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नशे में धुत्त होकर घूरते युवा, ताश खेलते हुए आपस में फुसफुसाते लोग, तंग और गंदी गलियों में खेलते बच्चे, कूड़े के ढेर, पानी लेने के लिए जगह-जगह जमा लोग, सड़क के ऊपर बहता सीवर का गंदा पानी, यह नज़ारा था दिल्ली के आनंद पर्वत पर बने ट्रांजिट कैम्प का जहां इसी शहर की कठपुतली कॉलनी के हज़ारों विस्थापित परिवार अपना जीवन बसर कर रहे हैं.
पिछले 5 सालों में मैं वहां लगभग पांच बार गया हूं और हर बार मुझे स्थिति पहले से बदतर ही नज़र आई है. पहली बार जब मैंने यहां आना चाहा तब लोगों ने मना किया और कहा कि इलाका सुरक्षित नहीं है और कोई भी वहां से किसी मीडिया को रिपोर्ट नहीं करने देगा. पहली बार जब मैं वहां गया तो कुछ लिख नहीं सका और न ही किसी ने मुझे कोई तस्वीर लेने दी. दूसरी बार जब मैं वहां गया, तो लोग ट्रांजिट कैम्प की बदहाली से परेशान थे.
चार साल बीत जाने के बाद इस वर्ष जब दिल्ली में डेमोलिशन और विस्थापन का ताज़ा दौर शुरू हुआ, तो मैंने ट्रांजिट कैम्प के बारे में लिखने का फैसला किया. जब मैंने वहां कुछ लोगों से बात करने की कोशिश की तो लोगों ने बदतमीज़ी और हाथापाई भी की. मेरा संपर्क ट्रांजिट कैम्प के निवासी हैदर अली से हुआ जो मूलतः बिहार से हैं पर उनका बचपन कठपुतली कॉलोनी में ही बीता है. हैदर पेशे से वकील हैं और वह कठपुतली कॉलोनी के विस्थापित लोगों के अधिकार की कानूनी लड़ाई निःशुल्क लड़ रहे हैं.
इस साल 17 जून को मैं हैदर के साथ ट्रांजिट कैम्प गया. उस समय बहुत बारिश हो रही थी और वह पूरा इलाका गंदगी से भर गया था. हैदर ने मुझे कई लोगों से मिलाया. उन्होंने अपनी आपबीती सुनाई औऱ मुझे शौचालय, स्नानघर और पीने के पानी के स्रोत दिखाए. जितने भी शौचालय मैंने देखे, वे बहुत ही गंदे और कुव्यवस्था से भरे थे, पानी के पाइप और नल शौचालय के नज़दीक कीचड़ में थे. स्नानघरों के दरवाज़े टूटे थे और वहां बहुत गंदगी थी. मैंने ट्रांजिट कैम्प के उस इलाके को देखा जो निचले हिस्से में बना था और जहां आर्थिक रूप से निम्न वर्ग के लोग रहते हैं. जबकि कैम्प के ऊपरी हिस्से पर यानी जो पहाड़ी के ऊपर है, वहां कलाकार, कारीगर और वे अन्य लोग रहते हैं जो निचले हिस्से के लोगों से ऊपर के स्तर के हैं.
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