12 जून को रात के तकरीबन 11.30 बजे दिल्ली के मदनपुर खादर इलाके में स्थित रोहिंग्या शरणार्थियों के शिविर में आग लग गई. आगजनी में 50 से अधिक घर खाक हो गए और इनमें रहने वाले 270 के आसपास लोग बेघर हो गए हैं.
इसके अगले दिन मैं वहां रहने वालों से जब मिली, तो उन्होंने मुझे बताया कि इस आग में संयुक्त राष्ट्र संघ मानव अधिकार आयोग सहित उनके अन्य पहचान पत्र भी राख हो गए हैं. 22 साल की सलीमा बेगम ने मुझसे कहा, “आग इतनी तेज थी हम सिर्फ अपनी जान बचाकर भाग पाए.” हालांकि किसी को यह नहीं पता है कि आग कैसे लगी, लेकिन शरणार्थियों को शक है कि उन्हें परेशान करने के लिए आग लगाई गई होगी. पहले यह शरणार्थी बगल के कालिंदी कुंज इलाके में स्थित एक शिविर में रहते थे. उसमें भी 2018 में आग लग गई थी. एक सामाजिक कार्यकर्ता ने मुझे बताया कि मदनपुर खादर शिविर जिस जमीन पर बना है वह उत्तर प्रदेश सरकार के सिंचाई विभाग की जमीन है और वह विभाग इस जमीन को खाली करवाना चाहता है.
आग में किसी की जान तो नहीं गई है और न कोई घायल हुआ, लेकिन जो नुकसान यहां रहने वालों का हुआ है वह बहुत ज्यादा है. 13 जून को जब मैं बेगम से बात कर रही थी तो मैंने देखा कि बहुत सारी महिलाएं और बच्चे धूप से बचने के लिए मस्जिद के साथ लगे कैंप में जमा हैं. बेगम ने मुझसे कहा कि “हम लोगों ने कमरतोड़ मेहनत कर यहां अपनी जिंदगी शुरू करने की कोशिश की है. हमने अपने बच्चों की शिक्षा के लिए पैसे जुटाए, कूलर जैसा महंगा सामान खरीदा ताकि गर्मियों में हमारे बच्चे चैन से सो सकें लेकिन अब सब खत्म हो गया.” मैंने वहां देखा कि लोग गैर सरकारी संस्थान और दिल्ली सरकार के अधिकारियों द्वारा वितरण किए जा रहे भोजन के लिए लाइन लगाए हैं और कुछ लोग राख से अपना सामान निकाल रहे हैं ताकि कबाड़ में बेच सकें.
27 साल के मोहम्मद नूर कासिम ने मुझे बताया कि पिछले दो सालों में उन्होंने हजार-हजार कर 3000 रुपए गुल्लक में जोड़े थे. वह पैसे भी आग में स्वाहा हो गए. उनका कहना था, “आग इतनी तेजी से फैल रही थी या तो हम अपनी जान बचा सकते थे या अपने सामान को बचा सकते थे.”
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