20 अक्टूबर को असम के सोनितपुर जिले के प्रशासन ने कोविड-19 महामारी के बीच भारासिंग्री गांव के 64 मुस्लिम परिवारों के घर ढहा दिए, जिससे 500 से अधिक लोग बेघर हो गए. भारासिंग्री के रहने वालों ने कहा कि असम पुलिस के साथ कई अर्धसैनिक बल और प्रशासन के लोग गांव में घुसे, उन्हें घरों से बेदखल कर दिया और घरों पर जेसीबी चला दिया. भारतीय जनता पार्टी द्वारा चलाए गए एक अभियान के तहत यह विध्वंस किया गया था. ग्रामीणों पर राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर में शामिल होने के बावजूद "अवैध बांग्लादेशी" होने का आरोप लगाया गया.
कई स्थानीय लोगों ने कहा कि जिला प्रशासन मुसलमानों को बदनाम करने और उनके घर ढहाने में बीजेपी नेताओं के इशारे पर काम कर रहा था. सरकार के प्रतिनिधियों ने हमें बताया कि यह उन लोगों की कानूनी बेदखली थी जिन्होंने सरकारी जमीन पर कब्जा किया हुआ था. लेकिन कारवां के पास कई ऐसे दस्तावेज हैं जो दिखाते हैं कि जमीन कानूनी रूप से मुस्लिम लोगों की है. स्थानीय लोगों ने यह भी बताया कि प्रशासन ने घर ढहाने से पहले की जाने वाली किसी भी कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया.
5 अगस्त को उत्तर प्रदेश के अयोध्या में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राम मंदिर की आधारशिला रखी थी. उसी दिन हिंदू राष्ट्रवादियों ने देश के कई हिस्सों में कई कार्यक्रम आयोजित किए और कई जगह मुस्लिम समुदायों से टकराव भी हुआ.
सोनितपुर जिले में रामसेना और बजरंग दल ने भारासिंग्री के पास हर गौरी मंदिर में एक मोटरसाइकिल यात्रा निकाली. मंदिर जाने का रास्ता मुस्लिम इलाके से होकर गुजरता है और मंदिर तक जाने वाली सड़क एक वार्ड सदस्य सिकंदर अली की जमीन पर बनी है.
भारासिंग्री के स्थानीय निवासियों ने मुझे बताया कि मुस्लिम इलाके से गुजरने के दौरान हिंदू भीड़ अनियंत्रित और भिड़ने के मिजाज में थी. सिकंदर ने कहा, "बजरंग दल और राम सेना के लोग गुस्से में थे. उन्होंने हमारे गांव के लोगों को उकसाया. वे यहां किसी घटना को अंजाम देने की योजना से आए थे और उन्होंने ऐसा किया भी. उन्होंने मस्जिद और लोगों के घरों में पटाखे फेंके. उन्होंने लोगों के घरों के सामने जोर-जोर से गाने भी बजाए." गांव वालों और दक्षिणपंथी हिंदू संगठनों के बीच थोड़ी हाथापाई हुई लेकिन दोनों ही तरफ से कोई गंभीर रूप से घायल नहीं हुआ.
सिकंदर के मुताबिक कई बीजेपी नेता इसमें शामिल थे. उनके साथ ही ढेकियाजुली के विधायक अशोक सिंघल, होजाई के विधायक शिलादित्य देव, सौतिया के विधायक पद्मा हजारिका, बीजेपी के पूर्व किसान नेता सत्यरंजन बोराह और स्थानीय दक्षिणपंथी नेताओं ने मिलकर एक अभियान शुरू किया जिसके तहत गांव वालों पर विदेशी होने का आरोप लगाया गया. भारासिंग्री के 42 वर्षीय निवासी वाजकुरूनी ने 5 अगस्त को हुई भिडंत के बारे में कहा, "हमें अगस्त की हिंसा के लिए बलि का बकरा बनाया गया है. हिंसा के बाद उन्होंने हमें ही इसके लिए दोषी ठहराया लेकिन हमने कोई प्रतिक्रिया नहीं की तो अपने विधायकों के साथ मिलकर उन्होंने एक मुद्दा गढ़ लिया कि कैसे 200-300 परिवार यहां आ गए.” वाजकुरूनी ने कहा कि जिले के कई बीजेपी नेता शिलादित्य, अशोक सिंघल, पद्मा हजारिका, सत्यरंजन बोरहा यहां के मुस्लिम निवासियों के खिलाफ भाषण देने के लिए भारासिंग्री आए थे. उन्होंने भड़काऊ भाषण दिए. फिर उनके सभी संगठन हमारे पीछे पड़ गए और घोषणा की कि वे हिंदू समाज की ताकत दिखाने के लिए हमें बेदखल कर देंगे."
कारवां को प्राप्त एक वीडियो में हिंसा के बाद क्षेत्र का दौरा करने वाले सिंघल को यह कहते हुए सुना जा सकता है कि "अगर बाबर भक्तों ने राम भक्तों पर हमला किया तो उसका जवाब दिया जाएगा." सिंघल ने इस हिंसा में उनकी भूमिका के बारे में पूछे गए ईमेल या कॉल का जवाब नहीं दिया. बीजेपी के किसी भी विधायक ने सवालों का जवाब नहीं दिया.
हजारिका ने दावा किया कि इसी तरह की बेदखली कई अन्य जिलों में भी की गई. हजारिका ने मुझसे कहा, "यह हमारी सरकार के मुख्य एजेंडे में है कि अगर किसी भी संदिग्ध नागरिक ने सरकारी जमीन पर कब्जा किया है तो उसे बेदखल किया जाना चाहिए." ऐसी ही बेदखली काजीरंगा, चोकीघाट, मंगलदई, मोरीगांव और थेलामारा में की गई है. लिहाजा उनके पास कोई कानूनी दस्तावेज नहीं है, उन्होंने जमीन को अवैध तरीके से हड़प लिया है, इसलिए सरकार ने अपना कर्तव्य निभाया है."
जब उन्हें यह बताया गया कि भारासिंग्री के लगभग सभी निवासियों के पास नागरिकता और जमीन के दस्तावेज थे, तो हजारिका ने कहा कि दस्तावेजों की जांच करना उनकी जिम्मेदारी नहीं है. “लोग तो कहते ही रहते हैं. हमारे पास उसका कोई जवाब नहीं है. पूरी जांच के बाद सरकार ही कह सकती है कि कौन अवैध है. वे अपने जमीन के अधिकार और नागरिकता से जुड़े दस्तावेज जांच के लिए प्रशासन को सौंपेंगे. सरकार उनकी सच्चाई साबित करेगी."
बीजेपी के इस अभियान के बाद असम की राज्य सरकार के अधिकारियों ने भी भारासिंग्री के निवासियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू कर दी. असम के एक दैनिक अखबार सेन्टिलन की रिपोर्ट के अनुसार राज्य के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह ने ''जनता को आश्वासन दिया'' कि पुलिस ''अवैध रूप से रहने वाले लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करेगी." जब मैंने ज्ञानेंद्र से संपर्क किया, तो उन्होंने बहुत नपे-तुले शब्दों में मुझे बताया, "अगर स्थानीय प्रशासन को कानूनी रूप से निष्कर्ष निकलने पर पता चलता है कि भारासिंग्री में रहने वाले लोग अवैध रूप से रह रहे हैं, तो कानून के अनुसार उन पर सख्त कार्रवाई की जाएगी."
सिकंदर के अनुसार, बरछाला निर्वाचन क्षेत्र के बीजेपी विधायक गणेश लिंबु ने कुछ समय बाद भारासिंग्री के अपने आवास पर कई लोगों को बुलाया और उन्हें बताया कि जो लोग निर्वाचन क्षेत्र में पंजीकृत मतदाता नहीं हैं, उन्हें बाहर निकाल दिया जाएगा. पंचायत के वार्ड सदस्य सिकंदर लिंबु के निवास पर हुई बैठक में मौजूद थे. उन्होंने मुझे बताया, "जिनके घर तबाह कर दिए गए उनमें से लगभग 90 प्रतिशत स्थानीय मतदाता थे." जब मैंने लिंबु से बात की तो उन्होंने मुझे बताया कि भारासिंग्री के स्थानीय लोगों की मांग पर ही इस बेदखली को किया गया था. उन्होंने कहा, "जो लोग मेरे साथ बैठक में मौजूद थे, उन्होंने मुझसे कहा कि बाहर से कई लोग यहां आकर बस गए हैं, उन्हें पूरी तरह से बाहर निकाल दें. उन्होंने हमें पुनर्वास के लिए कुछ जगह देने के लिए कहा लेकिन सरकारी अधिकारी इस तरह से काम नहीं करते हैं. मैं सभी को बेदखल नहीं कर सकता. उपाधीक्षक डिप्टी कमिश्नर जैसे सरकारी अधिकारी ने इसकी जांच की कि जो लोग नियमों के अनुसार बसे थे, उन्हें बेदखल नहीं किया गया था. सिर्फ उन्हें ही बेदखल किया गया जिन्होंने नियमों का पालन नहीं किया था. और ऐसा ही हुआ था.” बैठक में मौजूद सिकंदर ने इस बात से पूरी तरह इनकार किया कि किसी भी स्थानीय निवासी ने यह मांग की थी.
12 अक्टूबर को मुस्लिम युवाओं का प्रतिनिधित्व करने वाले एक छात्र संगठन ऑल असम माइनॉरिटी स्टूडेंट्स यूनियन की स्थानीय इकाई ने सोनितपुर जिले के उपायुक्त मानवेंद्र प्रताप सिंह को एक ज्ञापन सौंपा जिसमें बेदखली पर रोक लगाने की मांग की गई थी. सोनितपुर जिले के एएएमएसयू अध्यक्ष रहमत अंसारी ने मुझसे कहा, "यह (बेदखली) एक राजनीतिक साजिश है. 5 अगस्त को हुए सांप्रदायिक उपद्रव के बाद राजनीतिक के तहत ऐसा किया गया है."
20 अक्टूबर को भारासिंग्री के ग्राम प्रधान मोहन चोमलोगई ने कुछ ग्रामीणों को बताया कि अगले दिन जिला प्रशासन गांव से अवैध रूप से बसने वालों को निकालने जा रहा है. भारासिंग्री के निवासियों ने मुझे बताया कि अगले दिन गांव पुलिस और अर्धसैनिक बलों से भर गया. भारासिंग्री के रहने वाले हफिजुर रहमान ने मुझे बताया, "300 से 350 पुलिस, सीआरपीएफ (केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल) और कुछ अन्य काली वर्दी पहने बलों ने उन्हें बेदखल कर दिया." सुबह 9 बजे चार जेसीबी पहुंची और नदी के सबसे नजदीक स्थित मिट्टी और बांस से बनीं झोपड़ियों को तोड़ना शुरू कर दिया. दोपहर तक करीब 64 घर तबाह हो गए थे. इससे 546 लोग बेघर हो गए जिनमें दस वर्ष से कम उम्र के 164 बच्चे भी शामिल थे.
रहमान ने मुझे बताया कि पुलिस और जिला प्रशासन ने उनकी झोपड़ियों को लूटनाशुरू कर दिया और उनकी संपत्ति छीन ली. उन्होंने बताया, "पांच ट्रैक्टर ट्रॉलियां हमारे सामानों से भरी हुई थीं. मैंने सर्कल अधिकारी से शिकायत की कि वे सामान क्यों ले जा रहे हैं. अगर आप सामान जब्त कर रहे हैं, तो आपको हमें जब्ती समान की सूची देनी होगी. आप ऐसे ही सामान नहीं ले सकते. यह गैरकानूनी है." रहमान ने कहा कि स्थानीय लोगों के विरोध के बाद प्रशासन ने उनका जब्त किया हुआ सामान लौटा दिया.
डिप्टी कमिश्नर मानवेंद्र ने मुझे बताया कि "उन्होंने केवल अवैध रूप से रहने वालों के घरों को ही तोड़ा है. जिन लोगों ने सरकारी भूमि का अतिक्रमण किया था उन्हें वहां से हटा दिया गया है. जिन लोगों ने जमीन खरीदी है या जिन्हें सरकार ने जमीन आवंटित की है उन्हें नहीं निकाला गया है." हालांकि, जिनके स्थानीय लोगों के घरों को जमींदोज कर दिया गया था उनके पास पट्टे के पंजीकृत विभिन्न सरकारी दस्तावेज भी थे. गांव के रहने वाले 50 साल के यूनुस अली ने बताया, "मैंने जमीन खरीदी और उसे पंजीकृत करवाया. पट्टे के तहत तीन बीघा से ज्यादा दर्ज की गई है. मेरी जमीन नदी के किनारे से शुरू होती है इसलिए मैंने किनारे से 35 फीट दूर अपना घर बनाया. मैंने तटबंध के ठेकेदार से पूछा कि मुझे अपना घर बनाने के लिए तटबंध से कितनी जमीन छोड़नी चाहिए और उसने मुझे 10 मीटर छोड़ने के लिए कहा जो कि 33 फीट होती है. लेकिन बेदखली के दौरान भूमि रिकॉर्ड अधिकारी ने 60 फीट के तटबंध को गिना और मेरे घर को तोड़ दिया." मोरीगांव जिले के लॉट मंडल ने नाम न छापने का निवेदन करते हुए कहा कि ऐसा कोई नियम नहीं है.
स्थानीय लोगों ने यह भी कहा कि असम के कानून के मुताबित सरकार ने बेदखली से 15 दिन पहले नोटिस नहीं भेजा. असम भूमि राजस्व विनियमन अधिनियम 1886 के तहत नियम 18 (3) कहता है, ''बेदखली की कार्रवाई नियमों के तहत नियत प्रक्रिया से नोटिस के प्रकाशन के बाद की जानी चाहिए. इसके लिए जरूरी है कि कब्जाधारक को नोटिस में दर्ज विशेष जमीन पर कब्जा छोड़ने के बारे में बताने के लिए उस संबंधित जमीन या उसके आसपास के प्रमुख स्थानों पर 15 दिन पहले नोटिस चिपकाया जाए.''
सिकंदर ने कहा, “बेदखली से पहले हमें कोई नोटिस नहीं दिया गया था. लॉट मंडल ने निष्कासन से दो-तीन दिन पहले जगह का सर्वेक्षण किया और फिर बिना किसी नोटिस के बेदखली कर दी." डिप्टी कमिश्नर मानवेंद्र ने दावा करते हुए कहा कि सरकारी जमीन से बेदखल करने के लिए किसी नोटिस की जरूरत नहीं थी लेकिन जब उनसे इस बारे में पूछा गया, तो उन्होंने ऐसा कोई कानून या नियम नहीं बताया.
60 वर्षीय मुसरफ हुसैन के घर को भी नष्ट कर दिया गया था. उन्होंने मुझे बताया, “अगर हम गैरकानूनी तरीके से रह रहे हैं, तो वह आएं और हमारे रिकॉर्ड जांच लें. अगर हम अवैध रूप से रह रहे हैं तो हम इस जगह को छोड़ देंगे और अगर नहीं तो उन्हें जरूर हमारी मदद करनी चाहिए. हमारा वोटर कार्ड, राशन कार्ड, एनआरसी, आधार कार्ड, सब कुछ यहीं से है. अगर वे पूरे भारासिंग्री क्षेत्र में एक भी बांग्लादेशी को ढूंढ लेते हैं, तो हम खुद उन्हें बाहर करने में उनकी मदद करेंगे."
लगभग 40 वर्ष के एक स्थानीय निवासी जाकिर हुसैन ने मुझे बताया, "अधिकारियों ने मिआदी भूमि पर बने मकानों को भी नहीं छोड़ा." मिआदी पट्टे, असम के तीन प्रकार के पट्टों में सबसे ज्यादा कानूनी माना हैं जिसे स्थाई निवास के रूप में जाना जाता है. तोजी पट्टे सरकारी भूमि के दीर्घकालिक उपयोग करने वालों को दिए जाते हैं. इसके लिए उन्हें जुर्माना या भू-राजस्व में योगदान देना पड़ता है. एक्सोनिया पट्टे वार्षिक व्यवस्थापन भूमि हैं जिन्हें सरकार को शुल्क का भुगतान करने के बाद मिआदी पट्टे में बदल जा सकता है. हुसैन ने कहा, "हर परिवार ने अपनी भारतीय राष्ट्रीयता साबित करने के लिए जरूरी दस्तावेज दिखाए और फिर भी उन सभी का नाम एनआरसी में आया है." अन्य बेदखल परिवारों के पास सरकार द्वारा जारी किए गए अपक्षरण प्रमाण पत्र हैं, जो असम सरकार द्वारा अपक्षरण या बाढ़ के कारण आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों को दिए जाते हैं. यह दस्तावेज निवास प्रमाण के रूप में तो इस्तेमाल होता है लेकिन यह संपत्ति के स्वामित्व को साबित नहीं करता. असम सरकार अक्सर बाद में भूमि आवंटित करने के लिए अपक्षरण प्रमाण पत्र का उपयोग करती है.
भारासिंग्री का एक स्थानीय निवासी इब्राहिम अली, जिसके माता-पिता मोरीगांव से हैं, आंतरिक रूप से विस्थापित व्यक्ति हैं और उन्होंने मुझे अपने पिता के नाम पर एक प्रमाण पत्र दिखाया है. 65 साल के दिहाड़ी मजदूर अब्दुस सलाम ने भी मुझे एक प्रमाण पत्र दिखाया. हालांकि, प्रशासन ने उन दोनों के घरों के साथ ही एक अन्य परिवार के घर को तोड़ दिया, जिनके पास अपक्षरण प्रमाण पत्र था.
जिन 64 परिवारों के घर ढहा दिए गए थे उन सभी की बाढ़ के कटाव से जुड़ी समान कहानियां थीं. नागांव जिले में बाढ़ के कारण घर नष्ट हो जाने के बाद, भारासिंग्री आए 60 वर्षीय रुस्तम अली ने मुझे बताया, "बाढ़ ने हमारे घर को तबाह कर दिया और हमें यहां आना पड़ा." हुसैन की भी कुछ ऐसी ही कहानी थी. "जब ब्रह्मपुत्र नदी में आई बाढ़ से हमारे घर बह गए तो मेरे माता-पिता यहां आकर बस गए. यह जगह नेपाली हिंदुओं की थी." उन्होंने आगे कहा, "उन्होंने हमें जमीन बेच दी ताकि हम अपना घर बना लें." गांव के स्थानीय लोगों ने कहा कि उनके माता-पिता ने 5000 से 7000 रुपए प्रति बीघा के बीच जमीन खरीदी. नेपाली हिंदू तब चारागाह की जमीन की तरफ चले गए.
वाजकुरूनी ने मुझे बताया, "मेरे माता-पिता ने यह गलती की कि उन्होंने जमीन अपने नाम पर पंजीकृत नहीं कराई. हालांकि, जब से हम यहां बसें हैं तब से सरकार को भूमि राजस्व का भुगतान कर रहे हैं." ये वे परिवार हैं जिन्हें जिला प्रशासन ने शुरू में ''अवैध कब्जा'' करने वाला बताया था. हालांकि प्रशासन ने उन लोगों के घरों को भी तोड़ दिया जिनके पास भूमि पंजीकरण के दस्तावेज थे.
कोलकाता में इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज के एसोसिएट प्रोफेसर गोर्की चक्रवर्ती ने अपनी किताब आसामस्स हिंटरलैंड : सोसाइटी एंड इकोनॉमी इन द चार एरिया में यह पता लगाया है कि कैसे आंतरिक रूप से विस्थापित हुए लोगों, विशेष रूप से मुसलमान, से असम की सरकार अवैध नगारिक या बांग्लादेशीयों की तरह व्यवहार करती है."
उन्होंने मुझे बताया कि ब्रह्मपुत्र ने पिछले 50 वर्षों के दौरान लाखों लोगों को उजाड़ा है और जब ये लोग दूसरे शहरों या गांवों में रोजगार की तलाश में चले जाते हैं, तब असम की मुख्यधारा की सोच उन्हें अवैध विदेशी के रूप में देखती है. उन्होंने कहा कि पिछले एक दशक में मोरीगांव जिले के लाहारीघाट ब्लॉक की 30 प्रतिशत से अधिक भूमि का क्षय हुआ है, जिससे बड़ी संख्या में लोग विस्थापित हुए, जिनमें से हजारों लोग सोनितपुर जिले में जाकर बस गए.
चक्रवर्ती ने कहा, "भूमि कटाव के कारण पीड़ितों का विभिन्न स्थानों पर चले जाना अवैध नहीं है. अगर प्रशासन को ऐसा लगता है कि ऐसा कोई भी सरकारी भूमि में नहीं बस सकता है और उन्हें इस तरह से बेदखल किया जा सकता है, तो यह किसी एक समुदाय या लोगों के लिए ही नहीं बल्कि सभी के लिए समान रूप से लागू होना चाहिए." भारासिंग्री में मैंने जिनसे भी बात की सभी ने बताया कि सिर्फ उनकी धार्मिक पहचान के कारण उनके घर तबाह हो गए. सलाम ने कहा, "पड़ोसी इलाकों में रहने वाले नेपाली हिंदुओं के पास 582 बीघा सरकारी जमीन है और सरकार ने उन्हें नहीं रोका. मुसलमानों के पास केवल कुछ बीघा जमीन थी और उन्हें बेदखल कर दिया गया, इसका क्या मतलब है?" कई स्थानीय लोगों ने कहा कि जिस तरह से प्रशासन ने उन्हें दस्तावेज होने के बाद भी बेदखल किया, इससे स्पष्ट है कि यह बेदखली एक राजनीतिक साजिश का हिस्सा था. वाजकुरूनी ने कहा, "इसी के चलते हमारे घरों का तोड़ा गया. बीजेपी और संघ के नेताओं ने पहले हमें अवैध बताया. जब उन्हें हमारे खिलाफ कोई कानूनी रास्ता नहीं मिला तो हमारे घरों को ढहाने के लिए उन्हें प्रशासन का साथ मिल गया."
लभगभ सभी 64 परिवार अब भारासिंग्री में नदी तट के किनारे तिरपाल के नीचे रह रहे हैं. हुसैन ने कहा, "अगर वे हमें इसी तरह बेदखल करते रहे तो भी हम कहीं नहीं जाएंगे. हम अपने तिरपाल के नीचे नदी के किनारे रहेंगे. मेरा मतदाता पहचान पत्र, एनआरसी, राशन कार्ड, सब कुछ इसी जगह से है. मैं कहीं नहीं जाने वाला."