Thanks for reading The Caravan. If you find our work valuable, consider subscribing or contributing to The Caravan.
जब मैं 1990 के दशक में मुंबई में रह रही थी, मेरी मां (सौतेली) स्मिता पाटिल अक्सर ऐसी महिलाओं के साथ काम करती थीं, जिन्हें बेघर होने का खतरा रहता था. उनके सिर से छत छिन जाने का का खतरा उनके घरों में दुर्व्यवहार के साथ बढ़ता जाता था. एक बार गर्मियों में जब मैं अपने दादा-दादी के घर गई, जो सोलापुर में एक हाउसिंग कॉलोनी, इंदिरा महिला जीवन विकास गृहनिर्माण शान, में रहते थे, मैंने एक यूटोपियन विकल्प देखा. इंदिरा नगर, जैसा कि इसे बोलचाल की भाषा में कहा जाता है, अपने मूल में नारीवादी कॉलोनी है, यहां सभी घरों का स्वामित्व महिलाओं के पास है और केवल महिलाओं को ही विरासत में सौंपा जा सकता है.
जिस विचार को ध्यान में रखकर इंदिरा नगर समुदाय का निर्माण हुआ है, वह नौजवानी में मुझ पर हावी नहीं हुआ, लेकिन जैसे-जैसे मैं स्वतंत्रता की धारणाओं और समाज में स्वयं की भावना को खोजती गई, यह विचार और गहरा होता गया. फरवरी 2024 में सोलापुर की यात्रा के दौरान मैंने इस समुदाय के करीब पहुंचने की कोशिश में इस समाज की तस्वीरें लीं. इस कोशिश में यह ‘झोका’ श्रृंखला तैयार हुई, झोका झूले का मराठी शब्द है और यह कॉलोनी के लगभग सभी घरों में पाया जाता है. मैं बचपन में अक्सर अपने दादा-दादी के घर में झोका पर बैठती थी और अपने दोस्तों के साथ उस समय के लोकप्रिय गाने गुनगुनाती थी.