“मेरा एक सपना था कि इस साल मैं अपनी मेहनत के पैसे बचाकर अरुणाचल प्रदेश के अपने गांव में जमीन लेकर उस पर घर बनाऊं और अपने बच्चों के साथ वहां रहूं,” तमिलनाडु के तिरुपुर जिले में कपड़ा फैक्ट्री में काम करने वाली अनीता चकमा ने मुझसे कहा. अनीता ने बताया, “मेरा पति ड्रग्स लेता था और बहुत ज्यादा दारू पीता था और मुझे मारता था. जब हमारा लड़का हुआ तो उसने कहा कि अगर हमारी बेटी हुई तो वह मुझे मारना छोड़ देगा. ढाई साल बाद हमारी बेटी भी हो गई लेकिन उसने मारना नहीं छोड़ा.” अनीता ने बताया कि वह छह साल तक अपने पति की मार सहती रही लेकिन जब उसे पता चला कि उसके किसी औरत से अवैध संबंध भी हैं तो पानी सिर के ऊपर चला गया और उसने पति को छोड़ने का फैसला कर लिया. 2017 में काम की तलाश में अनीता तमिलनाडु के तिरुपुर आ गईं और अपनी चचेरी बहन के साथ कपड़ा फैक्ट्री में काम करने लगीं.
अनीता की मंशा थी कि वह अपनी कमाई जोड़कर अपने बेटे के लिए घर बना लेंगी जिसे अपने पिता के घर में बुरे हालत में रहना पड़ रहा है. लेकिन अनीता का यह सपना 24 मार्च को लॉकडाउन की घोषणा ने चूर-चूर कर दिया.
अनीता जहां काम करती थीं उस कपड़ा फैक्ट्री ने उन्हें बस अप्रैल के उन दिनों का पैसा दिया है जब उन्होंने काम किया था. अनीता ने मुझे बताया कि अगर वह जल्दी अपने गांव नहीं लौटीं तो शायद भूख से मर जाएंगी. उन्होंने कहा, “अपने घरों में तो हम जंगल में भी सब्जियां खोज सकत हैं लेकिन यहां हर चीज बहुत महंगी है और हमारे पैसे खत्म हो रहे हैं.” अनीता जिस हॉस्टल में रहती हैं उसमें उनकी कंपनी की चार महिला कर्मचारी भी रहती हैं. उनके मालिक ने उन्हें मार्च में 5 किलो चावल, 2 किलो दाल, एक 1 किलो आटा और सिमोलिना दिया था लेकिन छह हफ्तों में वह सामान भी खत्म हो गया है और अब ये लोग अपनी जरूरतों के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
अनीता की कहानी पूर्वोत्तर के उन हजारों-हजार प्रवासी मजदूरों की कहानी है जो काम की तलाश में मेनलैंड भारत आते हैं. ये लोग जिम, स्पा, रेस्त्रां और मॉल में काम करते हैं. और ये सभी जगहें ऐसी हैं जो लॉकडाउन में सबसे ज्यादा प्रभावित हुईं. ये जगहें 24 मार्च को राष्ट्रव्यापी बंद से पहले ही बंद हो चुकी थीं और आशंका है कि लॉकडाउन खत्म होने के बाद भी ये सबसे आखिर में खुलेंगी. मैंने पूर्वोत्तर भारत के जिन प्रवासी मजदूरों से बात की, वे ऐसी ही जगहों पर काम करते हैं. पूर्वोत्तर राज्यों के प्रवासी ऐसी जगहों पर, बेहद खराब स्थितियों में काम करते हैं और अक्सर अपने भोजन के लिए अपने मालिकों पर आश्रित होते हैं. कई बार तो उन्हें अपने मालिकों के घरों को ही किराए पर लेना पड़ता है.
ऐसे बहुत से मामले सामने आए हैं जिसमें पूर्वोत्तर के कर्मचारियों को उनके मालिकों ने सताया, भूखा रखा और घरों से निकाल दिया. लॉकडाउन में सरकारी मदद के आभाव में इनके पास पैसा और भोजन बहुत कम बचा है और ये लोग अपने घर लौटने की कोशिश कर रहे हैं. ऐसे लोग इस बात से भी डरे हुए रहते हैं कि वे घर जाकर क्या करेंगे क्योंकि वहां रोजगार के अवसर बहुत कम हैं और यदि उन्हें जाना ही पड़ा तो मुख्य भूमि भारत में कमाई से हाथ धोना पड़ेगा.
कमेंट