मुआवजा विवाद के बीच, प्लाचीमाडा में दुबारा काम शुरू करने का कोका-कोला का प्रस्ताव

मधुराज/मातृभूमि

हिंदुस्तान कोका-कोला बेवरेज प्राइवेट लिमिटेड (एचसीसीबी) ने केरल के पालक्काड जिले में पेरुमट्टी ग्राम पंचायत के अधिकार क्षेत्र में कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी (सीएसआर) पहल के तहत केरल सरकार को एक प्रस्ताव भेजा है. अक्टूबर में पंचायत ने मासिक मलयालम पत्रिका केरालियम के संपादक एस सारथ द्वारा दायर आरटीआई के जवाब में यह प्रस्ताव साझा किया. एचसीसीबी, संयुक्त राज्य अमेरिका की कोका-कोला कंपनी की भारतीय इकाई है. प्रस्ताव के अनुसार, अन्य गतिविधियों के अलावा इस सीएसआर कार्यक्रम में ड्रिप सिंचाई के जरिए "अल्ट्रा हाई डेंसिटी प्लांटेशन" कृषि तकनीक का उपयोग करने के लिए किसानों को प्रशि​क्षण देने के लिए एक "अत्याधुनिक उच्च गुणवत्ता" नर्सरी और एक प्रदर्शन फार्म शामिल होगा. यह कार्यक्रम कंपनी के स्वामित्व वाली 34 एकड़ जमीन पर चलाया जाएगा, जो पालक्काड जिले की आदिवासी बहुल बस्ती प्लाचीमाडा में है.

एचसीसीबी पर प्लाचीमाडा में 34 एकड़ भूमि पर कथित नियमों के उल्लंघनों का आरोप है. साल 2000 में पेरुमेट्टी पंचायत ने एचसीसीबी को प्लॉट पर बॉटलिंग प्लांट स्थापित करने का लाइसेंस दिया था. एचसीसीबी द्वारा काम शुरू करने के तुरंत बाद प्लाचीमाडा के स्थानीय लोगों ने संयंत्र के खिलाफ जबरदस्त विरोध किया. कंपनी पर पानी की गंभीर कमी पैदा करने और पानी को जहरीला बनाने का आरोप लगाया गया. इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली में प्रकाशित जनवरी 2006 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, फैक्ट्री कंपाउंड में छह बोरवेल और दो खुले कुएं रोजाना लगभग आठ लाख से 15 लाख लीटर पानी का इस्तेमाल करते थे.

आंदोलन के चलते एचसीसीबी ने साल 2005 से संयंत्र का संचालन नहीं किया है. राज्य सरकार द्वारा गठित एक उच्च-स्तरीय समिति ने 2010 में संयंत्र पर एक व्यापक रिपोर्ट प्रस्तुत की. राज्य के तत्कालीन अतिरिक्त मुख्य सचिव के. जयकुमार के नेतृत्व में समिति ने निष्कर्ष निकाला कि एचसीसीबी पर 216.26 करोड़ रुपए के "मुआवजे का दावा बनता है." फरवरी 2011 में राज्य सरकार ने प्लाचीमाडा कोका-कोला विक्टिम्स रिलीफ एंड कॉम्पेन्सेशन क्लेम स्पेशल ट्रिब्यूनल बिल पारित किया, जिसने मुआवजे की उचित राशि का निर्धारण करने के लिए अधिकरण गठित करने की सिफारिश की.

लेकिन इस बिल को कभी लागू नहीं किया गया. राज्य के राज्यपाल ने भारत के राष्ट्रपति के विचारार्थ बिल को सुरक्षित रख लिया. उस वर्ष मार्च में, इस बिल को केंद्र सरकार को भेज दिया गया और फिर अगले चार महीनों तक यह गृह मंत्रालय के पास रहा. नवंबर 2015 में जाकर केरल के राज्यपाल को सूचित किया गया था कि भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने बिल से "अपनी सहमति वापस ले ली है."

अभी तक प्लाचीमाडा के निवासियों को कोई राहत नहीं दी गई है. सारथ ने बताया, "अभी तक कोका-कोला के बारे में बिल भी लंबित है, वे कुछ नया शुरू कर रहे हैं." स्थानीय राजनीतिक नेताओं और पंचायत अधिकारियों ने एचसीसीबी द्वारा प्लाचीमाडा के पीड़ित निवासियों को मुआवजा दिए बिना एक नई पहल शुरू करने के प्रस्ताव पर अपना विरोध व्यक्त किया है. लेकिन पालक्काड जिला पंचायत अध्यक्ष के शांताकुमारी ने मुझे बताया कि राज्य सरकार ने ही स्थानीय प्रशासन को विचार के लिए प्रस्ताव भेजा था. हालांकि, उन्हें याद नहीं है कि प्रस्ताव जिला पंचायत को कब भेजा गया था.

एचसीसीबी के प्रस्ताव में सीएसआर पहल के तीन चरणों को विस्तार से बताया गया है. पहले चरण के लिए, एचसीसीबी ने एक स्वास्थ्य सेवा केंद्र, एक कैरियर-विकास केंद्र, महिलाओं के लिए एक व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र और स्कूल के छात्रों के लिए एक कोचिंग केंद्र का प्रस्ताव किया है. कंपनी ने यह भी कहा कि वह गैर-लाभकारी संस्थाओं के साथ कैरियर-विकास केंद्र और महिलाओं के लिए केंद्र के संचालन में सहयोग करेगी.

इस पहल के दूसरे चरण के लिए, एचसीसीबी ने एक बहुराष्ट्रीय संगठन, जैन इर्रिगेशन सिस्टम्स लिमिटेड की सहायक कंपनी, जैन फार्म फ्रेश फूड्स लिमिटेड की साझेदारी का प्रस्ताव दिया. लाइव मिंट की अगस्त 2018 की रिपोर्ट के अनुसार, जेएफएफएफ आमों की दुनिया की सबसे बड़ी प्रोसेसर है. एचसीसीबी ने जेएफएफएफ के साथ पहले भी भागीदारी की है. सीएसआर पहल के माध्यम से, एचसीसीबी जेएफएफएफ द्वारा प्लाचीमाडा के एक मौजूदा उद्यम "प्रोजेक्ट उन्नति" का विस्तार करेगी. प्रोजेक्ट उन्नति, आमों को उगाने के लिए जेएफएफएफ की “अल्ट्रा हाई डेंसिटी प्लांटेशन” तकनीक के इस्तेमाल को बढ़ावा देने और किसानों को इसे अपनाने के लिए प्रोत्साहित करता है. एचसीसीबी की वेबसाइट के अनुसार, यूएचडीपी तकनीक "एक विशेष छंटाई प्रक्रिया के साथ ड्रिप सिंचाई और उच्च वृक्ष घनत्व का उपयोग करके जल और भूमि संसाधनों का संरक्षण करती है."

प्रस्ताव के अनुसार, अपनी प्लाचीमाडा शाखा में, प्रोजेक्ट उन्नति ने यूएचडीपी तकनीक का उपयोग करके "तोतापुरी आम, केला और नारियल की पैदावार" की है. परियोजना की लागत "आम, केला और नारियल के लिए संभावित पैदावार के लिए एक विस्तृत अध्ययन करके तय की जाएगी." इसे 15 वर्षों की अवधि में लागू किया जाएगा. सारथ ने कहा कि अगर पहल के लिए एचसीसीबी के प्लॉट में बोरवेल से पानी की निकासी होती है तो इसका "भारी विरोध होगा."

पहल का तीसरा और अंतिम चरण पहले दो चरणों की “सफलता और सीख” के आधार पर “उन्नति के दायरे का विस्तार करेगा, जिसमें कॉफी, अनानास, मसाले आदि शामिल हैं.” एचसीसीबी के प्रस्ताव में उल्लेखित है कि इसके लिए प्लाचीमाडा में जितनी जमीन उपलब्ध है, उससे अधिक जमीन की आवश्यकता हो सकती है. इस स्थिति में, जेएफएफएफ प्रस्ताव को लागू करने के लिए तमिलनाडु के उडुमालपेट क्षेत्र में अपनी जमीन पर अतिरिक्त बुनियादी ढांचा तैयार करेगा. सारथ ने मुझे बताया कि यह स्पष्ट नहीं था कि प्रस्तावित पहल किसी औद्योगिक या कृषि उद्देश्य के लिए है या नहीं. मैंने एचसीसीबी और जेएफएफएफ को प्रस्ताव के बारे में अधिक जानकारी देने का अनुरोध करते हुए ईमेल किया, लेकिन मुझे कोई जवाब नहीं मिला. अगर वे जवाब देते हैं तो रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.

2015 में जब से राष्ट्रपति ने अपनी असहमति जाहिर की, एक स्थानीय समूह, कोका-कोला विरोधी जनसंघर्ष समिति, केरल विधानसभा में मुआवजे के बिल को फिर से पेश किए जाने की मांग कर रहा है. राज्य में 2016 में सत्ता में आई वाम लोकतांत्रिक मोर्चा गठबंधन सरकार का उल्लेख करते हुए समिति के अध्यक्ष विलायोडी वेणुगोपाल ने कहा, “एलडीएफ के घोषणापत्र में कहा गया था कि मुआवजा दावा अधिकरण अधिनियम की अस्वीकृति के बावजूद वे आवश्यक बदलावों के साथ इसे फिर से पेश करेंगे.” उन्होंने कहा कि अप्रैल 2017 में, समिति ने एलडीएफ की निष्क्रियता के खिलाफ हड़ताल शुरू की थी जो “65 दिनों तक” चली थी.

उस साल 5 दिसंबर को जिला पंचायत द्वारा साझा किए गए एक पत्र के अनुसार, एचसीसीबी ने मुख्यमंत्री पिनराई विजयन से मुलाकात की और अन्य गतिविधियों के बीच "पानी की भरपाई, कृषि, स्वास्थ्य" के बारे में प्लाचीमाडा में कंपनी की पहलों को साझा किया. जिला पंचायत ने इस साल अक्टूबर में सीएसआर प्रस्ताव के विवरण का अनुरोध करते हुए सारथ द्वारा दायर एक अन्य आरटीआई के जवाब में एचसीसीबी का एक पत्र साझा किया था जो मुख्यमंत्री के नाम था. हालांकि इस के कुछ पन्ने गायब थे. इसमें कई समान तत्वों के साथ एक प्रस्ताव का उल्लेख किया गया था, जिसे सारथ ने आरटीआई से प्राप्त किया था. पर्यावरण कार्यकर्ता और प्लाचीमाडा संघर्ष एकता समिति के संयोजक केवी बीजू, जो एचसीसीबी से मुआवजे के लिए लड़ रहे हैं, ने मुझे बताया कि उन्होंने सोचा था कि "मुख्यमंत्री ने इस प्रस्ताव में व्यक्तिगत रूप से पहल की है." वेणुगोपाल और सारथ ने भी इसी तरह की टिप्पणी की. मुख्यमंत्री ने नए प्रस्ताव के बारे में मेरे प्रश्नों का जवाब नहीं दिया.

पालक्काड के जिला कलेक्टर डी. बालमुरली ने कहा कि उन्हें प्रस्ताव के बारे में कोई जानकारी नहीं है. लेकिन 19 मार्च 2019 को जिला पंचायत ने पेरुमेट्टी पंचायत क्षेत्र के सभागार में एक बैठक बुलाई. मैंने बैठक के मिनट्स की एक प्रति प्राप्त की, जिसमें कहा गया कि यह सीएसआर प्रस्ताव पर सरोकारवालों की राय आमंत्रित करने के लिए बुलाई गई थी. बैठक में कई पार्टियों और वर्तमान तथा भूतपूर्व पंचायत अधिकारियों ने भाग लिया. एचसीसीबी के प्रतिनिधि भी उपस्थित थे. उन्होंने परियोजना के पहले चरण में उल्लिखित प्रस्तावों को दोहराया. लेकिन उन्हें उपस्थित लोगों के एकमत विरोध का सामना करना पड़ा.

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के स्थानीय समिति के सचिव कृष्णकुमार ने कहा, "माकपा का रुख यह है कि मुआवजे के मुद्दे पर जब तक कोई निर्णय नहीं लिया जाता है, तब तक किसी भी नई गतिविधि की और कंपनी को परिचालन फिर से शुरू करने की अनुमति नहीं दी जाएगी.” पेरुमेट्टी पंचायत के अध्यक्ष मारीमुथु ने मुझे बताया कि बैठक में उपस्थित लोगों ने निर्णय लिया कि किसी भी परियोजना को मुआवजे के भुगतान के बाद ही शुरू किया जा सकता है.

सितंबर 2019 में प्लाचीमाडा संघर्ष एकता समिति ने राज्य के जल संसाधन मंत्री कृष्णकुट्टी के निवास पर विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया और इस तरह के किसी भी प्रस्ताव पर विचार करने से पहले मुआवजे के बिल पर कार्रवाई की मांग की. मंत्री चित्तूर से चार बार के विधायक हैं, जिनके प्लाचीमाडा में कृषिगत हित जुड़े हुए हैं. उन्होंने सार्वजनिक रूप से प्लाचीमाडा में एचसीसीबी की गतिविधियों का विरोध किया. लेकिन मलयालम टीवी चैनल मीडिया-वन और केरालियम की रिपोर्टों में उन पर आरोप लगाया गया है कि कृष्णकुट्टी का एचसीसीबी के साथ समझौता है.

केरालियम पत्रिका के जून 2013 अंक में प्रकाशित रिपोर्ट में आरोप की विस्तृत चर्चा की गई है. पूर्व केंद्रीय मंत्री और सांसद वीरेंद्र कुमार, जो राज्य के प्रमुख दैनिक समाचार पत्र मातृभूमि का हिस्सा हैं, ने अगस्त 2010 में समाजवादी जनता (लोकतांत्रिक) पार्टी बनाई. कृष्णकुट्टी भी पार्टी के सदस्य थे. जून 2013 में उन्हें "पार्टी विरोधी" गतिविधियों के चलते पार्टी से बाहर कर दिया गया. केरालियम की रिपोर्ट के अनुसार, उनके निष्कासन के बाद, कृष्णाकुट्टी ने सार्वजनिक रूप से आरोप लगाया कि कुमार ने उन्हें प्लाचीमाडा में एचसीसीबी के बॉटलिंग प्लांट को फिर से खोलने के लिए मनाने की कोशिश की थी. रिपोर्ट में कहा गया है कि कृष्णकुट्टी ने कहा कि कुमार और कंपनी के एक संपर्क अधिकारी ने प्लाचीमाडा में एचसीसीबी के प्लांट में बॉटलिंग प्लांट के बजाय फलों का जूस बनाने का कारखाना खोलने की पेशकश कर कृष्णकुट्टी के साथ समझौता करने का प्रयास किया. हालांकि कृष्णकुट्टी ने दावा किया कि उन्होंने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था.

केरालियम की रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि कुमार ने अगले दिन एक संवाददाता सम्मेलन में इन आरोपों का खंडन किया और एचसीसीबी के खिलाफ आंदोलन के नेता के रूप में कृष्णकुट्टी की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया. कुमार ने कृष्णकुट्टी पर आरोप लगाया कि वह एससीसीबी के इशारे पर क्षेत्र की आदिवासी कॉलोनियों में चित्तूर में अपने फार्महाउस से पानी की आपूर्ति करते हैं. कुमार ने दावा किया कि 2 अगस्त 2003 को न्यू इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया था कि कृष्णकुट्टी ने एचसीसीबी के साथ इस तरह के लेनदेन को स्वीकार किया था, जिसमें उन्हें प्लाचीमाडा के निवासियों को आपूर्ति किए गए पानी के प्रति टैंकर 15 रुपए का भुगतान किया गया था.

जब मैंने कुमार को कृष्णकुट्टी द्वारा उनके खिलाफ लगाए गए आरोपों-प्रत्यारोपों के बारे में फोन किया तो उन्होंने कहा कि उन्हें इनके बारे में मीडिया रिपोर्टों से ऐसा पता चला है. कृष्णकुट्टी ने मेरे कॉल और ईमेल का जवाब नहीं दिया. इस बीच पंचायत की बैठक के दौरान, पेरुमेट्टी पंचायत के एक पूर्व अध्यक्ष ए. कृष्णन ने कहा, "पीड़ितों को नकद मुआवजा दिए जाने तक कंपनी के किसी भी काम का समर्थन करना असंभव है."