो पुराने किस्म के नेताओं से अलग है और जो कठिन वक्त की राजनीति में पैदा हुए अपने साथियों को प्रेरित करता है. वह अमन और सांप्रदायिक सद्भाव की खातिर कई तरह की पहलों में शामिल रहता है.

उमर को आरोपी बनाया गया है और 6 मार्च को दायर एफआईआर संख्या 59/2020 के तहत गिरफ्तार किया गया है. उस पर घृणा फैलाने, जिसके चलते हुई मौत, धन उगाहने और षडयंत्र करने से संबंधित दमनकारी गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 (यूएपीए) की चार धाराओं, हत्या और दंगे से लेकर अतिक्रमण से संबंधित भारतीय दंड संहिता की 18 धाराओं, सार्वजनिक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम, 1984 की दो धाराओं और शस्त्र अधिनियम, 1959 की दो धाराओं के तहत आरोप लगाए गए हैं. समाचार रिपोर्टों के अनुसार 14 सितंबर को, कड़कड़डूमा जिला अदालत के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत ने उमर को दस दिन की पुलिस हिरासत में भेज दिया है. पुलिस ने अदालत को बताया था कि वे 11 लाख पेजों के दस्तावेजों के बारे में उमर से पूछताछ करना चाहती थी. इससे पहले 31 जुलाई को पुलिस ने उमर से पांच घंटे पूछताछ की थी और उनका फोन जब्त कर लिया था. गिरफ्तारी के दिन लगभग 12 घंटे तक पूछताछ की.

हिंसा की दिल्ली पुलिस की जांच बेतुकी है. उमर को पुलिस की अपराध शाखा के नारकोटिक्स यूनिट के सब इंस्पेक्टर अरविंद कुमार को आए एक अनाम मुखबिर द्वारा दिए गए बयान के आधार पर आरोपी बनाया गया है. प्राथमिकी के अनुसार, मुखबिर ने उमर, दानिश नामक एक शख्स और दो अन्य व्यक्तियों की गुप्त बैठकें कराईं थी. क्या यह मुमकिन लगता है कि नारकोटिक्स यूनिट का एक मुखबिर उन "गुप्त बैठकों" में शरीक रहा जिनमें "दिल्ली में दंगा भड़काने की सोची-समझी साजिश" रची जा रही थी. लेकिन हम अनुभव से जानते ही हैं कि दिल्ली पुलिस की कल्पना शक्ति कितनी विशाल है.

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के साथी छात्रों के साथ 9 फरवरी को अफजल गुरू की याद में आयोजित कार्यक्रम के बाद परिसर में भड़के उपद्रव की मीडिया कवरेज देखते हुए उमर. सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी से जुड़े कई समाचार चैनलों ने खालिद को इस घटना में भाग लेने के लिए "आतंकवादी" करार दिया था. इशान तन्खा

उन तमाम लोगों की तरह जिन्हें दिल्ली पुलिस ने हिंसा के मामले में फंसाया है, उमर के नाम का जिक्र उसके खिलाफ दायर कम से कम पांच प्राथमिकियों में आरोपपत्र या पूरक आरोपपत्रों में और 13 सितंबर को पुलिस के एक हलफनामे में मिलता है. इसमें एफआईआर संख्या 65/2020 शामिल है, जिसमें आम आदमी पार्टी के पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन इंटेलिजेंस ब्यूरो के कर्मचारी अंकित शर्मा की हत्या के आरोपी हैं और एफआईआर संख्या 101/2020 भी, जिसमें 24 फरवरी को खजूरीखास इलाके में हुई हिंसा का मुख्य आरोपी हुसैन को बनाया गया है. इन दोनों एफआईआर की चार्जशीट में उमर का नाम "दंगा साजिश" के लिए लॉजिस्टिकल सपोर्ट और फंडिंग मुहैया कराने के लिए दर्ज है. फिर 22 फरवरी को जाफराबाद में नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में शामिल होने के लिए एफआईआर संख्या 50/2020 और 48/2020 दर्ज है. स्क्रॉल डॉट इन में प्रकाशित एक समाचार रिपोर्ट के अनुसार, इन दोनों एफआईआर से संबंधित तीन आरोपियों के खुलासे में खालिद का नाम आया है. ये बयान, जिनकी सत्यता पर गंभीर सवाल है, पिंजरा तोड़ नामक औरतों के एक समूह की संस्थापक देवांगना कालिता और नताशा नरवाल तथा गुलफिशा फातिमा के हैं. द वायर की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि न केवल कालिता और नरवाल के बयानों में वर्तनी में एक जैसी त्रुटियां हैं बल्कि इन बयानों पर "मैं हस्ताक्षर करने से इनकार करती हूं" लिखा है. उमर का नाम इन बयानों में फंड मुहैया कराने वाले के रूप में आया है, जिसने "गुप्त बैठकें" आयोजित कीं और भड़काऊ भाषण दिए.

एफआईआर संख्या 114/2020 का मामला इससे भी ज्यादा अजीब है. इसमें भी हुसैन प्राथमिक अभियुक्त हैं. द क्विंट की एक रिपोर्ट के अनुसार, आरोपपत्र में "सरकारी गवाह वाई" नाम के एक गुमनाम शख्स को दिखाया गया है जिसने आरोप लगाया है कि उमर उस साजिश का हिस्सा था जो हिंसा का कारण बनी. आरोपपत्र में कुछ पैराग्राफ के बाद उस गवाह का लिंग बदल जाता है. आरोपपत्र बताता है कि सीलमपुर में ओल्ड बस स्टैंड के पास, जनवरी 2020 के अंतिम सप्ताह में आयोजित एक निजी बैठक में, खालिद ने कहा था कि “खून बहाना पड़ेगा, ऐसे नहीं चलेगा. चक्का जाम ही आखिरी रास्ता है. हमें सरकार को घुटनों पर लाना है. संघियों की सरकार ऐसे नहीं मानेगी.”

इसके अलावा जिस दिन उमर को गिरफ्तार किया गया उस दिन पुलिस ने जो हलफनामा दर्ज किया उसमें एक भाषण का संदर्भ है, जो उमर ने दिया था, जिसमें फरवरी के अंत में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की यात्रा के दौरान मुस्लिम समुदाय को सड़कों पर नाकाबंदी करने के लिए उकसाया गया था. लेकिन इसका कोई विवरण नहीं है कि यह भाषण कहां और कब दिया गया था. एफआईआर संख्या 59 में 2 फरवरी को उत्तर पूर्वी दिल्ली में सड़क जाम करने के लिए उकसाने के सबूत बतौर 17 फरवरी को महाराष्ट्र के अमरावती में उमर के दिए एक भाषण का जिक्र है. इसी सड़क जाम को हिंसा भड़कने के लिए उत्प्रेरक के रूप में देखा जा रहा है. महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस जैसे सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख नेताओं ने इस भाषण को उमर की चेतावनी और दिल्ली को हिला देने वाला भड़काऊ भाषण बताया है. हालांकि उमर ने अपने भाषण में सड़क जाम करने का प्रस्ताव तो क्या जिक्र तक नहीं किया था. यह भाषण सीएए और नागरिकों के प्रस्तावित राष्ट्रीय रजिस्टर के खिलाफ इकट्ठा हुए लोगों की शांतिपूर्ण सभा में दिया गया था.

हालांकि कोई भी अस्पष्ट, गुमनाम मुखबिर द्वारा पुलिस को "गुप्त बैठकों" के बारे में बताए जाने की सत्यता के प्रमाण नहीं दे सकता, लेकिन सार्वजनिक बैठक में दिए गए भाषण की जांच करना संभव है, जिन्हें यूट्यूब और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर रिकॉर्ड और अपलोड किया गया.

उमर के शब्द थे : “जब 24 फरवरी को डोनाल्ड ट्रम्प भारत आएंगे, तो हम कहेंगे कि प्रधानमंत्री और भारत सरकार देश को विभाजित करने का प्रयास कर रहे हैं. वे महात्मा गांधी के मूल्यों को नष्ट कर रहे हैं और भारत के लोग उनके खिलाफ लड़ रहे हैं. अगर सत्ता में बैठे लोग भारत को विभाजित करना चाहते हैं तो भारत के लोग देश को एकजुट करने के लिए तैयार हैं.”

उन्होंने आगे कहा, “हम हिंसा का जवाब हिंसा से नहीं देंगे. हम नफरत का जवाब नफरत से नहीं देंगे. अगर वे नफरत फैलाते हैं, तो हम इसका जवाब प्यार से देंगे. अगर वे हमें लाठियों से पीटते हैं, तो हम तिरंगा पकड़े रहेंगे. अगर वे गोलियां चलाते हैं, तो हम संविधान को थामे रखेंगे. अगर वे हमें जेल में डाल देंगे, तो हम जेल में गाएंगे, सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा.”

एक समय था जब एकता और प्रेम की, अहिंसा की बात करने वाले लोगों की प्रशंसा और सम्मान किया जाता था. वे दिन अब लद गए हैं. हम एक अलग ही समय में जी रहे हैं या शायद एक अलग देश में ही. आज प्रेम, अहिंसा और एकता जैसे शब्द, संविधान तथा इसकी प्रस्तावना के आह्वान और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व, एकजुटता और सहिष्णुता की परंपराओं को याद करने के किसी भी कार्य के लिए आपको आतंकवाद का समर्थन करने और आतंक फैलाने के आरोप में यूएपीए के तहत कैद किया जा सकता है.

उमर खालिद 15 अप्रैल 2018 को दिल्ली के पार्लियामेंट स्ट्रीट पर एक विरोध प्रदर्शन में. जम्मू-कश्मीर के कठुआ जिले में अल्पसंख्यक बकरवाल समुदाय की आठ साल की बच्ची के साथ हुए बलात्कार और हत्या की सुस्त जांच के विरोध में फिल्म निर्माताओं सबा दीवान और राहुल रॉय द्वारा नॉट इन माई नेम नाम से विरोध आयोजित किया गया था. इशान तन्खा

उमर की गिरफ्तारी के एक दिन बाद प्रकाशित इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में बतया गया है कि “स्पेशल सेल द्वारा अब तक जिन बीस लोगों को गिरफ्तार किया गया है उनमें 16 लोगों को यूएपीए के तहत हिरासत में लिया गया है. चार को जमानत मिल गई है जबकि 15 अभी भी जेल में हैं.” उसी दिन राहुल रॉय और सबा दीवान को भी पुलिस ने हिंसा से संबंधित पूछताछ के लिए तलब किया. दोनों फिल्म निर्माता हैं और आर्टिस्ट्स यूनाइट नामक एक आयोजन में उनकी प्रमुख भूमिका रही है. यह आयोजन शांति और सांप्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा देने में सक्रिय रहा है. अपूर्वानंद जैसे शिक्षाविदों से भी पूछताछ की जा रही है. हम सभी ने लव जिहाद या प्रेम आतंकवाद जैसी कॉन्सपिरेसी थ्योरी के बारे में सुन रखा है जिसे आमतौर पर दक्षिणपंथी हिंदू संगठनों द्वारा प्रचारित किया जाता है. वे लोग दावा करते हैं कि मुस्लिम पुरुष हिंदू औरतों को लुभाते हैं और उनका धर्म बदलते हैं. मुझे लगता है कि हमें प्रेम आतंकवाद के बारे में सुनने की आदत डालनी होगी. यह शासन प्यार से सबसे अधिक डरता है.

मुझे पहली बार नौजवान उमर के बारे तब पता चला जब उसने एक भरे हुए सभागार की अंतिम पंक्ति से उठकर मुझसे एक कठिन सवाल पूछा था. मैं भारत में कैदियों और विशेष रूप से राजनीतिक कैदियों की स्थिति पर एक कार्यक्रम में बोल कर रहा था. वे अब से अलग दिन थे. राज्य तब भी एक हिंसक, दमनकारी संस्था थी. मीडिया का बड़ा हिस्सा तब भी धूर्त और घोर अवसरवादी था. उच्च शिक्षा तब भी आज जैसी ही गड़बड़ थी लेकिन पूरे भारत में कॉलेज कैंपसों में सवालों की रोशन चिंगारी धधक रही थी. उमर और उसके चंद नजदीकी कॉमरेडों और मेरे बीच उम्र का काफी फासला होने के बावजूद, हमारे कुछ मामूली मतभेदों के बावजूद या अपने राजनीतिक नजरियों में अंतर होने के बावजूद इन पिछले दस सालों में हमारे बीच दोस्ताना रिश्ता बना है. यह उसके और उसके दोस्तों द्वारा मुझसे कठिन सवाल पूछ कर कायम की गई दोस्ती है. कभी-कभी मेरे पास भी जवाब नहीं होते और मैं जवाब में एक और कठिन सवाल उठा देता हूं.

दिसंबर 2015 की एक ठंडी रात में उमर के साथ मेरी दोस्ती शुरू हुई प्रेम, स्वतंत्रता और नैतिकता पर चर्चा करते हुए हुई. उमर उस वक्त जेएनयू में पढ़ रहा था. जेएनयू हॉस्टल मीटिंग में अपनी बात रखने के बाद उमर और उसके दोस्तों ने मुझसे पूछा था कि वाम के अंदर संवेदना और एकजुटता की नई भाषा सीखने और समझने के उनके विचार को मैं कैसे देखता हूं. उन्होंने मुझे बताया कि वह एक ऐसी राजनीति का सपना देखते हैं जिसमें तमन्ना और उसकी जटिलता की इज्जत होगी और इन बातों को धुतकारा नहीं जाएगा, जहां क्रांतिकारी सिद्धांत प्रेम और चाहत को दर्ज करने की जगह देते हों. मेरे सामने एक नया और गंभीर उमर मौजूद था. उससे पहले मैं जिस उमर को जानता था वह फायरब्रांड था, एक ऐसा क्रांतिकारी जिसके लिए क्रांति का अर्थ ताप था, उजाला नहीं. लेकिन कुछ था जो बदल गया था और वह बदलाव सुखद था.

उस रात हम लोग देर रात तक बतियाते रहे और एक वक्त ऐसा आया जब हमारी बातचीत भविष्य की कल्पना में गोते लगाने लगी. मैंने उमर और उसके दोस्तों से कहा कि मुझे लगता है कि एक ऐसा वक्त आएगा की एक आक्रमक, दंभी और सनकी राज्य विश्वविद्यालय परिसर में घुसपैठ करेगा और छात्रों और नौजवानों की जिंदगी में बहुत अधिक दखलअंदाजी करने लगेगा. उस वक्त छोटी-छोटी चीजें, जैसे तुम किस से प्यार करते हो, कैसे प्यार करते हो या क्या बोलते या क्या पढ़ते हो या क्या सोचते हो, संदिग्ध बना दी जाएंगी. उस वक्त इसकी संभावना बहुत दूर लग रही थी और आज यह डरावनी हद तक करीब आ गया है.

फिर आई 2016 की 9 फरवरी. उस दिन की घटना ने, रोहित वेमुला की आत्महत्या के तीन हफ्तों बाद, राजनीतिक रूप से आसक्त मानी जाने वाली पीढ़ी के भीतर तीव्र रूप से नई, राजनीतिक चेतना का संचार कर दिया. छात्रों ने छोटे स्तर पर कविता पाठ और चर्चा का कार्यक्रम आयोजित किया था. उस आयोजन का शीर्षक कश्मीरी कवि आगा शाहिद अली की कविता कंट्री विदाउट पोस्ट ऑफिस के नाम पर था. वह कार्यक्रम अफजल गुरु की अन्यायपूर्ण फांसी की याद में आयोजित किया गया था. इस कार्यक्रम पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने हमला बोल दिया और वहां मौजूद मौजूद पत्रकारों ने हमले का सीधा प्रसारण किया. कुछ अजनबियों ने आपत्तिजनक नारे लगाए जिसमें भारत के टुकड़े करने की बात थी और फिर उस रात भारतीय टीवी स्टूडियों ने एक नई शब्दावली गढ़ी “टुकड़े टुकड़े गैंग”. उमर या उसके साथियों ने कभी “टुकड़े टुकड़े” नारा नहीं लगाया लेकिन वह नारा आज तक रेडिकल छात्रों और नौजवान कार्यकर्ताओं की पूरी पीढ़ी को सता रहा है. दिल्ली पुलिस ने उमर और उसके साथी अनिर्बान भट्टाचार्य और तत्कालीन जेएनयू छात्र संघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार पर मामला दर्ज कर लिया. तीनों को अल्प समय के लिए दिल्ली पुलिस ने हिरासत में ले लिया और फिर बाद में जमानत पर रिहा कर दिए गए. इसके आगे की कहानी हम सभी जानते हैं.

उस वक्त से लेकर आज तक के सफर में मैंने उमर को विचारवान, परिपक्व, शानदार वक्ता और सोचने समझने वाले राजनीतिक व्यक्तित्व में बदलते देखा है. उसे मुश्किलों का सामना करना पड़ा है, मीडिया ने उसे गालियां दीं और एक बार तो उसकी हत्या का प्रयास भी हुआ. उसका शांत व्यक्तित्व आकर्षित करता है. वह नैतिक मिसाल पेश कर लोगों की अगुवाई करता है जो शांत लेकिन ठोस नैतिक बुनियाद पर टिकी है. मैं इसे उत्प्रेरक और चुंबकीय ताकत मानता हूं ना कि भाषणबाज मरदानगी से प्रेरित ताकत और प्रभाव. नेतृत्व की उसकी सोच में चालबाजी के लिए जगह नहीं है.

2015 की उस सर्द रात में जब हम बातें कर रहे थे तब वह वक्त आज की तरह मनहूस नहीं था. उस समय हम एक छिन्न भिन्न सत्तातंत्र के बचेखुचे अवशेषों का सामना कर रहे थे जो सत्ता इतनी आलसी थी कि लोकतांत्रिक हो नहीं सकती थी और इतनी ढीली-ढाली थी कि सर्वसत्तावादी नहीं बन पा रही थी जिसकी गुप्त मंशा वह रखती थी. फिलहाल हम एक अघोषित आपातकाल के दुस्वप्न में जी रहे हैं.

अभी कुछ सप्ताह पहले ही उमर और उसका एक दोस्त मुझसे मिलने आए थे और हमने देर रात तक बात की थी. इस बार जब उमर आया तो हमने इस्लाम के खुलेपन, लोकतांत्रिक, सहनशीलता, जिज्ञासु, समतावादी, समाजवादी, नारीवादी और इंसाफपसंद विचार के बारे में बातचीत की इसकी संभावनाओं को अमली जामा पहनाने की कोशिश पर बात की. यह इस्लाम की एक ऐसी विरासत है जो इस समाज के नौजवान लड़कों और लड़कियों से ताल्लुक रखती है जिन्होंने शाहीन बाग को जन्म दिया और बदले में जिन्हें शाहीन बाग ने आकार दिया.

उस दिन हमने समरद और हल्लाज के अल अराबी और अल गफारी, कर्बला के जुनून और मदीना के कॉल, मौलाना भसानी और नजरुल इस्लाम और मुजफ्फर अहमद और अब्दुल कलाम आजाद, हजरत मोहनी और हामिद दलवाई, फैज अहमद फैज, अहमद फराज, फेमीदा रियाज और साहिर लुधियानवी, नोकिया शेखावत हुसैन और फातिमा शेख, भगत सिंह, अली शरियाती, आलम खुंदमीरी, इकबाल अहमद और आंबेडकर, नौजवान और बुजुर्ग मार्क्स और हमेशा आसपास रहने वाली रोजा लक्जमबर्ग की बात की. हमने उस पूरी भाषा पर तकरीर की जो गुम हो चुकी है क्योंकि इनमें से बहुत सारे नाम, जो पहले सामान्य ज्ञान का हिस्सा थे, अब वैसे नहीं रह गए हैं. उस शाम हम से मुखातिब थी बेहतर दुनिया को ना जाने कब से तरस रहीं शताब्दियां और इच्छाएं. हमने अध्ययन समूह और विचार विमर्श मंच बनाने की योजना बनाई, खासकर नौजवान मुसलमानों और औरतों के लिए ताकि वे अपनी विरासत के मानवतावादी, दुनियावी और लोकतांत्रिक रूप से जुड़ सकें.

हमने बात की कि कैसे उमर सभी कामगार लोगों और नौजवानों, अल्पसंख्यक की चिंताओं को सुनने और उनसे बात करने का रास्ता बना सकता है. यह उसका राजनीतिक, सांस्कृतिक और नैतिक प्रोजेक्ट है. कैसे उत्तर राष्ट्रवादी घड़ी में यह प्रोजेक्ट हकीकत बन सकता है और वह कैसे महाद्वीप की जमीन पर खड़ा होगा. कैसे यह प्रोजेक्ट प्रेम, प्रतिरोध और एकजुटता का नेटवर्क और संपर्क बना सकता है. कैसे उमर सभी भारतीयों को भारतीयों की तरह और दक्षिण एशियाई से दक्षिण एशियाई की तरह संवाद कर सकता है. कैसे वह सभी मुसलमानों का रफीक हो सकता है, खासकर भारत में कैसे मुसलमान होने के मायने और भविष्य के नागरिक होने के बीच के टूटे तारों को नए सिरे से स्थापित और दुरुस्त कर सकता है.

अपनी बातचीत में हमने गैर सत्तावादी और लोकतांत्रिक वाम की संभावना के बारे में विचार किया जो भारत में और दुनिया भर में नए भविष्य के निर्माण में मददगार साबित हो सकता है. उस बातचीत में उमर ने क्रिकेट के प्रति अपने जुनून के बारे में और उस कठिन संवाद के बारे में बताया जो अपने विश्वास को लेकर उसने खुद से और अपने नजदीकियों से किया था. उमर ने पढ़ने, पढ़ने और ज्याद पढ़ने की अपनी इच्छा के बारे में बताया. जाते जाते हमने वादा किया कि हम किताबों की एक सूची तैयार करेंगे जिनमें मुक्तिकामी थियोलॉजी का रास्ता होगा जो दक्षिण एशियाई इस्लाम के रंग में रंगी होगी.

उमर खालिद, 2 फरवरी 2020 को दिल्ली के शाहीन बाग में जमा लोगों को संबोधित करते हुए. जमा लोग नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 और नागरिकों के प्रस्तावित राष्ट्रीय रजिस्टर का विरोध कर रहे थे. शाहिद तांत्रे/कारवां

उमर जब जा रहा था तो उसने कहा कि उसे उम्मीद है कि कैद कर लिए जाने पर कम से कम उसे पढ़ने का वक्त मिलेगा और मैंने उससे वादा किया कि मैं उसका लाइब्रेरियन बन जाऊंगा उसके लिए किताबों की सूची बनाऊंगा और कारावास में उन किताबों को पहुंचाने की कोशिश करूंगा. हमें अपना काम करते रहना होगा चाहे उमर को बहारी दुनिया में या जेल की दीवारों के घेरे में वक्त मिले.

आज जो लोग इस देश पर शासन चला रहे हैं उन्होंने बड़ी भारी गलतियां की हैं. इन लोगों ने उमर, देवांगना कालिता, नताशा नरवाल, गुलफिशा फातिमा जैसे नौजवानों को कैद किया है और उन पर मुकदमा चलाया है और रोहित वेमुला जैसे शानदार इंसानों का जीना असंभव कर दिया है. इन लोगों ने नौजवान महिला कार्यकर्ता और जामिया मिलिया इस्लामिया की छात्रा सफूरा जरगर को उत्पीड़ित किया, आईसा की अध्यक्ष कमलप्रीत कौर को धमकी दी है और खालिद सैफी जैसे कार्यकर्ताओं के साथ मारपीट की है. इन्होंने जेएनयू के छात्र नजीब अहमद को गायब करने की गलती की है और इन्होंने जेएनयू की छात्रा शेहला रशीद और बॉलीवुड कलाकार रिया चक्रवर्ती के खिलाफ जानबूझकर बड़े पैमाने पर नारी विरोधी मीडिया ट्रायल चलाया है.

इन लोगों ने एक पूरी पीढ़ी को अलगाव की ओर ढकेल दिया है और ऐसा कर सत्ता में बैठे लोगों को खुद को दानव और शत्रु साबित किया है. इन लोगों ने महामारी के समय परीक्षा में बैठने के लिए मजबूर कर नौजवानों को आत्मसम्मान और आदर से वंचित कर दिया. इन लोगों ने शिक्षकों का अपमान किया है और विश्वविद्यालयों को अपनी छवि में ढाला है. इन लोगों ने अर्थपूर्ण रोजगार की संभावनाओं को खत्म कर दिया है. इन लोगों ने नफरत और पतन का विस्तार किया है.

कोविड-19 के चलते अभी तक विश्वविद्यालय परिसरों, काम की जगहों और गली मोहल्लों में लोगों का जमावड़ा रोका जा रहा है इसलिए देश के नौजवानों की सत्ता के प्रति असंतुष्टि यूट्यूब चैनल में डिसलाइक बटन में दिखाई पड़ रही है. 31 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के रेडियो कार्यक्रम मन की बात को यूट्यूब चैनल अपलोड होने के एक घंटे के भीतर ही 10 लाख से ज्यादा डिसलाइक मिले. लेकिन यह ऑनलाइन गुस्सा कब ऑफलाइन आक्रोश की सुनामी में बदल जाए कोई नहीं कह सकता. जल्द ही लोग सड़कों, चौराहों पर निकल आएंगे. हर सत्ताधारी को गुमान रहता है कि उससे कोई नहीं जीत सकता लेकिन हमने स्कूलों में पढ़ा है और जानते हैं कि राजा नंगा है.

उमर खालिद हमारे वक्त का हीरो है. वह खामोश नहीं रहेगा और ना ही उसे जेल में डाल कर खामोश किया जा सकता है. मुझे हैरानी नहीं होगी अगर वह अपने ऊपर चलाए जाने वाले मुकदमे को ताकत के गुमान की धज्जियां उड़ाने में, उसका भंडाफोड़ करने के लिए मंच की तरह इस्तेमाल करता है तो, जैसा कि एक अलग समय में एक अलग सत्ता के सामने एक अलग नौजवान भगत सिंह ने किया था.

एक तरफ उमर जैसे को जेल में डाल जा रहा है और उनके खिलाफ हास्यास्पद आरोपपत्र तैयार किए जा रहे हैं और वहीं दूसरी ओर फरवरी 2020 में जिन लोगों ने हत्याएं की और हत्या करने के लिए लोगों को उकसाया उन्हें सम्मानित किया जा रहा है, बढ़ावा दिया जा रहा है और संरक्षण दिया जा रहा है. ऐसा करना सत्ता की मजबूती का प्रमाण नहीं है बल्कि इससे पता चलता है कि वह कितनी कमजोर है, कितनी बीमार है और कितनी क्षुद्र हो चुकी है. यह दिखाता है कि उस सत्ता के दिन लद चुके हैं क्योंकि तानाशाह कोई भी हो वह नौजवान के शाप को झेल नहीं सकता.