Thanks for reading The Caravan. If you find our work valuable, consider subscribing or contributing to The Caravan.
3 अक्टूबर को लखीमपुर खीरी में कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसानों को गाड़ियों से रौंदने की घटना में जिन आठ लोगों की मौत हुई उनमें 33 वर्षीय पत्रकार रमन कश्यप भी थे. घटनास्थल पर मौजूद एक अन्य पत्रकार अनिल कुमार मौर्य ने कारवां को बताया कि वह और रमन उस वक्त एक दूसरे को अपना विजिटिंग कार्ड दे रहे थे कि तभी एक काली एसयूवी आई और रमन को टक्कर मारती हुई आगे निकल गई. यह गाड़ी केंद्रीय मंत्री अजय कुमार मिश्रा “टेनी” के काफिले की थी. मौर्य ने बताया कि पहले तो वह घटनास्थल से भाग गए लेकिन बाकी पूरे दिन वह रमन को ढूंढते रहे और सुबह 3 बजे घर लौटे. ठीक इसी समय रमन के पिता राम दुलारे को स्थानीय मुर्दाघर से एक फोन आया कि उन्हें अपने बेटे के शव की पहचान करने के लिए आना है.
रमन क्षेत्रीय टेलीविजन चैनल साधना प्लस न्यूज में तहसील संवाददाता थे. समाचार चैनल न्यूज वन इंडिया के पत्रकार सुरजीत चानी रमन के परिवार को सालों से जानते हैं. वह इस घटना में खुद भी घायल हुए थे. उन्होंने बताया कि रमन एक पढ़ा-लिखे समझदार युवा थे. चानी ने मुझे बताया, “अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने निजी स्कूलों में पढ़ाना शुरू कर दिया था. वह शादीशुदा थे और उन पर बहुत सारी जिम्मेदारियां थीं. रमन अपने पीछे पत्नी अनुराधा और दो बच्चों- 11 वर्षीय वैष्णवी और दो वर्षीय अभिनव- माता-पिता, एक बड़ी बहन और दो छोटे भाई छोड़ गए हैं.
चानी ने बताया कि रमन का छोटा सा पत्रकारिता करियर किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है. पिता राम दुलारे किसान हैं जिनके पास करीब तीन हेक्टेयर जमीन है. चानी ने कहा, "करीब डेढ़ साल पहले रमन स्थानीय खनन माफिया के साथ एक भूमि विवाद में उलझ गए थे." उन्होंने बताया कि खनन माफिया के तार सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी से जुड़े थे और स्थानीय विधायक और तथाकथित पत्रकारों के साथ माफिया का उठना-बैठना था. रमन के भाई पवन ने मुझे बताया कि पत्रकारिता में आकर रमन को स्थानीय प्रशासन के बीच पहुंच बना लेने की उम्मीद थी ताकि परिवार को विवाद के कारण होने वाले उत्पीड़न से सुरक्षा दिला सकें.
हिंदी अखबार दैनिक भास्कर और ठोस खबर के पत्रकार जसप्रीत सिंह ने मुझे बताया, "रमन को पत्रकारिता का शौक था." उन्होंने कहा कि रमन को वह बचपन से जानते थे और अक्सर रमन उनसे इस पेशे में कैसे आ सकते हैं पूछा करते थे. साधना प्लस न्यूज में नौकरी की पेशकश 2021 में पहले जसप्रीत को ही की गई थी. चूंकि उनके पास पहले से ही नौकरी थी इसलिए उन्होंने रमन से कहा कि वह यह काम कर लें. और वह तुरंत राजी हो गए.
ऐसा करते ही रमन भारत के छोटे शहरों के पत्रकारों की उस बिरादरी में आ गए जिनके लिए पत्रकारिता निश्चित आजीविका और खर्चा चलाने की गारंटी नहीं होती. उन्होंने अपने गृहनगर निघासन के एक निजी स्कूल गुरुकुल मॉडर्न एकेडमी में पढ़ाना जारी रखा. स्कूल से उन्हें हर महीने सात हजार रुपए मिलते थे. जसप्रीत ने कहा, "उनके कई छात्र विदेश में हैं और कई विदेश जाने की तैयारी कर रहे हैं." रमन को प्रकाशित होने वाली हर रिपोर्ट के लिए महज 500 रुपए मिलते थे. यह रकम भी दो से तीन महीने में ही हाथ में आती थी.
रमन स्थानीय पत्रकारों के साथ दैनिक सामाजिक-राजनीतिक चर्चाओं में भी शामिल होते थे. "कभी-कभी हम रात 9 बजे तक बात करते थे," जसप्रीत ने रमन के बारे में बताया और कहा कि वह बहुत ही मिलनसार किस्म के व्यक्ति थे. शिक्षक होने के कारण उनका काफी सम्मान था. जसप्रीत ने आगे कहा, "उनकी साफ छवि और स्वच्छ पत्रकारिता ने उन्हें और सम्मान दिलाया."
चानी ने कहा कि नौकरी के कुछ ही महीनों में रमन ने पत्रकारिता का कौशल हासिल कर लिया और तरक्की पाकर जिला संवाददाता हो गए. चानी ने कहा, "चाहे किसानों का विरोध हो या पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दाम, रमन की पत्रकारिता आम लोगों को प्रभावित करने वाले मुद्दों पर केंद्रित थी." वह अपनी तहसील में हर उल्लेखनीय घटना को कवर करने की कोशिश करते थे. 3 अक्टूबर को वह अपने साथी पत्रकारों के साथ उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की यात्रा को कवर करने के लिए गए थे जिसकी आंदोलनकारी किसानों ने काले झंडे दिखाकर विरोध करने की योजना बनाई थी. दोपहर तक यह स्पष्ट हो गया था कि मौर्य का मार्ग बदल दिया गया है और प्रदर्शनकारी तब शांतिपूर्वक लौटने लगे.
चानी दोपहर करीब 2.45 बजे मौके पर पहुंचे और रिकॉर्डिंग करनी शुरू कर दी. "वहां लगभग एक दर्जन पत्रकार थे," उन्होंने मुझे बताया. “रमन भी हमसे कुछ दूरी पर वीडियो बना रहे थे. हमने अचानक देखा कि एक कार भीड़ के बीच से तेजी से आई और किसानों और राहगीरों को कुचल कर निकल गई.” चानी ने बताया कि गाड़ी की टक्कर से कई लोग उनकी पास आकर गिरे. इसी दौरान उनका दाहिना हाथ और पैर भी घायल हो गया. हंगामे के बीच चानी ने घायल हुए एक बुजुर्ग किसान और संयुक्त किसान मोर्चा के नेता तजिंदर सिंह विर्क को अपनी कार में बिठाया और उन्हें तिकुनिया के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ले गए. लेकिन वहा कोई डॉक्टर नहीं था. उन्होंने बताया कि इसके बाद वह दोनों घायलों को जिला अस्पताल ले गए लेकिन वहां पहुंचने के तुरंत बाद बुजुर्ग किसान की मौत हो गई.
पवन ने घटना के बारे में अपने व्हाट्सएप पर तब सुना जब वह अपने छोटे भाई के साथ नैनीताल से घर लौट रहे थे. उन्होंने तुरंत रमन को फोन लगया लेकिन फोन स्विच ऑफ था. उन्होंने राम दुलारे को तिकुनिया थाने जाने को कहा और रमन के साथी पत्रकारों से पूछताछ शुरू कर दी. उन्होंने रमन की तस्वीर भी सोशल मीडिया पर पोस्ट की. घटना के एक वीडियो में उन्होंने देखा कि रमन कार से टक्कर खाकर खेत में लुढ़क रहे हैं.
पवन ने मुझे बताया कि पुलिस ने जवाबी हमले में मारे गए भारतीय जनता पार्टी के तीन कार्यकर्ताओं के साथ रमन का शव रखा हुआ था. हालांकि जब शाम साढ़े छह बजे एम्बुलेंस पहुंची तो बीजेपी कार्यकर्ताओं को निघासन सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया जबकि रमन को सीधे मुर्दाघर. पवन ने बताया कि मुर्दाघर के वाहन चालक के साथ उनका बचपन का परिचय है जिसने उन्हें बताया कि पुलिस ने रमन को मुर्दाघर भेजते समय आवश्यक कागजी कार्रवाई पूरी नहीं की. "वे उस शव को मुर्दाघर ले जाने के लिए कहते रहे," उन्होंने कहा. "उन्होंने उसका चेहरा तक देखने नहीं दिया." पवन ने बताया कि अगर ड्राइवर ने चेहरा देखा होता, तो वह रमन को पहचान लेता और उनके परिवार से संपर्क करता.
अपने भाई की मौत के लिए तिकुनिया पुलिस को "101 प्रतिशत जिम्मेदार" ठहराते हुए पवन ने पूछा, "उन्होंने किसके इशारे पर ऐसा किया? इससे किसे फायदा हुआ? किसी ने पुलिस पर कोई सवाल नहीं उठाया और ना ही उनकी गतिविधियों की जांच की गई. मैंने इस मामले को हर अधिकारी के सामने उठाया है लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई है." एक वरिष्ठ स्थानीय पत्रकार ने नाम न छापने की शर्त पर मुझे बताया कि पुलिस की निष्क्रियता का कश्यप के संपत्ति विवाद से इनकार नहीं किया जा सकता है और इसकी जांच होनी चाहिए. निघासन पुलिस और तिकुनिया के सर्कल अधिकारी ने इस बारे में मेरे सवालों का जवाब नहीं दिया. चानी ने कहा कि विर्क के सिर पर लगभग पचास टांके लगे थे लेकिन वह बच गए तो क्या रमन को नहीं बचाया जा सकता था.
अगले दिन पवन ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई. दस दिन बाद जब उन्हें प्रथम सूचना रिपोर्ट की एक प्रति दी गई तो उन्होंने पाया कि रमन के मामले को बीजेपी के तीन कार्यकर्ताओं के मामले के साथ जोड़ दिया गया था. उन्होंने इस पर आपत्ति जताते हुए टेनी और उनके बेटे समेत 14 लोगों को नामजद करते हुए ताजा प्राथमिकी दर्ज कराई. लेकिन उन्हें अभी तक नई एफआईआर की कॉपी नहीं मिली है. नवंबर की शुरुआत में उन्होंने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 156 (3) के तहत जिला अदालत में एक याचिका दायर की जिसमें मजिस्ट्रेट को उनकी शिकायत की जांच का आदेश देने को कहा गया है.
घटना के तुरंत बाद साधना प्लस न्यूज के संपादक बृज मोहन सिंह ने दावा किया कि रमन को "कुछ लोगों ने पीट था." उन्होंने इसका कारण "गोदी मीडिया के बारे में बयानबाजी" बताया जिसके चलते "आंदोलनकारी न तो हम पर और न ही राजनेताओं पर भरोसा करते हैं. इन दोनों के बीच पिस रहे रिपोर्टर इसका खामियाजा भुगत रहे हैं.” हालांकि पवन ने मीडिया से कहा, "मैंने अपने भाई का शव देखा और इस बात का कोई संकेत नहीं है कि उसे पीट-पीटकर मारा गया है." उन्होंने कहा कि कुछ पत्रकार "हमारे मुंह में शब्द डाल कर चाहते थे कि हम वही कहें जो उन्हें लगता है कि हुआ था." उन्होंने आरोप लगाया कि आजतक के एक रिपोर्टर ने दावा किया कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला है कि रमन को लाठियों से पीटा गया था. जब पवन ने रिपोर्टर से कहा कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट अभी नहीं आई है तो रिपोर्टर ने जवाब दिया, "अगर तुम मृतक के भाई नहीं होते, तो हम तुमसे इतनी विनम्रता से बात नहीं करते."
आजतक चैनल के एक प्रवक्ता ने कारवां से एक ईमेल के जवाब में कहा कि उनका रिपोर्ट बस पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बारे में उसे मिली जानकारी की पुष्टि करने के लिए कह रहा था और उसने कभी भी पवन या परिवार के किसी सदस्य से अशिष्टता या किसी तरह के आक्रामक तरीके से बात नहीं की."
चानी ने कहा कि रमन जैसे पत्रकारों के पास बहुत सीमित कानूनी विकल्प होते हैं लेकिन सौभाग्य की मान लें कि रमन की कई बायलाइन रिपोर्टें आ चुकी थीं इसलिए चैनल कम से कम यह नहीं कह सकता कि रमन कर्मचारी नहीं थे.
रमन के साथी पत्रकार उनको पेशे का शहीद मानते हैं. जसप्रीत ने बताया कि जब उनका पार्थिव शरीर लखीमपुर से तिकुनिया लाया गया तो श्रद्धांजलि देने के लिए भारी भीड़ उमड़ी पड़ी. बच्चों से लेकर बूढ़े तक हर कोई उनका दीवाना था. जसप्रीत खुद अपने दोस्त की मौत से इतने दुखी हुए कि एक तस्वीर तक क्लिक नहीं कर पाए.
चानी ने याद करते हुए बताया कि रमन अक्सर कहा करते थे, “भैया, मेरा सपना है कि जब मेरी बेटी बड़ी हो जाए, तो वह किसी बड़े न्यूज चैनल में पत्रकार बने. मैं चाहता हूं कि हर कोई उसे एंकर के रूप में समाचार पढ़ते हुए देखे.”
भूल सुधार : रिपोर्ट में एक स्थान पर लिखा है “अपने भाई की मौत के लिए निघासन पुलिस को "101 प्रतिशत जिम्मेदार" ठहराते हुए पवन ने पूछा”. यहां निघासन के स्थान पर तिकुनिया पुलिस होगा. इस भूल को हमने सुधार लिया है. कारवां को इस गलती के लिए खेद है.
(यह रिपोर्ट पहले कारवां अंग्रेजी के दिसंबर 2021 के मीडिया विशेषांक में मूल अंग्रेजी में प्रकाशित हुई थी. अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)