We’re glad this article found its way to you. If you’re not a subscriber, we’d love for you to consider subscribing—your support helps make this journalism possible. Either way, we hope you enjoy the read. Click to subscribe: subscribing
जनवरी 2000 में केरल के पलक्कड़ जिले की पेरुमाटी पंचायत ने हिंदुस्तान कोका कोला बेवरेज प्राइवेट लिमिटेड (एचसीसीबी) को प्लाचीमाडा में एक बॉटलिंग संयंत्र (कारखाना) लगाने का लाइसेंस दिया. यह पंचायत के अधिकार क्षेत्र वाली एक आदिवासी बस्ती है. एचसीसीबी, अमेरिकी कंपनी कोका कोला की भारतीय बॉटलिंग इकाई है. इस 34 एकड़ भूमि पर फैले संयंत्र के बारे में निवासियों का दावा है कि कारखाना के कारण इलाके में जल्द ही पानी की भारी कमी और प्रदूषण होने लगा. एचसीसीबी के खिलाफ बड़े पैमाने पर आंदोलन शुरू हो गया, जिसमें कंपनी को संयंत्र बंद करने और प्रभावित लोगों को क्षतिपूर्ति देने की मांग की गई. हालांकि मुआवजा अाज भी एक मुद्दा है, तो भी विरोध को मिले व्यापक मीडिया कवरेज के बाद संयंत्र को 2005 में बंद कर दिया गया. लेकिन इस साल जनवरी में संयंत्र में फिर से गतिविधि शुरू हो गई.
एचसीसीबी की काम ने कथित रूप से प्लाचीमाडा के लगभग एक हजार लोगों को प्रभावित किया है. ये परिवार मुख्य रूप से अनुसूचित जाति एंव अनुसूचित जनजाति समुदायों से हैं. अक्टूबर 2006 में इकोनोमिक एंड पॉलिटिकल वीकली में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, कारखाना परिसर में लगे छह बोरवेल और दो कुओं ने प्रतिदिन 8 लाख से 15 लाख लीटर पानी का प्रयोग किया है. 2010 में, राज्य सरकार द्वारा गठित एक उच्च-शक्ति प्राप्त समिति ने एचसीसीबी के असर पर एक व्यापक रिपोर्ट सरकार को सौंपी. उस वक्त केरल सरकार के अतिरिक्त मुख्य सचिव और समिति के अध्यक्ष के. जयकुमार ने मुझे बताया कि अन्य बातों के अलावा, उन्होंने पाया कि एचसीसीबी किसानों को उच्च मूल्य का जैविक खाद बता कर कीचड़ दे रही थी. उन्होंने बताया, “गरीब लोगों ने इसे इस्तेमाल किया और पूरे खेत शुष्क और बंजर हो गए.” रिपोर्ट के निष्कर्ष में कहा गया है कि एचसीसीबी से 216.26 करोड़ रुपए “उचित मुआवजे के रूप में लिया जा सकता है”.
संयंत्र में एक बार फिर गतिविधि शुरू होने से, एचसीसीबी के कथित अपराध और मुआवजे का मामला फिर गरम हो गया है. जयकुमार समिति की रिपोर्ट के अलावा, पेरुमाटी पंचायत ने भी एचसीसीबी की जवाबदेही के लिए पिछले दो दशकों में कई प्रयास किए हैं लेकिन कंपनी ने ऐसा करने के उनके अधिकार पर बार-बार सवाल उठाया और जवाबदेही से बची रही. एचसीसीबी के खिलाफ आंदोलन से जुड़े कार्यकर्ताओं के अनुसार, राज्य में राजनीतिक दल केवल अपनी सुविधा के अनुसार उन्हें समर्थन देते हैं. पर्यावरण कार्यकर्ता के. वी. बीजू ने मुझे बताया, “दिलचस्प बात यह है कि बीजेपी, कांग्रेस और सीपीएम हमेशा कॉरपोरेट का साथ देतीं हैं.”
जब से यह कारखाना बना है तभी से यहां के आदिवासी समुदायों ने संयंत्र के खिलाफ प्रतिरोध किया है. सबसे पहले 2001 में कारखाने के पास रहने वाली मायीलम्मा ने एचसीसीबी के खिलाफ आवाज उठाई थी. वह आदिवासी संरक्षण संघम् (एएसएस) की प्रमुख नेता थी. इस समूह का गठन इलाके के आदिवासियों के हकों की सुरक्षा के लिए किया गया था. इसने प्लाचीमाडा में एचसीसीबी के संयंत्र के खिलाफ भी लौहा लिया. अप्रैल 2002 में, आदिवासी गोत्र महासभा की अध्यक्ष सी. के. जानू ने एएसएस के पहले आधिकारिक विरोध की शुरुआत की. संयंत्र को बंद कराने के अलावा एएसएस ने एचसीसीबी के खिलाफ आपराधिक जांच की मांग भी की. गैर-आदिवासी नागरिक संगठनों का समर्थन हासिल करने के लिए एएसएस का नाम बदल कर कोका कोला विरुद्ध जनकेया समारा समिति (कोका कोला विरोधी जन संघर्ष समिति) कर दिया गया. लेकिन आम तौर पर अब इसे “प्लाचीमाडा एक्शन समिति” के नाम से जाना जाता है. यह समिति एचसीसीबी से मुआवजे के लिए लड़ रही है.
2003 में ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन (बीबीसी) ने फेस द फैक्ट्स नाम की डॉक्यूमेंट्री प्रसारित की जिसके बाद इस आंदोलन पर दुनिया का ध्यान गया. इस फिल्म में दिखाया है कि प्लाचीमाडा के पानी में सीसा और कैडमियम जैसे उच्च स्तर के कार्सिनोजेन हैं. उस वर्ष अप्रैल में, पेरुमाटी पंचायत ने विरोध कर रहे समूहों के दवाब में “भूजल का अत्यधिक शोषण” का हवाला देते हुए एचसीसीबी के लाइसेंस को रिन्यू नहीं किया. इसके बाद कंपनी ने पंचायत के फैसले को अदालत में चुनौती दी. पंचायत और कंपनी के बीच यह मामला सालों तक चलता रहा.
जनवरी 2004 में पर्यावरण कार्यकर्ता वंदना शिवा ने प्लाचीमाडा में विश्व जल सम्मेलन का आयोजन किया. सम्मेलन के दौरान यहां के निवासियों ने एक प्रस्ताव मंजूर किया जिसमें कोका कोला के संचालन से "स्थानीय समुदायों के अस्तित्व” को खतरा है, कहा गया. घोषणा में यह भी कहा गया, "हम जल के बाजारीकरण, निजीकरण और कारपोरेटकरण करने के सभी आपराधिक प्रयासों का विरोध करते हैं”. इसके अगले महीने राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री ए. के. एंटनी ने जून 2004 तक संयंत्र द्वारा भूजल के उपयोग पर रोक लगा दी क्योंकि केरल में सूखा पड़ा था. अप्रैल 2005 में , केरल उच्च न्यायालय ने पंचायत को एचसीसीबी के लाइसेंस को नवीनीकृत करने का निर्देश दिया और संयंत्र को प्रति दिन 5 लाख लीटर पानी निकालने की अनुमति दे दी.
कड़े विरोध और लाइसेंस के नवीकरण के लिए पंचायत के साथ एक निरंतर संघर्ष के कारण एचसीसीबी ने 2005 के बाद से ही संयंत्र को संचालित नहीं किया. यह पलक्कड़ में लोगों के दशकों पहले के एक अन्य सफलतम आंदोलन की याद दिलाता है. योजना आयोग ने 1973 में यहां एक पनबिजली बांध निर्माण की योजना को मंजूरी दी थी. यह बांध साइलेंट वैली (खामोश घाटी) की कीमत पर बनने वाला था जो एक आरक्षित वन है. इसके खिलाफ साइलेंट वैली अभियान शुरू हो गया और अंततः परियोजना को 1983 में बंद कर दिया गया.
जब एचसीसीबी ने प्लाचीमाडा में संयंत्र को बंद कर दिया तब प्रदर्शनकारियों ने क्षतिपूर्ति के लिए प्रयास करना शुरू किया. मार्च 2010 में राज्य सरकार को जमा की गई जयकुमार समिति की रिपोर्ट में संयंत्र की वजह से हुए कुल नुकसान को 216.26 करोड़ रुपए आंका गया है. उन्होंने मुझे बताया कि रिपोर्ट में नौकरशाही का दबाव था कि नुकसान को “हल्का” दिखाया जाए. जयकुमार ने कहा, “मेरे काम में हस्तक्षेप का कई बार यह कहते हुए प्रयत्न किया गया कि कंपनी के खिलाफ रिपोर्ट लिखने से राज्य के उद्योगिक विकास में असर पड़ेगा.” उन्होंने प्लाचीमाडा की स्थिति को “एक चौतरफा आपदा” बताया. जब समिति ने एचसीसीबी को अपना पक्ष रखने को कहा तो कंपनी की दलील थी कि वह इस विवाद पर समिति को प्राधिकरण के रूप में मान्यता नहीं देती.
रिपोर्ट के आधार पर फरवरी 2011 में राज्य सरकार ने प्लाचीमाडा कोका-कोला पीड़ित राहत और मुआवजा दावा विशेष न्यायाधिकरण विधेयक पारित कर दिया. बिल में उचित मुआवजे की राशि के निर्धारण के लिए एक अधिकरण की स्थापना का प्रस्ताव है. लेकिन राज्य के राज्यपाल आर. एस. गवई ने बिल को मंजूर न कर इस पर विचार करने के लिए भारत के राष्ट्रपति के समक्ष भेज दिया. उस साल मार्च में यह बिल तत्कालीन केंद्र सरकार, जिसका नेतृत्व कांग्रेस कर रही थी, को भेज दिया गया जहां 4 महीनों तक गृह मंत्रालय (एमएचए ) में पड़ा रहा. जयकुमार ने जब सुना कि बिल को केंद्र सरकार के पास भेजा जा रहा है तो उन्हें एहसास हो गया कि, “इसका कुछ नहीं होगा.” उन्होंने कहा, “मैं इस कंपनी की ताकत को जानता हूं.”
एमएचए ने विधेयक को सुझावों के लिए अन्य मंत्रालयों को भेजा. ग्रामीण विकास, कृषि और सामाजिक न्याय मंत्रालय ने विधेयक पर कोई आपत्ति नहीं जताई. लेकिन फली एस. नरीमन, जो एचसीसीबी के कानूनी सलाहकार थे, की एक 59 पेज की प्रस्तुति के आधार पर मंत्रालय ने राज्य सरकार को विवरण देने को कहा. नरीमन ने अपनी प्रस्तुति में दावा किया कि राज्य विधान सभा को ट्रिब्यूनल स्थापित करने का “विधायी अधिकार” नहीं है और यह शक्ति केवल भारत की संसद को प्रदान की गई है. उन्होंने यह भी लिखा कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल “प्रदूषण के कारण होने वाले नुकसान सहित सभी मामलों को तय करने के लिए पूरी तरह से और विशेष रूप से अधिकृत है”. नवंबर 2015 में, भारतीय जनता पार्टी की केंद्र में सरकार बनने के बाद केरल के गवर्नर को जानकारी कराई गई कि भारत के राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने बिल पर “अपनी अनुमति रोकने पर खुशी जाहिर की है.”
मलयालम पत्रिका केरालियम, जो पर्यावरण संबंधी समाचारों को प्रमुखता से प्रकाशित करती है, के संपादक एस. शरत के अनुसार, संयंत्र के खिलाफ आंदोलन के बावजूद, मुआवजे के मामले को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष की गई अपील में भी नहीं उठाया गया. 2017 में एचसीसीबी के यह कहने के बाद कि संयंत्र पर गतिविधि फिर से शुरू करने का उसका कोई इरादा नहीं है, सुप्रीम कोर्ट ने एचसीसीबी के खिलाफ सभी अपीलों को खारिज कर दिया. वर्षों से मामले पर नजर बनाए रखने वाले एस. शरत ने मुझे बताया, “मुआवजे सहित अन्य मुद्दों पर अदालत का ध्यान आकर्षित करने के प्रयास किए गए थे लेकिन कोका-कोला ने ऐसा न होने देने के लिए मामले को खत्म करवा दिया.”
2016 में सत्ता में लौटने के बाद, केरल में वाम लोकतांत्रिक मोर्चा सरकार ने प्लाचीमाडा के लोगों को मुआवजा के कई आश्वासन दिए. 2002 से ही आंदोलन में भाग ले रहे, दक्षिण भारत के किसान समूह राष्ट्रीय किसान महासंघ के समन्वयक पीटी जॉन ने मुझे बताया, "अपने चुनावी घोषणा पत्र में, एलडीएफ सरकार ने बिल को लागू करने और मुआवजे का वादा किया था.” शरत ने बताया कि 2017 में विरोध के बाद जब यह मामला फिर उठा तो मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने कहा कि मुआवजे पर विचार करने के लिए न्यायाधिकरण के गठन पर विचार करेंगे.” शरत ने आगे कहा कि सरकार को आवश्यक परिवर्तन करने के बाद ही बिल को पुन: पेश करना चाहिए ताकि उसे 2011 जैसी कानूनी बाधाओं का सामना न करना पड़े.
मुआवजे के बिल के लिए राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया के बारे में जॉन ने मुझे बताया, “हमारा आरोप है कि जिन लोगों के पास अधिकार है और उन्हें लागू करने का कर्तव्य जिनका है वे ऐसा नहीं कर रहे हैं और इस तरह कोका-कोला का सहयोग कर रहे हैं.” एचसीसीबी संयंत्र की स्थापना एलडीएफ सरकार के समय हुई थी. तब से, या तो एलडीएफ या कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट ने राज्य में सरकार बनाई है. “जब एलडीएफ सत्ता में है, तो यूडीएफ हमारा समर्थन करता है. जब यूडीएफ सत्ता में है, तो एलडीएफ हमारा समर्थन करता है”, पर्यावरण कार्यकर्ता और प्लाचीमाड़ा संघर्ष समिति के संयोजक बीजू मुझे बताया. जॉन के विचार भी इसी तरह के हैं. “दोनों पार्टियों में कोई फर्क नहीं हैं, दोनों एक समान हैं.”
अलाथुर निर्वाचन क्षेत्र, जिसमें प्लाचीमाडा निर्वाचन क्षेत्र भी आता है, से संसद सदस्य, पी के बीजू ने मुझे बताया कि एलडीएफ ने मांग को पूरा करने का प्रयास किया था. उन्होंने दावा किया कि केंद्र सरकार में शामिल पार्टियों ने बिल को मंजूर कराने का प्रयास नहीं किया. “बीजेपी और कांग्रेस सरकार दोनों ने गैर-जिम्मेदाराना रुख अपनाया और गरीब लोगों को मुआवजा देने का विरोध किया.” उन्होंने कहा कि दोनों दल सोचते हैं कि “एक बार एक कॉर्पोरेट कंपनी भुगतान कर देती है तो अन्य कॉर्पोरेट कंपनियों से पीड़ित लोगों को भी लाभ मिल सकता है.”
हाल ही में प्लाचीमाडा के निवासियों ने जो गतिविधियां देखीं उनके बारे में जॉन का कहना था, “जमीन पर किसी तरह का नवीकरण का काम हो रहा है.” मैंने मुआवजे के बारे में मुख्यमंत्री, वित्त मंत्री और राज्य के मुख्य सचिव को सवाल भेजे थे. मैंने यह भी पूछा था कि क्या एचसीसीबी द्वारा कोई नई परियोजना प्लाचीमाडा में बनाई जा रही है? मुख्यमंत्री के कार्यालय ने पलक्कड़ के जिला कलेक्टर डी. बालमुरली को मेरा ईमेल फारवर्ड कर दिया. जब मैंने बालमुरली को फोन किया, तो उन्होंने कहा , “मुझे इस बात की जानकारी नहीं है कि किसी तरह के मुआवजे का भुगतान करना होगा. मैं उसे पढ़ने के बाद ही कोई टिप्पणी कर पाऊंगा.” मैंने जल संसाधन मंत्री और विधानसभा में पेरुमाटी पंचायत क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले विधायक कृष्णामूर्ति के. से मुआवजे से संबंधित एक नया बिल पेश करने की संभावना के बारे में पूछा, तो उन्होंने ने मुझसे कहा, “मुझे इसके बारे में पता नहीं है. मैंने इसका अध्ययन नहीं किया.” दोनों ने एचसीसीबी को एक नया संयंत्र स्थापित करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया .
कोका कोला कंपनी की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी कोका-कोला इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के एक प्रवक्ता ने भी प्लाचीमाडा में कंपनी की भूमि पर नई औद्योगिक प्रक्रिया को खारिज कर दिया. नाम न छापने की शर्त पर उस प्रवक्ता ने ईमेल कर बताया, “कंपनी केवल रखरखाव कर रही है और किसी भी तरह की औद्योगिक गतिविधि शुरू करने की कोई योजना नहीं है.” प्रवक्ता ने कहा मुआवजे पर टिप्पणी करना" अपरिपक्व" होगा. प्रवक्ता ने यह भी कहा कि प्लाचीमाडा में बॉटलिंग प्लांट ने उत्पादन के वर्षों में हमेशा सभी नियमों और विनियमों का पालन किया.
ईमेल में यह भी उल्लेख है कि संयंत्र ने पेरुमाटी पंचायत में 60000 लीटर से अधिक शुद्ध पेयजल का वितरण मुफ्त में किया. मैंने पर्यावरण कार्यकर्ता बीजू से पूछा कि क्या पानी का वितरण किया गया था . “कंपनी को अदालत के निर्देशों के अनुसार पानी की आपूर्ति करने का आदेश दिया गया था," उन्होंने कहा. "लेकिन सभी ने कहा कि वे कंपनी का दिया पानी नहीं पिएंगे."
Thanks for reading till the end. If you valued this piece, and you're already a subscriber, consider contributing to keep us afloat—so more readers can access work like this. Click to make a contribution: Contribute